प्रथम दिवस श्री व्यास पीठ पर विराजमान जी पण्डित राजेश कुमार उपाध्याय जी के श्री मुख से भगवान श्री मन नारायण के स्वरूपों का वर्णन करते हुए आप ने कहा कि सत- घन, चित- घन और आनंदघन है। ऐसे भगवान सच्चिदानंद स्वरूप जो समस्त विश्व का पालन सृजन और संहरण तीनों के जो हेतु हैं, तथा जिनकी पावन- चरण शरण ग्रहण करते ही जीव के तापत्रय समाप्त हो जाते हैं ।ऐसे गोविंद के पादपद्मो में हम सब मिलकर बारंबार प्रणाम करते हैं। शुकदेव जी का ध्यान करते हुए नैमिषारण्य की पावन भूमि पर सूत जी महाराज द्वारा शौनकादि को जो मंगलमय कथा श्रवण कराई गई थी आज वही कथा दास प्रतापगढ़ की इस पावन धरती पर आप सभी को श्रवण करा रहा है। त्रिभुवन में वही धन्य है जिसके हृदय भवन में भक्ति महारानी विराजमान हैं, क्योंकि भगवान जिस भवन में भक्ति को देखते हैं फिर अपना वैकुंठ त्याग कर उन भक्तों के हृदय में भगवान जबरदस्ती घुसपैठ करते हैं। एक बार सरकार घुस आए फिर भक्त कितनी भी कोशिश कर ले फिर निकलने वाले नहीं है । गोकर्ण संवाद में महराज जी कहते हैं जीव को संसार में बांधने की 2 रस्सी है उन रस्सियों के नाम है अहमता और ममता देह में अहमता और देह के नातों में ममता- इन 2 रस्सी में जीव बँधा हुआ है। यह पांचभौतिक देह जो पंचायती धर्मशाला है इस धर्मशाला में कमरा बुक कर लिया है तो आराम से रहो पर तुम उस पर आधिपत्य स्थापित करने का प्रयास न करो क्योंकि पंचों की धर्मशाला पर किसी का कब्जा नहीं हो सकता, धक्का मार कर निकाल देगा। धुंधली ने जैसे कुतर्क करके फल नहीं खाया वैसे ही सत्संग में संतों से प्राप्त हुआ ज्ञान का दिव्य फल अपने कुतर्क की कैची से यह बुद्धि रूपी धुंधली काट डालती है और उस फल को नहीं खाती है। परिणाम क्या होता है? धुंधकारी घर में आ जाता है। सत्संग को जब तक हम व्यवहार में नहीं उतारेंगे तब तक यह अज्ञान रूपी धुंधकारी हमें सताता ही रहेगा। इसलिए संतों की शरण में जाओ तो संतों का क्षण और अन्न का कण कभी बर्बाद न करें गोविंद अवश्य मिलेगा।
( क्रमशः कड़ी 3)
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