धर्म भक्ति घनश्याम भवन के भूतल कोरिडोर और प्रथम तल के प्रवेश द्वार का बाएं तरफ यह दिव्य कूप दूर से ही परिलक्षित होता है। इस पर ऊंची मुडेरी बनी हूई है। यह लोहे के जाली से ढका हुआ है। इसमें एक हैंड पंप भी लगा हुआ है। जिससे जल निकाल कर श्रद्धालु आचमन भी करते हैं और अपने साथ बोतल में भरकर घर भी ले जाते हैं। प्रभु के चरणों से स्पर्शित गंगाजल से अधिक पवित्र है।
गंगा जी और यमुना जी सोने के पात्र में जल लाकर भगवान को स्नान करवाई थी। ऐसा भाभी को दिखाई दिया था। इस सेवा से खुश होकर भगवान ने कहा था कि गंगाजी को नारायण घाट साबरमती गंगा में तथा यमुनाजी को गढहा धेला की नदी में स्थपित करूंगा। ऐसा आशीर्वाद वचन दिया था।
एक बार की बात है भक्ति माता अपने पुत्र घनश्याम को बैठा उन्हें अपने भाई की बेटी बलवंता बाई को सौप कर रसोई में खाना बनाने चली गई थी। बलवंता बच्चे को वहीं छोड़ कर अपने घर चली गई थी। घनश्याम गंगाजल वाले कुंए में गिर गए थे। पाताल लोक से सहस्त्र फंड वाले शेष नाग आकर बालक के ऊपर अपने फंड से सुरक्षा घेरा बना लिए थे। उसी समय भक्ति माता खोजते खोजते कुंए पर आ गई। भाई ने कहा कि बालक कुंए के पत्थर पर बैठे थे कुंए में ना गिरे हों। भक्ति माता ने देखा कि घनश्याम पानी के ऊपर बैठा है। वह अत्यंत खुशी में राम प्रताप भाई को भी बुला लीं।
उस समय राम प्रताप और धर्म देव कुवे के चबूतरे पर बैठे हुए थे। भक्ति माता के साथ जब तीनों ने झांका तो वहां प्रकाश पुंज में घन श्याम शेषशैय्या पर विराजमान थे। लक्ष्मी जी पैर दबा रही थी। अनन्त पार्षद स्तुति कर रहे थे। इसे देख लोग हर्षित हो गए। उसी समय धर्म भक्ति को वृंदावन वाले श्री कृष्ण भगवान का दर्शन हुआ। यह बात उन्हें याद आई।
इसके बाद घनश्याम ने हाथ बढ़ाया। माता भक्ति उन्हें बाहर खींच ली। ऐसा दृश्य इस कुंए में दिखा था। ये बात पूरे गांव में फैल गई। धर्म देव के घर और आंगन का ये महातीर्थ स्वरुप कुंवा आज भी अखण्ड रूप में लोगों को दर्शन दे रहा है।
आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)
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