एन. डी.ए. के चार साल तक
कारगर परिणाम दिखा नहीं
:- केन्द्र में माननीय नरेन्द्र मोदी की सरकार को आये चार साल व्यतीत होने वाले हैं
जिस उद्देश्य को लेकर यह पार्टी सत्ता में आयी थी संभवतः वह उसके करीब तक अभी नही पहुच
सकी है। सारा ताना बाना तो पुराना ही है, जो नये -नये अधिकरियों व मंत्रियो को पाठ
पढ़ा देते है। जब तक बुनियादी स्तर पर काया कल्प नहीं होगा , तब तक सीटों पर बैठे बाबू
और अधिकारी सुधरने वाले नहीं है। भारतीय
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, भारत सरकार के संस्कृति विभाग के अन्तर्गत एक सरकारी एजेंसी है, जो कि
पुरातत्व अध्ययन और सांस्कृतिक स्मारकों के अनुरक्षण के लिये उत्तरदायी होती है।, ए.एस.
आई. के प्रकार्यों में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के स्थलों और स्मारकों की
खोज, खुदाई, संरक्षण, सुरक्षा इत्यादि आते हैं। मैं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से
विगत एक साल 30 जून 2017 से सेवानिवृत्त हुआ हूं परन्तु अभी तक एक भी सेवानिवृत्त लाभ
का हकदार भारत का केन्द्रीय सरकार नहीं दिला पायी है, एसे में कैसे मेरी जीविका चल
रही है ? इसका वर्णन करना भी मेरे लिए संभव नहीं है। जब इन्तजार की सारी हदें पार कर
लिया तो आज यह पोस्ट लिखने का साहस जुटा सका
हॅू। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्कृति मंत्रालय के अधीन है। महानिदेशक का कार्यालय
मंडल कार्यालय वेतन एवं लेखा कार्यालय हैदराबाद / नई दिल्ली इसके प्रमुख कार्यालय हैं,
जहां सेवा निवृत्त तथा पेशन के मामलों का निस्तारण होता हैं। इन कार्यालयों में ना
तो इस बाबत कोई मीटिंग होती है ना ही कोई समीक्षा । सब भगवान के भरोसे लेट-लतीफ चलता
रहता हैं। कुछ अधिकारी व्यक्तिगत रुचि लेकर कार्य जल्द करवा देते हैं तो कुछ अपने धंधे
पानी में ही व्यस्त रहते हैं .उन्हें पर पीड़ा से लेना देना ही नहीं रहता है। मेरे मामले
में आगरा का मंडल कार्यालय, दिल्ली का महानिदेशक कार्यालय तथा वेतन एवं लेखा कार्यालय
का रवैया सदा उदासीन तथा नकारात्मक रहा। वेतन एवं लेखा कायालय में मामले सालो पेण्डिंग
पड़े रहते है ना तो पुरातत्व सर्वेक्षण और ना ही वित् मंत्रालय को इसकी कोइ्र फिक्र
होती है और ना ही किसी प्रकार की मानीटरी होती है।
नौकरशाही का भ्रष्टाचार :- यह सर्वविदित है कि भारत में नौकरशाही
का मौजूदा स्वरूप ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की देन है। इसके कारण यह वर्ग आज भी अपने
को आम भारतीयों से अलग, उनके ऊपर, उनका शासक और स्वामी समझता है। अपने अधिकारों और
सुविधाओं के लिए यह वर्ग जितना सचेष्ट रहता है, आम जनता के हितों, जरूरतों और अपेक्षाओं
के प्रति उतना ही उदासीन रहता है। भारत जब गुलाम था, तब महात्मा गांधी ने विश्वास जताया
था कि आजादी के बाद अपना राज यानी स्वराज्य होगा, लेकिन आज जो हालत है, उसे देख कर
कहना पड़ता है कि अपना राज है कहां? उस लोक का तंत्र कहां नजर आता है, जिस लोक ने अपने
ही तंत्र की स्थापना की? आज चतुर्दिक अफसरशाही का जाल है। लोकतंत्र की छाती पर सवार
यह अफसरशाही हमारे सपनों को चूर-चूर कर रही है। कांग्रेस की 70 साल की नीतियां इतनी
निम्न स्तर पर आ चुकी हैं कि इसे सुधरने में ना जाने कितनी सरकारें आयेंगी व जायेंगी।
यह भी निश्चित है कि लोकतंत्र में यह हो भी पायेगा या नहीं ,यह कहना बहुत मुश्किल है।
नौकरशाही की विरासत और चरित्र
जस का तस :- स्वतंत्रता-प्राप्ति
के बाद भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के तहत तमाम महत्वपूर्ण बदलाव हुए, लेकिन
एक बात जो नहीं बदली, वह थी नौकरशाही की विरासत और उसका चरित्र। कड़े आंतरिक अनुशासन
और असंदिग्ध स्वामीभक्ति से युक्त सर्वाधिक प्रतिभाशाली व्यक्तियों का संगठित तंत्र
होने के कारण भारत के शीर्ष राजनेताओं ने औपनिवेशिक प्रशासनिक मॉडल को आजादी के बाद
भी जारी रखने का निर्णय लिया। इस बार अनुशासन के मानदंड को नौकरशाही का मूल आधार बनाया
गया। यही वजह रही कि स्वतंत्र भारत में भले ही भारतीय सिविल सर्विस का नाम बदलकर भारतीय
प्रशासनिक सेवा कर दिया गया और प्रशासनिक अधिकारियों को लोक सेवक कहा जाने लगा, लेकिन
अपने चाल, चरित्र और स्वभाव में वह सेवा पहले की भांति ही बनी रही। प्रशासनिक अधिकारियों
के इस तंत्र को आज भी ‘स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया’ कहा जाता है। नौकरशाह मतलब तना हुआ एक
पुतला। इसमें अधिकारों की अंतहीन हवा जो भरी है। हमारे लोगों ने ही इस पुतले को ताकतवर
बना दिया है। वे इतने गुरूर में होते हैं कि मत पूछिए। वे ऐसा करने का साहस केवल इसलिए
कर पाते हैं कि उनके पास अधिकार हैं, जिन्हें हमारे ही विकलांग-से लोकतंत्र ने दिया
है।
नौकरशाहों की मानसिकता में
बदलाव की जरूरत :-
भारत में अब तक हुए प्रशासनिक सुधार के प्रयासों का कोई कारगर नतीजा नहीं निकल पाया
है। वास्तव में नौकरशाहों की मानसिकता में बदलाव लाए जाने की जरूरत है। हमारे राजनीतिज्ञ
करना चाहें, तो पांच साल में व्यवस्था को दुरुस्त किया जा सकता है, लेकिन मौजूदा स्थिति
उनके लिए अनुकूल है, इसलिए वो बदलाव नहीं करते। 2019 का आम चुनाव इतना आयान नहीं होगा
। यह एनडीए सरकार की अग्नि परीक्षा की घड़ी होगी। हम 70 साल भले गवांये हैं पर अगला
5 साल कुछ समझ कर ही दिया जाएगा। अब जनता जागरुक हो चुकी है और केवल भाषण व घोषणायें
सुनकर निर्णय करने वाली नही है।
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