मान्धाता की पत्नी का नाम बिंदुमती था और जो एक ऋषि कन्या थी। त्रेता युग में महाराजा मान्धाता के तीन पुत्र हुए, अमरीष, पुरू और मुचुकुन्द। विष्णु पुराण में श्रीकृष्ण लीला में इनकी कथा का उल्लेख मिलता है। राजा मुचकुंद इच्छवाकु वंश के राजा थे जिनकी वीरता की चर्चा स्वर्ग में भी होती थी। मुचुकुंद सूर्यवंश के बड़े प्रतापी राजा हुए! जिन्होंने स्वर्ग से लेकर प्रथ्वी से पाताल तक असुरों को बार बार हराया। एक बार असुरों ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को पराजित करने लगे तो देवराज इंद्र ने इनसे सहायता मांगी।युद्ध नीति में निपुण होने से देवासुर संग्राम में इंद्र ने महाराज मुचुकुन्द को अपना सेनापति बनाया।
इन्द्र की बात से दु्ःखी हुए राजा मुचकुंद
राज मुचकुंद ने अपने बल और पराक्रम से असुरों को पराजित कर दिया। देवराज इंद्र ने प्रसन्न होकर इन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। इन्होंने कहा कि, मुझे बस अपने परिवार के पास पृथ्वी पर जाने की आज्ञा दे दीजिए क्योंकि मुझे किसी और चीज की इच्छा नहीं है। तब देवराज इंद्र ने ऐसी बात कही जिससे राजा मुचकुंद बहुत दुखी हो गए।
अब राजा मुचकुंद को नींद आने लगी
देवराज ने कहा कि पृथ्वी पर अब तुम्हारा कोई जीवित नहीं रहा, सभी मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं। क्योंकि आप एक साल से स्वर्ग में हैं और इतने में पृथ्वी पर एक युग के बराबर समय गुजर चुका है। इस बात से दुखी होकर राजा मुचकुंद ने कहा कि मेरा मन बहुत दुखी हो गया है और अब मैं सोना चाहता हूं। इसलिए हे देवराज मुझे वरदान दीजिए कि मैं गहरी नींद में सो सकूं और कोई मुझे नींद से नहीं जगाए।युद्ध में विजय श्री मिलने के बाद महाराज मुचुकुन्द ने विश्राम की इच्छा प्रकट की। देवताओं ने वरदान दिया कि जो तुम्हारे विश्राम में अवरोध डालेगा, वह तुम्हारी नेत्र ज्योति से वहीं भस्म हो जायेगा।
राजा गुफा में जाकर गहरी नींद में सो गए
देवराज इंद्र ने राजा से कहा कि आप कहीं गुप्त स्थान पर जाकर सो जाइए। जो भी आपको नींद से जगाएगा आपकी दृष्टि पड़ते ही वह जलकर भस्म जाएगा। राजा मुचकुंद एक गुफा में जाकर सो गए। यह गुफा आज उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में स्थित है ऐसा माना जाता है।
कृष्ण समझकर कालयवन ने राजा मुचकुंद को जगाया
राजा मुचकुंद त्रेतायुग से सोते-सोते द्वापर युग में आ गए और उन्हें इसका पता ही नहीं चला। जब यूनान के राजा कालयवन ने मथुरा पर आक्रमण किया तब श्रीकृष्ण कालयवन को बहलाकर उस गुफा में ले गए जहां राजा मुचकुंद सो रहे थे। कालयवन ने कृष्ण समझकर गलती से राजा मुचकुंद को जगा दिया और भस्म हो गया।
शिव का वरदान को काटने के लिए यह लीला रची गई
कृष्ण को इसलिए कालयवन के साथ ऐसी लीली करनी पड़ी
दरअसल कालयवन को भगवान शिव का वरदान मिला था कि वह किसी भी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मारा जा सकता था और वह युद्ध में उसे कोई हरा नहीं सकता। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण को यह लीला करनी पड़ी और इसी लीला में रणभूमि से भागने के कारण उनका एक नाम रणछोड़ हुआ।
सोते सोते युग बीता
कालयवन के भस्म हो जाने पर श्रीकृष्ण ने राजा मुचुकुन्द को बताया कि सोते-सोते युग बीत गए हैं और अब आपको मुक्ति के लिए तप करना चाहिए। श्रीकृष्ण की आज्ञा से राजा मुचुकुन्द तप करने चले गए और इन्हें मोक्ष मिल गया।
देवताओं से वरदान लेकर महाराज मुचुकुन्द श्यामा अंचल पर्वत (जहाँ अब मौनी सिद्ध बाबा की गुफा है) की एक गुफा में आकर सो गयें। इधर जब जरासंध ने कृष्ण से बदला लेने के लिए मथुरा पर 18वीं बार चढ़ाई की तो कालयवन भी युद्ध में जरासंध का सहयोगी बनकर आया। कालयवन महर्षि गार्ग्य का पुत्र व म्लेक्ष्छ देश का राजा था। वह कंस का भी परम मित्र था। भगवान शंकर से उसे युद्ध में अजय का वरदान भी मिला था। भगवान शंकर के वरदान को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण रण क्षेत्र छोड़कर भागे। तभी कृष्ण को रणछोड़ भी कहा जाता है। कृष्ण को भागता देख कालयवन ने उनका पीछा किया। मथुरा से करीब सवासौ किमी दूर तक आकर श्यामाश्चल पर्वत की गुफा में आ गये जहाँ मुचुकुन्द महाराज जी सो रहे थे। कृष्ण ने अपनी पीताम्बरी मुचुकुन्द जी के ऊपर डाल दी और खुद एक चट्टान के पीछे छिप गये। कालयवन भी पीछा करते करते उसी गुफा मे आ गया। दंभ मे भरे कालयवन ने सो रहे मुचुकुन्द जी को कृष्ण समझकर ललकारा। मुचुकुन्द जी जागे और उनकी नेत्र की ज्वाला से कालयवन वहीं भस्म हो गया।
भगवान कृष्ण ने मुचुकुन्द जी को विष्णुरूप के दर्शन दिये।
मुचुकुन्द जी दर्शनों से अभिभूत होकर बोले - हे भगवान! तापत्रय से अभिभूत होकर सर्वदा इस संसार चक्र में भ्रमण करते हुए मुझे कभी शांति नहीं मिली। देवलोक का बुलावा आया तो वहाँ भी देवताओं को मेरी सहायता की आवश्कता हुई। स्वर्ग लोक में भी शांति प्राप्त नही हुई। अब मै आपका ही अभिलाषी हूँ, श्री कृष्ण के आदेश से महाराज मुचुकुन्द जी ने पाँच कुण्डीय यज्ञ किया। यज्ञ की पूर्णाहुति ऋषि पंचमी के दिन हुई। यज्ञ में सभी देवी-दवताओ व तीर्थों को बुलाया गया। इसी दिन भगवान कृष्ण से आज्ञा लेकर महाराज मुचुकुन्द गंधमादन पर्वत पर तपस्या के लिए प्रस्थान कर गये। वह यज्ञ स्थल आज पवित्र सरोवर के रूप में हमें इस पौराणिक कथा का बखान कर रहा है।
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