हमारे परिवार के तीन शिक्षक गुरु हुए हैं इनमे प्रथम मोहन प्यारे द्विवेदी "मोहन" द्वितीय डाक्टर मुनि लाल उपाध्याय "सरस" और तृतीय पंडित घन श्याम दूबे जी हुए । उनके कुशल निर्देशन मे आज एक सम्मान जनक स्थिति में अपने परिवार का पालन पोषण और शिक्षा दीक्षा दे सके हैं। आज शिक्षक दिवस पर प्रथम दो स्वर्गीय आत्माओं को नमन करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। तीसरे हमारे अग्रज भ्राता का आशीर्वाद हम अपने दिन ब दिन के अपने जीवन में अनुभव करते हैं।
1.मोहन प्यारे द्विवेदी "मोहन"
सुकवि आचार्य पंडित मोहन प्यारे द्विवेदी "मोहन" एक सुप्रसिद्ध आशु कवि थे। उन्होंने प्राइमरी विद्यालय दुबौली दूबे और करचोलिया का निर्माण कराया। इस क्षेत्र में शिक्षा की पहली किरण इसी संस्था के माध्यम से फैली थी। पंडित मोहन प्यारे द्विवेदी का जन्म संवत 1966 विक्रमी (1 अप्रॅल 1909 ई.) में उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िला के हर्रैया तहसील के कप्तानगंज विकास खण्ड के दुबौली दूबे नामक गांव मे एक कुलीन परिवार में हुआ था। पंडित जी ने कप्तानगंज के प्राइमरी विद्यालय में प्राइमरी शिक्षा तथा हर्रैया से मिडिल स्कूल में मिडिल कक्षाओं की शिक्षा प्राप्त की। बाद में संस्कृत पाठशाला विष्णुपुरा से संस्कृत विश्वविद्यालय की प्रथमा तथा संस्कृत पाठशाला सोनहा से मध्यमा की पढ़ाई पूरी किया था।
द्विवेदी जी परिवार का पालन पोषण तथा शिक्षा के लिए लखनऊ चले गये थे। उन्होंने छोटी मोटी नौकरी करके अपने बच्चों का पालन पोषण किया था। पंडित जी ट्यूशन पढ़ाकर शहर का खर्चा चलाते थे। पंडित जी ने लखनऊ के प्रसिद्ध डी. ए. वी. कालेज में दो वर्षों तक अध्यापन भी किया था। घर की समस्याएँ बढ़ती देख उन्हें लखनऊ को छोड़ना पड़ा। गांव आकर पंडित जी अपने गांव दुबौली दूबे में एक प्राथमिक विद्यालय खोला जिसका स्थानीय स्तर पर विरोध होने से उसे करचोलिया स्थानतरित करवा लिया था।
2.डाक्टर मुनि लाल उपाध्याय सरस
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के सदर तहसील के बहादुर पुर बलाक में नगर क्षेत्र में खड़ौवा खुर्द नामक गांव के आस पास इलाके में नगर राज्य में गौतम क्षत्रियों के पुरोहित के रूप में भारद्वाज गोत्रीय में इस वंश के पूर्वजों का आगमन के हुआ था नगर के राजा उदय प्रतापसिंह के समकालीन उपाध्याय कुल के पूर्वज लक्ष्मन दत्त एक फौजी अफसर थे।इसी कुल परम्परा में सरस जी के पिता पं. केदार नाथ उपाध्याय का जन्म हुआ था बाद में डा.मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ जी का जन्म 10.04.1942 ई. में सीतारामपुर में श्री नाथ उपाध्याय के परिवार में हुआ डा. सरस 1 जुलाई 1963 से किसान इन्टरकालेज मरहा,कटया बस्ती में सहायक अध्यापक के रूप में पहली नियुक्ति पाये थे वह जून 1965 तक अध्यापन किये थे इसी बीच मार्च1965 में नगर बाजार में संभ्रान्त जनों की एक बैठक हुई और नगर बाजार में एक जनता माध्यमिक विद्यालय की स्थापना श्री मोहरनाथ पाण्डेय के प्रबंधकत्व में हुआ था ।डा. सरस जुलाई 1965 से इस विद्यालय के संस्थापक प्रधान अध्यापक हुए 1965 से 2006 तक जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नगर बाजार बस्ती आजीवन प्रधानाचार्य पद के उत्तरदायित्व का निर्वहन भी किये।