"मोहन" पखवाडा
(जन्म 01 अप्रैल 1909 मृत्यु
15 अप्रैल 1989)
पण्डित मोहन प्यारे द्विवेदी
‘मोहन’ के कुछ प्रिय भजन
प्रस्तोता: डा. राधेश्याम
द्विवेदी नवीन
1. मन की तरंग मार लो बस हो गय भजन
मन की तरंग मार लो बस हो गय भजन ।
आदत बुरी सुधार लो बस हो गया भजन ॥
आऐ हो तुम कहाँ से जाओगे तुम जहाँ ।
इतना सा बस विचार लो बस हो गया भजन ॥
कोई तुमहे बुरा कहे तुम सुन करो क्षमा ।
वाणी का स्वर संभार लो बस हो गया भजन ॥
नेकी सबही के साथ में बन जाये तो करो ।
मत सिर बदी का भार लो बस हो गया भजन ॥
कहना है साफ साफ ये सदगुरु कबीर का ।
निज दोष को निहार लो बस हो गया भजन ॥
2. पितु मातु सहायक स्वामी
पितु मातु सहायक स्वामी सखा तुमही एक नाथ हमारे हो.
जिनके कछु और आधार नहीं तिन्ह के तुमही रखवारे हो.
सब भांति सदा सुखदायक हो दुःख दुर्गुण नाशनहारे हो.
प्रतिपाल करो सिगरे जग को अतिशय करुणा उरधारे हो.
भुलिहै हम ही तुमको तुम तो हमरी सुधि नाहिं बिसारे हो.
उपकारन को कछु अंत नही छिन ही छिन जो विस्तारे हो.
महाराज! महा महिमा तुम्हरी समुझे बिरले बुधवारे हो.
शुभ शांति निकेतन प्रेम निधे मनमंदिर के उजियारे हो.
यह जीवन के तुम्ह जीवन हो इन प्राणन के तुम प्यारे हो.
तुम सों प्रभु पाइ प्रताप हरि केहि के अब और सहारे हो.
3. तूने रात गँवायी
तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के.
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय रे.
सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे.
बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे.
माला फेरत जुग हुआ गया ना मन का फेर रे. गया ना मन का फेर रे .
हाथ का मनका छँड़ि दे मन का मनका फेर रे .
दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय रे .
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय रे .
सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद रे.दुख में करता याद रे .
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद .
No comments:
Post a Comment