भगवान राम सूर्यवंश में त्रेता युग के तृतीय चरण में आए परंतु रावण का जन्म सतयुग ( सत्ययुग ) के मध्य काल तृतीय चरण की शुरुवात में हुआ और वह सूर्यवंशी राजाओं से पीढ़ी दर पीढ़ी लडता रहा और हमेशा हारा अंत में रामजी द्वारा मारा गया। राम विष्णु के अवतार भी रहे और ब्रह्मा द्वारा सृजित कुल में अवतार लिए थे। इसी कुल परंपरा के कुछ धुंधले पृष्ठों पर जमे धूल को साफ कर प्रभु जी के कुल की कीर्ति गाथा प्रभु जी के श्रीचरणों में समर्पित किया जा रहा है।
त्रिमूर्ति की अवधारणा में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, और भगवान शिव हिंदू धर्म में सर्वोच्च शक्तियां माने गए हैं। हिंदू त्रिमूर्ति में भगवान ब्रह्मा इक्कीस ब्रह्मांडो के स्वामी ब्रह्म-काल (ज्योति निरंजन) और देवी दुर्गा (माया / अष्टांगी / प्रकृति देवी) के सबसे बड़े पुत्र हैं। उनके अन्य दो छोटे भाई भगवान विष्णु और भगवान शिव हैं। ब्रह्मा को विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ भी कहते हैं। पुराणों में जो ब्रह्मा का रूप वर्णित मिलता है वह वैदिक प्रजापति के रूप का विकास है। प्रजापति उसे कहते हैं जिससे प्रजाओं की उत्पत्ति हो अर्थात जिससे परिवार, कुल और वंश की वृद्धि हो। ब्रह्मा के पुत्रों को भी प्रजापित कहा जाता है। कहा जाता है जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो वह इस समस्त ब्रह्मांड में अकेले थे। ऐसे में उन्होंने अपने मुख से सरस्वती, सान्ध्य, ब्राह्मी को उत्पन्न किया। राम के पूर्वजों की पीढ़ी की शुरूआत सबसे पहले ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई।
दूसरी पीढ़ी में ब्रह्मा जी के पुत्र थे मरीचि हुए थे। तीसरी पीढ़ी में मरीचि के पुत्र कश्यप हुए थे।इसके बाद कश्यप के पुत्र विवस्वान हुए। जब विवस्वान हुए तभी से सूर्यवंश का आरंभ माना जाता है। विवस्वान से पुत्र वैवस्वत मनु हुए।वैवस्वत मनु के दस पुत्र हुए , इनमें से एक का नाम था इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना हुई। भगवान राम का जन्म वैवस्वत मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था.
स्वयंभुव मनु और शतरूपा :-
सरस्वती से विवाह करने के पश्चात ब्रह्मा ने सर्वप्रथम स्वयंभु मनु को जन्म दिया। शतरूपा संसार की प्रथम स्त्री थी ऐसी हिंदू मान्यता है। इनका जन्म ब्रह्मा के वामांग से हुआ था (ब्रह्मांड. 2-1-57) तथा स्वायंभुव मनु की पत्नी थीं। सुखसागर के अनुसार सृष्टि की वृद्धि के लिये ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो भागों में बाँट लिया जिनके नाम 'का' और 'या' (काया) हुये। उन्हीं दो भागों में से एक से पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई।
स्वायंभुव 'मनु' को आदि भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। यह समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। इन्हें प्रथम मानने के कई कारण हैं। संसार के प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु और प्रथम स्त्री थी शतरूपा। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा और सरस्वती की यह संतान मनु को पृथ्वी पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है। उन्होंने अपनी संकल्प शक्ति से शतरूपा देवी का सृजन किया। शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मा और शतरूपा के संयोग से ही स्वयंभू मनु का जन्म हुआ । इन्हीं मनु से मानव प्रजापत्य कल्प में ब्रह्मा ने रुद्र रूप को ही स्वायंभु मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को प्रकट किया।
भगवान श्रीराम जी के आद्य पुरुष स्वयंभुव मनु थे। मनु एक धर्मशास्त्रकार थे, धर्मग्रन्थों के बाद धर्माचरण की शिक्षा देने के लिये आदिपुरुष स्वयंभुव मनु ने स्मृति की रचना की जो मनुस्मृति के नाम से विख्यात है। ये ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से थे जिनका विवाह ब्रह्मा के दाहिने भाग से उत्पन्न अयोनिज कन्या शतरूपा से हुआ ।आपव (जो कि बाद में स्वायंभुव मनु कहलाये) ने प्रजा की रचना करने के उपरांत शतरूपा को अपनी पत्नी बना लिया। स्वयंभू मनु और सतरूपा से बहुत सी संताने हुई और उन्हीं की संतानों से यह नर मनुष्य की सृष्टि की रचना हुई। उनके पुत्र का नाम वीर हुआ। वीर ने प्रजापति कर्दम की कन्या काम्या से विवाह किया तथा दो पुत्र (1) प्रियव्रत तथा (2) उत्तानपाद और तीन पुत्री (1) प्रसूति और (2) आकूति ( 3) देवहूति नाम की संतानों को जन्म दिया। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ।
दक्ष ने प्रसूति से 24 कन्याओं को जन्म दिया। इसके नाम श्रद्धा, लक्ष्मी, पुष्टि, धुति, तुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शान्ति, ऋद्धि, और कीर्ति हैं। तेरह का विवाह धर्म से किया और फिर भृगु से ख्याति का, शिव से सती का, मरीचि से सम्भूति का, अंगिरा से स्मृति का, पुलस्त्य से प्रीति का पुलह से क्षमा का, कृति से सन्नति का, अत्रि से अनसूया का, वशिष्ट से ऊर्जा का, वह्व से स्वाह का तथा पितरों से स्वधा का विवाह किया। आगे आने वाली सृष्टि इन्हीं से विकसित हुई।
देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। रुचि के आकूति से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम यज्ञ रखा गया। इनकी पत्नी का नाम दक्षिणा था। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे। हिंदू पुराणों अनुसार इन्हीं तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई।
महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस सप्तद्वीपवती पृथ्वी पर राज्य किया। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। इन्हीं ने 'मनु स्मृति' की रचना की थी जो आज मूल रूप में नहीं मिलती। उसके अर्थ का अनर्थ ही होता रहा है। उस काल में वर्ण का अर्थ रंग होता था और आज जाति। प्रजा का पालन करते हुए जब महाराज मनु को मोक्ष की अभिलाषा हुई तो वे संपूर्ण राजपाट अपने बड़े पुत्र उत्तानपाद को सौंपकर एकान्त में अपनी पत्नी शतरूपा के साथ नैमिषारण्य तीर्थ चले गए। इन्हें परम ब्रह्म का दर्शन हुआ और अगले जन्म में ये दशरथ कौशल्या के रूप में जन्म लेकर राम नामक परम ब्रह्म के माता पिता का सम्मान मिला था। मनु ने सुनंदा नदी के किनारे सौ वर्ष तक तपस्या की। दोनों पति-पत्नी ने नैमिषारण्य नामक पवित्र तीर्थ में गौमती के किनारे भी बहुत समय तक तपस्या की। उस स्थान पर दोनों की समाधियां बनी हुई हैं।
No comments:
Post a Comment