Sunday, July 25, 2021

आचार्य राम चन्द्र शुक्ल के पूर्वजों का गांव भेड़ी गांव डा. राधेश्याम द्विवेदी

                                      
भेड़ी गांव एक अधिकृत गर्ग गोत्रिय शुक्लाना गांव:-
ब्राह्मणों में तीन-तेरह का प्राचीन प्रचलन तमाम तर्कों से आज तक जूझ रहा है|  महान ऋषियों की संतान ब्राह्मण बंश आदि काल से अपनी परम्परा पर अपनें- अपनें बंश-गोत्र पर आज भी कायम है| पूर्वजों की परम्परा को देखें तो गर्ग, गौतम, श्री मुख शांडिल्य गोत्र को तीन का तथा अन्य को तेरह में बताया जाता है| गर्ग से शुक्ल, गौतम से मिश्र, श्री मुख शांडिल्य से तिवारी या त्रिपाठी बंश प्रकाश में आता है| गर्ग (शुक्ल- वंश)का उद्भव इस प्रकार है। गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है| (१) मामखोर (२) खखाइज खोर (३) भेंडी (४) बकरूआं (५) अकोलियाँ (६) भरवलियाँ (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं| भेड़ी गांव आचार्य राम चंद्र शुक्ल के पूर्वजों का गांव है जो देवरिया जिले में स्थित है। आचार्य शुक्ल का जन्म 1884 ई. में बस्ती जिले के अगौना नामक गाँव में हुआ था। वे वहाँ के मूल निवासी नहीं थे। उतर प्रदेश के देवरिया जिले में रुद्रपुर क्षेत्र के एकौना थान्हा के अंतर्गत भेड़ी गाँव है। यह गाँव शुक्ल लोगों का डीह स्थान है। राम चन्द्र शुक्ल के पूर्वज वहाँ रहते थे। शुक्ल जी के दादा पं.देवी दत्त शुक्ल की अल्पायु में मृत्यु हो गई। राम चन्द्र शुक्ल की दादी आजी पढ़ी लिखी स्वाभिमानी विधवा थीं। विधवा की तरह जीवन व्यतीत कर रही थीं। एक लिबास में रहना, कहीं आना जाना नहीं, एक समय खाना खाना, खाना बनाते समय बिना सिले हुए वस्त्र पहनना। इसी तरह एक दिन धोती लपेटे हुए वे खाना बना रही थीं। घर में एक कंगन की चोरी हुई थी। कुछ स्थितियाँ ऐसी बनी कि कहीं से उन्हें भनक लगी कि उस चोरी का आरोप उन पर लग रहा है। वह ब्राह्मणी चोरी के आरोप से तमतमा उठीं और घर से बाहर निकल आईं और पैदल ही चल दीं। गाँव घर के लोग मनाने गए लेकिन उन्होंने कहा - नहीं, अब नहीं, अब मैं इस गाँव का पानी तक नहीं पीऊँगी। इसलिए दादी अपने अल्पवयस्क पौत्र बालक व पुत्र चंद्रबली शुक्ल के साथ पहले अयोध्या गयी जहां उनकी भेट उनकी सहेली से हुई। बस्ती जिले के नगर पोखरनी राज की राजमाता उनकी सहेली थीं। वह अपने परिवार के साथ उन्हीं के यहाँ गई। उन्हें जब पूरी बातें पता चलीं तो उन्होंने आचार्य शुक्ल की आजी से वहीं रहने का प्रस्ताव दिया। उनकी यह सहेली पोखरनी नगर के राजा विश्वनाथ सिंह की पत्नी थी। उनके साथ वह पोखरनी नगर राज्य बस्ती आ गईं। राजमाता ने उन्हें 80 या  40 बीघा सीरमाफी जमीन दी और अगौना में बसा दिया। पहले तो वह जमीन नहीं लेना चाहती थी। परन्तु बाद में मानकर वहां बस गयी। बस्ती से करीब 25 किमी दूर कलवारी के पास अगौना गांव में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म हुआ था। धीरे-धीरे यह परिवार वहीं बस गया। वहीं पर उन्होंने चंद्रबली शुक्ल की पत्नी को भी बुला लिया। शुक्ल जी के पिताजी पोखरनी के राजकुमार के साथ ही पढ़ने लगे थे। रामचंद्र शुक्ल की माता विभाषी देवी गाना के पुनीत मिश्र घराने की कन्या थीं। इसी गाना के मिश्र घराने के भक्त-शिरोमणि महाकवि तुलसीदास भी थे। इस तरह तुलसीदास आचार्य रामचंद्र शुक्ल के मातुल वंश से थे। परशुराम मिश्र गोस्वामी जी के प्रपितामह थे।

पंडित शुक्ल जी पितामही की छत्रछाया में ही पूरी तरह से पले बढ़े। शुक्ल जी उन्हें दूधू माँ कहते थे और लोग उन्हें बच्ची साहब कहते थे। पितामही पूरी तरह हिंदू संस्कारों का पालन करती थीं। दादी मां रामचरितमानस, भागवत, महाभारत का पाठ नियमित रूप से करती थीं और इन्हीं की कहानियाँ सुनाया करती थीं। शुक्ल जी के चिंतन पर उनकी सुनाई कहानियों का बहुत प्रभाव है।

 

 

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