समीक्षक
: डा. राधे श्याम द्विवेदी नवीन
रामलोचन भट्ट का जन्म1885 विक्रमी में ग्राम सिंगरामऊ धनघटा संतकबीर नगर उत्तर प्रदेश में हुआ था। मलोली वंश के कवि राम गरीब चतुर्वेदी आपके समकालीन कवि थे। वे एक ख्यातिप्राप्त पंण्डित भी थे। राजे रजवाड़े तथा हाकिम हुक्काम के स्वागत तथा मंगलिक अवसरों पर वे हास्य और श्रृंगार रस की सुन्दर कविता पढ़ते थे। वे रीति परम्परा के अच्छे छन्दकार थे। उनकी भाषा ब्रज तथा राजदरबारी थी। उनकी कोई रचना ग्रंथ उपलब्ध नहीं है। कुछ फुटकर छन्द अवश्य मिले है। इनमें भक्ति रस प्रधान छन्द भी मिले है। उन्होने कवि सेनापति की कवित्त रत्नाकर की तरह रामचरित रत्नाकर नामक ग्रंथ का प्रणयन किया था। इसमें 108 घनाक्षरी एवं मनहरण छन्द थे। इनकी इस ग्रंथ की पाण्डुलिपि को बस्ती के प्रसिद्ध कवि लक्षिराम ने भी देखा था। रामचरित रत्नाकर का एक छन्द प्रस्तुत है-
दीजै जौ सलाह वोरि वारिद विदारि डारौ
मारौं बागवान जातुधान प्रतिकूल को।
लपकि लंगूर से त्रिकूट के कंगूरो सबै
फोरी डारौ अबै जैसो तूमरी मजूर को।
मेघनाद आदि राम लोचन न बूझैं बद
जारि डारौं लंका जो पै हुकुम हुजुर कौ।
नखन नकोट नोथि चोथि डारौं दांतन सो
रद्दी करि डारौं आज गद्दी बेस हूर कौ।।
रामचरित रत्नाकर छन्द परम्परा की एक शसक्त रचना है। राम लोचन जी लोक जीवन के अधिक सन्निकट रहते थे। उनके छन्दों में लोक पक्ष का चित्रण स्वाभाविक है। कवि रामलोचन का जीवन यायावरी था। जीवन के बहुमुखी पक्षों का उन्हें प्रयोगात्मक ज्ञान था। मौसम के अनुसार छन्द बनाने में वे पटु थे। सभा सोसाइटियों में आदर पाने के कारण वे अपना सम्पर्क सूत्र राजाओं से बनाये रखते थे। उनकी रचना में नीति परम्परा भी देखने को मिलता है।ब्रह्म भट्ट होने के कारण चाारण परम्परा के प्रकृति जनों के गुणगान के साथ उनमें भक्ति भाव भरी आस्था है। उनका एक फुटकर छन्द इस प्रकार है-
बाजे -बाजे सज्जन सप्रेम परमेश्वर के
सेवा में रहत बाजे त्रिविध
समीर को।
बाजे धर्म कर्म में पवित्र रहौ आठो याम
बाजै परस्वारथ में राखत शरीर को।
बाजै राम लोचन कुरान औ पुरान पढौ
बाजे - बाजे काहू के न
गुरु के न पीर के।
बाजे द्विजदेव जानैं मानैं कवि कोविद को
ज्ञान उर आनै बाजे रचित उसीर को।।
“बस्ती के छन्दकारों का साहित्यिक योगदान”
नामक शोध प्रवंध में बस्ती एवं पूर्वाचल के महान कवि डा- मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस” ने
सुकवि रामलोचन भट्ट का विशद वर्णन प्रस्तुत कर उन्हें साहित्य क्षितिज पर उद्घाटित
किया है। डा. सरस जी के अनुसार “ सुकवि रामलोचन भट्ट जनपदीय छन्द परम्परा के आदिचरण
के बहुचर्चित कवि थे। “उपहार “आदि जनपदीय अभिलेखों में उनका नाम आया है। ब्रज भाषा
के कवि के रुप में अपने समय में इन्हें अच्छा स्थान मिला है।“
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