रामायण में कथा है कि देवी सीता धरती से ही प्रकट हुई थीं और अंत में धरती में समा गईं। जिस स्थान पर देवी सीता भूमि में समाई थीं उस स्थान को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं।
पहली बात तो यह कि माता सीता का धरती में समा जाने के प्रसंग पर मतभेद और विरोधाभाष है। पद्मपुराण की कथा में सीता धरती में नहीं समाई थीं बल्कि उन्होंने श्रीराम के साथ रहकर सिंहासन का सुख भोगा था और उन्होंने भी राम के साथ में जल समाधि ले ली थी।
प्रमाणिक तौर ये बताना मुश्किल है कि मां सीता ने नैनीताल के सीताबनी पौड़ी के फलस्वाड़ी गांव ही धरती में समा गई थी या उत्तर प्रदेश के संत रविदास नगर (भदोई ) जिले में गंगा किनारे सीता मढ़ी स्थान पर समाधि ली थी टीवी धारावाहिक 'रामायण' के अनुसार, माता सीता ने अयोध्या में ही समाधि ली थी। ऐसे में ये बताना मुश्किल है कि माता सीता ने कहां भू-समाधि ली थी।
वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड के अनुसार प्रभु श्रीराम के दरबार में लव और कुश राम कथा सुनाते हैं। सीता के त्याग और तपस्या का वृतान्त सुनकर भगवान राम ने अपने विशिष्ट दूत के द्वारा महर्षि वाल्मीकि के पास सन्देश भिजवाया, 'यदि सीता का चरित्र शुद्ध है और वे आपकी अनुमति ले यहां आकर जन समुदाय में अपनी शुद्धता प्रमाणित करें और मेरा कलंक दूर करने के लिए शपथ करें तो मैं उनका स्वागत करूंगा।
यह संदेश सुनकर वाल्मीकि माता सीता को लेकर दरबार में उपस्थित हुए। काषायवस्त्रधारिणी सीता की दीन-हीन दशा देखकर वहां उपस्थित सभी लोगों का हृदय दुःख से भर आया और वे शोक से विकल हो आंसू बहाने लगे।
वाल्मीकि बोले, 'श्रीराम! मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि सीता पवित्र और सती है। कुश और लव आपके ही पुत्र हैं। मैं कभी मिथ्याभाषण नहीं करता। यदि मेरा कथन मिथ्या हो तो मेरी सम्पूर्ण तपस्या निष्फल हो जाय। मेरी इस साक्षी के बाद सीता स्वयं शपथपूर्वक आपको अपनी निर्दोषिता का आश्वासन देंगीं।
तत्पश्चात् श्रीराम सभी ऋषि-मुनियों, देवताओं और उपस्थित जनसमूह को लक्ष्य करके बोले, "हे मुनि एवं विज्ञजनों! मुझे महर्षि वाल्मीकि जी के कथन पर पूर्ण विश्वास है परन्तु यदि सीता स्वयं सबके समक्ष अपनी शुद्धता का पूर्ण विश्वास दें तो मुझे प्रसन्नता होगी।"
राम का कथन समाप्त होते ही सीता हाथ जोड़कर, नेत्र झुकाए बोलीं, "मैंने अपने जीवन में यदि श्रीरघुनाथजी के अतिरिक्त कभी किसी दूसरे पुरुष का चिन्तन न किया हो तो मेरी पवित्रता के प्रमाणस्वरूप भगवती पृथ्वी देवी अपनी गोद में मुझे स्थान दें।" सीता के इस प्रकार शपथ लेते ही पृथ्वी फटी। उसमें से एक सिंहासन निकला। उसी के साथ पृथ्वी की अधिष्ठात्री देवी भी दिव्य रूप में प्रकट हुईं। उन्होंने दोनों भुजाएं बढ़ाकर स्वागतपूर्वक सीता को उठाया और प्रेम से सिंहासन पर बिठा लिया। देखते-देखते सीता सहित सिंहासन पृथ्वी में लुप्त हो गया। सारे दर्शक स्तब्ध से यह अभूतपूर्व दृश्य देखते रह गए।इस सम्पूर्ण घटना से राम को बहुत दुःख हुआ। उनके नेत्रों से अश्रु बहने लगे। वे दुःखी होकर बोले, "मैं जानता हूं, मां वसुन्धरे! तुम ही सीता की सच्ची माता हो। राजा जनक ने हल जोतते हुए तुमसे ही सीता को पाया था, परन्तु तुम मेरी सीता को मुझे लौटा दो या मुझे भी अपनी गोद में समा लो।" श्रीराम को इस प्रकार विलाप करते देख ब्रह्मादि देवताओं ने उन्हें नाना प्रकार से सान्त्वना देकर सौंपा था।
