Monday, March 10, 2025

विभीषण कोद्ण्ड स्वामि मंदिर को चक्रवात भी नुकसान नहीं पहुंचा पाया

विभीषण कोद्ण्ड स्वामि मंदिर को चक्रवात भी नुकसान नहीं पहुंचा पाया
आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 
तमिलनाडु के रामेश्वरम में कोथंडा रामस्वामी मंदिर हिंदू देवता राम को समर्पित एक तीर्थस्थल है।  यह मंदिर 1964 के चक्रवात से बची एकमात्र ऐतिहासिक संरचना है, जिसने धनुषकोडी को बहा दिया था पर इस मन्दिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सका था। मंदिर में राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान और विभीषण को देव स्वरूप स्थापित किया गया है।
    रामायण के मुताबिक, भगवान राम ने अपने भक्त विभीषण को अमरता का वरदान दिया था। विभीषण को यह वरदान उनकी अटूट भक्ति और धर्म के प्रति निष्ठा के लिए मिला था। उसने  अपने भाई रावण का साथ न देकर भगवान राम और सत्य का साथ दिया था। उसने अपने बड़े भाई रावण और सभी राक्षसों को अनीति के रास्ते पर चलने से मना किया था।वह परिवार से अधिक नीति और धर्म का साथ दिया । विभीषण को चिरंजीवी माना जाता है।विभीषण राक्षस कुल में पैदा होने के बाद भी नीति और सत्य के प्रति कर्तव्यनिष्ठ रहा। उसका यह मंदिर चारों ओर समुद्र से घिरा हुआ है और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। रामेश्वरम् के टापू के दक्षिण भाग में, समुद्र के किनारे, एक और दर्शनीय मंदिर है। यह मंदिर रमानाथ मंदिर से पांच मील दूर पर बना है। यह कोदंड ‘स्वामी का मंदिर’ कहलाता है। कहा जाता है कि विभीषण ने यहीं पर राम की शरण ली थी। रावण-वध के बाद राम ने इसी स्थान पर विभीषण का राजतिलक कराया था। इस मंदिर में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां के साथ ही विभीषण की भी मूर्ति स्थापित है।अनुमान है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 500-1000 वर्ष पहले हुआ था।माना जाता है कि यह मंदिर वह स्थान है जहाँ रावण के छोटे भाई विभीषण ने राम और उनकी वानर सेना से शरण माँगी थी। इस परंपरा के अनुसार, सीता के अपहरण के बाद, विभीषण ने रावण को सलाह दी कि वह सीता को राम को लौटा दे। रावण ने सलाह नहीं मानी, जिसके कारण विभीषण लंका से भाग गए और राम की सेना में शामिल हो गए। जब विभीषण ने राम के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, तो वानर सेना ने राम से विभीषण को जासूस समझकर स्वीकार न करने का आग्रह किया। हालाँकि, हनुमान के आग्रह पर राम ने विभीषण को स्वीकार कर लिया और कहा कि उनके सामने आत्मसमर्पण करने वालों की रक्षा करना उनका कर्तव्य है। यह भी कहा जाता है कि रावण के वध के बाद, राम ने इसी स्थान पर विभीषण के लिए "पट्टाभिषेकम" (लंका के राजा के रूप में आरोहण) किया था। इस कहानी को मंदिर के अंदर की दीवारों पर पेंटिंग में दर्शाया गया है।
यह मंदिर समुद्र के किनारे बना है और राम को समर्पित है। इस मंदिर में विभीषण के साथ-साथ राम, लक्ष्मण, सीता, और हनुमान की भी मूर्तियां हैं। यह मंदिर रामेश्वरम से 13 किलोमीटर दूर है. यह मंदिर बंगाल की खाड़ी और मन्नार की खाड़ी से घिरे एक द्वीप पर बना है।
कोथंडारामस्वामी मंदिर की खास बातेंः- 
यह मंदिर 1964 के चक्रवात से बचा था।इस मंदिर में राम और विभीषण की मित्रता की कहानी बताने वाली दीवारों पर पेंटिंग हैं।इस मंदिर में एक दूरबीन भी है जिससे रामसेतु को देखा जा सकता है।इस मंदिर के पास बंगाल की खाड़ी और मन्नार की खाड़ी का समुद्र है।इस समुद्र में एक पत्थर का शिवलिंग है जिसे लोग पूजते हैं। मान्यता है कि इसी जगह पर भगवान राम ने विभीषण का राज्याभिषेक किया था।
लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

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