नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने
एक साल में दूसरी बार लालकिले पर तिरंगा फहराया. मोदी ऐसा करने वाले संभवत: पहले प्रधानमंत्री
बन गए हैं. दरअसल भारत में अंग्रेजी हुकूमत के बीच नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आज ही
के दिन यानी 21 अक्टूबर को आजाद हिंद सरकार की स्थापना कर आजादी का पहला सपना पूरा
किया था. इस
मौके
पर
पीएम
ने
कहा
कि
आज
मैं
उन
माता
पिता
को
नमन
करता
हूं
जिन्होंने
नेता
जी
सुभाष
चंद्र
बोस
जैसा
सपूत
देश
को
दिया।
मैं
नतमस्तक
हूं
उस
सैनिकों
और
परिवारों
के
आगे
जिन्होंने
स्वतंत्रता
की
लड़ाई
में
खुद
को
न्योछावर
कर
दिया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर के कैथी सिनेमा हॉल
में आजाद हिंद सरकार की स्थापना की घोषणा की थी. वहां पर नेताजी स्वतंत्र भारत की अंतरिम
सरकार के प्रधानमंत्री, युद्ध और विदेशी मामलों के मंत्री और सेना के सर्वोच्च सेनापति
चुने गए थे. वित्त विभाग एस.सी चटर्जी को, प्रचार विभाग एस.ए. अय्यर को तथा महिला संगठन
लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया. इसके साथ ही सुभाष चंद्र बोस ने जापान-जर्मनी की
मदद से आजाद हिंद सरकार के नोट छपवाने का प्रबंधन किया और डाक टिकट भी तैयार करवाए.
बता दें कि जुलाई, 1943 में बोस पनडुब्बी से जर्मनी से जापानी नियंत्रण वाले सिंगापुर
पहुंचे. वहां उन्होंने 'दिल्ली चलो' का प्रसिद्ध नारा दिया. 4 जुलाई, 1943 ई. को बोस
ने 'आजाद हिन्द फौज ' और 'इंडियन लीग' की कमान को संभाली. उसके बाद उन्होंने सिंगापुर
में ही 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार 'आजाद हिन्द सरकार' की
स्थापना की.
जापान के अलावा 9 देशों की सरकारों ने आजाद हिंद सरकार को अपनी मान्यता दी थी,
जिसमें जर्मनी, फिलीपींस, थाईलैंड, मंचूरिया, और क्रोएशिया आदि देश शामिल थी. 30 दिसंबर
1943 को ही अंडमान निकोबार में पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराया था. ये तिरंगा
आजाद हिंद सरकार का था.ये भी कहा जाता है कि आजाद हिंद फौज के सदस्यों ने पहली बार
देश में साल 1944 को 19 मार्च के दिन झंडा फहराया दिया. कर्नल शौकत मलिक ने कुछ मणिपुरी
और आजाद हिंद के साथियों की मदद से माइरंग में राष्ट्रीय ध्वज फहराया था. जापानी साम्राज्य
की सैनिक, आर्थिक और नैतिक सहायता से यह सरकार टिकी रही और जापान के सरेंडर करने के
बाद भी आजाद हिंद ने हार नहीं मानी और युद्ध जारी रखा.
मोदी ने कहा कि एक परिवार की मौजूदगी को बड़ा बताने के लिए सुभाष चंद्र बोस, बी.आर.अंबेडकर व सरदार पटेल जैसे नेताओं के देश के लिए योगदान को भुला दिया गया। मोदी ने कहा कि आजाद हिंद फौज की स्थापना करने वाले सुभाष चंद्र बोस ने कैम्ब्रिज में अपने दिनों को याद करते हुए लिखा था, “हम भारतीयों को ये सिखाया जाता है कि यूरोप, ग्रेट ब्रिटेन का ही बड़ा स्वरूप है। इसलिए हमारी आदत यूरोप को इंग्लैंड के चश्मे से देखने की हो गई है।”
मोदी ने कहा, “यह हमारा दुर्भाग्य है कि आजादी के बाद भी जिन्होंने देश व हमारी प्रणाली की नींव रखी वो भारत को विदेशी चश्मे से देखते रहे। इससे हमारी विरासत, संस्कृति, शिक्षा प्रणाली, हमारा अध्ययन सभी बुरी तरह से प्रभावित हुआ।” मोदी ने कहा, “आज मैं निश्चित तौर पर यह कह सकता हूं कि अगर हमारे देश को सुभाष बाबू, सरदार पटेल जैसे शख्सियतों का मार्गदर्शन मिला
होता और अगर भारत को देखने के लिए वो विदेशी चश्मा नहीं होता, तो स्थितियां बहुत भिन्न होतीं। यह दुखद है कि सिर्फ एक परिवार की मौजूदगी को बढ़ाने के लिए पटेल, अंबेडकर व बोस जैसे भारत के सपूतों को भुला दिया गया।” प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार इसे बदल रही है। उन्होंने कहा कि देश का संपूर्ण विकास बोस के दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण पहलू था और राजग सरकार बोस की कल्पना के दिशा में जा रही है।
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