Wednesday, January 31, 2024

समाधान की राह पर बढ़ता ज्ञानवापी मस्जिद का मामला तहखाने में पूजा शुरू -- आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी


चार खंड में आई है एएसआई की सर्वे रिपोर्ट :-
ज्ञानवापी सर्वे की एएसआई रिपोर्ट चार खंड में है। पहले खंड में 137 पेज हैं। इसमें स्ट्रक्चर और ब्रीफ फाइडिंग ऑफ सर्वे रिपोर्ट है। दूसरे खंड में पेज संख्या 1 से 195 तक साइंटिफिक सर्वे की रिपोर्ट है। तीसरे खंड में पेज नंबर 204 पर बरामद वस्तुएं का जिक्र है। चौथे खंड में तस्वीरे व डायग्राम हैं, जो 238 पेज में है। एक हजार फोटोग्राफ भी हैं।
एएसआई की सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक हुई :-
ज्ञानवापी का 355 वर्ष पुराना विवाद एएसआई की सर्वे रिपोर्ट से समाधान की राह पर आ गया है। ज्ञानवापी से संबंधित मां शृंगार गौरी मूल वाद की सुनवाई 14 जुलाई 2023 को पूरी कर ली थी। जिला जज की अदालत ने 23 जुलाई को आदेश सुनाया था। हिंदू और मुस्लिम पक्ष की मौजूदगी में अदालत ने रडार तकनीक एएसआई से सर्वे कराने का आवेदन मंजूर किया था। साथ ही, एएसआई के निदेशक को सर्वे कराने के लिए आदेशित किया था। 
सर्वे की प्रक्रिया:-
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी परिसर की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की सर्वे रिपोर्ट 24 जनवरी 2024 को जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्ववेश की अदालत ने सार्वजनिक कर दी है। जिसमें दावा किया गया है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। एएसआई को सर्वे के दौरान इससे जुड़े कुल 32 सबूत मिले हैं। विष्णु जैन के अनुसार 839 पेज की इस रिपोर्ट में मंदिर के कई साक्ष्यों का उल्लेख किया गया है। इनके आधार पर कहा जा सकता है कि ज्ञानवापी में मसजिद से पहले बड़ा मंदिर था। दीवारों और स्तंभों पर भगवान शिव के तीन नाम जर्नादन, रुद्र और उमेश्वर भी लिखे मिले हैं। मसजिद के सारे पिलर मंदिर के ही थे। इसके अलावा मंदिर की पश्चिमी दीवार पर भी कई स्पष्ट साक्ष्य मिले हैं , जो वहां मंदिर होने का खुलासा करते हैं। निष्कर्ष में बताया है कि वर्तमान ढांचा 2 सितम्बर 1669 के आसपास का है। उसके पूर्व वहां काफी प्राचीन मंदिर रहा होगा। जिसके साक्ष्य जीपीआर तकनीकी की जांच में सामने आये हैं। जीपीआर तकनीक में गुंबद के नीचे व कॉरिडोर के बगल में एक चौड़ा कुआं दिखाई दिया है। नीचे चार तरह के चैम्बर मिले हैं। जिसमें एक बीचोबीच, दूसरा उत्तर, तीसरा पश्चिम और चौथा दक्षिण में है।
हिंदू शैली की बनावट :-
रिपोर्ट में कहा गया है कि सेंट्रल चैंबर के पास मुख्य प्रवेश द्वार और एक काफी प्राचीन मुड़ावदार ढांचा है। पश्चिम चैंबर और वॉल में जो बनावट की शैली उभरी है वह हिंदू मंदिर की है। नीचे मौजूद खंभों पर दोबारा ढांचा बनाया गया है। ये पूरी तरह तय है कि वर्तमान ढांचा किसी दूसरे ढांचे के ऊपर बनाया गया है। पुराना ढांचा मंदिर शैली की बनावट वाला है। इस पर हिंदू पक्ष का कहना है कि भोले बाबा मिल गए हैं। एएसआई ने माना कि ये एक पुराना ढाँचा है, जिसके ऊपर नया स्ट्रक्चर बनाया गया है। मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई । अब हिंदुओं को पूजा-पाठ की अनुमति मिलनी चाहिए। 
सर्वे की रिपोर्ट पक्षकारों को सौंपा गया :-
जिला अदालत ने 25 जनवरी 2024 की रात दस बजे काशी विश्‍वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी परिसर में भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा किए गए सर्वे की रिपोर्ट पक्षकारों को सौंप दी।हिंदू याचिकाकर्ताओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के बारे में दावा किया था कि 17वीं सदी की इस मस्जिद का निर्माण पहले से मौजूद मंदिर के ऊपर किया गया था। इसके बाद अदालत ने सर्वेक्षण का आदेश दिया था। एएसआई ने 18 दिसंबर 2023 को सीलबंद लिफाफे में अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट जिला अदालत को सौंप दी थी।
        अदालत में 33 वर्षों से मुकदमेबाजी चल रही है। 1991 में लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ का केस दाखिल हुआ था। एएसआई के विशेषज्ञों की टीम ने जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्तूबर और नवंबर 2023 तक ज्ञानवापी परिसर में सर्वे का काम किया है। सील वजूखाने को छोड़कर परिसर के कोने-कोने से साक्ष्य जुटाए गए हैं। मिट्टी की जांच की गई। दीवारों पर बने प्रतीक चिन्ह की फोटो, वीडियोग्राफी कराई गई। यह भी देखा गया कि प्रतीक चिन्ह किस सदी में बने हैं।ज्ञानवापी के तहखानों से तमाम साक्ष्य मिले हैं, जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को दर्शा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ज्ञानवापी में मस्जिद की वर्तमान संरचना के निर्माण से पहले बड़ा हिन्दू मंदिर था। 
सर्वे रिपोर्ट की 10 मुख्य बिन्दु :-
1. मस्जिद से पहले वहां बने मंदिर में बड़ा केंद्रीय कक्ष और उत्तर की ओर छोटा कक्ष था।
2. सतरहवीं शताब्‍दी में मंदिर को तोड़कर उसके हिस्‍से को मस्जिद में समाहित किया गया।
3. मस्जिद के निर्माण में मंदिर के खंभों के साथ ही अन्‍य हिस्सों का बिना ज्‍यादा बदलाव किए इस्‍तेमाल किया गया। 
4. कुछ खंभों से हिन्‍दू चिह्नों को मिटाया गया है। 
5. मस्जिद की पश्चिमी दीवार पूरी तरह हिन्‍दू मंदिर का हिस्‍सा है। 
6. सर्वे में 32 शिलापट और पत्‍थर मिले हैं, जो वहां पहले हिन्‍दू मंदिर होने के साक्ष्‍य हैं। 
7. शिलापटों पर देवनागरी, तेलुगु और कन्‍नड में आलेख लिखे हैं। 
8. एक शिलापट में जनार्दन, रुद्र और उमेश्‍वर लिखा है, जबकि एक अन्य शिलापट में 'महामुक्ति मंडप' लिखा है। 
9. मस्जिद के कई हिस्‍से में मंदिर के स्‍ट्रक्‍चर मिले हैं। 
10. मस्जिद के निर्माण संबंधी एक शिलापट पर अंकित समय को मिटाने का प्रयास किया गया है। 
ज्ञानवापी के सर्वे विस्तृत सूची :-
