भारतीय हिन्दू संस्कृति विश्व की प्रचीनतम संस्कृति में अपना विशिष्ट
स्थान रखती है जिनका दर्शन हमारे धार्मिक एवं लौकिक साहित्यों तथा पुरातत्व के
विपुल प्रमाणों में प्राप्त होता है। हमारेे देश के विद्वान, चिन्तक एवं
मनीषी ‘विश्वबंधुत्व‘ एवं ‘बसुधौव
कुटुम्बकम‘ की
भावना से ओतप्रोत हो चिन्तन, तपश्चर्या तथा उचित पात्रों में प्रवचन एवं उपदेश देकर इस ज्ञान को
अक्षुण्य बनाये रखे हैं। वे आत्मप्रचार तथा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं रखते थे
और प्रायः अपने ज्ञान को दैवी शक्तियों से सम्बद्ध करते हुए जन साधारण में धार्मिक, सामाजिक एवं
अध्यात्मिक संतुलन तथा सामंजस्य का प्रयास करते रहते थे। वेे सभ्यता संस्कृति तथा
इतिहास के पृथक पृथक ग्रंथों की रचना ही नहीं अपितु अपने साहित्यों एवं अभिरुचियों
को समय समय पर उद्भासित करते रहे हैं। सनातन हिन्दू धर्म मुख्यत पांच संप्रदाय
हैं- 1. वैष्णव, 2. शैव, 3. शाक्त, 4 स्मार्त और 5. वैदिक संप्रदाय।
वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं- जैसे बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी, गौड़ीय आदि।
मथुरा वृन्दाबन की सखी सम्प्रदाय
सखी-सम्प्रदाय निम्बार्क-मतकी एक अवान्तर शाखा है। इस सम्प्रदाय के
संस्थापक स्वामी हरिदास थे। हरिदास जी पहले निम्बार्क-मत के अनुयायी थे, इसे हरिदासी
सम्प्रदाय भी कहते हैं। इसमें भक्त अपने आपको श्रीकृष्ण की सखी मानकर उसकी उपासना
तथा सेवा करते हैं और प्रायः स्त्रियों के भेष में रहकर उन्हीं के आचारों, व्यवहारों आदि
का पालन करते हैं। सखी संप्रदाय के साधु विशेष रूप से भारत वर्ष में उत्तर प्रदेश
के ब्रजक्षेत्र वृन्दावन, मथुरा, गोवर्धन में निवास करते हैं। इसी प्रकार अयोध्या प्रयाग काशी तथा
चित्रकूट आदि स्थलांे पर भी इनका असर देखा जाता है। कालान्तर में भगवद्धक्ति के गोपीभाव
को उन्नत और उपयुक्त साधन मानकर उन्होंने इस स्वतन्त्र सम्प्रदाय की स्थापना की। हरिदास
जी, स्वामी
आशुधीर देव जी के शिष्य थे। इन्हें देखते ही आशुधीर देवजी जान गये थे कि ये सखी
ललिता जी के अवतार हैं तथा राधाष्टमी के दिन भक्ति प्रदायनी श्री राधा जी के मंगलदृमहोत्सव
का दर्शन लाभ हेतु ही यहाँ पधारे है। हरिदासजी को रसनिधि सखी का अवतार माना गया
है। संत नाभादास जी ने अपने भक्तमाल में कहा है कि- सखी सम्प्रदाय में राधा-कृष्ण
की उपासना और आराधना की लीलाओं का अवलोकन साधक सखीभाव से कहता है। सखी सम्प्रदाय
में प्रेम की गम्भीरता और निर्मलता दर्शनीय है। स्वामी हरिदास के मत से ज्ञान में
भवसागर उतारने की क्षमता नहीं है। प्रेमपूर्वक श्रीकृष्ण की भक्ति से ही मुक्ति
मिल सकती है। सखी संप्रदाय किसी वेद-वेदांत के विशेष विचार का या परंपरा का प्रचार
नहीं करता बल्कि यह सगुण कृष्ण की उपासना उनकी सखी रूप में करने की विचारधारा को
प्रतिपादित करता है। केवल कृष्ण या राम की उपासना ही इस संप्रदाय का उद्देश्य है।
इस संप्रदाय के कवियों की रचनाएं ज्ञान की व्यर्थता और प्रेम की महत्ता का
प्रतिपादन करती है।
सखीभाव में श्रृंगार की बहुलता होती है। लोग एक पुरुष को स्त्री के
वेष में सोलह श्रृंगार कर के कृष्णा की आराधना करते हुए देखते हैं। पहले हरिदास जी
