Tuesday, February 1, 2022

अठारह संख्या का पौराणिक विवेचन डा. राधे श्याम द्विवेदी

          हिंदू शास्त्रों में अठारह का विशेष महत्व है। पुराण और महत्वपूर्ण उप-पुराण संख्या में 18 हैं। 18 धर्मशास्त्र भी हैं। महाकाव्य महाभारत में 18 पर्व (अध्याय) हैं, इसलिए भगवद गीता आदि ग्रंथ स्वर्गीय हैं।
       पुराण हिंदुओं के लिए पवित्र मिथक, किंवदंती और वंशावली के कई लोकप्रिय विश्वकोश संग्रह का गठन करते हैं। पुराण लगभग पूरी तरह से कथा दोहों में महाकाव्य कविताओं के रूप में आसान, बहने वाली शैली में लिखे गए हैं। पुराणों में कई प्राचीन धारणाएं और परंपराएं संरक्षित हैं, लेकिन वे सांप्रदायिक विचारों के साथ बहुत अधिक मिश्रित हैं, जिसका उद्देश्य विशेष प्रकार की पूजा या आस्था के लेखों की लोकप्रियता का पक्ष लेना है। 18 प्रमुख पुराणों को अक्सर इस आधार पर समूहीकृत किया जाता है कि वे विष्णु, शिव या ब्रह्मा का गुणगान करते हैं या नहीं। 
           पुराण शब्द ‘पुरा’ एवं ‘अण’ शब्दों की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ -‘पुराना’ अथवा ‘प्राचीन’ होता है । ‘पुरा’ शब्दका अर्थ है - अनागत एवं अतीत । ‘अण’ शब्द का अर्थ है "कहना" या "बताना" | अर्थात "जो अतीत के तथ्यों, सिद्धांतो, शिक्षाओं, नीतियों, नियमो और घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करे, वह पुराण है। वेदव्यास जी ने पुराणों की रचना की | कहा जाता है, ‘‘पूर्णात पुराण ’’... जिसका अर्थ है, "जो वेदों का पूरक हो" अर्थात् पुराण ( जो वेदों की टीका हैं ) | वेदों की जटिल भाषा में कही गई बातों को पुराणों में सरल भाषा में समझाया गया है | 
         पुराणों की संख्या अठारह होने के कई कारण हैं। हमारे संस्कृति में इस पूर्णाक को कई तरह से समर्थित किया गया है।अठारह पुराणों और उनके श्लोको की संख्या इस प्रकार है।
 1) विष्णु पुराण(२३,०००)
 2) ब्रह्म पुराण (१०,०००)
 3) शिव पुराण(२४,०००)
 4)भागवत पुराण(१८,०००)
 5) ब्रह्माण्ड पुराण (१२,०००)
 6) लिङ्ग पुराण(११,०००) 
7) नारद पुराण(२५,०००) 
8)ब्रह्म वैवर्त पुराण(१८,०००)
 9)स्कन्द पुराण(८१,१००) 
10) गरुड़ पुराण(१९,०००) 
11)मार्कण्डेय पुराण(९,०००)
 12)अग्नि पुराण(१५,०००)
 13) पद्म पुराण(५५,०००) 
14) भविष्य पुराण(१४,५००) 
15)मत्स्य पुराण(१४,०००) 
16) वराह पुराण(२४,०००)
 17) वामन पुराण(१०,०००)
 18) कूर्म पुराण(१७,०००)
अट्ठारह सिद्धियाँ :-
अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, सिद्धि, ईशित्व या वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, सृष्टि, पराकायप्रवेश, वाकसिद्धि, कल्पवृक्षत्व, संहारकरणसामर्थ्य, भावना, अमरता, सर्वन्याय - ये अट्ठारह सिद्धियाँ मानी जाती हैं ।
अठारह तत्व:-
सांख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति, मन, पाँच महाभूत ( पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश ), पाँच ज्ञानेद्री ( कान, त्वचा, चक्षु, नासिका और जिह्वा ) और पाँच कर्मेंद्री (वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ ) ये अठारह तत्व वर्णित हैं । 
अठारह विद्याएँ:-
छः वेदांग, चार वेद, मीमांसा, न्यायशास्त्र, पुराण, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद और गंधर्व वेद ये अठारह प्रकार की विद्याएँ मानी जाती हैं 
काल के अठारह भेद:-
एक संवत्सर, पाँच ऋतुएँ और बारह महीने - ये सब मिलकर काल के अठारह भेदों को बताये गए हैं ।
श्रीमद् भागवत गीता के अध्यायों की संख्या भी अठारह है । श्रीमद् भागवत में कुल श्लोकों की संख्या अठारह हज़ार है ।
शक्ति के 18 स्वरूप :-
 श्रीराधा, कात्यायनी, काली, तारा, कूष्मांडा, लक्ष्मी, सरस्वती, गायत्री, छिन्नमस्ता, षोडशी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, पार्वती, सिद्धिदात्री, भगवती और जगदम्बा, ये शक्ति के ये अठारह स्वरूप माने जाते हैं | 
