अवध में राम जी आए
विश्व में धर्म फैलाए।
सनातन जितनी हुई प्रताड़ित
जलवा उतना ही बिखराए।।
सबर सबरी सा करती थी
डगर रघुवर की तकती थी।
खोजते घर उसके आए
प्रेम सने जूठे बेर खाए।।
गुह निषाद करता इंतजार
तरह तरह व्यंजन बनवाया ।
सेवा में रहा वह दिन रात
परण आसन पर सुलवाया।।
केवट रहा सबसे बड़भागी
परिवार को मुक्ति दिलवाया।
किया अनुनय विनय वह खूब
प्रभू को गंगा उतरवाया।।
अयोध्या सूनी जो हुई थी
सभी जन राम को तरसते थे ।
बिरह में राम लल्ला के
अवध जन क्षण-क्षण सिसकते थे।।
बढ़ गया था रावण आतंक
ऋषि मुनि थे बहुत संतप्त।
करा राक्षस का कुल संहार
अनुग्रह प्रभु का पाए संत।।
नदी सरयू की प्यासी थी
अहिल्या भी निरासी थी।
मां का आंगन हो गया सूना
महल खाने को दौड़ता था।।
ग्राम नंदी हुई थी धन्य
भरत जी बने तपसी थे।
रहे जब तक प्रभु वन में
अवध में छाई उदासी थी।।
सज गया दुल्हन सा हर घर
रंग गया भगवा में सारोबर।
प्रतिष्ठित हुए सभी के घर
अवध थी जिनकी धरोहर ।।
जतन भक्तों का रंग लाया
राज फिर राम का आया।
न्योछावर कर के प्राणों को
भवन रघुवर का सजवाया।।
दिए हर ओर जल रहे
दिवाली दुबारा मन रही ।
अवध में राम जो आए
खबर पूरा विश्व फैल गई।।
मोदी सा सेवक जो मिला
योगी सा उद्योग जो किया।
विपक्षी देखकर सोचते हैं
चुनाव हाथ से निकल गया।।
कवि आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी का परिचय:-
(कवि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।)
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