पुनपुन नदी गंगा की एक सहायक नदी है। यह झारखंड के पलामू जिले से निकलती है और झारखंड और बिहार के चतरा , गया ,औरंगाबाद, जहानाबाद और पटना जिलों से होकर बहती है । पटना में पुनपुन नदी के नाम पर ही पुनपुन नाम का एक स्थान है। फतुहा बिहार राज्य के पटना ज़िले का एक उपनगर है। यहाँ पुनपुन नदी का गंगा नदी से संगमस्थल बनाकर गंगा में बिलीन हो जाती है।
ब्रह्मा के आशीर्वाद में उत्पत्ति;-
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि प्राचीन काल में कीकट (मगध) राज्य (वर्तमान झारखंड) के दक्षिणी भाग के पलामू वन में सनक, सनंदन, सनातन, कपिल और पंचशिख ऋषि घोर तपस्या कर रहे थे। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा प्रकट हुए। ऋषियों ने ब्रह्मा के चरण धोने के लिए जल की खोज की। जब उन्हें जल नहीं मिला तो ऋषियों ने अपना पसीना एकत्र किया। जब उस पसीने को कमंडल में रखा जाता तो कमंडल उल्टा हो जाता। इस प्रकार कमंडल के बार-बार घूमने से अनायास ही ब्रह्मा के मुख से पुनपुना शब्द निकल पड़ा। इसके बाद वहां से जल की एक अविरल धारा निकल पड़ी। इस कारण ऋषियों ने उसका नाम पुनपुना रखा, जो अब पुनपुन नाम से प्रसिद्ध है।
आदि गंगा के रूप में मान्य :-
ब्रह्मदेव ने सप्त ऋषियों को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि जो कोई भी इस नदी के तट पर पिंडदान करेगा, उसके पूर्वज स्वर्ग जाएंगे। जिससे इसे आदि गंगा कहा जाने लगा। ब्रह्माजी ने कहा था -
''पुनपुना नदी सर्वषु पुण्या,
सदावह स्वच्छ जला शुभ प्रदा।''
तभी से पितृ पक्ष के दौरान पुनपुन नदी के तट पर पहला पिंडदान करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
मोक्ष का प्रथम द्वार :-
कहा जाता है कि भगवान राम एक बार अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए माता जानकी के साथ इसी पुनपुन नदी घाट पर आए थे। उन्होंने सबसे पहले यहीं पिंडदान किया था। इसके बाद उन्होंने गया जाकर पूर्ण पिंडदान किया, जिसके कारण इसे मोक्ष का प्रथम द्वार माना जाता है।
गया से पहले पिंडदान जरूरी:-
गया से पहले यहां पिंडदान करना जरूरी है। मान्यता के अनुसार अंतरराष्ट्रीय धार्मिक नगरी गया में पितरों का श्राद्ध तर्पण और पिंडदान करने से पहले पुनपुन नदी में पिंडदान करना जरूरी होता है। गया में पिंडदान पुनपुन नदी में पिंडदान करने के बाद ही पूर्ण माना जाता है।जिसके कारण इसे मोक्ष दायिनी का प्रथम द्वार माना जाता है।
गया और वाराणसी जैसी सुविधाए नहीं
पुनपुन नदी के घाटों पर कहीं और उपलब्ध नहीं हैं। घाट पर आसानी दे दी उतरा नहीं जा सकता। मांगने वाले भिखारी श्रद्धालुओं के पूजन विधान में बाधा पहुंचाते हैं। पुलिस ये किसी सुरक्षा की व्यवस्था नहीं है। घाट कच्चा है ,जहांउतरने पर दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है। मंत्रोच्चारण करने वाले भी पूर्ण रूप से दक्ष नहीं हैं।
पुरोहितों ने गोदावरी सरोवर को विकल्प बनाया :-
बाहर से लोग सीधे गया आते हैं। गया में, जब श्रद्धालु स्थानीय पंडितों और पुरोहितों से पुनपुन नदी में पहला पिंडदान करने की बात करते हैं, तो वे अतिरिक्त अनुष्ठानों के माध्यम से गोदावरी सरोवर में उनका पहला पिंडदान करवाते हैं,। वे गया के गोदावरी तालाब में स्नान कर पिंडदान कर सकते हैं, जिससे पुनपुन श्राद्ध जैसा ही फल मिलता है।इस सरोवर में पिंडदान करना पुनपुन जितना ही फलदायी है।
नहीं दिखता पर्यटन विभाग का प्रयास
पर्यटन विभाग ने भी पुनपुन नदी घाट को अंतरराष्ट्रीय पिंडदान स्थल के रूप में घोषित किया है और प्रत्येक साल भव्य पितृपक्ष मेले का आयोजन किया जाता है।
जहां पर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहले पिंड का तर्पण करते हैं।उसके बाद गया जाकर फल्गु नदी तट पर पिंडदान का पूरा विधि-विधान संपन्न कराते हैं।
आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदीलेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। लेखक इस समय पितृ तर्पण चारों धाम की यात्रा पर है।)
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