मेरे तीसरे नंबर के पौत्र कुमार ध्रुव (आत्मज डा. सौरभ द्विवेदी व डा. तनु मिश्रा) का जन्म 21 दिसंबर 2022 को लखनऊ में हुआ था। उनके माता-पिता डॉक्टर हैं ,जो पूरे दिन अपने व्यवसाय और सरकारी सेवा में लगे रहते है । उन्हें घर गृहस्थी के लिए समय निकालना आसान नहीं है। सौभाग्य से उन्हें माता पिता बनने का अवसर परमात्मा ने दिया। ये दंपत्ति थोड़ा अलग किस्म के हैं। स्वतंत्र आचार - विचार और गतिविधियों के कारण इनके रूटीन हमारी पीढ़ी से हट कर है ।
कुमार ध्रुव के जन्म से पूर्व और बाद में भी ये पीढ़ी भारत के अंदर और बाहर काफी भ्रमण किया करते रहे है। पुरानी पीढ़ी में इस तरह जच्चे - बच्चे को दूर दराज आने जाने और नदी - नाला नाघने पर रोक था। इससे नकारात्मक शक्तियों से जच्चे - बच्चे की सुरक्षा की बात बड़े - बूढ़े कहते आए हैं। पैसा खर्च करने और सेवकों के द्वारा देखरेख के बाबजूद हमारे इस बच्चे का नैसर्गिक विकास कुछ अलग तरह से हुआ है। बालक को दिन में अपने माता पिता का सानिध्य कम मिल पाता था। इसलिए जब यह सानिध्य पाता तो उन्हें सहज में छोड़ता नहीं था। इसलिए बच्चे का स्वभाव भी कुछ अलग तरह से विकसित हुआ। अलग तरह से मतलब उसे देखभाल और लाड़ प्यार में ज्यादा लोगों को ज्यादा ध्यान देना पड़ता था।
घर के सबसे वरिष्ठ सदस्य के रूप में हम लोगों की ये इच्छा थी कि समय से बालक का चूड़ाकर्म (मुंडन) संस्कार संपन्न हो जाए। जिससे वह अपने परंपरागत संस्कृति में अच्छी तरह घुल-मिलकर अपने भविष्य पथ पर अग्रसर हो सके। देश- विदेश से उसे नकारात्मक प्रभाव ना मिले और वह नैसर्गिक पथ पर ही बढ़े। मुझे इनके साथ रहने का अवसर मिला और मैं काफी करीब से इन्हें जाना-समझा और संभाला भी। सर्व सम्मति और ईश्वर की कृपा से नवंबर 2025 की तीसरी तारीख को चूड़ाकर्म मां विंध्यवासिनी धाम में सम्पन्न कराने का समय नियत हुआ।
जिसमें परिवारी और आत्मीय जनों ने पहुंचकर साक्षी बनकर बच्चे को आशीर्वाद भी दिया।
मुंडन से ऋषि संस्कृति और व्यवस्थित बौद्धिक विकास
हिन्दू धर्म में स्थूल दृष्टि से प्रसव के साथ सिर पर आए बालों को हटाकर शिर के ऊपरी आवरण खोपड़ी की सफाई करना आवश्यक होता है। सूक्ष्म दृष्टि से शिशु के व्यवस्थित बौद्धिक विकास, कुविचारों के उच्छेदन और श्रेष्ठ विचारों के विकास के लिए यह जागरूकता जरूरी है। स्थूल-सूक्ष्म उद्देश्यों को एक साथ सँजोकर इस संस्कार का स्वरूप निर्धारित किया गया है। इसी के साथ शिखा स्थापना का संकल्प भी जुड़ा जाता है। हम श्रेष्ठ ऋषि संस्कृति के अनुयायी हैं। हमें श्रेष्ठत्तम आदर्शो के लिए ही निष्ठावान तथा प्रयासरत रहना है। इस संकल्प को जाग्रत रखने के लिए प्रतीक रूप में शरीर के सर्वोच्च भाग सिर पर संस्कृति की ध्वजा के रूप में शिखा की स्थापना भी की जाती है।
विंध्यवासिनी मन्दिर की महत्ता
विंध्याचल देवी मां दुर्गा को समर्पित मां विंध्यवासिनी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस शहर को शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। जहां यह माना जाता है कि यह मंदिर वह स्थान है जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे, यहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। विंध्याचल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है क्योंकि यह पवित्र नदी गंगा के तट पर स्थित है और पहाड़ियों और जंगलों से घिरा हुआ है। यह शहर अपने धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
विंध्यवासिनी मन्दिर में मुण्डन
चूड़ाकर्म (मुण्डन) संस्कार के माध्यम से किसी बालक के सम्बन्ध में उसके सम्बन्धी परिजन, शुभ चिन्तक यह योजना बनाते हैं कि उसे पाशविक संस्कारों से विमुक्त एवं मानवीय आदर्शवादिता से ओत-प्रोत किया जाय ।परिणाम स्वरूप मुण्डन किसी देव स्थल तीर्थ आदि पर इसलिए कराया जाता है कि इस सदुद्देश्य में वहाँ के दिव्य वातावरण का लाभ मिल सके।
