ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :- अवध
के नबाब सआदत खां के समय सितम्बर
1722 ई. में बस्ती राज्य का राजा जयसिंह
बने। वह बहुत दिनों
तक जीवित रहे। उसके बाद उनका पौत्र पृथ्वीपाल उत्तराधिकारी बने। उनके पुत्र राजा जयपाल सिंह बस्ती के राजा बने।
इस समय यह राज्य अंग्रजों
को स्थानान्तरित हुआ था। इसके बाद राजा शिवबक्स सिंह राजा बने। इसके बाद राजा इन्द्र दमन सिंह बने। ये जवानी में
ही दिवंगत हो गये तो
राज्य की सम्पत्ति उनके
शिशु पुत्र शीतला बक्श में निहित हुई। इस राज्य का
देखरेख राजा इन्द्र दमन की विधवा के
अधीन था। वह स्वतंत्रता संग्राम
की अवधि तक इस राज्य
की संरक्षिका थी। 1857 को राजविद्रोह में
यूरोपीय रेजीडेंट और उसके प्रतिनिधि
को रानी बस्ती द्वारा संरक्षण दिया गया तथा उन्हें अपने घर में शरण
देकर रखा गया था। जब और खतरा
बढ़ा तो उन्हें गोरखपुर
सुरक्षित पहुंचा दिया गया। रानी की इस संवेदना
के कार्य ने अंग्रेजों को
और अधिक मजबूत कर दिया। 5 जनवरी
1858 को गोरखपुर के नाजिर मोहम्मद
हसन ने अपने अधिकारियों
को जनपद के विभिन्न राज्यों
में तैयार कर रखा था।
रानी बस्ती ने मुहम्मद हसन
के अधिकारी को अपने क्षेत्र
में जाने के लिए इनकार
कर दिया था। साथ ही हसन के
पुलिस अधिकारी को आवास देने
से भी मना कर
दिया था। अंत में अपने रवैये से विरोध भी
जताया था।
राजा
इन्द्र दमन की विधवा रानी
के पुत्र शीतला बक्श एक कवि भी
थे और ‘महेश’ उपनाम से कविता लिखते
व पढ़ते थे। बस्ती एवं पूर्वाचल के महान कवि
डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ की “बस्ती के छन्दकारों का साहित्यिक
योगदान” नामक शोध प्रवंध के अनुसार उनका
जन्म 1875 विक्रमी (1818 ई
) में हुआ था। उनका लालन पालन बढ़े लाड़ प्यार में हुआ था। कहा जाता है कि वह
अपने फिजूलखर्ची के चलते राज्य
की सम्पत्ति का विनाश कर
डाले थे। जब वह राजा
बने थे तो उनकी
पैतृक सम्पत्ति 233 गांव थी। इसके अलावा 114 गांव व्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें मिला था। कर्ज अदायगी में यह सम्पत्ति बंचने
की स्थिति में आ गये थे
। 1875 के यूपी आगरा
अवध तालुकादारों की सूची
में राजा शीतला बक्श सिंह का नाम अवध
की सूची में दर्ज है। राजा की पत्नी इस
योग्य रही कि अनेक गांवों
को खरीद लिया था। राजा की मृत्यु
1890 में हुई थी। उनके दो पुत्र थे।
बड़े पटेश्वरी प्रताप नारायण राजा बने। इनकी सम्पत्ति सिमटकर 26 गांव ही रह गई
थी। रानी की वसीयत के
अनुसार यह राजा पटेश्वरी
प्रताप नारायण की पत्नी तथा
भाइयों को गई। उन्हीं
की तरफ से यह सम्पत्ति
कौर्ट आफ बोर्ड के
प्रबन्धन में गई। राजा केवल उसके व्यवस्थापक ही बने। कर्ज
की राशि 80, 000 से ज्यादा हो
गयी थी। यह आशा की
जाती थी कि अगले
12 वर्षों में यह चुकता हो
जाएगी। इसी बीच राजा अपनी शाखा में गये और कुछ गांव
उसके अधीन पुन आ गये। प्रथा
के अनुसार उचित वारिस के अभाव में
एसी सम्पत्ति पुनः पैतृक घराने में आ जाती है।
राजा बस्ती के मानद द्वितीय
श्रेणी के मजिस्ट्रेट भी
रहे। पुरानी बस्ती स्थित राजभवन में वर्तमान राजा ऐश्वर्यराज सिंह ने महाराजा शीतला
बक्श सिंह ‘महेश’ की स्मृति में
एक पुस्तकालय एवं वाचनालय का संचालन करा
रहे हैं।
शीतला बक्श सिंह ‘महेश का कवि रुप : - राजा शीतला बक्श सिंह ‘महेश’ का कवि रुप
अत्यन्त आदरणीय रहा। उनका कई राजघरानों व
उनके दरबारी कवियों से मधुर संबंध
थे। अवध प्रान्त के कवियों में
उनका विशेष महत्व था। मिश्र बंधुओं ने अपने ” मिश्र-
बन्धु- विनोद” में महेश कवि की चर्चा की
है। बस्ती के महान कवि
लछिराम में अपने ग्रंथ कवित्त रत्नाकर में महेश कवि के बारे में
लिखा है--
