Sunday, January 6, 2019

जिंदगी जैसा मैंने जाना डा. राधेश्याम द्विवेदी



जिंदगी को कोई प्यार का गीत कहता
मैं जटिलताओं का भार ही समझता
यह गम का सागर भी समझा जाता।
हँसकर डूब कर कोई इसमें मरता।

जिन्दगी एक अहसास है
टूटे दिल की यह आस है।
किसी को यह राजपाठ है
किसी को यह बनवास है।।

काटकर इसे सबको जाना है।
इतना आसान नहीं माना है।
जिन्दगी बहुत बेवफा भी है।
इसमें केवल दगा ही है।।

ठने मनाने का है सिलसिला
दर्द का है यह सिलफिसा
जिन्दगी दुर्लभ मेहमान है
कब तक रूके ना कोई भान है।।

हम बातें करते हवा में
हम जीते हैं पर भ्रम में।
असल में जिन्दगी क्या है
इसे ना देखा ना जाना है।।
जिंदगी के लिए इमेज परिणाम

यह ऊपर वाले की नियामत है।
जब जो चाहे वह करवाता है।
हम तो हैं कटपुतली केवल
लटके रहते हैं यहां वहां केवल ।

हम प्लान बनाते बड़ा बडा।
कष्ट झेलते रहते बड़ा बडा।
सुख क्षणिक को सत्य माना।
इठलाते हैं बड़ा बडा ।।

बुजुगों का कहना माना।
उनकी आज्ञा को सच जानाा।
संस्कृति संस्कार में पड़कर।
उन आदर्शो को पहचाना।।

उनके संग कुछ पल जीया।
परिवार को लेकरके जीया।
अपने जाल में फसते गये।
परिवार में उलझते गये।।
जिंदगी के लिए इमेज परिणाम 
अपनी निजता को भूल गये।
सबकी इच्छाओं को पूरा किये।
अपने हिस्से में दो रोटी आया
तन ढ़कने का लंगोटी पाया।।

कुछ मिला बुजुर्गों से जितना।
उसका कई गुना उतार पाया।
कुछ फर्ज रह गये अधूरे
जो हो ना सकते अब पूरे।।

अब गाड़ी आगे निकली।
जो छूटे ना उनकी सुनली।
बच्चों की अपनी दुनिया।
देते हैं वे भी खुशियां।।



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