विंध्यवासिनी मंदिर में मुंडन संस्कार कराना एक उत्तम और मान्य प्रक्रिया है, क्योंकि यह स्थान भक्तों द्वारा मनोकामना पूर्ति के लिए बहुत लोकप्रिय है। मुंडन या बाल उतरवाने की परंपरा प्राचीन समय से ही चली आ रही है, जिसे पुरे विधि- विधान से मंदिर या अन्य किसी धार्मिक स्थल पर सम्पन्न किया जाता है। मुंडन संस्कार बच्चे को पौष्टिकता, बल, आयुष्य, शुचिता और सौंदर्य प्रदान करने के उद्देश्य से भी की जाती है। यज्ञादि धार्मिक कर्म कांडों द्वारा इस निमित्त किये जाने वाले मानवीय पुरुषार्थ के साथ-साथ सूक्ष्म सत्ता का सहयोग उभरता है। इस अवसर पर मंदिर के छत पर जहां एक ओर मुण्डन कराने वालों का तांता लगा रहा, वहीं जगह-जगह आसन पर बैठे साधक वैदिक मंत्रोच्चार बीच साधना करने में तल्लीन रहते हैं।
विंध्याचल धाम में गंगा स्नान
विंध्याचल में गंगा स्नान माँ विंध्यवासिनी मंदिर के पास गंगा नदी के तट पर किया जाता है। यह एक पवित्र स्थल है जहाँ भक्त गंगा में स्नान कर विंध्यवासिनी देवी के दर्शन के लिए सुगमता से पहुंच पाते हैं। स्नान के लिए कुछ प्रमुख घाट बने हुए हैं, और कुछ निर्माणाधीन हैं। ऐसा माना जाता है कि यहाँ स्नान करने से विशेष पुण्य मिलता है। यहाँ स्नान करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और पापों से मुक्ति मिलती है। यहां का गंगा घाट पूर्ण रूप से व्यवस्थित नहीं था। यहां भीड़ भी थी और जगह भी कम था । हम लोग नाव में सवार होकर गंगा के उस पार गए और खुले में अच्छी तरह से स्नान किया । हमने बालक ध्रुव को गंगा में पकड़ के डुबकी लगवाई और अच्छी तरह स्नान कराया।
स्नान के बाद फिर नाव के द्वारा इस पार वापस आए और प्रसाद आदि लेकर मंदिर पर मुंडन संस्कार सम्पन्न कराने के लिए चढ़ गए। मंदिर में प्रवेश करते ही कुछ पंडा पुजारी और नाई पीछे पड़ गए और कुछ ने मार्ग दर्शन किया और कुछ साथ-साथ ऊपर मण्डप कॉरिडोर स्थल तक भी गए। मंदिर के दूसरे मंजिल पर मुंडन मंडप बना हुआ था जो मुख्य मंदिर के पास ही था। इस मंडप पर कई मुंडन हो रहे थे। लोग भीड़ लगाए हुए थे। शहनाई बज रही थी।
आशीर्वाद बधाई देने वाले और कुछ याचक प्रतीक्षा कर रहे थे। परिजन अपने-अपने बालकों को घेर कर और इस संस्कार को कराने में व्यस्त थे। कैमरे की रोशनी खचाखच फोटो खींचती जा रही थी और एक अलग ही तरह का दिव्यानुभूति यहां दिखलाई दे रहा था। हम लोगों ने अपने पाल्य के साथ इस बेला का भरपूर आनन्द लिया और संस्कार कुशलता पूर्वक सम्पन्न कराया। यद्यपि बालक ज्यादा समय तक इस नए माहौल को आत्मसात करते हुए रोता ही रहा। बाद मे प्रसन्नचित और दिव्य अनुभूति भी उसके छवि पर स्पष्ट देखा गया।
बुवा और फूफा का आशीर्वाद
स्नान मुण्डन के बाद दर्शन-पूजन
आदिशक्ति के दरबार में भोर से ही दर्शन-पूजन का सिलसिला शुरू हो जाता है। जो देर रात तक अनवरत चलता रहता है। गंगा स्नान करने के बाद श्रद्धालु माता को प्रसाद अर्पित करने के लिए गर्भगृह में मां के भव्य स्वरुप का दर्शन करने में जुट जाते हैं। हम लोग भी पूरी टीम के साथ प्रसाद, फल ,फूल, पत्ती लेकर लाइन में जुट गए।
घंटा, शंख, नगाड़ा और माता के जयकारे से पूरा मंदिर परिसर गुंजायमान हो रहा था। मां विंध्यवासिनी की एक झलक पाने के बाद श्रद्धालु मंदिर परिसर में विराजमान अन्य देवी-देवताओं के मंदिरों में पहुंचकर मत्था टेक कर सुख समृद्धि के लिए कामना करते रहे हैं । मंदिर पहुंचे आस्थावानों ने जगत जननी मां विंध्यवासिनी के आगे शीश नवाकर मंगलकामना करते रहे हैं। मंदिर के गुंबद और हवन कुंड का परिक्रमा करने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है । श्रद्धालु माता की जय जयकार करते हुए आगे बढ़ते हैं। मां की एक झलक पाने को दूर दराज से आए भक्त लालायित रहते हैं। गर्भ गृह के रास्ते घंटों इंतजार के बाद भक्तों को माता का दर्शन प्राप्त हो पाता है। भक्तगण हाथ में नारियल, चुनरी, तुलसी दल , पुष्प, इलायची दाना, रोली, रक्षा प्रसाद को लेकर मां विंध्यवासिनी का अर्पण करते हैं।
