Thursday, September 30, 2021

कर्म फल भोगना ही पड़ता है डा. राधे श्याम द्विवेदी

यह बात हमारे मन में बार बार उठती है कि क्या हम पिछले जन्म के पाप भोगते है या फिर इस जन्म के कर्म का फल मिलता है? 
 हम सभी ये देखते आये है कि कुछ लोग अच्छा काम करके भी दुखी रहते है जबकि कुछ लोग गलत काम करके भी खुश रहते है. अच्छे बुरे कर्मो का फल हमे कब मिलता है ये जानना हम सब के लिए बेहद जरुरी है. 
क्या इस जन्म के कर्मो का फल इसी जन्म में मिलेगा ?
आज हम इसी पर चर्चा करेंगे. हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में अटूट विश्वास रखता है. हिन्दू धर्म कर्मवादी धर्म है. श्री कृष्ण ने कहा है – कि वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार की प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते है. जो कार्य और कारन की एक श्रृंखला है. महाभारत में खुद भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था – हे अर्जुन तेरे और मेरे कई जन्म हो चुके है. फर्क सिर्फ इतना है कि मुझे अपने सारे जन्मो की याद है लेकिन तुम्हे नही है. तुम्हे अपने पिछले जन्म याद नही होने के कारण तेरे लिए ये संसार नया है.लोगो को इस बात से शिकायत रहती है कि मैंने तो कभी किसी के साथ बुरा नही किया तो मेरे साथ गलत क्यों होता है. वहीँ कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि कुछ लोग गलत कर्म करके भी अच्छे से अपना जीवन जीते है. ऐसे लोग कई बार सबसे ज्यादा खुश भी होते है. गलत कर्म करने वाले इतने ज्यादा खुश क्यों रहते है इसको समझने के लिए आपको भगवान कृष्ण द्वारा कही गई भीष्म पितामह की एक कथा पढना जरुरी है.
भीष्म पितामह की कथा:-
भीष्म पितामह को क्यों रहना पड़ा था बाणों की शैय्या पर:-
महाभारत के युद्ध का दसवे दिन जब भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे हुए थे. युद्ध समाप्ति के बाद श्री कृष्ण पांड्वो के साथ भीष्म पितामह का आशीर्वाद लेने पहुंचे. तब भीष्म ने कृष्ण से प्रश्न करते हुए पूछा – हे वासुदेव मुझे बताइए कि ये मेरे कौन से कर्म का फल है जो मैं 18 दिन से यहाँ पड़ा हूँ. ये बात सुनकर कृष्ण हंसने लगे और उन्होंने भीष्म से पूछा – पितामह क्या आपको अपने कर्मो से जुड़े हुए पुनर्जन्म का ज्ञान है. भीष्म ने कहा हां मुझे अपने 100 पूर्वजन्मों का ज्ञान है. मैंने इन 100 जन्मो में कभी भी किसी व्यक्ति का अहित नही किया.
कृष्ण ने कहा कि आपने सही कहा आपने 100 बार कोई गलत काम नही किया लेकिन जब 101 बार आपने आज जन्म लिया और आप एक राजवंशी घराने में जन्मे हो. एक बार जब आप शिकार खेलते समय लौट रहे थे उस समय आपके घोड़े के उपर एक केकड़ा आ गया. जिसे आपने अपने बाण से उठाकर पीछे की तरफ फैंक दिया. वो जीव एक कांटेदार पौधे पर जा गिरा. जीव पीठ के बल जाकर गिरा था इसलिए उस पौधे के कांटे उसकी पीठ में चुभ गये. इस वजह से जीव की तड़प तड़प कर मृत्यु हुई.
आपके कर्म अच्छे थे और उसके श्राप का असर आप पर नही हुआ. लेकिन जिस समय द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तो आपका मौन रहना ही आपके अच्छे कर्मो को खत्म कर गया और उस जीव का श्राप आपको लग गया. उसी श्राप के कारण आपकी आज ये दशा है. इस कहानी से ये बात समझ आती है कि कर्म का फल आज नही तो कल हमे जरुर भुगतना पड़ता है. कर्मो के अनुसार ही जन्म मिलता है.
गरुड पुराण में बुरे कर्म का उल्लेख :-
गरुड पुराण में बुरे कर्मो के बारे में विस्तार से बताया गया है. किसी पुजारी को मारना, दिए गये वचन को तोडना, कमरे की सफाई को खराब करना गरुड पुराण के अनुसार बहुत बड़ा पाप माना जाता है. यदि कोई ऐसा करता है तो उसे सजा पाने के लिए तैयार रहना पड़ता है. स्त्री को कष्ट पहुंचाना या फिर उसके साथ मारपीट करना सीधा आपको नर्क पहुंचाता है. किसी के साथ विश्वासघात करना और किसी की हत्या के लिए षड्यंत्र रचना इसका रास्ता भी सीधा नर्क की तरफ जाता है.
जो लोग असहाय लोगो को सहारा नही देता, कमजोर लोगो को सताता है वो भी सीधे नर्क में जाता है. इसके साथ ही अपने जीवनसाथी को धोखा देने वाला, शराब की विक्री करने वाला या फिर जानवरों को अपने लाभ के लिए मारने वाले इंसान को नर्क में कई तरह की सजाएं मिलती है. जहाँ अच्छे कर्म व्यक्ति के जीवन को उन्नति की तरफ ले जाते है वहीँ बुरे कर्म अवन्नती की तरफ. जो जैसा कर्म करता है उसका वैसा ही फल मिलेगा. अच्छे कर्म करने पर सुख समृद्धि मिलती है और बुरे कर्म करने वालो को दुःख और परेशानी ही मिलती है. इसलिए अपने पूरे प्रयास से सत कर्म केवल सत कर्म ही करने का प्रयास करना चाहिए.


 


 




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