Friday, May 5, 2023

वाशिष्ठ नगर नाम के बहुत कुछ किया जा सकता है डा. राधेश्याम द्विवेदी

 
वसिष्ठ यानी सर्वाधिक पुरानी पीढ़ी का निवासी:- महर्षि वसिष्ठ का निवास स्थान से सम्बन्धित होने के कारण बस्ती का नामकरण उनके नाम के शब्दों को समेटा जा रहा है। प्राचीन काल में यह अवध की ही इकाई रही हैं। वसिष्ठ मूलतः ‘वस’ शब्द से बना है जिसका अर्थ - रहना, निवास, प्रवास, वासी आदि होता है । इसी आधार पर ‘वस’ शब्द से 'वास' का अर्थ निकलता है। वरिष्ठ, गरिष्ठ, ज्येष्ठ, कनिष्ठ आदि में जिस 'ष्ठ' का प्रयोग है, उसका अर्थ - 'सबसे ज्यादा' यानी 'सर्वाधिक बड़ा' होता है। ‘वसिष्ठ’ का अर्थ 'सर्वाधिक पुराना निवासी' होता है। महर्षि वशिष्ठ के 'तपस्या स्थल' को वशिष्ठ कहा गया है।
वसिष्ठ के मुख्य आश्रम :-
महर्षि वसिष्ठ के अनेक आश्रम थे। कुछ ज्ञात हैं तो कुछ अज्ञात। ऋग्वेद के 7वें अध्याय में ये बताया गया है कि सर्वप्रथम महर्षि वशिष्ठ ने अपना आश्रम सिंधु नदी के किनारे बसाया था। लूनी नदी अरावली श्रेणी की पुष्कर घाटी में निकलती है, थार मरुस्थल के दक्षिण-पूर्वी हिस्से से गुजरती है, और कच्छ के रण में समाप्त होती है। इस नदी के तट पर बसा पुष्कर तीर्थ पर भी वशिष्ठ जी का आश्रम था। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू-मनाली में ब्यास नदी के किनारे भी महर्षि जी का आश्रम था। असम में गौहाटी के पास ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे महर्षि वसिष्ठ का आश्रम था। वामन पुराण में उल्लेख है कि एक दिन ऋषि वशिष्ठ सरस्वती के पूर्व-तट पर स्थित अपने आश्रम में तपस्यालीन थे (आज का विश्वामित्र टीला)। महर्षि विश्वामित्र ने सरस्वती को आदेश दिया कि वह ऋषि वशिष्ठ को उनके पास उठा लाए। इन्होने उत्तराखंड में गंगा नदी के तट ऋषिकेश से लगभग 18 किलोमीटर दूर शिवपुरी गंगा के किनारे वशिष्ठ गुफा में अपना शीट कालीन आश्रम बनाया था । बाद में अयोध्या में सरयू को अपने आश्रम से ही प्रवाहित कराया था। इसी क्रम में बस्ती या श्रावस्ती या मख क्षेत्र की भी परिकल्पना की गई है।
 1. पहला हिमाचल प्रदेश के कुल्लू मनाली से करीब चार किलोमीटर दूर लेह राजमार्ग पर कुल्लू जिले के वशिष्ठ गांव में है, जो अपने दामन में पौराणिक स्मृतियां छुपाये हुए है। महर्षि वशिष्ठ ने इसी स्थान पर बैठकर तपस्या किये थे। कालान्तर में यह स्थल उन्हीं के नाम से जाना जाने लगा। ऋषि का यहां भव्य प्राचीन मन्दिर बना है। 
2. दूसरा राजस्थान के पुष्कर में जहां यज्ञ कराकर उन्होने अनेक क्षत्रियों की उत्पत्ति किया था। माउंट स्थित गौमुख जहां गुरु वशिष्ठ का आश्रम है, यहां पर राजा दशरथ के चारों पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न को शिक्षा दी गई थी। बाल्यकाल की प्रारंभिक शिक्षा चारों भाइयाें को यहीं से मिली है। यह क्षत्रिय वंशजों की शिक्षा का केंद्र भी हुआ करता था। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा पर इस आश्रम का काफी महत्व है।
3. तीसरा गौहाटी आश्रम-असम के गुवाहाटी में महर्षि वशिष्ठ को समर्पित एक भव्य मंदिर और आश्रम है। यह गुवाहाटी शहर से दक्षिण में असम-मेघालय सीमा के करीब स्थित है और गुवाहाटी का एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।
4. चौथा उत्तराखंड के ऋषिकेश से लगभग 18 किलोमीटर दूर शिवपुरी गंगा के किनारे वशिष्ठ गुफा है। इसे स्थानीय निवासी वशिष्ठ का शीतकालीन निवास मानते है। नज़दीक ही अरुंधति गुफा और शिव मंदिर है,जिसमे भगवान शिव की कई प्राचीन मूर्तियाँ स्थापित हैं।
