सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु थी न आकाश, न मृत्यु थी न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से श्वास ले रहा था। उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।' -ऋग्वेद
सृष्टि की उत्पत्ति पंच तत्व से:-
आप पांच तत्वों आकाश, वायु, अग्नि, जल और ग्रह (धरती या सूर्य)।को तो जानते ही हैं। अग्नि जल, प्राण और मन भी महत्व पूर्ण तत्व है । प्राण तो वायु है और मन तो आकाश है। शरीर तो जड़ जगत का हिस्सा है। अर्थात धरती का। जो भी दिखाई दे रहा है वह सब जड़ जगत है। नीचे गिरने का अर्थ है जड़ हो जाना और ऊपर उठने का अर्थ है ब्रह्माकाश हो जाना। अब इन पांच तत्वों से बड़कर भी कुछ है क्योंकि सृष्टि रचना में उन्हीं का सबसे बड़ा योगदान रहा है। आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्नि, अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औषधियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है।
भगवान विष्णु के प्रयास से:-
सृष्टि सर्वव्यापी सर्वज्ञ ईश्वर की रचना है। हिंदू धर्म के अनुसार सृष्टि अनादि काल से आरंभ विलय का विषय रहा है। यह अनंतकाल तक ऐसा ही रहेगा।भगवान विष्णु के कान के मैल से निकले मधु और कैटभ राक्षस जिन्होंने ब्रह्मा जी को ही खाने के लिए दौड़ लगा दी ! ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की शरण में गए और उनकी आराधना करने लगे। भगवान विष्णु ने उन दोनों राक्षसों से एक लंबा युद्ध किया और बाद में उनके टुकड़े काट काट के फेंक दिए ! जहां उनके टुकड़े गिरे वही पृथ्वी बन गई।
सृष्टि की उत्पत्ति ब्रह्माजी से:-
ब्रह्मा जी ने आदि देव भगवान की खोज करने के लिए कमल की नाल के छिद्र में प्रवेश कर जल में अंत तक ढूंढा। परंतु भगवान उन्हें कहीं भी नहीं मिले। ब्रह्मा जी ने अपने अधिष्ठान भगवान को खोजने में सौ वर्ष व्यतीत कर दिये। अंत में ब्रह्मा जी ने समाधि ले ली। इस समाधि द्वारा उन्होंने अपने अधिष्ठान को अपने अंतःकरण में प्रकाशित होते देखा। शेष जी की शैय्या पर पुरुषोत्तम भगवान अकेले लेटे हुए दिखाई दिये। ब्रह्मा जी ने पुरुषोत्तम भगवान से सृष्टि रचना का आदेश प्राप्त किया और कमल के छिद्र से बाहर निकल कर कमल कोष पर विराजमान हो गये। ब्रह्मा जी ने उस कमल कोष के तीन विभाग भूः भुवः स्वः किये। ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने का दृढ़ संकल्प लिया और उनके मन से मरीचि, नेत्रों से अत्रि, मुख से अंगिरा, कान से, पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगूठे से दक्ष तथा गोद से नारद उत्पन्न हुये। इसी प्रकार उनके दायें स्तन से धर्म, पीठ से अधर्म, हृदय से काम, दोनों भौंहों से क्रोध, मुख से सरस्वती, नीचे के ओंठ से लोभ, लिंग से समुद्र तथा छाया से कर्दम ऋषि प्रकट हुये। इस प्रकार यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्मा जी के मन और शरीर से उत्पन्न हुये। ब्रह्मा जी को लगा कि मेरी सृष्टि में वृद्धि नहीं हो रही है तो उन्होंने अपने शरीर को दो भागों में विभक्त कर दिया जिनका नाम 'का' और 'या' (काया) हुये। उन्हीं दो भागों में से एक से पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। मनु और शतरूपा ने मानव संसार की शुरुआत की।
हिरण्यगर्भ में ब्रह्मा के प्रवेश से:-