निम्बार्क-मत के अनुयायी थे, किन्तु समय के साथ उनके मन में भागवत की भक्ति से गोपीभाव उत्पन्न
हुआ। और वही भाव उन्हें प्रभु की भक्ति का सबसे उपयुक्त भाव लगा, इसलिए उन्होंने
एक स्वतंत्र संप्रदाय की स्थापना की। उनके अनुसार, “किसी भी प्रकार के ज्ञान में जीवन रुपी भवसागर
को पार करने की क्षमता नहीं होती, केवल प्रेम ही वो शक्ति है जो इस भवसागर से मुक्ति दे सकती है।
इसीलिए हमे अपने अहम(अस्तित्व) को भुला कर प्रभु के प्रेम में डूब कर उनकी स्तुति
करनी चाहिए।” स्वामी
हरिदास के पदों में भी प्रेम को ही प्रधानता दी गयी है। ठाकुरजी को रिझाने के लिए
श्रृंगार को अपनाया जाता है। सामान्यतया सभी सम्प्रदायों की पहचान पहले उनके तिलक
से होती है, उसके
बाद उनके वस्त्रों से। गुरु रामानंदी संप्रदाय के साधु अपने माथे पर लाल तिलक
लगाते हैं और कृष्णानन्दी संप्रदाय के साधु सफेद तिलक, जो कि राधा नाम
की बिंदिया होती है, लगाते हैं और साथ ही तुलसी की माला भी धारण करते हैं। सखी सम्प्रदाय
भी प्रमुख रुप से दो मागौं का अनुसरण करती हैं। कृष्णानंदी या कृष्णोपासक व
रामानन्दी या रामोपासक । इनका
प्रत्यक्ष प्रमाण कृष्ण शाखा में ज्यादा मिलता है परन्तु राम शाखा में भी यह कम
नही है।
अयोध्या में एक पृथक राम सखा सम्प्रदाय
18वी
संवत से प्रकाश में आया परन्तु सखी सम्प्रदाय तो सनातन काल से ही राम सखा राम सखी
सीता सखी कृष्ण सखा कृष्ण सखी राधा सखी आदि विविध रुपों में पुराणों व भक्ति
साहित्य में पाया जाता है। राम सखी मंदिर गोला घाट महंथ सिया राम शरण जी हैं। राम
सखी मंदिर निकट लक्ष्मन घाट ए राम सखी मंदिर रास कुज आदि इसी पथ के मंदिर हैं।
यहां अष्ट राम तथा अष्ट जानकी जी सखियों के नाम को आत्मसात करती हुई अनेक मंदिरों
की संरचना व अराधना हो रही है।राम सखा सम्प्रदाय में श्रावण कुंज अयोध्या, नृत्य राघव कुंज
अयोध्या, पीताम्बर
गाल किशनगढ़, नौ
खण्डीय रामसखा आश्रम पुष्कर आदि प्रमुख आश्रम हैं। श्रावण कुंज अयोध्या के नया घाट
पर स्थित है। मान्यता के अनुसार गोस्वामी तुलसी दास जी ने यही रामचरित मानस के
बालकंाड की रचना की थी। नृत्य राघव कुंज मणिराम छावनी के निकट बासुदेव घाट स्थित
है। राम सखा बगिया रानी बाग में एक विस्तृत भूभाग में स्थित है। नृत्य राघव कुंज
बासुदेवघाट अयोध्या एक प्राचीन मंदिर है। यह राम सखा सम्प्रदाय का पुराना मंदिर
है। सियावर केलि कुंज नागेश्वरनाथ मंदिर के पीछे स्थित है। यह राम सखा सम्प्रदाय
का पुराना मंदिर है। चार शिला कुंज जानकी घाट अयोध्या में स्थित है। यह राम सखा
सम्प्रदाय का पुराना मंदिर है। राम सखी मंदिर गोला घाट महंथ सिया राम शरण राम सखी
मंदिर निकटलक्ष्मन घाट राम सखी मंदिर रास कुज आदि इसी पथ के मंदिर हैं।
अष्ट रामसखा तथा अष्ट जानकीजी सखी
अष्ट रामसखा तथा अष्ट जानकी जी सखियों के नाम को आत्मसात करती हुई
अनेक मंदिरों की संरचना व अराधना हो रही है। कनक भवन अयोध्या का एक महत्वपूर्ण
मंदिर है। यह मंदिर सीता और राम के सोने के मुकुट पहने प्रतिमाओं के लिए लोकप्रिय
है. मुख्य मंदिर आतंरिक क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें रामजी का भव्य मंदिर स्थित है। यहां