हमारे साथ दो पंडे पुजारी का समूह था जो हमें दर्शन करने में सहयोग कर रहा था ।उसने गर्भ गृह के अंदर प्रसाद चढ़वाने और बच्चे व उसके माता पिता को मां के चरणों में शीश नवाने की व्यवस्था करा दी थी। बाद में मन्दिर से निकालने पर अपना दक्षिणा भी लिया।
त्रिकोण यात्रा
इसके बाद भक्तगण त्रिकोण यात्रा पर निकल जाते हैं। मां काली और मां अष्टभुजा देवी का दर्शन पूजन कर यह यात्रा परिपूर्ण होती है। बड़ी संख्या में भक्त अष्टभुजा पहाड़ पर विराजमान मां काली और मां अष्टभुजी देवी के दरबार में जाकर दर्शन-पूजन करते हैं।
अष्टभुजी माता का भी दर्शन
इसके बाद हम लोग अपनी सवारी से अष्टभुजी माता के मंदिर आए। मंदिर का पट बंद था क्योंकि मध्याह्न 12 से ऊपर बजे हुए थे । एक पंडे पुजारी की सहायता से हमें आगे के रास्ते सुलभ प्रवेश कराया गया । हम लोग एक पुजारी के निर्देश पर बैठकर दुर्गा जी के सिद्ध मंत्र -
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" का जाप करने लगे थे। यह माँ दुर्गा का एक शक्तिशाली मंत्र है। इसे "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" के रूप में जाना जाता है। यह मंत्र ज्ञान, शक्ति और समृद्धि प्रदान करने वाली माँ दुर्गा की स्तुति है और शत्रुओं और नकारात्मक ऊर्जाओं के विनाश के लिए भी इसका जाप किया जाता है। जब पट खुला तब तक का धक्का मुक्की भी हुआ। पंडे पुजारी को दिया गया सुलभ दर्शन भेंट पूरी तरह काम में नहीं आया। हां उसने कुछ जल्दी दर्शन करने में सहयोग अवश्य करा लिया था।यदि पीछे लाइन से आते तो कई घंटे बर्बाद होते और यही शाम हो जाती ।
काली खोह मां समूह का दर्शन
मां अष्ट भुजी के दर्शन उपरान्त हम लोग काली खोह मंदिर गए । पर्वत शिखर पर ऊपर ही ऊपर रोप वे (उड़न खटोला) का प्रयोग किया। इसमें एक घंटे से ऊपर का समय लग गया । जहां कुछ श्रद्धा ,कुछ मनमानी ,कुछ सहूलियत और कुछ जबरदस्ती के बीच इस मंदिर में पूजा अर्चना संपन्न किया। इस त्रिकोणीय मंदिर की प्रशासनिक व्यवस्था ठीक नहीं है और पंडे पुजारी पूरी तरह से यजमान को बंधक बनाकर पूजा सम्पन्न कराते हैं।
पंचवटी हनुमान किला अयोध्या में
11 अक्टूबर को बाटी चोखा
के भंडारे का आयोजन
कुमार ध्रुव के मुण्डन संस्कार के उपलक्ष्य में उनके माता पिता डा.तनु मिश्रा और डा. सौरभ द्विवेदी ने अयोध्या के राजघाट एरिया के मांझा कला में सरयू तट पर स्थित पंचवटी प्राचीन श्री हनुमान किला नामक मंदिर के महंत श्री सिया बिहारी दास जी से मिलकर 11 अक्टूबर 2025 को बाटी चोखा का भंडारा करने का निश्चय किया है, जिसमें कोई भी श्रद्धालु प्रसाद पा सकता है।
इस मंदिर में भगवान को भोग लगाए जाने से लेकर भक्तोँ को बाटी चोखा का प्रसाद दिया जाता है। इस परंपरा की शुरुआत इस मंदिर के वर्तमान महंत सिया बिहारी दास ने किया है। वे बाटी बाबा के रूप में पूरे अवध क्षेत्र में विख्यात है और हर कोई उन्हें इसी नाम से जानता है।
परम पूज्य महंत सिया बिहारी दास
बाटी बाबा के पास कोई भी आये सबको बाटी चोखा का प्रसाद खिलाते हैं । बिना खाये किसी भी श्रद्धालु को वापस नहीं जाने देते हैं।
वे ये भंडारा नियमित करते रहते हैं कभी-कभी कोई कोई भक्त भी इस आयोजन का हिस्सेदार बन जाता है व्यवस्था होने पर खीर भी प्रसादी में बांटा जाता है।
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