Saturday, December 30, 2023

श्रीअयोध्या शाश्वतसत्य, सनातन, अनादि, अनंत और सृष्टी का प्रारंभिक उद्गम स्थान है। ✍️ आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी


       ब्रह्मा इस नगरी की बुद्धि से, विष्णु चक्र से और मैं स्वयं अपने त्रिशूल से अयोध्या की रक्षा करता हूं। अयोध्या शब्द में ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव का निवास है। कैलाश पर्वत पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अयोध्या की महिमा और इतिहास बताया। महादेव शिव ने बताया कि अयोध्यापुरी सभी नदियों में श्रेष्ठ सरयू नदी के दाहिने किनारे बसी हुई है। अयोध्या में जन्म लेने वाले प्राणी अजन्मा हैं, मानव सृष्टी सर्वप्रथम यहीं पर हुई थी।

आकारो ब्रह्म रूपस्य, घकारो रुद्र रूपते।
यकारो विष्णु रूपस्य, अयोध्या नाम राजते।।
एतद्वेशसृतस्य सकाशादगजन्मना।
स्व-स्वं चरितं शिक्षरेन पृथ्व्यिां सर्व मानवा:।। 
                  (मनुस्मृति)
       अद्भुत! अग्म्य! अनादि-अनंत पावन अयोध्या नगरी सृष्टी की उत्पत्ति की साक्षी है। सत्य-सनातन अयोध्या के गर्भनाल से जुड़ा है, जिसकी चर्चा इन दिनों पूरी दुनिया में है। भारतवर्ष के उत्थान-पतन की कहानी कहती है अयोध्या नगरी। अयोध्या के हनुमत निवास के महंत आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण महाराज के पास जो प्राचीन अयोध्या के शोधार्थी रहे हैं। वह बताते हैं कि 'जिस समय दुनिया में मानचित्र का भी आविष्कार नहीं हुआ था, उस समय भारत भूमि पर सभ्यता का सूर्य अपनी किरणें बिखेर रहा था। उस समय भारत की राजधानी अयोध्या थी, जिसका प्रमाण है सृष्टि रचना का इतिहास।' आखिर इस दावे के पीछे सच्चाई क्या है? तो वह वेद-पुराणों से अनेक उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि 'इतिहासकरों ने वेद-पुराणों को भी इतिहास के स्रोत के रुप में स्वीकार किया है।'
अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र स्थानों में से एक रहा है। हिन्दू धर्म में मोक्ष पाने को बेहद महत्व दिया जाता है। पुराणों के अनुसार सात ऐसी पुरियों का निर्माण किया गया है, जहां इंसान को मुक्ति प्राप्त होती है। मोक्ष यानी कि मुक्ति, इंसान को जीवन- मरण के चक्र से मुक्ति देती है।
           अयोध्या-मथुरामायाकाशीकांचीत्वन्तिका।
            पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः। ।
 हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में एक अयोध्या उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर और जिला है। 
 अयोध्या में श्रीहरि विष्णु के सुदर्शन चक्र पर स्थित है। यहां सदैव पुण्य का वास रहता है। श्रीहरि स्वयं सदैव यहां विराजमान रहते हैं। 
       विष्णोस्ससुदर्शने चक्रेस्थिता पुण्यांकुरा सदा।
        यत्र साक्षात् स्वयं देवो विष्णुर्वसति सर्वदा।।
              अयोध्या की स्थापना :-
अयोध्या पूरी भगवान विष्णु के बाए पैर के अंगूठे से निकली सरयू नदी के दक्षिण तट पर बसी है। रुद्र्यामलोक्त 