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम को ज्ञानवापी के सर्वे में 55 मूर्तियां मिलीं हैं। इसमें सबसे ज्यादा विग्रह शिवलिंग के मिले हैं। ज्ञानवापी की दीवार सहित कई स्थानों पर 15 शिवलिंग और अलग-अलग काल के 93 सिक्के भी मिले हैं। पत्थर की मूर्तियों के साथ ही अलग-अलग धातु, टेराकोटा सहित घरेलू इस्तेमाल की 259 सामग्रियां मिली हैं। एक पत्थर ऐसा है, जिस पर राम लिखा है। हिंदू पक्ष के अनुसार, वह जो दलीलें दे रहा था और दावे कर रहा था उसकी तस्दीक एएसआई के सर्वे में मिले सबूत करते हैं। सर्वे रिपोर्ट जो सामने आई है और उसमें जिन साक्ष्यों का जिक्र है उसने एक बार फिर अयोध्या मामले की याद दिला दी है।
जीपीआर सर्वे में मुख्य गुंबद के नीचे बेशकीमती पन्नानुमा टूटी कीमती धातु मिली है। इसे मुख्य शिवलिंग बताया जा रहा है। इस स्थान पर खनन और सर्वे की बात कही गई है। एएसआई की 176 सदस्यीय टीम ने ज्ञानवापी परिसर का जो सर्वे किया था, उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक हो चुकी है। रिपोर्ट में ज्ञानवापी को बड़ा हिंदू मंदिर बताया गया है। इसमें 32 अहम हिंदू स्थलों का जिक्र है। शिवलिंग के साथ नंदी, गणेश की मूर्तियां भी मिली हैं।
विष्णु, कृष्ण ,हनुमान वा अन्य देवी-देवताओं के विग्रह :-
वैज्ञानिक पद्धति से हुए सर्वे में मंदिर के प्रमाण के साथ ही विष्णु, मकर, कृष्ण, हनुमान, द्वारपाल, नंदी, पुरुष और मन्नत तीर्थ सहित अन्य विग्रह मिले हैं। मुगल काल, अंग्रेजी हुकूमत सहित अन्य समय काल के चिह्न मिले हैं। शाह आलम और सिंधिया काल के सिक्के (एक और 25 पैसे) संरक्षित किए गए हैं। 
 सिक्के और टेराकोटा की मूर्तियां :-
एएसआई ने 93 सिक्के जुटाए हैं। इनमें विक्टोरिया महारानी, विक्टोरिया रानी, धीरम खलीफा, किंग चार्ज सहित अन्य काल के सिक्के शामिल हैं। एएसआई ने टेराकोटा की 23 मूर्तियों, 2 स्लिंग बॉल, एक टाइल्स, एक डिस्क, देवी-देवताओं की दो मूर्तियां, 18 मानव की मूर्तियां, तीन जानवरों की मूर्ति को साक्ष्य के तौर पर जुटाया है। 113 धातु की सामग्रियां भी मिलीं हैं। इनमें लोहे की 16, तांबा की 84, एल्युमिनियम की 9, निकेल की तीन और एलॉय की एक सामग्री मिली है।
ज्ञानवापी परिसर में मिले पत्थर से निर्मित विग्रह:-
शिवलिंग 15
विष्णु 3
मकर 1
कृष्ण 2
गणेश 3
हनुमान 5
द्वारपाल 1
नंदी 2
अपस्मार पुरुष 1
मन्नत तीर्थ 1
विग्रह के टुकड़े 14
मिश्रित मूर्ति 7
विग्रह और धार्मिक चिह्नों की उम्र दो हजार वर्ष पुरानी:-
एएसआई की सर्वे रिपोर्ट में ज्ञानवापी की दीवार सहित कई स्थानों पर मिले विग्रह और धार्मिक चिह्नों की विधिवत जांच की गई। जीपीआर सहित अन्य तकनीक से हुई जांच में कुछ चिह्नों की उम्र दो हजार वर्ष पुरानी मिली है। एएसआई ने प्रत्येक चिह्न को पूरे विवरण के साथ ही प्रस्तुत किया है। 
मुस्लिम पक्ष किरायेदारों की मूर्तियां बता रहा :-
ज्ञानवापी परिसर की एएसआई रिपोर्ट पर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता एखलाक अहमद ने कहा कि सर्वे रिपोर्ट में जो फिगर्स हैं, वे मलबे में मिले हैं तो कोई बड़ी बात नहीं है। हमारी एक बिल्डिंग में पांच किरायेदार थे। वे सभी मूर्तियां बनाते थे। जो मलबा होता था, उसे पीछे की तरफ फेंक देते थे। सारी मूर्तियां खंडित मिली हैं, कोई ऐसी मूर्ति नहीं मिली, जिसे कहा जाए कि यह भगवान शिव की मूर्ति है। उन्होंने कहा कि मूर्तियां मस्जिद के अंदर नहीं मिली हैं। पूरी रिपोर्ट पढ़ेंगे। इसमें देखेंगे क्या गलत रिपोर्ट दी गई है। उस पर हम आपत्ति दाखिल करेंगे।
औरंगजेब ने ध्वस्त कराया था मंदिर:-
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता सुधीर त्रिपाठी का दावा है कि मुगल शासक औरंगजेब ने 1669 में ज्ञानवापी मंदिर को ध्वस्त कराया था। मंदिर के ऊपरी हिस्से को मस्जिद का रूप दिया था। इसके लिए तीन गुंबद बनाए थे। मुख्य गुंबद के नीचे एक और शिवलिंग है। वहां धप-धप की आवाज आती है। 
अरबी व फारसी के लिखे शिलालेख मिले :-
विष्णु शंकर जैन ने बताया कि तहखाने के अंदर अरबी और फारसी में लिखे शिलालेख भी टूटे मिले हैं। जिन्हें साक्ष्य के तौर पर जुटाया गया है। रिपोर्ट में बार-बार लिखा है कि पूर्व में स्थित ढांचा प्राचीन मंदिर का है। जिसके ऊपर वर्तमान ढांचे (मस्जिद) का निर्माण कराया गया है। 
चार भाषाओं में अभिलेखों की व्याख्या :-
मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले एक हिंदू मंदिर मौजूद था। यहां मसजिद की दीवारों पर कन्नड़, तेलुगू, देवनागरी सहित चार भाषाओं की लिखावट में कन्नड़, देवनागरी और तेलुगु भाषा में कई शिलालेख मिले हैं।
तेलुगु में तीन अभिलेख भी महत्वपूर्ण :-
एएसआई निदेशक (पुरालेख) के मुनिरत्नम रेड्डी के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम ने तेलुगु में तीन सहित 34 शिलालेखों की व्याख्या की और काशी विश्वनाथ मंदिर के अस्तित्व पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। मुनिरत्नम ने बताया कि 17वीं शताब्दी के शिलालेखों में से एक में नारायण भटलू के पुत्र मल्लाना भटलू जैसे व्यक्तियों के नाम स्पष्ट रूप से उल्लिखित हैं। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि नारायण भटलू एक तेलुगु ब्राह्मण हैं जिन्होंने 1585 में काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण की देखरेख की थी। ऐसा कहा जाता है कि जौनपुर के हुसैन शर्की सुल्तान (1458-1505) ने 15वीं शताब्दी में काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। दूसरे तेलुगु शिलालेख को मस्जिद के अंदर पाया गया। इस शिलालेख पर 'गोवी' लिखा है। गोवी चरवाहे हैं। तीसरा शिलालेख, जो 15वीं शताब्दी का है, ए. एस. आई. विशेषज्ञों को मस्जिद के उत्तरी हिस्से में मुख्य प्रवेश द्वार पर मिला था। इसमें 14 लाइनें हैं, जो पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं। एक विशेषज्ञ ने बताया कि सभी 14 लाइनें क्षतिग्रस्त हैं। ऐसा लगता है कि वे शाश्वत दीयों को दफनाने के लिए कुछ उपहार दर्ज करते हैं। अन्य विवरण खो गए हैं। तेलुगु के अलावा, शिलालेख कन्नड़, देवनागरी और तमिल भाषाओं में मिले हैं।
 हिन्दू धर्म से जुड़े तमाम चिह्न :-