भगवान राम और उनके तीन भाइयों के साथ देवी सीता की सुंदर मूर्तियां स्थापित हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार राम विवाह के पश्चानत् माता कैकई के द्वारा सीता जी को
कनक भवन मुंह दिखाई में दिया गया था। जिसे भगवान राम तथा सीता जी ने अपना निज भवन
बना लिया। मंदिर के गर्भगृह के पास ही शयन स्थान है जहां भगवान राम शयन करते
हैं। इस कुन्ज के चारों ओर आठ सखियों के कुंज हैं। जिन पर उनके चित्र स्थाापित किए
गये है । सभी सखियाँ की भिन्न सेवायें हैं जो भगवान के मनोरंजन तथा क्रीड़ा के लिये
प्रबन्ध करती थी उनके नाम इस प्रकार है।श्री चारुशीलाजी श्री क्षेमाजी, श्रीहेमाजी, श्रीवरारोहाजी, श्रीलक्ष्मणजी, श्रीसुलोचनाजी, श्रीपद्मगंधाजी
तथा श्रीसुभगाजी की भगवान के लिए सेवाएं भिन्न भिन्न है। ये आठों सखियां भगवान राम
की सखियाँ कही जाती हैं।
भक्तों में जो अत्यन्त अन्तरंग प्रेमी-सखी-भावना भावित हृदय होते हैं
वे कनकभवन के ऊपर बने गुप्त शयनकुन्ज का भी दर्शन करने की इच्छा करते हैं परन्तु
यह शयनालय सबको नहीं दिखाया जाता। किन्हीं कारणों से अब यह आम जनता के दर्शनों के
लिए बन्द कर दिया गया है। भावना से-इस शयनकुन्ज में नित्य प्रति रात्रि में पुजारी
भगवान को शयन कराते हैं। दिव्य वस्त्रालंकारों से सुसज्जित मध्य में सुन्दर शय्या
बिछी है। उसमें बीच के कुन्ज में शृंगार सामग्रियाँ रक्खी हैं। उसी कुुन्ज में
शय्या पर भगवान शयन करते हैं। इस कुन्ज के चारों ओर आठ सखियों के कुंज हैं। श्री
चारुशीलाजी, श्री
क्षेमाजी, श्री
हेमाजी, श्री
वरारोहाजी, श्री
लक्ष्मण जी, श्री
सुलोचना जी, श्री
पद्मगंधाजी, श्री
सुभगाजी-इन आठ सखियों के प्राचीन चित्र बने हुए हैं। उन चित्रों की शोभा देखने ही
योग्य है। अपनी अपनी सेवा में सभी सखियाँ तत्पर दिखाई देती हैं। सभी सखियाँ की
भिन्न-भिन्न सेवाएँ हैं। उस सेवा के रहस्य सभी चित्रों के नीचे दोहों में लिखे हुए
हैं। वे 8 दोहे इस प्रकार हैं-
श्री चारूशीला जी
प्रथम चारुशीला सुभग, गान कला सुप्रबीन।
युगल केलि रचना रसिक, रास रहिस रस लीन।।1।।
अर्थात-श्री चारुशीलजी, युगल सरकार की क्रीड़ा के लिये प्रबन्ध करती हैं। आप गान-कला की
आचार्य हैं। अखिल ब्रह्माण्ड के देवी-देवता, जो गानविद्या-प्रिय हैं, गन्धर्व आदि उन
सबकी अधिष्ठात्री देवी आप हैं। सृष्टि के वाणी आदि कार्य सब आपके आधीन हैं। आप
युगल सरकार के ‘विधान-रचना’ विभाग की
प्रधानमंत्री हैं।
श्री सुभगा जी
सुभगा सुभग शिरोमणि, सेज सुहाई
सेव।
सियवल्लभ सुख सुरति, रस,
सकल जान सो भेव।।2।।
अर्थात-ये युगल सरकार के वस्त्रादि की सेवा करती हैं तथ अखिल
ब्रह्माण्ड में वस्त्रों का प्रबन्ध, स्वच्छता, आरोग्य आदि आपके आधीन हैं। आजकल के हिसाब से आपको युगल सरकार के
आरोग्य-विभाग की प्रधानमंत्री कह सकते हैं।
श्री वरारोह जी
सखी वरारोह युगल
भोजन हरषि जमाय।
प्राण प्राणनी प्राणपति, राखति प्राण
लगाय।।3।।
अर्थात-ये सरकार की भोजनादि का सब प्रबन्ध करती हैं। अखिल ब्रह्माण्ड
में आप विश्व भरणपोषण की अधिष्ठात्री हैं। अन्नपूर्णां अष्टसिद्धि नवोनिधि आदि
आपके आधीन है। आपको प्रभु का ‘गृहसचिव’ कहना चाहिये।
श्री पद्मगंधा जी
सखी पद्मगंधा सुभव
भूषण सेवित अंग।
सदा विभूषित आप तन, युगल
माधुरी रंग।।4।।
