वैसे तो हर दिन ही मां का होता है। संतान के लिए अपनी मां को याद करने का कोई खास दिन या खास वजह तो होती है नहीं। मां तो वो हैं जिनकी हर सुख-दुख, अच्छे-बुरे, कामयाबी- नाकामयाबी में सहसा ही याद आ जाती है।चोट लगती है तो मुंह से निकलता है 'उई मां'। फिर ऐसा क्या है कि मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है।
अमेरिकी ईसाइयों की मदर डे परम्परा:-
मातृ दिवस की शुरुआत सबसे पहले साल 1908 में अमेरिका से हुई थी। 1908 में ग्रेफट्न के एंड्रयूज मेथॉडिस्ट चर्च में पहली बाद मातृ दिवस का आयोजन किया गया था। आज पूरी दुनिया में मातृ दिवस (Mothers Day 2022) मनाया जा रहा है। इस दिवस को हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। इसका मकसद दुनियाभर की माताओं द्वारा बिना शर्त प्यार और उनके द्वारा अपने बच्चों के लिए किए गए प्रत्येक बलिदान को याद करना है। इस अवसर पर सभी लोग अपनी जिन्दगी में मां या मां का किरदार अदा करने वाली महिलाओं को उनके त्याग और समर्पण के लिए शुक्रिया अदा करते हैं। 1908 में ग्रेफट्न (वेस्ट वर्जीनिया) के एंड्रयूज मेथॉडिस्ट चर्च में पहली बार मातृ दिवस का आयोजन किया गया था। इस दिवस की लोकप्रियता का नतीजा था कि साल 1914 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने इसे देश के राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया।एन रीव्स जार्विस एक अमेरिकी महिला थी। उन्होंने अपने जीवनकाल महिलाओं को इस बात के लिए जागरूक करने में बिताया कि उन्हें कैसे अपने बच्चों का पालन-पोषण करना चाहिए। पूरे साल माताओं को अपने अपने बच्चों के लिए समर्पित देखकर एना रीव्स ने भी इच्छा जताई कि कभी कोई अपनी मां की इच्छाओं को पूरा करने के लिए साल में एक दिन जरूर समर्पित करेगा। उनकी सेवाओं के लिए उनका सम्मान किया जाएगा। एना रीव्स जार्विस ने स्वास्थ्य जागरूकता के लिए मदर्स डे वर्क क्लब का आयोजन किया था। वह इस क्लब को वार्षिक मेमोरियल के रूप में आयोजित करना चाहती थी। हालांकि, इससे पहले ही साल 1905 में उनकी मृत्यु हो गई थी।
यह सीधे तौर पर माताओं और मातृत्व के कई पारंपरिक समारोहों से संबंधित नहीं है, जो हजारों वर्षों से दुनिया भर में मौजूद हैं, जैसे कि ग्रीक पंथ से लेकर साइबेले , माता देवता रिया, हिलारिया का रोमन त्योहार , या अन्य ईसाई कलीसियाई मदरिंग संडे उत्सव ( मदर चर्च की छवि के साथ जुड़ा हुआ )। हालांकि, कुछ देशों में, मदर्स डे अभी भी इन पुरानी परंपराओं का पर्याय है। मदर्स डे की औपचारिक शुरुआत के लिए बाकायदा अमेरिकी संसद में कानून पास हुआ. इसके बाद मई माह के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाने लगा. इसे बाद में अमेरिका के अलावा यूरोप, भारत, चीन, जापान, दक्षिण अफ्रीका समेत कई देशों में स्वीकृति मिली। भारत के कुछ भागों में इसे 19 अगस्त को भी मनाया जाता है।भारत में इसे कस्तुरबा गांधी के सम्मान में मनाए जाने की परंपरा भी कही जाती है।
कुछ देशों में अलग तारीख हैं:-
मातृ दिवस कई देशों में मई के बजाय अन्य महीनों में मनाया जाता है। यूनाइटेड किंगडम में इसे मार्च महीने के चौथे रविवार को मनाया जाता है। वहीं, नॉर्वे में मातृ दिवस फरवरी में मनाया जाता है। अलग-अलग कहानियों से प्रेरित होकर भिन्न तारीखों पर ही, लेकिन इस दिन सभी अपनी माताओं को सम्मान देते हैं। यह तारीखें कुछ इस तरह बदली कि विभिन्न देशों में प्रचलित धर्मों की देवी के जन्मदिन या पुण्य दिवस को इस रूप में मनाया जाने लगा। जैसे कैथोलिक देशों में वर्जिन मैरी डे और इस्लामिक देशों में पैगंबर मुहम्मद की बेटी फातिमा के जन्मदिन की तारीखों से इस दिन को बदल लिया गया।भारत में इसे कस्तुरबा गांधी के सम्मान तथा ग्रीष्म व शारदीय नवरात्रि को मनाए जाने की परंपरा है। मातृनवमीऔर राधाअष्टमी को क्यों नही मातृ दिवस मनाते हैं?
वेलेंटाइन डे को भी भारत में बदला गया :-
मातृ दिवस( Mother's Day). कुछ बरस पहले तक 'मदर'ज़ डे' भारतीयों के लिए विशेष अर्थ नहीं रखता था चूंकि हमारे माता-पिता तो अधिकतर हमारे साथ ही रहा करते थे लेकिन नई सदी में सब कुछ जैसे परिवर्तित होता जा रहा है । इससे हमारी सभ्यता, संस्कृति, मर्यादाएं और परम्पराएं भी अछूती न रह सकी। हमारे पूर्वजों ने संभवत: इस 'मदर'ज़ डे' व 'फादर'ज़ डे' का कोई प्रावधान शायद इसलिए नहीं रखा कि वे ऐसा कोई दिन आएगा, इसकी कल्पना ही नहीं कर पाए होंगे। वर्तमान में भारत पश्चिम का अंधानुकरण इस भांति कर रहा है कि हर व चीज जो पश्चिम में होती है वह बिना उनके आधार, कारण और वैज्ञानिक पक्ष को समझे भारत में भी होती है ।आज हम लोग पश्चिमी चकाचौंध में अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं जो हमारे पतन का कारण बन रहा है। इसलिए भारत में लोगों को वेलेंटाइन डे को मातृ पितृ पूजन दिवस मनाना चाहिए, यही भारतीय सभ्यता और संस्कृति है। इसलिए 14 फरवरी को देशभर में मातृ-पितृ पूजन दिवस भी मनाया जा रहा है। स्कूलों-कॉलेजों में इसके लिए विशेष आयोजन किए जा रहे हैं। कई समितियां और दल इसके लिए युवाओं को जागरूक कर रहे हैं। आलम यह है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक माता-पिता की पूजा की जा रही है।
भारत में दो गुप्त और दो प्रकट नवरात्रि मदर डे ही तो हैं
भारत में नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और महाकाली के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिनके नाम और स्थान क्रमशः इस प्रकार है नन्दा देवी योगमाया (विंध्यवासिनी शक्तिपीठ), रक्तदंतिका (सथूर), शाकम्भरी (सहारनपुर शक्तिपीठ), दुर्गा(काशी), भीमा (पिंजौर) और भ्रामरी (भ्रमराम्बा शक्तिपीठ) नवदुर्गा कहते हैं। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से चला आ रहा है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं। नवरात्रि में देवी के शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर भारी मेले लगते हैं । माता के सभी शक्तिपीठों का महत्व अलग-अलग हैं। लेकिन माता का स्वरूप एक ही है।
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