 जीपीआर में नीचे एक स्टोन प्लेटफार्म की फ्लोरिंग दिखी है। जो पश्चिमी चैम्बर व दीवार से जुड़ी है। पश्चिमी दीवार के पत्थर मंदिर में इस्तेमाल होने वाले पत्थर है। दीवार पर उभरी आकृति व डिजाइन हिंदू धर्म से जुड़े तमाम चिह्न से सम्बंध रखती हैं। सर्वे रिपोर्ट में लिखा गया है कि 21 जुलाई 2023 को दिए गए आदेश के बाद जो सर्वे की कार्रवाई अंदर की गई थी और जो भी चीजें कार्रवाई के दौरान मिली हैं। वे पूर्ण रूप से हिन्दू मंदिर से मिलती जुलती हैं। सर्वे में क्वाइन, बर्तन, टेराकोटा उत्पाद मेटल और स्टोन भी मिले हैं। 
       सन 1669 ई में मंदिर को तोड़कर मसजिद बनवाया गया है। वर्तमान ढांचे की पश्चिमी दीवार प्राचीन मंदिर की है। वादी अधिवक्ताओं का कहना है कि वुजूखाना में बचे हिस्से का सर्वे कराने की मांग कोर्ट से की जाएगी। 24 जनवरी 2024 को जिला जज की अदालत ने प्रकरण के सभी पक्षों को एएसआई रिपोर्ट की कॉपी सौंपने का आदेश जारी किया था। गुरुवार को रिपोर्ट की प्रति मिलने के बाद अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने प्रेसवार्ता आयोजित कर इसके संबंध में विस्तृत जानकारी दी है।
मंदिर तोड़ कर बनाई गई थी मस्जिद:-
ज्ञानवापी मामले में अदालत ने एएसआई के निदेशक को चार अगस्त तक सर्वे के संबंध में रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। इसके बाद मामला हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट गया। जिसके बाद दोबारा चार अगस्त 2023 से सर्वे शुरू हुआ, जो दो नवंबर तक पूरा हो सका। 18 दिसंबर 2023 को सर्वे रिपोर्ट अदालत में दाखिल की गई थी। इसके बाद से ही हिंदू पक्ष रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग कर रहा था। हिंदू पक्ष का कहना था कि सर्वे में हिंदू पक्ष की दलीलों को माना गया है।
हिंदू पक्ष की मांग, पूजा का मिले अधिकार:-
हिन्‍दू पक्ष के वकील विष्‍णु शंकर जैन ने बताया कि 839 पेज की रिपोर्ट में वजूखाने को छोड़कर हर कोने का एक-एक ब्‍योरा एएसआई ने लिखा है। रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। इसलिए अब हिन्दुओं को वहां पूजा-पाठ की खुली अनुमति मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मस्जिद परिसर के वजूखाने में मिली शिवलिंग जैसी आकृति का भी एएसआई सर्वे होने पर साफ हो जाएगा कि आकृति शिवलिंग ही है और इसके साथ ही कई अन्‍य ऐसे साक्ष्‍य मिलेंगे जो हिन्‍दू पक्ष के दावे को और मजबूत करेंगे। दूसरी तरफ से मुस्लिम पक्ष ने कानूनी लड़ाई को आगे बढ़ाने का एलान किया है।
ज्ञानवापी पर केके मोहम्मद के विचार :-
एक इंटरव्यू में जब केके मोहम्मद से पूछा जाता है कि ज्ञानवापी के वजूखाने के अंदर शिवलिंग है या फव्वारा? तो वह कहते हैं कि बात सिर्फ वजूखाना की नहीं है, बल्कि ज्ञानवापी मस्जिद का पूरा स्ट्रक्चर सवालों के घेरे में है। वह स्ट्रक्चर कभी मंदिर का हिस्सा था। बाद में औरंगजेब ने उसको ध्वस्त कर मस्जिद में तब्दील करवाया।
दीवारें कहती हैं कि वहां मंदिर था:-
केके मोहम्मद कहते हैं कि जब ज्ञानवापी या मथुरा के शाही ईदगाह का जिक्र आता है तो एक पक्ष कहता है कि चूंकि पहले हिंदू मंदिरों में खजाने रखे रहते थे, इसलिये इनपर हमला हुआ। अगर ऐसा है तो फिर मंदिर ध्वस्त क्यों किए गए। वह कहते हैं कि अगर ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों, ढांचा को देखें तो साफ पता लगेगा कि वह हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाया गया है. इसमें बहस की बात ही नहीं है।
हिन्दुओं को सौंपना ही ज्ञानवापी का समाधान :-
केके मोहम्मद कहते हैं कि चाहे ज्ञानवापी मस्जिद हो या मथुरा शाही ईदगाह, इन्हें हिंदुओं को सौंपना ही एकमात्र विकल्प है। सभी मुस्लिम धर्म गुरुओं को एकजुट होकर इन मस्जिदों को हिंदू पक्ष को सौंप देना चाहिए, क्योंकि ये स्थान हिंदू पक्ष के लिए बहुत खास हैं। जहां ज्ञानवापी भगवान शंकर से जुड़ा है तो मथुरा भगवान कृष्ण से। यहां की मस्जिदों के साथ मुसलमानों की कोई भावना नहीं जुड़ी है। 
व्‍यास जी के तहखाने में पूजा-अर्चना शुरू :-
जिस  व्यास तहखाने में कोर्ट ने पूजा की इजाजत दी है, वह तहखाना नंदी भगवान के ठीक सामने है, व्यासजी तहखाने में पूजा के अधिकार को लेकर याचिका दायर की गई ।कोर्ट ने पहले ज्ञानवापी में पहले सर्वे और अब व्यासजी के तहखाने में पूजा-पाठ का आदेश दिया है। 355 वर्ष पुराने विवाद का पटाक्षेप कानूनी तरीके से होने की उम्मीद जगी है। जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश का नाम इतिहास में दर्ज हुआ है।न्यायिक सेवा के आखिरी के दिन बुधवार को जिला जज ने ही ज्ञानवापी स्थित व्यासजी के तहखाने में 30 वर्ष बाद दोबारा पूजा-पाठ का मार्ग प्रशस्त किया है। पूजा के समय (काशी विश्वनाथ) मंदिर ट्रस्ट के 5 पुजारी, व्यास परिवार के सदस्य, वाराणसी के डीएम और कमिश्नर वहां मौजूद थे।कोर्ट का फैसला आने के बाद गुरुवार को व्‍यास जी के तहखाने में पूजा शुरू कर दी गई। विश्वनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी ओम प्रकाश मिश्रा और अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त निकालने वाले गणेश्वर द्रविड़ ने ब्यास जी के तहखाने में पूजा कराई. पूजा-पाठ का अधिकार काशी विश्वनाथ ट्रस्ट को सौंपा गया है। श्रद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो गया है। लोग जयकारे लगा रहे हैं।  
हिंदू पक्ष ने वज़ूखाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली:-
ज्ञानवापी में मंदिर होने की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी एएसआई की रिपोर्ट के बाद हिन्दू पक्ष ने नई याचिका दाखिल कर दी है। हिन्दू पक्ष ने कथित शिवलिंग की पूजा को लेकर शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। वज़ूखाने में शिवलिंग जैसी संरचना मिलने के बाद से सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वो जगह सील है।अब हिंदू पक्ष का कहना है कि कोर्ट एएसआई के डीजी को निर्देश दे कि शिवलिंग के आसपास की दीवार को हटाया जाए और शिवलिंग को नुकसान पहुंचाए बिना इस वैज्ञानिक सर्वे को अंजाम दिया जाए। दिल्ली में ज्ञानवापी परिसर में मिली शिवलिंग जैसी सरंचना के वैज्ञानिक सर्वे की मांग को लेकर हिंदू पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।

