आजकल पितृ पक्ष चल रहा है और हर कोई अपने पितरों के निमित्त अनेक प्रकार के पकवान बनाते हैं।श्राद्ध का भोजन शास्त्रीय विवेचना और पात्र - सुपात्र का ध्यान रखें बिना लोग करते और कराते हैं। जहां पितरों को तृप्ति और शान्ति तो मिलती है परन्तु श्राद्ध का भोजन ग्रहण करने वालों को कष्ट होने की संभावना भी बनी रहती है। लोग श्राद्ध कर्म करने के बाद ब्राह्मणों, गरीबों या अन्य बाहरी लोगों को भोजन भी खिलाते हैं। लेकिन शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध का भोजन हर किसी के लिए शुभ नहीं माना गया है। श्राद्ध का भोजन पितरों के नाम से बनाया जाता है, जो वासनामय, अर्थात रज-तम से युक्त होता है। इसलिए श्राद्ध का भोजन करना हर किसी के लिए शुभ नहीं होता है। श्राद्ध का भोजन ग्रहण करने वालों को कष्ट होने की संभावना भी बनी रहती है।
कुल गोत्र के परिवार में किया जा सकता है श्राद्ध का भोजन :-
धर्मशास्त्र में श्राद्ध का भोजन करने के विषय में कुछ नियम बताए गए हैं। अगर इन नियमों का पालन किया जाए तो, इससे होने वाले कष्टों से बचा जा सकता है अथवा उसका प्रभाव कुछ कम किया जा सकता है। यद्यपि श्राद्ध का भोजन किसी दूसरे के घर का नहीं ग्रहण करना चाहिए, लेकिन अपने कुल गोत्र के परिवार जन में भोजन करने पर कोई दोष नहीं लगता। इससे प्रकारानतर से ग्रहण कर्ता के पितर और भविष्य में लाभ की आशा जुड़ी रहती है।
साधक को श्राद्ध का भोजन नहीं करना चाहिए:-
स्वाध्याय, अर्थात अपने कर्मों का चिंतन करना होता है। मनन की तुलना में चिंतन अधिक सूक्ष्म होता है। अतः चिंतन से जीव की देह पर विशिष्ट गुण का संस्कार दृढ होता है। सामान्य जीव रज-तमात्मक माया-संबंधी कार्यों का ही अधिक चिंतन करता है। इससे उसके सर्व ओर रज-तमात्मक तरंगों का वायुमंडल निर्मित होता है। यदि ऐसे संस्कारों के साथ हम भोजन करने श्राद्धस्थल पर जाएंगे, तो वहां के रज-तमात्मक वातावरण का अधिक प्रभाव हमारे शरीर पर होगा, जिससे हमें अधिक कष्ट हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति साधना करता है, तो श्राद्ध का भोजन करने से उसके शरीर में सत्त्वगुण की मात्रा घट सकती है। इसलिए, आध्यात्मिक दृष्टी से श्राद्ध का भोजन लाभदायक नहीं माना जाता। इससे बचने का प्रयास किया जाना चाहिए।
श्राद्ध भोजन करने के बाद उस दिन पुनः भोजन करना :-
श्राद्ध का रज-तमात्मक युक्त भोजन ग्रहण करने पर, उसकी सूक्ष्म-वायु हमारी देह में घूमती रहती है। ऐसी अवस्था में जब हम पुनः भोजन करते हैं, तब उसमें यह सूक्ष्म-वायु मिल जाती है। इससे, इस भोजन से हानि हो सकती है। इसीलिए, हिन्दू धर्म में बताया गया है कि उपरोक्त कृत्य टालकर ही श्राद्ध का भोजन करना चाहिए। कलह से मनोमयकोष में रज-तम की मात्रा बढ जाती है। नींद तमप्रधान होती है। इससे हमारी थकान अवश्य मिटती है, पर शरीर में तमोगुण भी बढ़ता है। इसलिए प्रयास करें कि श्राद्ध पक्ष या तेरहवी आदि मृतकों के निमित्त बनाएं गए भोजन को करने से बचना चाहिए।
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