समरबीर साहसबली श्री कलहंस नरेश।
इन्द्रदौन सिंह भूप मो सबही को सिरमौर।
सुवनतासु को दानिया राजन को सिरताज।
वे
ब्रज भाषा के सरस कवि
थे। छन्द परम्परा के विकास में
उनका बड़ा योगदान था। जनपद से प्रकाशित पत्रिका
‘उपहार’ में
उनके बारे में लिखा गया है- “संगीत साहित्य और कला की
त्रिवेणी में महाराज शीतलाबक्श आजीवन अवगाहन करते रहे। यौवन काल आते आते इनका ओजपूर्ण सरस व्यक्तित्व काव्य निर्झरणी के अबाध स्रोत
से प्रस्फुटित हुआ। नर्तकियों और संगीतज्ञों की
भाव लहरियों से अभिसिंचित महाराज
का कलाकार एकान्त में कबि बन बैठता और
वहीं से छन्द अपने
आप बह निकलते। स्वान्तःसुखाय
काव्य रचना के अतिरिक्त आपका
यश कला के संरक्षण और
कलाकारों के आश्रयदाता के
रुप में सबसे अधिक सौरभित हुआ है। सुकवि लछिराम की प्रारम्भिक रचनायें
आपकी ही छत्रछाया में
प्रणीत हुआ है।“
साहित्यिक योगदान - श्रृंगार शतक एकमात्र रचना :- महाराजा शीतला बक्श सिंह ‘महेश ‘ ने श्रृंगार शतक
नामक उत्कृष्ट ग्रंथ का प्रणयन किया
है। इस ग्रंथ की
चर्चा मिश्र बंधुओ के ‘मिश्र बंधु विनोद’ में किया गया है। राजा होने के साथ साथ
वे उत्कृष्ट कोटि के कवि भी
थे। उनके दन्द बहुत ही सारगर्भित होते
थे। उनके द्वारा सौकड़ों छन्द लिखा गया है परन्तु कोई
संग्रह नहीं छप सका है।
राज परिवार को अपने पूर्वज
की कृतियों को खोजवाकर प्रकाशित
करवाना चाहिए । इससे इस
जनपद के साहित्यिक इतिहास
में नये आयाम जुड़ सकते हैं। उनकी कुछ फुटकर रचनाये इस प्रकार हैं-
सुनि बोल सुहावन तेरी अटा यह टेकि हिये मैं धरौं पै धरौं।
सुख पीजरि पालि पढ़ाय घने गुन औगुन कोटि हरौं पै हरौं।
बिछरे हरि मोहि महेश मिलै मुक्ताहल गूंथि भरी पै भरौं।
मढ़ि कंचन चोंच परौवन मैं तोहि काग ते हंस करौं पै करौं।।
एक
और छन्द इस प्रकार है
-
पौढ़त पौढ़त पौढ़े मही, जननी संग पौढि कै बाल कहायो,
पौढि त्रिया संग सोई ‘महेश’ सुसारी निशा बृथा सोई गॅवायो।
छीर समुद्र के पौढ़न हार को ध्यान दियोन कबौं चित्त लायो।
पौढ़त पौढ़त पौढि गये सु चिता पर पौढ़न के दिन आयो।।
एक
छन्द और इस प्रकार
है -
अब पातक भेष कहां पिछड़ै विछुडै बिन कीच कचारन मैं।
डारिहौं नहि तोसो महेश कहै चलतो भला गंग की धारन मैं।
यमराज बेचारे कहां करिहैं धरिहैं पग मेरो हजारन मैं।
लहरी लहरी लहरी सी फिरै यह मुक्ति बिचारी करारन मैं।।
आश्रयदाता के रुप में : - राजा महेश एक कवि के
साथ ही साथ आश्रयदाता
भी थे।एक बार राजा साहब के यहां पुत्रोत्सव
चल रहा था। उसी समय आचार्य कवि लछिराम जी बस्ती दरबार
में पधारे थे। लछिराम जी ने ये
छन्द पढ़ा था -
मंगल मनोहर सकल अंग कोहर से आनन्द मगन पैछटान अधिकाती है।
हेरनि हरनि कर पद की चलनि सुरभांग ठुनकानि पै पीयूष सरसाती है।
लक्षिराम शीतलाबक्स बाल लाल जाते भाल की ललाई पै उकति अधिकाती है।
मेषराशि प्रथम मुहूरत प्रभात मढ्यो कुज लै दिनेश उदयाचल की राति है।।
“बस्ती के छन्दकारों का साहित्यिक योगदान” नामक
शोध प्रवंध में बस्ती एवं पूर्वाचल के महान कवि
डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस ’ने लिखा
है - महाराजा
शीतला बक्श सिंह ‘महेश’ श्रृंगार रस के बड़े
ही सुहृदयी कवि थे। कवि कवियों को गौरव देने
में अपने को धन्य मानते
थे। इनके सवैया और घनाक्षरी छन्द
जो रीतिकालीन भावधारा में लिखे गये हैं बस्ती जनपद के छन्द परम्परा
के विकास के मनोरम सोपान
हैं। जनपदीय छन्द परम्परा के विकास में
महेश शीतला बक्स का स्थान आदिचरण
के विकास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जनपद के कवियों को
महसो राजवंश के बाद उसी
ही राजवंश से संरक्षण और
सुख सुविधा मिली।
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