      लेखक परिचय:- आचार्य डा राधे श्याम द्विवेदी 

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 






Tuesday, January 30, 2024

"राम लला की जय" बोलो उदघोष हो रहा "जय श्री राम"। आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

राम पधार चुके पुर में मन, फूल खिले उर हर्षित जाना।
साध सधी प्रण पूर्ण हुआ जब, मंदिर राम बना पहचाना।
दीप जले हर ओर सखी जग, में बढ़ता अब भारत माना।
रामलला अति सुन्दर शोभित, जन करते उनका जयगाना।।

रूप अनूप सजा अनुरूप अलौकिक दिव्य न जाय बखाना।
रामललासरकार की शोभा विलोकत ही हिय जाय समाना।
आन विराज रहे रघुनाथ पुनीत ये पावन हुआ पर्व सुहाना।
भक्तन के मन मंदिर में इस राम छवि का बना है ठिकाना।।

कोशल के अब भाग्य जगे जब मंदिर निर्मित अद्भुत आज।
शिल्प अनूप मनोहर सुंदर गूँजते हैं गली सरयू तट साज।
राम सुशोभित मंदिर में अब इच्छित स्थापित राम सुराज।
भाग्य जगे अब भारत के सपना सच हो बनते सब काज।।
आज विराजत राम लला पुर,मंदिर सुंदर निर्मित होइगै।
मंडप अद्भुत शिल्प मनोहर,संत उमंगित पूरण कईगौ।
विश्व करे जयकार लगे हर ओर सुहावत राम सुराजै।
ढोल मृदंग बजे चहुँ ओर गँवे नित गीत बजें सब साजै ।।