समाधि स्थल पर संशय:-
हालांकि माता सीता ने समाधि कहां ली थी, इस पर संशय है! माता सीता द्वारा धरती में समा जाने की कथाओं में विभिन्न स्थानों का वर्णन है। ऐसे में माता सीता ने कहां पर समाधि ली थी, ये बताना मुश्किल है।
नैनीताल का सीताबनी: -
एक मान्यता के अनुसार देवी सीता जहां धरती में समाई थीं वह स्थान आज नैनीताल में जिम कार्बेट नेशल पार्क है जो बाघों के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित है। यहां कभी महर्षि बाल्मीकि का आश्रम हुआ करता था। भगवान राम द्वार देवी सीता को अयोध्या से निकाले जाने के बाद लक्ष्मणजी देवी सीता को यहीं छोड़ आए थे। यहीं पर देवी सीता ऋषि के आश्रम में रहीं इसलिए इस स्थान को सीताबनी के नाम से जाना गया। जिस समय भगवान राम ने देवी सीता को वनवास का आदेश दिया था उस समय देवी सीता गर्भवती थीं। ऋषि बाल्मीकि के आश्रम में ही इन्होंने अपने जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया था और इनका पालन-पोषण किया था। इस घटना की याद मेंं सीताबनी में देवी सीता की प्रतिमा के साथ उनके दोनों पुत्रों को भी दिखाया गया है।सीताबनी का जिक्र कई धर्म ग्रंथों में मिलता है। रामायाण, स्कंदपुराण और महाभारत में भी इस तीर्थ के महत्व को दर्शाया गया है। महाभारत के 83वें अध्याय में वर्णित श्लोक संख्या 49 से 60 श्लोक तक सीताबनी का उल्लेख किया गया है। स्कंदपुराण में जिन सीतेश्वर महादेव की महिमा का वर्णन किया गया है, वह यहीं विराजित हैं। स्कंदपुराण के अनुसार, कौशिकी नदी, जिसे वर्तमान में कोसी नदी कहा जाता है के बाईं ओर शेष गिरि पर्वत है। यह सिद्ध आत्माओं और गंधर्वों का विचरण स्थल है। इसी के पास स्थित है लक्ष्मणपुरा। जहां लक्ष्मणजी देवी सीता को अपने रथ से उताकर वन में छोड़ गए थे। तब उदास सीता ने बाल्मीकि ऋषि के आश्रम में शरण ली थी।आश्रम के पास ही रामपुरा नामक स्थान है। जहां लव-कुश ने भगवान राम द्वारा छोड़ा गया अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ा था। यहां दो पहाड़ियों के बीच की खाई है,खाई में स्थित कुंज की वह स्थान है जहां से माता सीता धरती में समा गई थीं। देवी सीता की पुकार पर धरती माता ने पहाड़ी को दो भागों में चीर दिया था और देवी सीता को अपनी गोद में स्थान दिया।
उत्तराखंड का फलस्वाड़ी गांव:-
कुछ मान्यताओं के अनुसार उत्तराखंड के फलस्वाड़ी गांव में सीता माता ने भू-समाधि ली थी। माना जाता है कि पौड़ी के सितोलस्यूं में ही सीता ने भू-समाधि ली थी. यहां 11वीं शताब्दी के सीता मंदिर, लक्ष्मण मंदिर और वाल्मीकि आश्रम मौजूद हैं.
