आचार्य पंडित मोहन प्यारे द्विवेदी
तब
बचपन में डर से उनके हम बोल नहीं पाते।
खौफ रहा ज्यादा घर सामने से नही आते।
दादी का ले सहारा हम बात पहुंचवा पाते ।
गुजरे हुए जमाने हमको आज भी याद आते।
आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
बालक ध्रुव द्विवेदी
अब
चश्मा पर्स मोबाइल बाहर ना निकाल पाते।
चाय की चुस्कियां छिप छिप कर पी पाते।
बालों को नोचकर वह लिपट जाता हमीं से।
बोली तोतली में हम खुद ही सिमट जाते।।
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