राम रसायन पान करो नित,उत्तम औषधि आधि मिटे सब।
तारण हार वही बस पालक,जीवन मार्ग यही बस है अब।
मोक्ष मिले भव पाप कटें नित,जाप करो मन नाम यही तब।
सिंधु समान उदार बड़े वह,दीन दयाल पुकार सुने जब।।

हर्षित जन टोली में चलते पहने नव रंग बिरंग परिधान।
पैदल ही आते जाते हैं हुल्लास भरे हुए प्रफुल्लित मान ।
सजी अयोध्या नये लुक में चौड़ी सड़कें हैं स्वच्छ विधान।
"राम लला की जय" बोलो उदघोष हो रहा "जय श्री राम"।।
          कवि आचार्य डा राधे श्याम द्विवेदी का परिचय:-
(कवि आचार्य डा राधे श्याम द्विवेदी,भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचना       अधिकारी पद से सेवामुक्त हये हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। )

Tuesday, January 23, 2024

उत्तर प्रदेश का 75वा स्थापना दिवस --- डा. राधेश्याम द्विवेदी

उत्तर-प्रदेश की खासियत :- उत्तर प्रदेश में ही भगवान राम कृष्ण परशुराम व गौतम बुद्ध का जन्म हुआ। माता सीता गौतम बुद्ध तथा संत कबीर ने यहीं समाधि ली थी। यहीं पर सत्यवादी राजा हरिशचन्द्र जी का जन्म हुआ। यहाँ के राजा दशरथ ने चक्रवर्ती होकर पूरे भूमंडल पर पताका फहराया था।  रामायण के रचयिता वाल्मीकि सूरदास तुलसीदास, व्यास, रहीम, कबीर व जायसी आदि महान लोगों का जन्म यहीं पर हुआ था। यहाँ के 20 साल के युवा चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजो के दांत खट्टे किये थे। इस प्रदेश ने देश को अनेक प्रधान मंत्री दिया है। पंडित जवाहरलाल नेहरु, लालवहादुर शास़्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी,राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, अटल विहारी वाजपेयी, चन्द्र शेखर आदि इसी प्रदेश की विभूतियां थी। यहाँ महान क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म हुआ. यहाँ परम वीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद, कै.मनोज पांडे, यदुनाथ सिंह, योगेन्द्र यादव आदि वीरों का जन्म हुआ। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन उत्तर प्रदेश के ही हैं। यहाँ भगवती शरण बर्मा , महादेवी वर्मा, मुंशी प्रेमचंद आदि जैसे कई महान लेखको का जन्म हुआ। यहाँ बिस्स्मिल्लाह खान का जन्म हुआ। यहाँ आज भी दिलो में प्रेम बसता है।  यहाँ से सबसे ज्यादा बच्चे देश का सबसे कठिन परीक्षाएँ आईएएस  पास करते हैं।  यहाँ आज भी खुद भूखे रह कर अतिथि को पहले खिलाया जाता है। यहाँ के बच्चे कोई सुविधा न होते हुए भी देश में सबसे ज्यादा सरकारी नौकरी पाते है। पूरे देश कोें उत्तर प्रदेश पर गर्व है। आज भारतवासी महाराष्ट और गुजरात के लोग विशेष रुप से इस प्रदेश के लोगों को भैया कहकर एक तरह से अपमानित करतें हैं पर उत्तर प्रदेश वासी इसे अपना बड़कपन समझकर उन्हें माफ करते आ रहे हैं।

उत्तर प्रदेश का रोचक इतिहास :- उत्तर प्रदेश का इतिहास बहुत प्राचीन और रोचक है। उत्तर वैदिक काल में इसे ब्रह्मर्षि देश या मध्य देश के नाम से जाना जाता था। वैदिक काल के कई महान ऋषि-मुनियों, जैसे - भारद्वाज, गौतम, याज्ञवल्क्य, वशिष्ठ, विश्वामित्र और वाल्मीकि आदि की यह तपोभूमि रही है। आर्यों की अनेक पवित्र पुस्तकें भी यहीं पर लिखी गई। भारत के दो महान महाकाव्यों - रामायण और महाभारत की कथा भी इसी भू क्षेत्र पर आधारित है। उत्तर प्रदेश का इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है, जब आर्य यहाँ आये और वैदिक सभ्यता का आरम्भ हुआ, तभी से यहाँ का इतिहास मिलता है। आर्य सिन्धु और सतलुज के मैदानी भागों से यमुना और गंगा के मैदानी भाग की ओर बढ़े। उन्होंने यमुना और गंगा के मैदानी भाग और घाघरा क्षेत्र को अपना घर बनाया। उन्हीं आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम ‘आर्यावर्त’ अथवा ‘भारतवर्ष’ पड़ा है। भरत आर्यों के एक चक्रवर्ती राजा थे, जिनके नाम और ख्याति से यह देश भारतवर्ष के नाम से जाना गया । गंगा के मैदान के बीचोंबीच की अपनी स्थिति के कारण उत्तर प्रदेश समूचे उत्तरी भारत के इतिहास का केन्द्र बिन्दु रहा है। उत्तर वैदिक काल में इसे ‘ब्रहर्षि देश’ या ‘मध्य देश’ के नाम से जाना जाता था। उत्तर प्रदेश का इतिहास बहुत प्राचीन है। उत्तर प्रदेश के इतिहास को पाँच कालों में बाँटा जा सकता है-

1.प्रागैतिहासिक एवं पौराणिक काल (लगभग 600 ई.पू. तक),

2.बौद्ध-हिन्दू (ब्राह्मण) काल (लगभग 600 ई.पू. से लगभग 1200 ई.),

3.मुस्लिम काल (लगभग 1200 से 1775 ई.),

4.ब्रिटिश काल (लगभग 1775 से 1947 ई.),

5.स्वतंत्रता पश्चात का काल (1947 से वर्तमान तक)।

1.प्रागैतिहासिक एवं पौराणिक काल:-
पुरातत्त्व ने उत्तर प्रदेश की आरम्भिक सभ्यता पर नई रौशनी डाली है। दक्षिणी ज़िले प्रतापगढ़ में पाई गई मानव खोपड़ियों के अवशेष लगभग 10,000 ई. पू. के बताए गए हैं। वैदिक साहित्य और दो महाकाव्यों, रामायण व महाभारत से इस क्षेत्र के सातवीं शताब्दी ई. पू. के पहले की जानकारी मिलती है। जिसमें गंगा के मैदानों का वर्णन उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत किया गया है। महाभारत की पृष्ठभूमि राज्य के पश्चिमी हिस्से हस्तिनापुर के आसपास है, जबकि रामायण की पृष्ठभूमि पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य में भगवान राम का जन्मस्थान अयोध्या है। जहां 500 वर्षों तक अपने मंदिर से बाहर रहने के बाद दो दिन पूर्व ही भगवान राम को प्राण प्रतिष्ठा को अखंड विश्व ने देखा है। रामायण में हिन्दुओं के भगवान राम का प्राचीन राज्य कौशल इसी क्षेत्र में था, अयोध्या कौशल राज्य की राजधानी थी। उत्तर प्रदेश में अन्य पौराणिक स्रोत हैं-वृन्दावन व मथुरा के आसपास के क्षेत्र जहाँ कृष्ण का जन्म हुआ था। हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर में हुआ था। विश्व के प्राचीनतम नगरों में से एक माना जाने वाला वाराणसी शहर भी इसी प्रदेश में है। वाराणसी के समीप सारनाथ का स्तूपभगवान बुद्ध के लिए प्रसिद्ध है। समय के साथ साथ यह विशाल क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया और गुप्त, मौर्य और कुषाण साम्राज्यों का भाग बन गया। 7वीं शताब्दी में कन्नौज गुप्त साम्राज्य का प्रमुख केन्द्र बन गया था।
2. बौद्ध-हिन्दू (ब्राह्मण) काल : दो नए धर्मों -जैन और बौद्ध का विकास :- 

