Tuesday, October 30, 2018

न्यायपालिका की मंशा पर सवाल डा. राधेश्याम द्विवेदी



सुप्रीम कोर्ट की मंशा पर अब सवाल खड़े होने शुरू हो रहे हैं। अयोध्या के राम मंदिर बाबरी मामले में पहला फैसला 1949 में आया था। अभी तक इस मामले में कुल 2 ही फैसले आए हैं। बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि का पहला विवाद 1822 में फैजाबाद कोर्ट के कागजों में दर्ज मिलता है। दूसरा 2010 में आया था। अप्रैल 2002 से राम जन्मभूमि बाबरी विवाद के मामले के अदालती प्रक्रिया में तेजी आई और विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की। 2002 esa gkbZdksVZ us Hkkjrh; iqjkrRo losZ{k.k dks bl ckr dh tkap djus dks dgk fd 1528 ls igys ogka efLtn Fkh ;k ughaA 2003 esa bykgckn gkbZ dksVZ us Hkkjrh; iqjkrRo losZ{k.k dks v;ks/;k esa [kqnkbZ dk funsZ'k fn;k] rkfd eafnj ;k efLtn dk çek.k fey ldsA 2003 के मार्च से अगस्त माह के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल के इर्द-गिर्द के भूभाग में खुदाई कराई और प्रमाणित किया कि जिस भूमि पर मस्जिद बनी थी, उसके नीचे मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। 22 vxLr 2003 dks Hkkjrh; iqjkrRo losZ{k.k us v;ks/;k esa [kqnkbZ ds ckn bykgckn gkbZ dksVZ esa fjiksVZ is'k dh- blesa dgk x;k fd efLtn ds uhps 10oha lnh ds eafnj ds vo'ks"k çek.k feys gSa- eqfLyeksa esa bls ysdj vyx&vyx er Fks- bl fjiksVZ dks v‚y bafM;k eqfLye ilZuy y‚ cksMZ us pkSysat fd;k 30 सितंबर 2010 को हाईकोर्ट की तीन जजों की विशेष पीठ ने विवादित भूमि को निर्मोही अखाड़ा, रामलला वं सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर बांटे जाने का आदेश पारित किया था, पर यह फैसला किसी को मान्य नहीं हुआ और प्रायःसभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इससे पूर्व 27 सितंबर को तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने 1994 के अपने उस फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजने से इनकार कर दिया था। फैसले में कहा गया था जिसमें कहा गया था किमस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं  है। यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। देखना है कि क्या अब न्यायालय इसका समाधान कर सकेगा अथवा जनता के दबाव प्रभाव में आकर कानून बनाकर सरकार इसका रास्ता निकाल सकेगी ।बीजेपी के चुनावी घोषणा में भी राम मंदिर  होने के बावजूद इस विषय पर संजीदा दिखाई नहीं देता है।
2019 के महासमर में बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा  :-
2019 का लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई में होने वाला है।एक तरफ सुप्रीम कोर्ट आस्था को लेकर राम मंदिर में घुसने नहीं देती और दूसरी तरफ सबरीमाला मंदिर में आस्थाओं,प्रथाओं को नुक्सान पहुंचाकर जबरदस्ती घुसाने में लगी हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने दही हांड़ी, उज्जैन मंदिर, सबरीमाला मंदिर, दिवाली के पटाखे बाकी सब मुद्दों पर आस्था और धर्म की परवाह किये बगैर तुरंत फैसला जाता है। हिन्दू महिलाओं की समानता के नाम पर आस्था का गला घोंटते हुए कोर्ट ने फैसला सुनाया था लेकिन जब मुस्लिम महिलाओं को समानता का हक दिलवाने के लिए मस्जिद में प्रवेश को लेकर कोर्ट में याचिका डाली गयी तो जज ने उसे ठुकरा दिया था। जब राम मंदिर जिससे करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है उसपर फैसला सुनाने की बात आती है तो जज उसे आस्था का विषय ना बताकर भूमि विवाद बता देते हैं संत समाज , उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत तथा शिव सेना बार बार कहती रही है कि इस मामला का जल्द समाधान हो।यह करोड़ों देशवासियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि पर राष्ट्र के प्राणस्वरूप धर्ममर्यादा के विग्रहरूप श्रीरामचन्द्र का भव्य राममंदिर बनाने के प्रयास में सकारात्मक पहल होगा। कुछ विरोधी त्था राजनीतिक तत्व नई-नई चीजें पेश कर न्यायिक प्रक्रिया में दखल दे रहे हैं और फैसले में रोड़े अटका रहे हैं। राष्ट्रहित के इस मामले में स्वार्थ के लिए सांप्रदायिक राजनीति करने वाली कुछ कट्टरपंथी ताकतें रोड़े अटका रही हैं।इसलिए राजनीति के कारण राम मंदिर निर्माण में देरी हो रही है।
     

कांग्रेस की योजना सफल :-
अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी है। इस मामले में सुनवाई के लिए अब जनवरी 2019 में तारीखें तय होगी। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ इस मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। कोर्ट ने सुनवाई की तारीखों की घोषणा भी नहीं की है। इससे राम मंदिर पर कांग्रेस की योजना सफल हो गयी। जो कांगे्रसी वकील कपिल सिब्बल चाहते थे सुप्रीम कोर्ट के मीलार्ड ने 3 मिनट में सुनवाई टालने से वही लग रहा है। जैसे पहले से मन बनाकर आये थे, सब कुछ पहले से ही तय कर लिया गया था। पिछले साल ही कांग्रेसी वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट के सामने ये प्रस्ताव रखा था कि राम मंदिर पर कोई सुनवाई ना की जाय बल्कि सीधा 2019 चुनाव के बाद सुनवाई की जाय वरना राम मंदिर बनने का चुनावी फायदा बीजेपी को मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट के पास सिर्फ हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने के लिए टाइम है, आतंकियों के लिए रात के 3 बजे कोर्ट खोलने का टाइम है। सिर्फ राम मंदिर के लिए ही टाइम नहीं है बेंच ने पुराने फैसले को बदलते हुए यह भी कहा कि अब फैसला नई पीठ करेगी। कोर्ट के इस आदेश के बाद अब सुनवाई कब से होगी, रोजना होगी या नहीं इस पर नया बेंच ही फैसला लेगा। कोर्ट ने कहा कि बेंच जनवरी में तय करेगा कि सुनवाई जनवरी में हो कि फरवरी या मार्च में। जल्द सुनवाई की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी अपनी प्राथमिकता है ये उचित बेंच तय करेगा कि सुनवाई कब से हो। मतलब स्पष्ट है कि इसे 2019 के चुनाव के बाद ही विचार किये जाने की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है। लगता है इस विवाद को 2019 के चुनाव के बाद शायद ही फैसला हो। यह भी हो सकता है कि न्यायालय फैसला करना ही नहीं चाहता। जिस प्रकार वावरी ढहा था उसी प्रकार जब हिन्दुओं के सब्र का बांध टूटेगा तो जनता व सरकारे स्वयं निर्णय लेकर कुछ भी कर सकती है ।  




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