कार्तिक माह में तुलसी के पौधे की पूजा करने का विशेष महत्व है. तुलसी के पौधे को लक्ष्मी जी का प्रतीक माना गया है . तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है. इसलिए श्री हरि की पूजा के समय उन्हें तुलसी अर्पित करने से वे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं. और भक्तों की सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं.
चतुर्मास की शुरुआत में भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक मास की देवउठानी एकादशी के दिन जागते हैं. सालभर के सभी बड़े त्योहार कार्तिक मास में ही पड़ते हैं. कहते हैं कि इस माह में तुलसी की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मान्यता है कि घर में तुलसी का पौधा होने पर नियमित रूप से उसकी पूजा करनी चाहिए. साथ ही रविवार और एकादशी के दिन तुलसी के पौधे को पानी नहीं देना चाहिए. कार्तिक मास में सुबह-शाम तुलसी के आगे दीपक जलाना चाहिए. और पूजा-पाछ करना शुभ माना जाता है. इससे घर में दरिद्रता और दुर्भाग्य नहीं आता. माना जाता है तुलसी के पौधे में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शंकर का निवास होता है.
घर में तुलसी का पौधा रखने और पूजा करने से नकारात्मकता दूर होती है. मान्यता है कि कार्तिक मास में तुलसी के पौधे की पूजा के समय इस मंत्र का जाप किया जाए, तो मनचाहा फल प्राप्त होता है.
तुलसी मंत्र का जाप इस प्रकार करें-:-
महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी,
आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।
तुलसी के पत्तों को छूते हुए इस मंत्र का जाप नियमित रूप से करना चाहिए. कहते हैं कि इससे व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं. इस विधि से तुलसी की पूजा की। जानी चाहिए।
रोज सुबह स्नान आदि करने के बाद तुलसी के पौधे को कुमकुम, हल्दी और चावल अर्पित करें. तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाएं और भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें.इसके बाद तुलसी के सामने गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं और परिक्रमा करें. परिक्रमा करते समय ये मंत्र बोलें-
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
इसके बाद कम से कम 5 परिक्रमा करें। इसके बाद तुलसी की आरती इस प्रकार करें-
जय जय तुलसी माता, मैया जय तुलसी माता।
सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता॥
सब योगों से ऊपर, सब रोगों से ऊपर।
रज से रक्ष करके, सबकी भव त्राता॥
बटु पुत्री है श्यामा, सूर बल्ली है ग्राम्या।
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे, सो नर तर जाता॥
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित।
पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता॥
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में।
मानव लोक तुम्हीं से, सुख-संपति पाता॥
हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी।
प्रेम अजब है उनका, तुमसे कैसा नाता॥
हमारी विपद हरो तुम, कृपा करो माता॥
जय तुलसी माता, मैया जय तुलसी माता।
सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता॥
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