ईसा पूर्व छठी शताब्दी में उत्तर प्रदेश में दो नए धर्मों – जैन औरबौद्ध का विकास हुआ। बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में दिया और बौद्ध धर्म की शुरुआत की। उत्तर प्रदेश के ही कुशीनगर में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। उत्तर प्रदेश के कई नगर जैसे-अयोध्या, प्रयाग, वाराणसी और मथुरा विद्या अध्ययन के लिए प्रसिद्ध केंद्र थे। मध्य काल में उत्तर प्रदेश मुस्लिम शासकों के अधीन हो गया था, जिससे हिन्दू और इस्लाम धर्म के पास आने से एक नई मिली-जुली संस्कृति का विकास हुआ। तुलसीदास, सूरदास,रामानंद और उनके मुस्लिम शिष्य कबीर के अतिरिक्त अन्य कई संत पुरुषों ने हिन्दी और अन्य भाषाओं के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। सातवीं शताब्दी ई. पू. के अन्त से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि चीन व जापान जैसे सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि, बुद्ध को कुशीनगर में परि निर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी ज़िले देवरिया में स्थित है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई. तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा, पहले मगध, जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था, और बाद में उज्जैन, जो वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में चन्द्रगुप्त प्रथम (शासनकाल लगभग 330-380 ई.) व अशोक (शासनकाल लगभग 268 या 265-238), जो मौर्य सम्राट थे और समुद्रगुप्त (लगभग 330-380 ई.) और चन्द्रगुप्त द्वितीय हैं (लगभग 380-415 ई., जिन्हें कुछ विद्वान विक्रमादित्य मानते हैं)। एक अन्य प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन (शासनकाल 606-647) थे। जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक कन्नौज के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों पर शासन किया। इस काल के दौरान बौद्ध और हिन्दू (ब्राह्मण) संस्कृति, दोनों का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। गुप्त काल (लगभग 320-550) के दौरान हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। लगभग 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दूवाद के पुनरुत्थान के साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता दक्षिण भारत में जन्मे शंकर थे, जो वाराणसी पहुँचे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और हिमालय में बद्रीनाथ में प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का केन्द्र) मानते हैं।
3. मुस्लिम काल:-
इस क्षेत्र में हालांकि 1000-1030 ई. तक मुसलमानों का आगमन हो चुका था, लेकिन उत्तरी भारत में 12वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के बाद ही मुस्लिम शासन स्थापित हुआ, जब मुहम्मद ग़ोरी ने गहड़वालों (जिनका उत्तर प्रदेश पर शासन था) और अन्य प्रतिस्पर्धी वंशों को हराया था। लगभग 600 वर्षों तक अधिकांश भारत की तरह उत्तर प्रदेश पर भी किसी न किसी मुस्लिम वंश का शासन रहा, जिनका केन्द्र दिल्ली या उसके आसपास था। 1526 ई. में बाबर ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को हराया और सर्वाधिक सफल मुस्लिम वंश, मुग़ल वंश की नींव रखी। इस साम्राज्य ने 200 वर्षों से भी अधिक समय तक उपमहाद्वीप पर शासन किया। इस साम्राज्य का महानतम काल अकबर(शासनकाल 1556-1605 ई.) का काल था, जिन्होंने आगरा के पास नई शाही राजधानी फ़तेहपुर सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते शाहजहाँ (शासनकाल 1628-1658 ई.) ने आगरा में ताजमहल (अपनी बेगम की याद में बनवाया गया मक़बरा, जो प्रसव के दौरान चल बसी थीं) बनवाया, जो विश्व के महानतम वास्तु शिल्पीय नमूनों में से एक है। शाहजहाँ ने आगरा व दिल्ली में भी वास्तुशिल्प की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण इमारतें बनवाईं थीं। उत्तर प्रदेश में केन्द्रित मुग़ल साम्राज्य ने एक नई मिश्रित संस्कृति के विकास को प्रोत्साहित किया। अकबर इसके महानतम प्रतिपादक थे, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के अपने दरबार में वास्तुशिल्प, साहित्य, चित्रकला और संगीत विशेषज्ञों को नियुक्त किया था। हिन्दुत्व और इस्लाम के टकराव ने कई नए मतों का विकास किया, जो इन दोनों और भारत की विभिन्न जातियों के बीच आम सहमति क़ायम करना चाहते थे। भक्ति आन्दोलन के संस्थापक रामानन्द (लगभग 1400-1470 ई.), जिनका दावा था कि, मुक्ति लिंग या जाति पर आश्रित नहीं है और सभी धर्मों के बीच अनिवार्य एकता की शिक्षा देने वाले कबीर ने उत्तर प्रदेश में मौजूद धार्मिक सहिष्णुता के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई केन्द्रित की। 18वीं शताब्दी में मुग़लों के पतन के साथ ही इस मिश्रित संस्कृति का केन्द्र दिल्ली से लखनऊ चला गया, जो अवध (वर्तमान अयोध्या) के नवाब के अन्तर्गत था और जहाँ साम्प्रदायिक सदभाव के माहौल में कला, साहित्य, संगीत और काव्य का उत्कर्ष हुआ।
4. ब्रिटिश काल:-
1857-1859 ई. के बीच ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरुद्ध हुआ विद्रोह मुख्यत: पश्चिमोत्तर प्रान्त तक सीमित था। 10 मई, 1857 ई. को मेरठ में सैनिकों के बीच भड़का विद्रोह कुछ ही महीनों में 25 से भी अधिक शहरों में फैल गया।
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम:सन 1857 में अंग्रेज़ी फ़ौज के भारतीय सिपाहियों ने बग़ावत कर दी थी। यह बग़ावत लगभग एक वर्ष तक चली और धीरे धीरे यह बग़ावत पूरे उत्तर भारत में फ़ैल गयी। इसी बग़ावत को भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम नाम दिया गया। यह बग़ावत मेरठ शहर से शुरू हुई। जिसका कारण अंग्रेज़ों द्वारा गाय और सुअर की चर्बी से बने कारतूस थे। इस बग़ावत की वज़ह लॉर्ड डलहौज़ी की राज्य हड़पने की नीति भी थी। यह संग्राम मुख्यतः दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, झाँसी और बरेली में लड़ा गया। इस संग्राम में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवध की बेगम हज़रत महल, बख़्त खान, नाना साहेब, तात्या टोपे आदि अनेक देशभक्तों ने भाग लिया।