अर्थात-श्री पद्मगंधा जी को भूषण आदि की सेवा मिली है। समस्त संसार
का धन, कोष, कुबेर आदि आपके
आधीन हैं। आप प्रभु की ”अर्थसचिव“ हैं।
श्री सुलोचना जी
अलि सुलोचना चितवित, अंजन तिलक
संसार।
अंगराय सिय लाल कर, जोवर
लखि शृंगार।।5।।
अर्थात-श्री सुलोचना जी प्रभु का अंजन, तिलक सब शृंगार सुचारू रूप से सजाती हैं।
चंदनादि अंगराग की सेवा करती हैं। इधर वे ही विश्व की शंृगार सामग्रियों की
प्रबन्धकत्र्री हैं। यह प्रभु की ‘प्रबन्धमंत्री’ कही जाती हैं।
श्री हेमा जी
हेमा करि बीरी
सादा, हंसि
दम्पति सुख देत।
सम्पति राग सुराग
की, बड़भागिनी
उर हेत।।6।।
अर्थात-कनकभवन में ताम्बूल की सेवा तथा अन्तरंग सेवाएँ भी आपके अधीन
हैं। इधर जगत में आप शंृगाररस की उपासिकाओं की रक्षा भी करती हैं। महिलाओं के
सौभाग्य की चाबी आपके ही आधीन हैं। आप प्रभु की ”उत्सव-सचिव“ हैं।
श्री क्षेमा जी
क्षेमा समस स्नान
सम, वसन
विचित्र बनाय।
सुरुचि सुहावनि सुखद ऋतु, पिय प्यारी पहिराय।।7।।
अर्थात-श्री कनकभवन सरकार को स्नान कराना, ऋतु के अनुसार
जल-विहार, उबटन
आदि की सेवा करती हैं। इधर ब्रह्माण्ड का समस्त जलतत्व आपके आधीन रहता है।
इन्द्र-वरुण आपके आधीन हैं। आप प्रभु की ”जल-सचिव“ हैं।
श्री लक्ष्मणा जी
लक्ष्मण मन लक्ष
गुण पुष्प विभूषण
साज।
विहंसि बिहंसि पहिरावतीं, सियवल्लभ महाराज।।8।।
अर्थात-‘कनकभवन’ में नित्य धाम में यह प्रिया प्रियतम की फूलमाला पुष्पभूषण की सेवा
करती हैं और जगत् में समस्त वन-उपवन, पशु,
पक्षी आपकी रक्षा में रहते हैं। सूर्य चन्द्र आपके आधीन हैं। आप
प्रभु की ”वनस्पति
एवं कला-सचिव“ कही
गयी हैं।
इस प्रकार इन आठों सखियों की जो महिमा जानकर इनकी उपासना करता है वह
समस्त वांछित सिद्धियों को प्राप्त करता है।
श्री सीताजी की सखियां
इनके अतिरिक्त आठ सखियाँ और हैं जो श्री सीताजी की अष्टसखी कही जाती
हैं उनमें श्री चन्द्र कला जी, श्री प्रसादजी, श्री विमलाजी, मदन कला जी, श्री विश्व मोहिनी, श्री उर्मिला, श्री चम्पाकला, श्री रूपकला जी हैं। इन श्री सीताजी की सखियों को अत्यन्त अन्तरंग
कहा जाता है। ये श्री किशोरी जी की अंगजा हैं। ये प्रिया प्रियतम की सख्यता में
लवलीन रहती हैं। आनन्द-विभोर की लीलाओं में, मान आदि में तथा उत्सवों में निमग्न रहते हुए
दम्पति को विविध प्रकार से सुख प्रदान करती हैं। मान्यता है कि किशोरी जी प्रतिदिन
श्रीराम को उनके भक्तों अर्थात भक्तमाल की कथा सुनातीं है। इसी भावना के तहत
भक्तमाल की पुस्तक भी रखी रहती है।
रंगमहल
अयोध्या के रामकोट मोहल्ले में राम जन्म भूमि के निकट भव्य रंग महल
मन्दिर स्थित है. ऐसा माना जाता है कि जब सीता माँ विवाहोपरांत अयोध्या की धरती पर
आयीं. तब कौशल्या माँ को सीता माँ का
स्वरुप इतना अच्छा लगा कि उन्होंने रंग महल सीता जी को मुँह दिखाई में
दिया. विवाह के बाद भगवान श्री राम कुछ 4 महीने इसी स्थान पर रहे. और यहाँ सब लोगों ने
मिलकर होली खेली थी.तभी से इस स्थान का नाम रंगमहल हुआ. सखी सम्प्रदाय का मंदिर
होने से इस स्थान का महत्व अत्यंत वृहद हो जाता है और दर्शनीय हो जाता है यहाँ
नित्य भगवान राम को शयन करते समय पुजारी सखी का रूप धारण करती हैं, भगवान को सुलाने
के लिए ये सखियाँ लोरी सुनाती हैं, और उनके साथ रास करती हैं।