उत्तर
प्रदेश के पूर्व मंत्री
राजकिशोर सिंह के राजनीतिक सफर
की शुरूआत एपीएनपीजी डिग्री कॉलेज से छात्र नेता
के तौर पर हुई थी।
वह वर्ष 2002 में पहली बार वे जिला पंचायत
सदस्य बने। इसी वर्ष वे उपाध्यक्ष का
चुनाव भी लड़े मगर
हार गये। वह भी अपने
प्रतिद्वन्दी चैधरी राम प्रसाद की तरह पहले
बसपा फिर सपा और अब कांगे्रस
में रहकर अपना भाग्य अजमा रहे है। जिला पंचायत सदस्य रहते उन्होंने बीएसपी के टिकट पर
हर्रैया से चुनाव लड़ा
और वे जीत गये।
वर्ष 2003 में बसपा के बागी विधायक
के रूप में वे मुलायम सिंह
के साथ जा मिले और
उनके मंत्रि मंडल में पहली बार कैबिनेट मंत्री बने। कैबिनेट मंत्री रहते उन्होने अपनी मां को जिला पंचायत
अध्यक्ष बनवाया और जब 2007 में
चुनाव हुये तो सपा की
सरकार तो नहीं बनी
मगर वे दूसरी बार
विधायक बनने में कामयाब हुए। बसपा के शासन काल
में राजकिशोर सिंह के भाई डिंपल
जेल गये फिर उनके उपर गैंगस्टर एक्ट भी लगा। इसके
बाद 2012 में जब सपा की
सरकार आई तो विधायक
बनते ही राजकिशोर सिंह
सबसे कद्दावर मंत्री के रूप में
उभरे। राजकिशोर सिंह लगातार 2003 व 2007 में उद्यान मंत्री बने और 2012 में भी कुछ दिन
उद्यान मंत्री रहने के बाद सीएम
ने उन्हे पंचायतीराज, लघु सिंचाई और पशु पालन
जैसे महत्वपूर्ण विभाग सौंपे। इतना ही नहीं पूरे
जिले में राजकिशोर के नाम का
सिक्का चलता रहा है और डीएम,
एसपी से लेकर थानेदार
तक की पोस्टिंग व
ट्रांसफर में उनकी पूरी दखल अंदाजी रहती थी। 2014 के लोकसभा चुनाव
में राजकिशोर ने अपने भाई
बृजकिशोर सिंह डिंपल को एसपी के
टिकट पर चुनाव लड़ाया
था। इस दौरान बीजेपी
के हरीश द्विवेदी से डिंपल महज
33 हजार वोटों से हारे थे।
बीजेपी के हरीश द्विवेदी
3,57,680 वोट पाकर चुनाव जीते थे, एसपी से डिंपल को
3,24,114 वोट मिले थे। बीएसपी से राम प्रसाद
चैधरी को करीब 2,83,000 वोटों
पर ही संतोष करना
पड़ा था।
राजकिशोर सिंह बाहुबली क्षत्रीय नेता
सामान्य
परिवार से सबंध रखने
वाले प्रदेश के बाहुबली मंत्री
राजकिशोर सिंह को जब तीन
दिन पूर्व यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश
यादव ने भ्रष्टाचार के
आरोप में बर्खास्त किया, तो प्रदेश की
राजनीति में भूचाल आ गया। राजकिशोर
सिंह के गॉड फादर
कहे जाने वाले काबिना मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने अपने चहेते
की पैरवी करनी चाही, तो मुख्यमंत्री ने
शिवपाल को ही पैदल
कर दिया और कैबिनेट से
उनकी छुटटी कर उन्हें संगठन
का काम सौंप दिया। राजकिशोर सिंह पिछले 15 साल से लगातर बस्ती
के हरैया विधानसभा से विधायक हैं
और लगातार तीन बार वे कैबिनेट मंत्री
भी रह चुके हैं।
राजकिशोर की सम्पत्ति दिन
दोगुनी और रात चैगुनी
बढ़ने लगी, तो इस बात
की जानकारी सीएम तक भी पहुंची।
यूपी से लेकर दिल्ली
और मुबंई के इलाको में
जमीन की खरीद फरोख्त
ने राजकिशोर सिंह को सबकी नजरो
में ला दिया और
इस बात की शिकायत गोपनीय
तौर पर केन्द्र सरकार
से हो गई। जब
तक राजकिशोर के काले धन
की जांच शुरू होती, उससे पहले ही मुख्यमंत्री ने
उन्हें अपने कैबिनेट से ही टर्मिनेट
कर दिया। राजकिशोर सिंह का 14 साल से अधिक का
राजनीतिक कैरियर काफी उतार चढ़ाव रहा है। इस दौरान उन्होंने
लगातार जीत दर्ज कर क्षेत्र में
कद्दावर और दबंग नेता
की पहचान कायम की तो उन
पर परिवार के लोगों को
राजनीति में बढ़ाने के साथ ठेको
में दखलअंदाजी करने का आरोप लगा।
जिले में उनके गृह निवास चंगेरवा का विकास होने
की चर्चा आम है। बस्ती
को विकास प्राधिकरण का दर्जा दिलवाने
का श्रेय भी उन्हें ही
मिला। राजकिशोर ने सत्ता के
बल पर अपने बेटे
को जिला पंचायत का अध्यक्ष और
भाई को उर्जा विभाग
का सलाहकार बनवाने में प्रदेश के दूसरे सबसे
बड़े समाजवादी परिवार कहलाने लगे।
कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में
जिले
की सियासत में विशेष स्थान रखने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री राजकिशोर सिंह कांग्रेस में शामिल होकर बतौर प्रत्याशी पहली बार पहुंचे तो स्वागत करने
भारी भीड़ उमड़ी। जिले की सीमा घघौवा
पुल पर ही फूल-मालाओं से लाद दिया
गया। भीड़ के चलते फोरलेन
की एक लेन पर
जाम लग गया। गाडियों
की लंबी कतारें और भारी भीड़
देख कर राजकिशोर भावुक
हो गए। रोडशो के माध्यम से
शक्ति प्रदर्शन कर रहे पूर्व
मंत्री ने तो कुछ
नहीं कहा लेकिन हजारों की भीड़ देखकर
विपक्षी खेमे में खलबली मच गई। लोगों
में चर्चा थी कि यदि
भीड़ वोट का मानक बनी
तो बस्ती में हार जीत का समीकरण भी
बदल सकता है। हर तरफ जोरदार
स्वागत और पार्टी प्रत्याशी
मिलने से कांग्रेस पदाधिकारियों
की भी बाछें खिल
गई, मानों जिले में राजकिशोर के रूप में
संजीवनी मिल गई हो। कांग्रेस
से गठबंधन में जन अधिकार पार्टी
के प्रत्याशी चंद्रशेखर सिंह को पहले टिकट
मिला था। अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री थे जिन्हें बाद
में हटा दिया गया था तभी से
बगावती रुख हो गया था।
जिसका परिणाम कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में
सामने आया। एक ओर जहां
वह कुछ क्षत्रिय वोट भाजपा का काटेंगे वही
ज्यादा वोट सपा नेता के रुप में
रहने के कारण गठबंधन
का काटेंगे। इनके कारण बस्ती के चुनाव में
कुछ भी हो सकता
है। प्रतीत होता है कि त्रिकोण
संघर्ष में वह भाजपा को
ही लाभ देंगे।
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