         1858 ई. में विद्रोह के दमन के बाद पश्चिमोत्तर और शेष ब्रिटिश भारत का प्रशासन ईस्ट इण्डिया कम्पनी से ब्रिटिश ताज को हस्तान्तरित कर दिया गया। 1880 ई. के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के साथ संयुक्त प्रान्त स्वतंत्रता आन्दोलन में अग्रणी रहा। प्रदेश ने भारत को मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, जवाहरलाल नेहरू और पुरुषोत्तमदास टंडन जैसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रवादी राजनीतिक नेता दिए। 1922 में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने के लिए किया गया महात्मा गांधी का असहयोग आन्दोलन पूरे संयुक्त प्रान्त में फैल गया, लेकिन चौरी चौरा गाँव (प्रान्त के पूर्वी भाग में) में हुई हिंसा के कारण महात्मा गांधी ने अस्थायी तौरर पर आन्दोलन को रोक दिया। संयुक्त प्रान्त मुस्लिम लीग की राजनीति का भी केन्द्र रहा। ब्रिटिश काल के दौरान रेलवे, नहर और प्रान्त के भीतर ही संचार के साधनों का व्यापक विकास हुआ। अंग्रेज़ों ने यहाँ आधुनिक शिक्षा को भी बढ़ावा दिया और यहाँ पर लखनऊ विश्वविद्यालय (1921 में स्थापित) जैसे विश्वविद्यालय व कई महाविद्यालय स्थापित किए।लगभग 75 वर्ष की अवधि में वर्तमान उत्तर प्रदेश के क्षेत्र का ईस्ट इण्डिया कम्पनी (ब्रिटिश व्यापारिक कम्पनी) ने धीरे-धीरे अधिग्रहण किया। विभिन्न उत्तर भारतीय वंशों 1775, 1798 और 1801 में नवाबों, 1803 में सिंधिया और 1816 में गोरखों से छीने गए प्रदेशों को पहले बंगाल प्रेज़िडेन्सी के अन्तर्गत रखा गया, लेकिन 1833 में इन्हें अलग करके पश्चिमोत्तर प्रान्त (आरम्भ में आगरा प्रेज़िडेन्सी कहलाता था) गठित किया गया। 1856 ई. में कम्पनी ने अवध पर अधिकार कर लिया और आगरा एवं अवध संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के समरूप) के नाम से इसे 1877 ई. में पश्चिमोत्तर प्रान्त में मिला लिया गया।
          उत्तर प्रदेश राज्य की बौद्धिक श्रेष्ठता ब्रिटिश शासन काल में भी बनी रही।  1902 में ‘नार्थ वेस्ट प्रोविन्स’ का नाम बदल कर ‘यूनाइटिड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध’ कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे ‘यू. पी.’ कहा गया। सन् 1920 में प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद के स्थान पर लखनऊ बना दिया गया। प्रदेश का उच्च न्यायालय इलाहाबाद में ही बना रहा और लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक न्यायपीठ शाखा (हाईकोर्ट बैंच) स्थापित की गयी। बाद में 1935 में इसका संक्षिप्त नाम ‘संयुक्त प्रांत’ प्रचलित हो गया।
5. स्वतंत्रता पश्चात का काल:-
1947 में संयुक्त प्रान्त नव स्वतंत्र भारतीय गणराज्य की एक प्रशासनिक इकाई बना। दो साल बाद इसकी सीमा के अन्तर्गत स्थित, टिहरी गढ़वाल और रामपुर के स्वायत्त राज्यों को संयुक्त प्रान्त में शामिल कर लिया गया। 1950 में नए संविधान के लागू होने के साथ ही संयुक्त प्रान्त का नाम उत्तर प्रदेश रखा गया और यह भारतीय संघ का राज्य बना। स्वतंत्रता के बाद से भारत में इस राज्य की प्रमुख भूमिका रही है। इसने देश को जवाहर लाल नेहरू और उनकी पुत्री इंदिरा गांधी सहित कई प्रधानमंत्री, सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक आचार्य नरेन्द्र देव, जैसे प्रमुख राष्ट्रीय विपक्षी (अल्पसंख्यक) दलों के नेता और भारतीय जनसंघ, बाद में भारतीय जनता पार्टी व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता दिए हैं। राज्य की राजनीति, हालांकि विभाजनकारी रही है और कम ही मुख्यमंत्रियों ने पाँच वर्ष की अवधि पूरी की है।
संयुक्त प्रांत’ का नाम बदल कर ‘उत्तर प्रदेश’ हुआ :-
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 24 जनवरी 1950 में ‘संयुक्त प्रांत’ का नाम बदल कर ‘उत्तर प्रदेश’ रखा गया। प्रदेश का नाम पूर्व में यूनाइटेड पविन्सेंस था, जिसे गवर्मेंट ऑफ इण्डिया एक्ट, 1935 के तहत 24 जनवरी, 1950 को परिवतिर्त कर उत्तर प्रदेश कर दिया गया था, जो गजट ऑफ इण्डिया एक्स्ट्राऑडिर्नरी में दिनांक 24 जनवरी, 1950 को प्रकाशित हुआ। गोविंद बल्लभ पंत इस प्रदेश के प्रथम मुख्य मन्त्री बने। अक्टूबर 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश और भारत की ‘प्रथम महिला मुख्यमन्त्री’ बनीं। सन 2000 में भारतीय संसद ने उत्तर-प्रदेश के उत्तर पश्चिमी, पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश के मुख्यतः पहाड़ी भाग गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डल को मिला कर उत्तर प्रदेश को विभाजित कर उत्तरांचल राज्य का निर्माण किया, जिसका नाम बाद में बदल कर उत्तराखंड कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश की अधिकांश झीलें कुमाऊँ क्षेत्र में हैं।
त्‍योहार :- 
इलाहाबाद में प्रत्‍येक बारहवें वर्ष कुंभ मेला आयोजित होता है जो कि संभवत: दुनिया का सबसे बड़ा मेला है। इसके अलावा इलाहाबाद में प्रत्‍येक 6 साल में अर्द्ध कुंभ मेले का आयोजन भी होता है। इलाहाबाद में ही प्रत्‍येक वर्ष जनवरी में माघ मेला भी आयोजित होता है, जहां बड़ी संख्‍या में लोग संगम में डुबकी लगाते हैं। अन्‍य मेलों में मथुरा, वृंदावन व अयोध्‍या के झूला मेले शामिल हैं, जिनमें प्रतिमाओं को सोने एवं चांदी के झूलों में रखा जाता है। ये झूला मेले एक पखवाड़े तक चलते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा में डुबकी लगाना अत्‍यंत पवित्र माना जाता है और इसके लिए गढ़मुक्‍तेश्‍वर, सोरन, राजघाट, काकोरा, बिठूर, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और अयोध्‍या में बड़ी संख्‍या में लोग एकत्रित होते हैं। आगरा जिले के बटेश्‍वर कस्‍बे में पशुओं का प्रसिद्ध मेला लगता है। बाराबंकी जिले का देवा मेला मुस्‍लिम संत वारिस अली शाह के कारण काफी प्रसिद्ध हो गया है। इसके अतिरिक्‍त यहां हिंदू तथा मुस्‍लिमों के सभी प्रमुख त्‍यौहारों को राज्‍य भर में मनाया जाता है।
पर्यटन स्‍थल :-
उत्तर प्रदेश में सभी प्रकार के सैलानियों के लिए आकर्षण की कई चीजें हैं। प्राचीन तीर्थ स्थानों में वाराणसी, विंध्‍याचल, अयोध्‍या, चित्रकूट, प्रयाग, नैमिषारण्‍य, मथुरा, वृंदावन, देव शरीफ, फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्‍ती की दरगाह, सारनाथ, श्रावस्‍ती, कुशीनगर, संकिसा, कंपिल, पिपरावा और कौशांबी प्रमुख हैं। आगरा, अयोध्‍या, सारनाथ, वाराणसी, लखनऊ, झांसी, गोरखपुर, जौनपुर, कन्नौज, महोबा, देवगढ़, बिठूर और विंध्‍याचल में हिंदू एवं मुस्‍लिम वास्‍तुशिल्‍प और संस्‍कृति के महत्‍वपूर्ण खजाने हैं।
24 जनवरी को उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस :-
उत्तर प्रदेश सरकार हर साल 24 जनवरी को उत्तर प्रदेश दिवस मनाती है। उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश) आज अपना 75वां स्थापना दिवस मना रहा है। इस मौके पर प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहरों एवं परम्पराओं को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। मई 2017 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने हर साल 24 जनवरी को यूपी दिवस मनाने की घोषणा की। यूपी दिवस मनाने का प्रस्ताव राज्यपाल राम नाईक ने दिया था प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है कि हर 24 जनवरी को उत्तर प्रदेश दिवस मनाया जाए। इस दौरान सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में स्टाल लगाए जाएंगे। स्थापना दिवस की सफलता के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दे दिए गए हैं।  स्थापना दिवस पर कल्याणकारी योजनाओं के स्टाल लगाकर आम जनता को जानकारी प्रदान की जाएगा। स्कूली छात्र- छात्राएं सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगी। उत्तर प्रदेश दिवस को सिर्फ प्रदेश में ही नहीं, बल्कि प्रदेश के बाहर भी मनाया जाएगा। इसमें खासतौर से उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहरों को प्रमुखता से बढ़ावा दिया जाएगा। साथ ही नयी पीढ़ी को प्रदेश के नये विकास के परिवेश से जोड़ने का कार्यक्रम किया जाएगा।  इस दिवस के आयोजन की रूपरेखा तैयार करने और तैयारियों के लिये मंत्रियों तथा अधिकारियों की एक समिति गठित की गई है। जिसमें मुख्यमंत्री और राज्यपाल शिरकत करेंगे। प्रदेश की जिन महान विभूतियों ने देश की आजादी में योगदान दिया है, उत्तर प्रदेश दिवस के अवसर पर उन्हें प्रचारित-प्रसारित किया गया । साथ ही, उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर एवं विविधता को भी प्रमुखता से प्रदर्शित किया गया । नई पीढ़ी को प्रदेश के विकास एवं परिवेश से जोड़ने के लिए विविध कार्यक्रम आयोजित किया गया । राज्य के बाहर अन्य प्रदेशो में वहां रहने वाले प्रवासी प्रदेशवासियो के बीच भी उत्तर प्रदेश दिवस’ सम्बन्धी कायर्क्रमों का आयोजन किया गया, जिससे उनकी प्रतिबंदिता उत्तर प्रदेश के प्रति बढ़ सके। उत्तर प्रदेश दिवस के कायर्क्रमों को मुख्यत सूचना, संस्कृति तथा पयर्टन विभाग द्वारा आयोजित किया गया, जिसका समन्वय सूचना विभाग द्वारा किया गया । इस आयोजन में ग्राम्य विकास, नगर विकास, आवास एव शहरी नियोजन तथा औद्योगिक विकास विभाग सहित अन्य विभागों की सहभागिता सुनिश्चित किया गया ।
पी.एम.राष्ट्रपति और सी. एम. की शुभ कामना :-
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को उत्तर प्रदेश के स्थापना दिवस पर राज्यवासियों को बधाई दी है और उम्मीद जताई कि देश का यह सबसे बड़ा राज्य विकसित भारत की संकल्प यात्रा में अग्रणी भूमिका निभाएगा. मोदी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘अध्यात्म, ज्ञान और शिक्षा की तपोभूमि उत्तर प्रदेश के अपने सभी परिवारजनों को राज्य के स्थापना दिवस की अनेकानेक शुभकामनाएं। उन्होंने कहा, ‘‘बीते सात वर्षों में प्रदेश ने प्रगति की एक नयी गाथा लिखी है, जिसमें राज्य सरकार के साथ जनता-जनार्दन ने भी बढ़-चढ़कर भागीदारी की है. मुझे विश्वास है कि विकसित भारत की संकल्प यात्रा में उत्तर प्रदेश अग्रणी भूमिका निभाएगा।
       राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (द्रौपदी मुर्मू) , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (पीएम नरेंद्र मोदी) , रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (राजनाथ सिंह) और सीएम योगी (सीएम योगी आदित्यनाथ) आदित्यनाथ ने शुभकामनाएं दीं। यूपी दिवस पर लखनऊ स्थित अवध शिल्पग्राम में 24 जनवरी से 4 फरवरी तक शिल्पोत्सव का आयोजन होगा। इस दौरान ओडियोपी के साथ-साथ विभिन्न कलाकृतियों की प्रदर्शनी, सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, नई प्रौद्योगिकी आधारित प्रदर्शनी का प्रदर्शन किया जाएगा। 24 से 26 जनवरी तक पूरे प्रदेश में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। लखनऊ में रविवार को मुख्य कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करेंगे।
उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान :-
यूपी दिवस के अवसर पर प्रदेश का नाम रोशन करने वाली दो बेटियों को उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इसके लिए लखनऊ के वैज्ञानिक डॉ. सीज़न करिधल और फोर्ब्स वी फॉर्च्यून के जैस फिल्मों के कवर पर नियमित रूप से छाए रहने वाले कान के पौराणिक तिवारी का चयन किया गया है।

