उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बस्ती सदर तहसील के बहादुर व्लाक में नगर बाजार क्षेत्र खड़ौवा खुर्द नामक गांव के आस पास इलाके में नगर राज्य में गौतम क्षत्रियों के पुरोहित के रूप में भारद्वाज गोत्रीय उपाध्याय वंश के इनके पूर्वजों का आगमन हुआ था । नगर राज्य के राजा उदय प्रताप सिंह के समकालीन उपाध्याय कुल के पूर्वज लक्ष्मन दत्त उपाध्याय एक फौजी अफसर रहा करते थे। यह परिवार शुद्ध सनातनी और कर्मकांडी नियमों का परिपालन करने वाला था। इसी संस्कार युक्त कुल परम्परा में राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित डा.मुनिलाल उपाध्याय सरस जी के पिता पं. केदार नाथ उपाध्याय का जन्म हुआ था। बाद में डा.मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ जी का जन्म 10.04.1942 ई. में सीतारामपुर में श्री केदारनाथ उपाध्याय के परिवार में हुआ था। बहादुर पुर ब्लाक का गांव सभा का सीतारामपुर ब्राह्मण बाहुल्य एक छोटा सा गांव है। जो बस्ती जिला मुख्यालय से 13 किमी दक्षिण, बहादुर पुर ब्लाक से 3 किमी पश्चिम तथा उत्तर प्रदेश के लखनऊ मुख्यालय से 202 किमी की दूरी पर बसा हुआ है।
डा. सरस जी के अत्यंत आज्ञाकारी और हर समय पग से पग मिलाकर चलने वाले भ्राता लक्ष्मण जैसे आचरण वाले उनके प्रिय व आज्ञाकारी अनुज के रूप में आचार्य पण्डित वशिष्ठ प्रसाद उपाध्याय का जन्म इसी परिवार में 1950 के आसपास (सरकारी अभिलेख में एक अगस्त 1953) को सीतारामपुर ग्राम में हुआ था। इसी बीच 12.10.1957 को पंडित वशिष्ठ प्रसाद उपाध्याय जी के पिता की असामयिक मृत्यु हो गयी। उस समय उनके परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा था। पिता का असमय निधन हो जाने के कारण विधवा मां पर घर परिवार की सारी जिम्मेदारी आ गयी थी। श्री वशिष्ठ प्रसाद उपाध्याय जी 7 साल के थे। सरल स्वभाव वाली उनकी मां किसी प्रकार परिवार को टूटने व बिखरने से बचा पाई।दोनो बच्चों को बहुत ही कठिनाई से पाला पोसा और शिक्षा दीक्षा दिलाई। मां जी ने बहुत मेहनत और त्याग करके उनकी शिक्षा पूरी कराई थी। जहां सरस जी श्री गोविन्द राम सक्सेरिया इन्टर कालेज में पढते थे। वहीं वशिष्ठ जी की पढ़ाई नगर बाजार के प्राइमरी विद्यालय में शुरू हुआ था। जिसे पास कर वह नगर के मिडिल स्कूल में दाखिला लिये थे। माध्यमिक कक्षाएं उन्होंने श्री झिनकू लाल इन्टर कालेज कलवारी बस्ती से पूरा किया था। पण्डित वशिष्ठ प्रसाद हाई स्कूल परीक्षा 1970 में तथा इन्टर मीडिएट परीक्षा 1972 में पास किए थे। उस समय दो वर्षीय बी ए परीक्षा 1974 में वह किसान स्नातकोत्तर महाविद्यालय बस्ती से पास किए थे।
उनकी एल टी ग्रेड में सहायक अध्यापक के रूप में प्रथम नियुक्ति एक अगस्त 1975 में जनता इन्टर कालेज नगर बाजार बस्ती में हुई थी।1975 में वह व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में एम ए हिंदी का प्रथम बर्ष पास कर लिये थे। इसी बीच 1976 में किसान एल टी प्रशिक्षण महा विद्यालय में उन्हें एलटी शिक्षण पाठयक्रम में प्रवेश लेकर कोर्स पूरा किया। 1977 में वह एम ए हिन्दी द्वितीय बर्ष का पाठ्यक्रम पूरा किया था। वह संपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय से सम्बद्ध श्री सनातन धर्म वर्धनी आदर्श संस्कृत महाविद्यालय नगर बाजार बस्ती से प्रथम श्रेणी में साहित्य से आचार्य की परीक्षा भी उत्तीर्ण किए थे।
सरकारी सेवा
वह 1जनवरी 1977 से गौतम इन्टर कालेज पिपरा गौतम बस्ती मे अपनी दूसरी नियुक्ति एल टी ग्रेड में सहायक अध्यापक के रूप में प्राप्त कर ली थी। यहां 62 साल से ज्यादा समय 31 मार्च 2016 तक वह अध्यापन करते रहे।
परिवार में राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित उत्कृष्ट कोटि के साहित्यकार होते हुए भी आचार्य वशिष्ठ जी का जीवन सादगी से परिपूर्ण रहा है। एक आदर्श और सरल जीवन यापन करने वाले आचार्य पण्डित वशिष्ठ प्रसाद उपाध्याय का जीवन एक खुली किताब की तरह है। जिसमे सरलता तरलता और सूझ बूझ का असीम भंडार भरा पड़ा है। उनकी छिपी हुई प्रतिभा डा. सरस जी जैसा मुखरित तो नहीं हो सकी परंतु काव्य साहित्य के अनुशीलन और अंकुरण में वे पीछे कदापि नहीं थे। मुझे विलम्ब से पता चला है कि "नीरस" कविराय के नाम से कुछ कुण्डलियां भी लिख रखी है जो धीरे धीरे अब सुधार करके लिपिबद्ध किया जा रहा है। उनकी एक अप्रकाशित रचना इस प्रकार प्रस्तुत की जा रही है -
हे प्रभु तू वेदना दे ।
जैसलमेर सा जीवन मेरा है ,
वेदना ही वेदना जिसमें भरा है।
दर्द की इस अग्नि में तपता गया मैं ,
सह ना पाया मूक हो सहता गया मैं।।
दुख की आंधी चल गई ,
दृष्टि ओझल हो गई ।
रोक पाया मैं नही अपने दृगो को,
अश्रु धारा बह गई ।।
वेदने तू रुक क्षणिक विश्राम कर ले।
मन में सुंदर सृष्टि का संज्ञान कर ले।।
तप्त जीवन व्यस्त जीवन,
दर्द से परिपूर्ण जीवन।
सुख ना पाया दुख ही दुख में,
बह गया संपूर्ण जीवन।।
हे प्रभु तू वेदना दे,बांट ले इसको ना कोई।
यह मुझे उपहार दे दे ,हे प्रभु तू वेदना दे।
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