अयोध्या महात्म्य के प्रथम अध्याय के श्लोक 17 के अनुसार- "अयोध्या नगरी सृष्टि के आदि में उत्पन्न हुई और इस त्रिलोकी में विराजमान है। परमेश्वर द्वारा ही इसका निर्माण पूर्व काल में किया गया था। रामायण के अनुसार अयोध्या नगर की स्थापना मनु द्वारा की गई थी।" माना जाता है कि देवताओं के कहने पर मनु राजा बनने के लिए तैयार हुए थे। धार्मिक मान्यता है कि मनु ब्रह्मा के पौत्र कश्यप की संतान थे। उन्हें भौतिक सृष्टि चलाने का दायित्व ब्रह्मा द्वारा मिला था। उसे वे अपनी क्षमता के अनुरूप निभा भी रहे था। रुद्र्यामलोक्त अयोध्या महात्म्य के प्रथम अध्याय के श्लोक 19 के अनुसार - " प्रजापालन में निरत मनु एक बार ब्रह्मा जी के सत्य लोक में गए। मनु ब्रह्रााजी के पास अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात को लेकर पहुंचे थे।" ब्रह्मा जी द्वारा वहां आने का प्रयोजन पूछने पर श्लोक 23 - 24 के अनुसार - "मनु ने सृष्टि बढ़ने और अपने रहने के लिए मनोहर स्थान बताने को कहा। जब ब्रह्मा से अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात कही तो वे विकुंठा के पुत्र द्वारा निर्मित बैकुंठ धाम में उन्हें विष्णुजी के पास ले गए। विष्णुजी वहां रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे।" ब्रह्मा जी द्वारा मनु को कोई उपयुक्त नगर देने की संस्तुति करने पर भगवान बासुदेव ने श्लोक 30 -36 के अनुसार - "वैकुंठ पूरी के मध्य स्थान पर स्थित जो सुन्दर और सर्व सम्मति देने वाला तथा अनेक प्रकार के आश्चर्य मय रचना से समन्वित अयोध्या नगर है, उसे ही मनु के हाथ में दिया। बह्मा जी ने इसका अनुमोदन किया था। विष्णु भगवान ने बह्मा और मनु को मृत्यु लोक वापस भेज दिया। उन्हें आज जहां साकेत अयोध्या धाम है , उस उपयुक्त स्थान बताया था । विष्णुजी ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा और मनु के साथ देवशिल्पी विश्वकर्मा जी को भी भेजा था। उनकी सहायता और मार्ग दर्शन के लिए वशिष्ठ जी को भेजा गया था। इस प्रकार विष्णु जी के आदेश से वशिष्ठ जी द्वारा वर्तमान दिव्य शोभामय स्थल का चयन कर अयोध्या नगर पहली बार बसाई गई थी।"वशिष्ठ मुनि ने सरयू नदी के किनारे लीला भूमि का चुनाव किया था। भूमि चयन के बाद विश्वकर्मा ने नगर के निर्माण की प्रकिया आरंभ की थी।
       भूतशुद्धि तत्व के अनुसार - "अयोध्या राम के धनुष के अग्रभाग पर बसी मानी जाती है।" स्कंद पुराण कहता हैं - "अयोध्या में अ, य, ध को क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वाचक और संयुक्त स्वरूप माना जाता है। समस्त उपपटकों के साथ ब्रह्म हत्यादि भी इससे युद्ध नहीं कर पाते हैं। इसीलिए अयोध्या युद्ध में अपराजेय रही।" इसका उल्लेख स्कंद पुराण सहित कई ग्रंथों में हैं।
वाल्मीकि रामायण में अयोध्या का वर्णन :-
अयोध्या नगर के वैभव का वर्णन वाल्मीकि रामायण में विस्तार से आता है। ऋषि वाल्मीकि रामायण के ‘बालकांड’ में अयोध्या का वर्णन करते हुए कहते हैं –

कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान् ।
निविष्ट सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान ।।

वाल्मीकि रामायण को देखने से यही लगता है कि अयोध्या दुनिया में मौजूद पहली राजधानी थी, जिसे महाराज मनु ने बसाया था। जिसकी लंबाई बारह योजन और विस्तार तीन योजन थी।
अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता ।
मनुना मानवेंद्रेण या पुरी निर्मिता स्वयंम् ।।
आयता दश च द्वे च योजनानि महापुरी ।
श्रीमती त्रीणि विस्तीर्णा सुविभक्तमहापथा ।।
         (वाल्मीकि रामायण, बालकांड)
अर्थात : सरयू नदी के तट पर एक खुशहाल कोशल राज्य था । वह राज्य धन और धान्य से भरा पूरा था । वहां जगत प्रसिद्ध अयोध्या नगरी है । रामायण के अनुसार इसका निर्माण स्वयं मानवों में इंद्र मनु ने किया था । यह नगरी बारह योजनों में फैली हुई थी । अयोध्या भगवान बैकुण्ठ नाथ की थी | इसे महाराज मनु पृथ्वी के ऊपर अपनी सृष्टि का प्रधान कार्यालय बनाने के लिए भगवान बैकुण्ठनाथ से मांग लाये थे । पृथ्वी पर सात मोक्षदायिनी नगरों में प्रथम नगरी अयोध्या को महाराजा मनु ने बसाया था। सरयू नदी के किनारे यह नगरी 12 योजन (144 किमी.) लंबी और तीन योजन (36 किमी.) चौड़ी थी। मान्यता है कि अयोध्या पहले भगवान बैकुंठनाथ की थी, इसे महाराजा मनु पृथ्वी पर अपना प्रधान कार्यालय बनाने के लिए उनसे मांगकर लाये थे। बैकुण्ठ से लाकर मनु ने अयोध्या को पृथ्वी पर अवस्थित किया और फिर सृष्टि की रचना की | उस विमल भूमि की बहुत काल तक सेवा करने के बाद महाराज मनु ने उस अयोध्या को इक्ष्वाकु को दे दिया | वह अयोध्या जहाँ पर साक्षात भगवान ने स्वयं अवतार लिया | सभी तीर्थों में श्रेष्ठ एवं परम मुक्ति धाम है |मुनि लोग विष्णु भगवान के अंगों का वर्णन करते हुए अयोध्यापुरी को भगवान का मस्तक बतलाते हैं ।समस्त लोकों के द्वारा जो वन्दित है, ऐसी अयोध्यापुरी भगवान आनन्दकन्द के समान चिन्मय अनादि है | यह आठ नामों से पुकारी जाती है अर्थात इसके आठ नाम हैं हिरण्या, चिन्मया, जया, अयोध्या, नंदिनी, सत्या, राजिता और अपराजिता । भगवान की यह कल्याणमयी राजधानी साकेतपुरी आनन्दकन्द भगवान श्रीकृष्ण के गोलोक का हृदय है | इस देश में पैदा होने वाले प्राणी अग्रजन्मा कहलाते हैं | जिसके चरित्रों से समस्त पृथ्वी के मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते हैं | मानव सृष्टि सर्वप्रथम यहीं पर हुई थी |
        यह अयोध्यापुरी सभी बैकुण्ठों (ब्रह्मलोक, इन्द्रलोक, विष्णुलोक, गोलोक आदि सभी देवताओं का लोक बैकुण्ठ है) का मूल आधार है | तथा जो मूल प्रकृति है (जिसमें दुनिया पैदा हुई है) उससे भी श्रेष्ठ है | सदरूप जो है वह ब्रह्ममय है सत, रज, तम इन तीनों गुणों में से रजोगुण से रहित है | यह अयोध्यापुरी दिव्य रत्नरूपी खजाने से भरी हुई है और सर्वदा नित्यमेव श्रीसीतारामजी का बिहार स्थल है ।
        रामायण के अनुसार कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्य वंश की राजधानी रहा। अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है। युगों पुरानी इस नगरी ने जहां देश-दुनिया को आदर्श राजा और राज्य की राह दिखाई तो वहीं दिलीप, गंगा को धरती पर लाने वाले भगीरथ और सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र जैसे यशस्वी शासकों से भी विभूषित रही। वैदिक ग्रंथों के अनुसार अयोध्या आदर्श राजा और राज्य की परिकल्पना की पहली साकार नगरी है, जिसने दुनिया भर में मानवता का सूत्रपात किया, जो सदियों तक रघुवंशियों की राजधानी रही और जिसे सप्तपुरियों में अग्रणी माना गया है। मनु के बाद के राजाओं ने इसे निरंतर दिव्यता बरकरार रखी। इच्छवाकु, अनरनव , मान्धाता,प्रसेंजित, भरत, सगर, अंशुमान, दिलीप,भागीरथ , काकुत्स्य , रघु, अम्बरीष जैसे राजाओं की यह राजधानी रही है। महाराज दशरथ जी जैसे कई चक्रवर्ती सम्राट इसे अभिसिंचित करते रहे। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम जी के स्वर्गारोहण के वक्त यह पुनः उजाड़ हो गई थी। फिर महाराज कुश ने इसे पुनः बसाया।बाद में फिर उजाड़ होने पर राजा विक्रमादित्य ने इसका पुनरुद्धार किया, जिनके बनवाये भवन अभी तक मिलते रहे हैं। हम कह सकते हैं कि काल के प्रवाह में अयोध्या उजड़ती, बसती और बदलती रही है लेकिन अयोध्या की सत्य, सनातन अंर्तधारा अनादि है, अनंत है, सृष्टी का विधान है। श्री राम जन्म भूमि के पुनः निर्माण के अवसर पर पुरातन अयोध्या अपने मूल स्वरूप से हटती हुई जन सुविधाओं के अनुरूप निरंतर नए परिधान को धारण कर रही है।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुआ है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करता रहता है।)
 



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