                     आचार्य डा.राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुआ है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करता रहता है।)

बस्ती शिक्षा जगत की महान हस्ती थे - डा.राम देव ओझा आचार्य डॉ.राधे श्याम द्विवेदी

बस्ती जिले (वर्तमान सिद्धार्थ नगर जिले) के बांसी तहसील मुख्यालय से पश्चिप डुमरियागंज रोड पर मिठवल बाजार से आगे तथा राप्ती नदी के तट पर बघनी घाट के पास भैसठ पोस्ट सेखुई ओझा ब्राह्मणों का एक परम्परागत गांव है। भैसठ पोस्ट सेखुई ब्लाक मिठवल थाना गोलौरा जनपद सिद्धार्थ नगर है। बघिनी घाट का ऐतिहासिक धार्मिक महत्व भी है बांसी डुमरियागंज के मध्य पवित्र अचरावती (राप्ती) के तट पर स्थित बघिनी घाट का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व भी है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां लोग अवध धाम की भांति स्नान दान भी करते हैं, तथा इस दिन यहां विशाल मेला भी लगता है।
 
इनके पूर्वज हमारे गांव खैरी ओझा तहसील और थाना  हरैया जिला बस्ती से कई सौ वर्ष पहले जाकर भैसठ में बस गए थे। स्वर्गीय राम सुमिरन बाबा राजा महसो के सलाहकार रह चुके थे। स्वर्गीय राम सुमिरन ओझा के  पांच पुत्र स्वर्गीय विश्वनाथ ओझा(लगभग1935---2017) स्वर्गीय डॉक्टर रामदेव ओझा (लगभग 1937---11-11-2023) स्वर्गीय सत्यदेव ओझा पत्रकार (लगभग1940---2015 )श्री  नर्वदेश्वर ओझा  और श्री कृष्ण देव ओझा हैं। स्वर्गीय रामदेव ओझा के तीन पुत्र स्वर्गीय विष्णु दत्त ओझा( लगभग 1970--- 25 -7 -2011) ,नन्दीश्वर दत्तओझा ,अम्बिकेश्वर दत्त ओझा है। इनमें डा. राम देव ओझा शिक्षा जगत के महान विद्वान थे। इनके एक भाई इंजीनियर रहे। एक भाई श्री सत्य देव ओझा एडवोकेट थे जो अनेक सामाजिक संगठनों से जुड़े रहे और अधिवक्ता के साथ पत्रकारिता में अपना विशेष योगदान रखते थे। कबीर अर्चना इनका दैनिक और साप्ताहिक पेपर था। इनके भाई नर्वदेश्वर और एक अन्य भी वकालत व्यवसाय में जुड़े हुए हैं। सत्य देव ओझा मूड़ घाट रोड पर विंध्यवासिनी प्रेस भी चलाते थे और एक आयुर्वेद चिकित्सालय भी इनके आवास में खुला हुआ है। डा राम देव ओझा तुरकहिया गांधी नगर बस्ती में अपना आवास बना रखे थे। 
                      स्वर्गीय विष्णु दत्त ओझा 
डा राम देव ओझा के बड़े पुत्र स्वर्गीय विष्णु दत्त ओझा एक राष्ट्रीय सोच के व्यक्ति थे। वे हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश संयोजक रहे । लगभग 1971 ई में जन्मे स्व.विष्णु दत्त ओझा को 25 जुलाई 2011 की शाम करीब साढ़े छह बजे बाइक सवार बदमाशों ने कोतवाली थाना क्षेत्र के तुरकहिया निवासी विष्णु दत्त ओझा की गोली मारकर हत्या कर दी थी। जिसके बाद हियुवा कार्यकर्ताओं व समर्थकों ने शहर में काफी हंगामा बरपाया था। तत्कालीन कोतवाल एसएन सिंह को भी गुस्से का शिकार होना पड़ा था।इस बहुचर्चित मामले में  एडीजे/विशेष न्यायाधीश ईसी एक्ट पृथ्वीपाल यादव की अदालत ने सभी छह अभियुक्तों का दोष सिद्ध पाते हुए पांच को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हत्या की वजह बनी शहर के तुरकहिया-पांडेय पोखरा स्थित जमीन थी। इस मामले में 8 अभियुक्तों को सजा हो चुकी है जो बस्ती गोंडा और सिद्धार्थ नगर के जेलों में सजा काट रहे हैं। असमय ही डा राम देव ओझा जी के बड़े पुत्र विष्णुदत्त के चले जाने के बाद भी उन्होंने खुद को बड़े शिद्दत से संभाला था।
         हमारे शहर बस्ती की आधारशिला तैयार करने वालों में डा.रामदेव ओझा पुरातन पीढ़ी के वरिष्ठतम आधार स्तम्भ रहे ।ओझा जी कभी के कैम्ब्रिज माने जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोडक्ट थे।वे  अपने समय के प्राध्यापकों से गहरे जुड़े थे।यद्यपि उनका अध्ययन मुख्य रूप से निर्गुण धारा और और नाथपंथ पर था,इसीलिए उनके जीवन में भी एक फकीरी की ठसक बराबर बनी रही।इसके कारण उनकी भाषा भी गहन उलट वासियों के ज्यादा करीब होती जिससे अक्सर लोग चक्कर में पड़ जाते ।
        डा रामदेव जी बस्ती के स्थानीय शिवहर्ष किसान स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिंदी विभाग के पहलेअध्यक्ष रहे।
 उन्होंने हमेशा चुनौती भरा,घाटे का और मूल्यधर्मी जीवन का वरण किया और उस पर आजीवन टिके रहे।एक समय ऐसा भी आया जब ओझा जी महाविद्यालय के 
कार्यवाहक प्राचार्य बने बने।
          शिवहर्ष किसान पीजीआई कॉलेज, बस्ती पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान है जो पहले गोरखपुर विश्व विद्यालय, फिर दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्व विद्यालय और समप्रति सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु, सिद्धार्थनगर से संबद्ध है। 
        सन उन्नीस सौ अस्सी के दशक में किसान महाविद्यालय अनुशासनहीनता और परीक्षाओं में विकट नकल की महामारी के लिए कुख्यात था।छात्रों की उच्छृंखलता चरम पर थी।ऐसे समय में रामदेव ओझा जी कभी पैदल और कभी अपनी पुरानी साइकिल पर पर सरेआम चलते थे।  उस पर गायों के लिए भूसा लादकर चलते उन्हें किसी तरह की हिचक या शर्म नहीं होती । उन्हें बीच सड़क पर उद्दण्ड तत्वों द्वारा गालियां और धमकियां भी  मिल जाती थी । इन सबको दरकिनार करते हुए ओझा जी अपनी ईमानदारी सरलता और अनुशासन में अडिग रहे। उस समय तक लोगों का कहना है कि ओझा जी एक किंवदंती बन चुके थे। उन्होंने महाविद्यालय में नकल पर पूरी नकेल कसी और महाविद्यालय को अनेक घपलों से मुक्त कराकर एक स्वच्छ मिसाल कायम की। मूल्य आधारित जीवन की जो मिसाल ओझा जी ने कायम की,उसके लिए बस्ती उनका चिर ऋणी रहेगा ।
        जटिल वैदुष्य लेकिन सरलतम और मूल्य धर्मी जीवन के लिए ओझा जी बेमिसाल थे। बाद में वे उदित नारायण महाविद्यालय पडरौना के प्राचार्य बने । वहां भी उन्होंने अपनी सच्चाई की परम्परा कायम की। अपनी निष्कंप वाणी,हठीले और पारदर्शी जीवन के लिए विख्यात ओझा जी यद्यपि अकेडमिक जीवन में बहुत नहीं कर सके,फिर भी उनका जीवन ही बस्ती के शिक्षा जगत के लिए एक महत्वपूर्ण अध्याय बना।
      आदर्श शिक्षक और कठोर अनुशासन प्रिय प्रो. ओझा शिव हर्ष किसान पीजी कॉलेज उच्च शिक्षा क्षेत्र में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। कॉलेज ने लगातार प्रगति की है और यह 1972 से एक संस्थान के रूप में विज्ञान और कला दोनों में यूजी और पीएचडी पाठ्यक्रम के प्रमुख शिष्य शामिल हुए हैं।
        बस्ती नगर में उनका रुतबा किसी राजनेता से कम नहीं था।नगर के साहित्यिक और सामाजिक आयोजनों में वे अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए जाने पहचाने जाते थे। डा रामदेव ओझा ने आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में 29 अक्टूबर 2012 को कहा था कि आचार्य शुक्ल ने अपने साहित्य में जीवन की व्यापकता का विवेचन किया है।
       प्रेस क्लब बस्ती के सभागार में रविवार 09 सितम्बर 2013को वरिष्ठ नागरिक सम्मेलन का आयोजन किया गया। सेवानिवृत्त प्राचार्य डा. रामदेव ओझा ने कहा कि जीवन में सामंजस्य का अभाव प्रत्येक के भीतर है। प्राणी का उद्देश्य लक्ष्य को प्राप्त करना है, हर व्यक्ति बैभव का स्वाद लेना चाहता है। विधाता ने पुरुषार्थ की जो शक्ति प्रदान की है, उससे कतिपय लोग ही पुरुषार्थी बन पाते हैं। यदि आज पुत्र पिता को गोली मारने के लिए तैयार है तो इसका कारण पिता में नैतिकता की कमी है।
         वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति की बैठक रविवार 10 नवम्बर 2013 को प्रेस क्लब के सभागार में आयोजित की बैठक में सेवानिवृत्त प्राचार्य डा. रामदेव ओझा ने कहा था कि विचार को कर्म से परिभाषित किया जाना चाहिए।
        डॉ. ओझा , शिक्षण काल मैं एक अनुशासन प्रिय आदर्श शिक्षक के रूप में जाने जाते थे . निडर और धैर्य शील व्यक्ति होने के नाते कॉलेज में उनके कार्यवाहक प्रधानाचार्य रहते अनुशासन का जो माहौल बना था उसे आज भी याद किया जाता है. 
       जीवन के आखिरी वर्षों में ओझा जी मानसिक विक्षेप के शिकार होते हुए भी उतने ही निर्भीक, वत्सल और सरल दिखते रहे । 
                      पंडित नंदीश्वर दत्त ओझा
इन कठिन दिनों में उनके कनिष्ठ पुत्र नंदीश्वर दत्त ओझा जिस समर्पण, और निष्ठा से उनकी ही नींद से सोते और जागते रहे,सांस सांस की रखवाली और सेवारत रहे;वह भी बेमिसाल है। डॉ. रामदेव ओझा का दिनांक 11 नवम्बर 2023 को धनवंतरी त्रयोदसी के दिन निधन हो गया। स्व.ओझा के बेटे नंदीश्वर दत्त ओझा ने सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर पोस्ट कर इस आशय की जानकारी दी. स्मृति शेष डा.ओझा जी की अन्तेष्ठी बस्ती के कुवानों नदी के तट मूड़घाट पर ओमप्रकाश आर्या जी का सानिध्य में ओझा जी के कनिष्ठ पुत्र नंदीश्वर दत्त ओझा के हाथों से सम्पन्न हुआ।
           उनका जाना शहर को कुछ और सूना कर गया ।यद्यपि पिछले तीन चार वर्षों से वे मानसिक और शारीरिक विक्षोभ के नाते लगभग अशक्त से हो गये थे ।फिर भी नब्बे पार की उनकी ऊर्जा और शारीरिक तेज में कोई कसर नहीं आयी थी । रह रहकर उनकी स्मृतियां जाग जाती थीं और किसी परिचित के सामने पड़ने पर वे बच्चों की तरह किलक उठते थे।वे अपनी चुनी हुई कठिनाइयों और उन सबके बीच अपने अडिग उसूलों को याद कर विभोर हो जाते।
         डॉक्टर रामदेव ओझा के निधन से साहित्य, शिक्षा जगत में शोक की लहर है. उनके चाहने वाले और उनसे पढ़ने वाले छात्रों को डॉक्टर ओझा के निधन पर शोक प्रकट किये हैं। बस्ती मंडल के शिक्षा जगत के आकाश का ये सितारा हमेशा चमकता रहेगा।

अवध में राम जी आए -- आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी


अवध में राम जी आए 
विश्व में धर्म फैलाए।
सनातन जितनी हुई प्रताड़ित
जलवा उतना ही बिखराए।।

सबर सबरी सा करती थी
डगर रघुवर की तकती थी।
खोजते घर उसके आए 
प्रेम सने जूठे बेर खाए।।

गुह निषाद करता इंतजार
तरह तरह व्यंजन बनवाया ।
सेवा में रहा वह दिन रात
परण आसन पर सुलवाया।।

केवट  रहा सबसे बड़भागी
परिवार को मुक्ति दिलवाया।
किया अनुनय विनय वह खूब 
प्रभू को गंगा उतरवाया।।

अयोध्या सूनी जो हुई थी 
सभी जन राम को तरसते थे ।
बिरह में राम लल्ला  के
अवध जन क्षण-क्षण सिसकते थे।।

बढ़ गया था रावण आतंक 
ऋषि मुनि थे बहुत संतप्त।
करा राक्षस का कुल संहार
अनुग्रह प्रभु का पाए संत।।

नदी सरयू की प्यासी थी
अहिल्या भी निरासी थी।
मां का आंगन हो गया सूना
महल खाने को दौड़ता था।।

ग्राम नंदी हुई थी धन्य
भरत जी बने तपसी थे।
रहे जब तक प्रभु वन में
अवध में छाई उदासी थी।।

सज गया दुल्हन सा हर घर 
रंग गया भगवा में सारोबर।
प्रतिष्ठित हुए सभी के घर
अवध थी जिनकी धरोहर ।।

जतन भक्तों का रंग लाया
राज फिर राम का आया।
न्योछावर कर के प्राणों को
भवन रघुवर का सजवाया।।
दिए हर ओर जल रहे 
दिवाली  दुबारा मन रही ।
अवध में राम जो आए 
खबर पूरा विश्व फैल गई।।

मोदी सा सेवक जो मिला
योगी सा उद्योग जो किया।
विपक्षी देखकर सोचते हैं 
चुनाव हाथ से निकल गया।।

      कवि आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी का परिचय:-

(कवि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।)