पुरातत्वविद् डॉक्टर यशवंत सिंह कठोच के अनुसार, माना जाता है कि फलस्वाड़ी गांव में ही सीता माता ने भू-समाधि ली थी. जनश्रुतियों के अनुसार यहां पर सीता माता का मंदिर भी था और बाद में वह भी धरती में समा गया था. इससे जुड़ी कथा के अनुसार, यहां नवंबर महीने मनसार का मेला लगता है।फलस्वाड़ी और कोट गांव, जहां लक्ष्मण मंदिर है, मिलकर इस मेले का आयोजन करते हैं. हर साल बड़ी संख्या में लोग इसमें शामिल होने आते हैं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पौड़ी में ‘सीता माता सर्किट’ विकसित करने का ऐलान करते हुए कहा कि इन धार्मिक स्थलों की स्थानीय लोगों में बड़ी मान्यता है परंतु अन्य प्रदेशों के लोगों के इनके बारे कम जानकारी है. इसलिए देश भर के श्रद्धालुओं को यहां के धार्मिक महत्व के बारे बताने के लिए प्रचार प्रसार किया जाएगा उत्तराखंड के फलस्वाड़ी में माता सीता का भव्य मंदिर बनेगा। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के अनुसार, यहां पर माता सीता का भव्य मंदिर बनने पर भगवान राम और सीता में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति फलस्वाड़ी गांव जरूर आना चाहेगा। इसके अलावा यहां आने वाले श्रद्धालु माता सीता के उस स्थल को भी देखना चाहेंगे, जहां पर माता सीता ने भू-समाधि ली थी। फलस्वाड़ी गांव में माता सीता का भव्य मंदिर बनान के लिए इस क्षेत्र के हार गांव से और हर घर से एक शिला एक मुट्ठी मिट्टी और 11 रुपये दान स्वरुप लिए जाएंगे।
रविदास नगर (भदोई )जिले का सीतामढ़ी मंदिर:-
वह गंगा किनारे एक स्थान पर समाधि ली थी। कहा जाता है कि मां सीता ने तब देखा कि लव और कुश भगवान राम का मुकुट लेकर आए गए तो उनसे रहा नहीं गया और वह दुखी होकर धरती में समा गईं। कुछ लोग बिहार स्थित सीतामढ़ी को उनका समाधि स्थल बताते हैं तो कई उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर व संत रविदास नगर में गंगा किनारे उनके रहने और समाधि लेने की बात करते हैं। भदोई जिले का सीता समाहित स्थल सीतामढ़ी मंदिर इलाहबाद और वाराणसी के मध्य स्थित जंगीगंज बाज़ार से ११ किलोमीटर गंगा के किनारे स्थित है। मान्यता है कि इस स्थान पर माँ सीता से अपने आप को धरती में समाहित कर लिया था। यहाँ पर हनुमानजी की ११० फीट ऊँची मूर्ति है जिसे विश्व की सबसे बड़ी हनुमान जी की मूर्ति होने का गौरव प्राप्त है। स्वामी जितेंद्रानंद जी के असीम प्रयास से और श्री प्रकाश नारायण पुंज की मदद से ये स्थान पर्यटक स्थल के रूप में उभर कर आया है
अयोध्या का राज दरबार:-
रामायण से जुड़ी अन्य किंवदंतियों के अनुसार लव और कुश के बड़े होने पर जब एक बार भगवान राम ने मां सीता को अपने दरबार में बुलाया और पुन: अपने शुद्धता की शपथ लेने की बात कही। तो मां सीता उनकी इस बात से आहत हो गई और धरती मां से उन्हें अपनी गोद में बैठाने का आग्रह किया। जिसके बाद भरे दरबार में धरती फट गई और मां सीता उनकी गोद में समा गईं। अगर इस किंवदंति को सच माना जाए तो माता सीता ने अयोध्या में समाधि ली थी।
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