5. पांचवां 40 एकड़ में फ़ैला अयोध्या का आश्रम, वशिष्ठ कुंड और मंदिर अयोध्या धाम (उत्तर प्रदेश, भारत) में रहा। यह धनायक्ष (एक पवित्र कुंड) और रुक्मिणी कुंड के उत्तर में राम जन्मभूमि के पास स्थित है । यह कुंड ऋषि वशिष्ठ को बहुत प्रिय है। स्कंद पुराण के अयोध्या महात्म्य में कहा गया है कि ऋषि वशिष्ठ हमेशा अपनी पवित्र पत्नी अरुंधति और ऋषि वामदेव के साथ यहां रहते हैं। यह भी कहा जाता है कि कुंड में स्नान करने वाले व्यक्ति के पापों का नाश होता है। उन्हें भगवान ब्रह्मा द्वारा सूर्यवंश के कुल-गुरु या आध्यात्मिक गुरु के रूप में नियुक्त किया गया था। ऐसा इसलिए था क्योंकि भगवान रामचंद्र सौर वंश में प्रकट होंगे और वशिष्ठ मुनि उनकी सेवा करना चाहते थे। भगवान रामचंद्र ने अपने भाइयों के साथ वशिष्ठ कुंड यानी वशिष्ठ मुनि के आश्रम में अपनी पढ़ाई पूरी की।जब वे हिमाचल स्थित आश्रम से वे कोशल राज्य में आये थे जहां अयोध्या राज्य में उन्होंने अपना एक आश्रम और बनाया था। वे ईक्ष्वाकु वंश के राजगुरु बने थे। मंदिर गुरु वशिष्ठ की सुंदरता, वात्सौर ओर राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की छवियाँ हैं। संपूर्ण को वशिष्ठ वाटिका के रूप में विकसित किया गया है। ️ तहखाने में प्राचीन काल के परिवर्तन (सप्तऋषियों) को भी शामिल किया गया है।
6. छठा सरयू के उत्तर बस्ती या श्रावस्ती का क्षेत्र
यह आश्रम उत्तर प्रदेश के बस्ती या श्रावस्ती के आसपास के क्षेत्र में कही स्थित हो सकता है। वसिष्ठ से सम्बन्धित होने के कारण यह क्षेत्र बस्ती और श्रावस्ती के नाम से प्रसिद्ध हो सकता है। उस समय बस्ती या श्रावस्ती स्वतंत्र क्षेत्र ना हो कर अवध का क्षेत्र ही रहा होगा।अफगान और मुगलों के आक्रमण से ये आश्रम पूर्णतः विलुप्त हो चुके होंगें। इस विषय में गहन शोध की जरुरत है।
वशिष्ठ नगर (बस्ती) में बहुत कुछ किया जा सकता है:-
उत्तर प्रदेश की माननीय आदित्यनाथ योगी जी की सरकार वाशिष्ठ जी सम्मानित करते हुए बस्ती का नाम बदलने वाली है।अंतः करण से इसका स्वागत करते हैं परंतु "बस्ती का पुरातत्व" विषयक शोध के दौरान तथा अपने चार दशक के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सेवा काल में बस्ती में ना ही कोई मंदिर या आश्रम उस महान मुनि की स्मृति में उल्लेख पाया और न ही उसके ध्वंश अवशेष । या यूं कहें हमे कोई किवदंती तक इस बाबत नही मिली। बस्ती की पहचान को एक पुरातन ऋषि के नाम तक समेटना वहां के लोगों के बसने खेती बारी करने के तथा सभ्यता के विस्तार को समेटने जैसा है। बस्ती जिले में महर्षि वशिष्ठ की आश्रम हो सकता है लेकिन महर्षि वशिष्ठ के आश्रम के अंदर बस्ती को समेटना उचित नही प्रतीत होता है। कुछ सज्जन मख क्षेत्र को वाशिष्ठ जी से जोड़ते हैं पर वहां केवल मख या यज्ञ का विवरण वा अवशेष दिखता है। ना तो वशिष्ठ जी आश्रम है और ना ही मंदिर। मैंने स्वयम वहां अयोध्या दशरथ महल और हनुमान गढ़ी के बनवाए दो राम दरबार से युक्त मंदिर का अवलोकन किया है। वशिष्ठ को समर्पित एक भी मंदिर मुझे वहां नही दिखा। चूंकि बस्ती शीघ्र ही वशिष्ठ नगर होने वाली है , इसलिए इस नगर में उनके प्रतीकों और स्थलों का ने सिरे से विस्तार किया जाना जरूरी है। फिर हाल मखौड़ा में वशिष्ठ मंदिर, बस्ती मेडिकल कालेज परिसर और कैली अस्पताल में और शहर के अन्य सार्वजनिक स्थल पार्क चौराहों पर था महा मुनि का प्रतीक चिन्ह मूर्ति,मन्दिर या पार्क उद्यान आदि विकसित किया जाना चाहिए। यदि यहां का शासन प्रशासन महामुनि के सम्मान को बढ़ाने और क्षेत्र वासियों की भावनाओ को सम्मान देना ही चाहती है तो इस तरफ कुछ और सक्रिय कार्य करना होगा। महर्षि वाशिष्ठ गुरुकुल विश्व- विद्यालय,शोध संस्थान , अध्यात्म और संस्कार केंद्र आदि भी विकसित किया जाना चाहिए।
लेखक/ ब्लागर 

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