दुर्गा की अठारह भुजाये :-
श्रीविष्णु, शिव, ब्रह्मा, इन्द्र आदि देवताओं के अंश से प्रकट हुई भगवती दुर्गा अठारह भुजाओं से सुशोभित हैं | 
18 उप पुराण: -
महर्षि वेदव्यास ने अठारह पुराणों के अतिरिक्त कुछ उप पुराणों की भी रचना की है। उपपुराणों को पुराणों का ही साररूप कहा जा सकता है । 18 उप-पुराण के लेखक अन्य प्रमुख ऋषि हैं। हालांकि इनमे से कई अब लुप्त हो चुके हैं और उनकी लिखित प्रति उपलब्ध नही है। ये हैं:
१.आदि या आदित्य पुराण
२.नृसिंह पुराण
३.नंद पुराण
४.शिवधर्म पुराण
५.आश्चर्य पुराण
६.नारदीय पुराण
७.कपिल पुराण
८.मानव या मनु पुराण
९.उष्णासा पुराण
१०.ब्रह्मांडीय पुराण
११.वरुण पुराण
१२.कालिका पुराण
१३.महेश्वर पुराण
१४.साम्ब पुराण
१५.सुर या सौर पुराण
१६.पराशर पुराण
१७.मरीचि पुराण
१८.भार्गव पुराण
 ऊपर दिए गए 18 ग्रंथों को ही वास्तविक उपपुराण की मान्यता प्राप्त है। कहीं कहीं कुछ इतर नाम भी मिलते हैं।
1) सनत्कुमार पुराण 
2) दुर्वासा पुराण
3) वसिष्ठ पुराण
महाभारत में 18 का महत्त्व:-
कौरवों (11 अक्षौहिणी) और पांडवों (7 अक्षौहिणी) की सेना भी कुल 18 अक्षौहिणी थी। ... महाभारत के युद्ध के पश्चात् कौरवों की तरफ से तीन और पांडवों की तरफ से 15 यानि कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे। महाभारत को पुराणों के जितना सम्मान दिया जाता है और पुराणों की संख्या भी 18 है।
महाभारतके 18 पर्व :-
आदिपर्व, सभापर्व, वनपर्व, विराटपर्व, उद्योगपर्व, भीष्मपर्व, द्रोणपर्व, आश्वमेधिकपर्व, महाप्रास्थानिकपर्व, सौप्तिकपर्व, स्त्रीपर्व, शान्तिपर्व, अनुशासनपर्व, मौसलपर्व, कर्णपर्व, शल्यपर्व, स्वर्गारोहणपर्व और आश्रमवासिकपर्व।
राम की सेना में अठारह पदुम जूथपती बंदरो का वर्णन:-
शुभ दृष्टि वृष्टि मोपर करौ जे सहचर रघुवीर के॥
दिनकरसुत हरिराज बालिबछ केसरि औरस।
दधिमुख द्विबिद मयंद रीछपति सम को पौरस॥
उल्कासुभट सुषेन दरीमुख कुमुद नील नल।
शरभर गवय गवाच्छ पनस गँधमादन अतिबल॥
पद्म अठारह यूथपति रामकाज भट भीर के।
शुभ दृष्टि वृष्टि मोपर करौ जे सहचर रघुवीर के॥
मूलार्थ – अठारह पद्म यूथोंके अधिपति प्रभु श्रीरामके नित्य सहचर हैं एवं युद्धके अवसरपर भगवान् श्रीरामका काज करनेवाले हैं, अर्थात् ये यूथपति युद्धके अवसरपर भगवान् श्रीरामके राक्षसवध रूप कार्यमें नित्य सहायक हैं। ऐसे सीतापति श्रीराघवकी संहार­लीलाके नित्य परिकर भट मुझपर शुभ दृष्टिकी वृष्टि करते रहें, अर्थात् मुझे अपनी कल्याणमयी चितवनसे निहारकर मुझ अकिञ्चनमें श्रीराम­प्रेमको भरते रहें। इनमें प्रमुख हैं – (१) सूर्यपुत्र वानरोंके राजा सुग्रीव (२) वालिपुत्र युवराज अङ्गद (३) केसरीजीके औरसपुत्र अञ्जनानन्दवर्धन श्रीहनुमान्‌जी महाराज (४) दधिमुख (५) द्विविद (६) मयन्द (७) जिनके समान और किसीका पौरुष नहीं है अर्थात् अतुल बलशाली ऋक्षराज जाम्बवान् (८) उल्कासुभट अर्थात् अन्धकारके समय दीपक जलाकर सेवा करनेवाले उल्का­सुभट नामक विशेष यूथपति (९) सुषेण (१०) दरीमुख (११) कुमुद (१२) नील (१३) नल (१४) शरभ (१५) गवय (१६) गवाक्ष (१७) पनस और (१८) अत्यन्त बलशाली गन्धमादन। इस प्रकार अठारह पद्म यूथ वानरोंके पूर्व­वर्णित अठारह यूथपति अर्थात् सुग्रीव, अङ्गद, हनुमान्, दधिमुख, द्विविद, मयन्द, जाम्बवान्, उल्का­सुभट, सुषेण, दरीमुख, कुमुद, नील, नल, शरभ, गवय, गवाक्ष, पनस और गन्धमादन – जो युद्धके समय श्रीराम­कार्यके संपादनमें परमवीरता करते हैं वे मुझपर कल्याणमयी दृष्टिका वर्षण करते रहें। इसी आशयको रामचरितमानसके सुन्दरकाण्डमें शुकने भी रावणसे स्पष्ट किया है –
अस मैं सुना श्रवन दशकंधर। पदुम अठारह जूथप बंदर॥
          इस प्रकार हम देखते हैं कि अठारह की संख्या सनातन धर्म और संस्कृति में बहुत श्रद्धा और आस्था के साथ प्रयुक्त हुआ है। यह पूर्णांक नौ का युग्म या जोड़ा भी है। इसकी महत्ता कदाचित अन्य संख्या से ज्यादा है।


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