अक्षयवट के प्रसिद्ध की कहानी
अक्षयवट तीर्थराज प्रयाग का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। पुराण कथाओं के अनुसार यह सृष्टि और प्रलय का साक्ष्य है। नाम से ही जाहिर है कि इसका कभी नाश नहीं होता। प्रलयकाल में जब सारी धरती जल में डूब जाती है तब भी अक्षयवट हरा-भरा रहता है। बाल मुकुंद का रूप धारण करके भगवान विष्णु इस बरगद के पत्ते पर शयन करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह पवित्र वृक्ष सृष्टि का परिचायक है।
करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दं विनिवशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥
शूलपाणि महेश्वर इस वृक्ष की रक्षा करते हैं, तव वटं रक्षति सदा शूलपाणि महेश्वरः। पद्म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है-
छत्तेऽमितश्चामर चारुपाणी सितासिते यत्र सरिद्वरेण्ये।
अद्योवटश्छत्रमिवाति भाति स तीर्थ राजो जयति प्रयागः॥
प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना से पहले इस पवित्र क्षेत्र में दस अश्वमेध यज्ञ किए थे। तीर्थराज प्रयाग में महाविष्णु के स्वरूप माधव का पूजन किया जाता है। पुराणों में कहा गया है कि प्रलयकाल में जब सारी सृष्टि जल में डूब जाती है, तब महाविष्णु माधव बाल मुकुन्द का रूप धारण कर अक्षयवट के पत्ते पर शयन करते हैं। अक्षयवट मंदिर भारत के प्रयागराज में स्थित एक प्राचीन और प्रमुख हिंदू मंदिर है। इसका नाम इसके परिसर में स्थित अमर अक्षय वट वृक्ष से लिया गया है, जिसे भक्त भगवान विष्णु के स्वरूप के रूप में पूजते हैं। हिंदू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान इस स्थल का दौरा किया था। यह मंदिर आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण संगम क्षेत्र में यमुना नदी के तट पर स्थित है। इसकी वास्तुकला में नवग्रहों सहित विभिन्न देवताओं के मंदिर हैं। अक्षयवट मंदिर हिंदू धर्म में बहुत धार्मिक महत्व रखता है क्योंकि इसका उल्लेख प्राचीन धर्मग्रंथों में मिलता है।
किंवदंतियों से जुड़ा है, पवित्र अनुष्ठानों की सुविधा देता है और इसमें प्रमुख देवताओं के प्रतीक हैं। इसका स्थायी अस्तित्व और पवित्र स्थान इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाता है। संक्षेप में, अक्षयवट मंदिर हिंदू धर्म की आत्मा को समाहित करता है और पूजा में अपने प्राचीन महत्व और भूमिका के कारण आस्था का एक अभिन्न अंग बना रहेगा।
यहां देवी पार्वती, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और नव दुर्गा के लिए भी अलग-अलग मंदिर हैं। मंदिर की दीवारें भित्तिचित्रों और नक्काशी के माध्यम से रामायण और महाभारत के दृश्यों को दर्शाती हैं। विशाल प्रांगण में भक्तों और पुजारियों के लिए अनुष्ठान और प्रार्थना करने के लिए पर्याप्त जगह है। कुल मिलाकर, अक्षयवट मंदिर की वास्तुकला सरल लेकिन भव्य है, पवित्र संगम से इसकी निकटता इसके दिव्य महत्व को बढ़ाती है।
हिंदू धर्म में अक्षयवट मंदिर का महत्व:-
अमर अक्षय वट वृक्ष को स्वयं भगवान विष्णु के स्वरूप के रूप में पूजा जाता है और यह भक्तों की इच्छाओं को पूरा करता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने इस स्थल का दौरा किया था, जिससे इसे ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व मिला। संगम के तट पर मंदिर का स्थान इसे हिंदुओं के लिए आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है, जो मानते हैं कि यहां स्नान करने से मोक्ष मिलता है।वास्तुकला और प्रमुख हिंदू देवताओं की मूर्तियाँ इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाती हैं। अक्षय वट से संबंधित मिथकों का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है, जो इसकी पौराणिक स्थिति को बढ़ाता है। अक्षय वट के तहत अनुष्ठानों का पालन अत्यधिक शुभ माना जाता है। प्राचीन काल से इसका अस्तित्व इसे हिंदू धर्म का जीवंत प्रतीक बनाता है।