मत्स्य पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना एक सुनहरे गर्भ में ब्रह्मा के प्रवेश कर जाने के फलस्वरूप हुई है। इसी गर्भ को हिरण्यगर्भ की संज्ञा दी गई है, जबकि सांख्य दर्शन सृष्टि की रचना की गुत्थी को पुरुष तथा प्रकृति नामक दो शाश्वत तत्वों के आधार पर सुलझाने का प्रयास करता है। सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुष शुद्ध चेतन स्वरूप है तथा प्रकृति तमस, रजस तथा सत्व नामक त्रिगुणों से युक्त अचेतन तत्व है। सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व प्रकृति के तीनों गुण एक संतुलन की स्थिति में शांत अवस्था में विद्यमान रहते हैं। किंतु अनादि काल में पुरुष की प्रकृति से निकटता के कारण ये तीन तत्व कम्पायमान अवस्था में आकर सृष्टि का निर्माण करने लगते हैं। इस दर्शन के अनुसार जब पुरुष अथवा शुद्ध चैतन्य, प्रकृति के इस नृत्य अथवा क्रीड़ा से स्वयं को तटस्थ कर स्वयं में लीन हो जाता है तब वह कैवल्य अथवा मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
जीव जंतु का निर्माण:-
ब्रह्मा जी के हिस्से पर आया पृथ्वी के निर्माण का काम अब जीव जंतु बनाने का आदेश मिला ! अब चार ऋषि सनक,सानंदन, सनातन और सनत कुमार की रचना की ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण के लिए परंतु उन्होंने ईश्वर आराधना को अपनाया जिससे क्रोधित होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें सदैव बालक रूप में ही रहने का शाप दे दिया जो कि अजर और अमर है कुमारों के मना करने के बाद ब्रह्मा जी ने अपने चारों सिरों से दो दो ऋषि बनाने का संकल्प लिया! आप के मन में यह प्रश्न आ सकता है ऋषि तो सात ही है आठवे ऋषि कौन है ! तो आपको बताना चाहेगे की वे जामवंत है! जो ऋषि पुलस्त्य के भाई है ! इसका प्रमाण आपको रामायण और कई पुराणों में मिल जायेगा !
सृष्टि की रचना क्यों, कब और कैसे हुई? यह प्रश्न हमेशा से मानव जाति के लिए एक अनबूझ पहेली बना रहा है। इसके अतिरिक्त इस प्रश्न की विशेषता तथा महत्व इस बात से भी है कि विज्ञान तथा धर्म, विचार पद्धतियां समान रूप से इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए उत्सुक तथा तत्पर दिखाई पड़ती हैं। बौद्ध दर्शन में ब्रह्मांड की उत्पत्ति, आत्मा और ईश्वर आदि की अवधारणा संबंधी प्रश्नों को कोई विशेष स्थान नहीं दिया गया है। जबकि सांख्य दर्शन ने इसे पुरुष और प्रकृति बताया है।
ब्रह्मांड की उत्पत्ति पुरुष और प्रकृति के क्रियाशीलता से भी होता है।
सर्वव्यापी विस्फोट विकास के क्रम से:-
इससे इतर वैज्ञानिकों के अनुसार सृष्टि की रचना एक सर्वव्यापी विस्फोट के साथ हुई, जिसे वह बिग-बैंग की संज्ञा देते हैं। इसके कारण ब्रह्माण्ड अब भी विस्तार पा रहा है। दसवीं शताब्दी में भारतीय दार्शनिक उद्यन अपने ग्रंथ न्यायकुसुमांजलि में कहते हैं कि जिस प्रकार संसार की सभी वस्तुएं अपनी रचना तथा विकासक्रम के लिए किसी अन्य बुद्धिमान जीव पर निर्भर करती हैं, उसी प्रकार पृथ्वी भी एक वस्तु के समान है, जिसकी सृष्टि तथा विकासक्रम किसी सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिमान सत्ता पर निर्भर करता है तथा इस सत्ता का नाम ईश्वर है।
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