अध्यापन के साथ ही साथ सरस जी ने हिन्दी, संस्कृत, मध्यकालीन इतिहास, प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विषय से एम. ए. करने के बाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का साहित्यरत्न, तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का साहित्याचार्य उपाधि भी प्राप्त किये थेवे अच्छे विद्वान कवि , शिक्षा जगत के एक महान हस्ती थे उन्हें राष्ट्रपति द्वारा दिनांक 5.9.2002 को वर्ष 2001 का शिक्षक सम्मान भी मिल चुका है। उनकी लगभग 4 दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हुई है। उन्होंने 'बाल त्रिशूल' विधा का प्रवर्तन किया।वह बाल पत्रिका ' बालसेतु' (मासिक हिंदी बालपत्र);का संपादन औरप्रकाशन किया. वे बाल साहित्यकारों के लिए भी एक सेतु जैसे थे .अपने खर्चे पर बस्ती में बाल साहित्यकार सम्मलेन किया करते थे.बहुत मिलनसार और सह्रदय इंसान थे ।वह जून 2006 तक अपने पद पर रहकर लगभग 42 साल तक शिक्षा जगत जे जुड़े रहेअगौना कलवारी में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल स्मारक व्याख्यानमाला, कविसम्मेलन तथा कन्याओं के विद्यालय को खुलवाने में उनकी महती भूमिका रही हैसेवामुक्त होने के बाद वह अयोध्या केनयेघाट स्थित परिक्रमा मार्ग पर केदार आश्रम बनवाकर रहने लगे। उनका जीवन एक बानप्रस्थी जैसा हो गया था और वह निरन्तर भगवत् नाम व चर्चा से जुड़े रहे।70 वर्षीया डा. सरस की मृत्यु 31 मार्च 2012 को लखनऊ के बलरामपुर जिला चिकित्सालय में हुई थी। 1 अप्रैल 2012 को राम नवमी के दिन सरयू के पावन तट पर उनकी अन्त्येठि सम्पन्न हुई थी । उनकी मृत्यु से शिक्षा तथा साहित्य जगत में एक बहुत ही अपूर्णनीय क्षति हुई थी।
मैंउनके प्रखर व्यक्तित्व का श्रद्धा के साथ स्मरण करता हूं। श्रद्धेय सरस जी के 80वें जयन्ती के पावन अवसर पर10 अप्रैल 2021को डा. सरसजी का दौहित्र डा.सौरभ द्विवेदी ने महर्षि वशिष्ठ चिकित्या महाविद्यालय बस्ती में सीनियर रेजिडेन्ट के रुप में अपना योगदान ज्वानिंग दिया है और प्रथम दिन ही एक दुष्कर शल्य चिकित्सा करके अपने वरिष्ठों को प्रभावित किया है। साथ ही नोवा हॉस्पिटल के माध्यम से आम जन मानस की सेवा में लगे हैं।
3 . पंडित घन श्याम दूबे
उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िला के हर्रैया तहसील के कप्तानगंज विकास खंड के दुबौली दूबे गांव के पंडित मोहन प्यारे द्विवेदी जी के एक कुलीन परिवार में पंडित घन श्याम दूबे जी का जन्म 24अप्रैल 1954ई में हुआ था। प्राइमरी शिक्षा प्राइमरी पाठशाला करचोलिया, जूनियर शिक्षा फैजाबाद जीआईसी में हाई स्कूल शिक्षा गाजीपुर सिटी जीआईसी में इंटर शिक्षा किसान इंटर कालेज मरहा कटया बस्ती बी ए जौनपुर के टीडी कालेज और फैज़ाबाद के साकेत कालेज से, एम ए और पीजी डीपीए की डिग्री गोरखपुर विश्व विद्यालय से तथा बीएड डिग्री किसान डिग्री कालेज बहराइच में हुआ था। आप जनता उच्चतर माध्यमिक नगर बाजार बस्ती में 1979 से 2016 तक सहायक अध्यापक के रूप में अपनी सेवा प्रदान की थी।
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