इस प्रकार, शास्त्रों में अपने केंद्रीय स्थान, अनुष्ठानिक भूमिका, पवित्र स्थान और पूजा की शाखाओं के साथ, अक्षयवट मंदिर हिंदू लोकाचार और पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सनातन धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बना रहेगा।
संक्षेप में, प्रयागराज का अक्षयवट मंदिर हिंदुओं के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व का एक प्राचीन और पवित्र स्थल है। इसका प्रसिद्ध अक्षय वट वृक्ष, प्रमुख देवताओं की उपस्थिति, संगम पर स्थान और शास्त्रों में भूमिका इसे एक लोकप्रिय तीर्थस्थल बनाती है। यह मंदिर आध्यात्मिक सांत्वना प्रदान करता है और भक्तों को प्राचीन भारतीय विरासत से जोड़ता है। यह आने वाले वर्षों में हिंदू धार्मिक लोकाचार का एक अभिन्न अंग बना रहेगा।
अक्षयवट का धार्मिक महत्व सभी शास्त्र-पुराणों में कहा गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग प्रयागराज के संगम तट पर आया था। उसने अक्षयवट के बारे में लिखा है- नगर में एक देव मंदिर (पातालपुरी मंदिर) है। यह अपनी सजावट और विलक्षण चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है।
कहा जाता है कि जो श्रद्धालु इस स्थान पर एक पैसा चढ़ाता है, उसे एक हजार स्वर्ण मुद्रा चढ़ाने का फल मिलता है। मंदिर के आंगन में एक विशाल वृक्ष (अक्षयवट) है, जिसकी शाखाएं और पत्तियां दूर-दूर तक फैली हैं। पौराणिक और ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार मुक्ति की इच्छा से श्रद्धालु इस बरगद की ऊंची डालों पर चढ़कर कूद जाते थे।
प्रयागराज स्थित अक्षयवट 400 सालों से बंद था :-
मुगल शासकों ने यह प्रथा खत्म कर दी। उन्होंने अक्षयवट को भी आम तीर्थयात्रियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया। इस वृक्ष को कालान्तर में नुकसान पहुंचाने का विवरण भी मिलता है। अंग्रेजों ने सत्तरहवीं शताब्दी में प्रयागराज स्थित अकबर के किले को अपना शस्त्रागार बनाया।अक्षय बट जाने वाले रास्ते को पूरी तरह से बन्द कर दिया।आजादी के बाद भी इंडिया गवर्नमेन्ट ने अपना सेंटल ऑर्डिनेंस डिपो बनाया। कुछ मोडिफिकेशन के साथ मोदी गवर्नमेन्ट ने अक्षय बट के दर्शनार्थ अर्द्ध कुंभ मेला 2019 में खोलने की इजाजत दे दी।
पातालपुरी मंदिर :-
आज का अक्षयवट पातालपुरी मंदिर में स्थित है। यहां एक विशाल तहखाने में अनेक देवताओं के साथ बरगद की शाखा रखी हुई है। इसे तीर्थयात्री अक्षयवट के रूप में पूजते हैं।
अक्षयवट का पहला उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है। भारद्वाज ऋषि ने भगवान राम से कहा था- नर श्रेष्ठ तुम दोनों भाई गंगा और यमुना के संगम पर जाना, वहां से पार उतरने के लिए उपयोगी घाट में अच्छी तरह देखभाल कर यमुना के पार उतर जाना। आगे बढ़ने पर तुम्हें बहुत बड़ा वट वृक्ष मिलेगा। उसके पत्ते हरे रंग के हैं। वह चारों ओर से दूसरे वृक्षों से घिरा हुआ है। उसका नाम श्यामवट है। उसकी छाया में बहुत से सिद्ध पुरुष निवास करते हैं। वहां पहुंचकर सीता को उस वृक्ष से आशीर्वाद की याचना करनी चाहिए। यात्री की इच्छा हो तो यहां कुछ देर तक रुके या वहां से आगे चला जाए।
ब्रह्मा, विष्णु, शिव का स्वरूप ,:-
अक्षयवट को वृक्षराज और ब्रह्मा, विष्णु, शिव का रूप कहा गया है-
नमस्ते वृक्ष राजाय ब्रह्ममं, विष्णु शिवात्मक।
सप्त पाताल संस्थाम विचित्र फल दायिने॥
नमो भेषज रूपाय मायायाः पतये नमः।
माधवस्य जलक्रीड़ा लोल पल्लव कारिणे॥
प्रपंच बीज भूताय विचित्र फलदाय च।
नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमो नमः॥
आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं । लेखक को अभी हाल ही में इस पावन स्थल को देखने का अवसर मिला था।)
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