Wednesday, January 3, 2024

तुलसीदास के “दोहाशतक” में श्रीराम जन्मभूमि विध्वंस का सटीक वर्णन ✍️ आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

यह तर्क हमेशा दिया जाता रहा है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास इसका वर्णन पाने इस ग्रन्थ में नहीं करते । यही प्रश्न इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष भी था। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने साहित्य व रचनाओं में अपने समय की प्रमुख घटनाओं का, राम जन्म भूमि पर हुए अत्याचार तथा बाबरी मस्जिद के बनाये जाने का उल्लेख किया है। इलाहाबाद उच्च  न्यायालय में जब बहस शुरू हुई तो श्री रामभद्राचार्य जी को भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत एक विशेषज्ञ गवाह के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया।  उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी दोहा शतक' में किया है जो कि श्री रामचरित मानस से कम प्रचलित है। तुलसी दास जी ने दोहा शतक 1590 मे लिखा था। इसके आठ दोहे , 85 से 92, में मंदिर के तोड़े जाने का स्पष्ट वर्णन है।‘तुलसी दोहा शतक’ में इस बात का साफ उल्लेख किया है कि किस तरह से राम मंदिर को तोड़ा गया है।
       अतः यह कहना गलत है कि तुलसी दास जो कि बाबर के समकालीन भी थे,ने राम मंदिर तोड़े जाने की घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस कि बात है उसमे तो कहीं भी मुग़लों की भी चर्चा नहीं है इसका मतलब ये निकाला जाना गलत होगा कि तुलसीदास के समय में मुगल नहीं रहे।
        हमारे वामपंथी विचारको तथा इतिहासकारो ने ये भ्रम की स्थति उतपन्न की,कि रामचरितमानस में ऐसी कोई घटना का वर्णन नही है । श्री नित्यानंद मिश्रा ने जिज्ञाशु के एक पत्र व्यवहार में "तुलसी दोहा शतक " का अर्थ इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रस्तुत किया है । हमनें भी उन दोहों के अर्थो को आप तक पहुँचाने का प्रयास किया है । गोस्वामी जी ने 'तुलसी दोहा शतक' में इस बात का साफ उल्लेख किया है कि किस तरह से राम मंदिर को तोड़ा गया। प्रत्येक दोहे का अर्थ सहित वर्णन नीचे दिया गया है।

मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ बहु पुरान इतिहास ।
जवन जराये रोष भरि करि तुलसी परिहास ॥85।।

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का उपहास करते हुये उन्हें जला दिया ।

सिखा सूत्र से हीन करि बल ते हिन्दू लोग ।
भमरि भगाये देश ते तुलसी कठिन कुजोग ॥86।।

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यग्योपवित से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया ।

बाबर बर्बर आइके कर लीन्हे करवाल ।
हने पचारि पचारि जन तुलसी काल कराल ॥87।।

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाँथ में तलवार लिये हुये बर्बर बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की । यह समय अत्यन्त भीषण था ।

सम्बत सर वसु बान नभ ग्रीष्म ऋतू अनुमानि ।
तुलसी अवधहिं जड़ जवन अनरथ किय अनखानि ॥88।।

इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम सम्वत 1585 और विक्रम सम्वत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन1528 आता है ।श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध में वर्णनातीत (वर्णन न करने योग्य) अनर्थ किये । 

राम जनम महि मंदरहिं,तोरि मसीत बनाय ।
जवहिं बहुत हिन्दू हते,तुलसी कीन्ही हाय ॥89।।

जन्मभूमि का मन्दिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई  साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की । इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुये ।

दल्यो मीरबाकी अवध मन्दिर राम समाज ।
तुलसी रोवत ह्रदय हति त्राहि त्राहि रघुराज ॥90।।

तुलसीदास जी कहते हैं कि मीरबकी ने मन्दिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया । राम से रक्षा की याचना करते हुए विदिर्ण ह्रदय तुलसी रोये ।

राम जनम मन्दिर जहाँ तसत अवध के बीच ।
तुलसी रची मसीत तहँ मीरबकी खल नीच ॥91।।

तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीरबकी ने मस्जिद बनाई ।

रामायन घरि घट जहाँ,श्रुति पुरान उपखान ।
तुलसी जवन अजान तँह,करत कुरान अज़ान ॥92।।

श्री तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ अज्ञानी यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।       
           तुलसीदास के नाम से चलने वाले ये आठ दोहे 2010 के बाद तब चर्चा में आए जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने अयोध्या मामले पर अपने फ़ैसले में इनका उल्लेख किया। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने अपने विस्तृत निर्णय में सभी पक्षों द्वारा पेश दलीलों और सबूतों का हवाला दिया है। इसी सिलसिले में पेज नंबर 780 पर हिंदू पक्ष की तरफ़ से पेश हुए स्वामी रामभद्राचार्य के हलफ़नामे का ज़िक्र है और पेज नंबर 783 पर वे दोहे लिखे गए हैं जिनको रामभद्राचार्य ने तुलसीरचित बताया था। ग्रंथ का नाम दिया था - श्री तुलसीशतक।
            स्वामी रामभद्राचार्य रामानंदी संप्रदाय के संत हैं और चित्रकूट में तुलसी पीठ के प्रतिष्ठापक हैं। 1995 के बाद से वह जगद्गुरु अभिषिक्त किए गए और तब से जगद्गुरु रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य के नाम से जाने जाते हैं। वह विश्व हिंदू परिषद से भी जुड़े हुए हैं और मंदिर निर्माण आंदोलन में भी सक्रिय हैं। 2015 में वह पद्म विभूषण से भी सम्मानित हुए।
          स्वामी रामभद्राचार्य ने अदालत के सामने इन दोहों का हवाला सबसे पहले 2003 में दिया था लेकिन सात-आठ साल तक कहीं किसी को इनकी भनक भी नहीं लगी। अगर 2010 में न्यायमूर्ति अग्रवाल ने अपने निर्णय में इन दोहों का हवाला नहीं दिया होता तो शायद किसी को पता भी नहीं चलता कि तुलसीदास ने राम मंदिर विध्वंस पर कोई दोहे भी लिखे थे।
अब यह स्पष्ट हो गया कि गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में जन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया है ! इस प्रमाण से यह बात स्पष्ट हो जाता है कि मीर बाक़ी ने रामजन्म मंदिर को तोड़ा, मसजिद बनाई और कई हिंदुओं की हत्या की। ये दोहे 'तुलसी दोहा शतक' नाम के संग्रह से लिए बताए जाते हैं। अब यह स्पष्ट हो गया कि गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में जन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया है। उच्चतम न्यायालय ने इस प्रमाण को अपने आदेश में उल्लेख भी किया है और उसे माना भी है।
                   आचार्य डा.राधे श्याम द्विवेदी 
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुआ है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करता रहता है।)

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