पुत्रेष्टियज्ञ हेतु मनोरमा
नदी का प्रादुर्भाव :- पौराणिक दृष्टि से देखा जाय तो पवित्र
धर्मनगरी एवं प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या की धरती के अति निकट तथा पुत्रेष्टियज्ञ
के स्थल को स्पर्श करती हुई अपने शीतल व पवित्र जल से पावन करती अदृश्य सरस्वती की
एक धारा निकल कर बस्ती जिले में हरैया के आस पास से होकर गुजरती है जिसे मनोरमा नदी
के नाम से जाना जाता है। प्रभु श्रीराम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ अपने चैदह
वर्ष के वनवास काल में मनोरमा के पुण्य क्षेत्र से गुजरे थे और अपने श्रीचरणों से स्पर्श
कर उस स्थान को इतिहास में अमर कर दिया। वह स्थान हरि रहिया के नाम से जाना जाने लगा।
हरि रहिया अवधी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है हरि का रास्ता अर्थात प्रभु का मार्ग।
कालांतर में उस स्थान का नाम हरैया पड़ा। हरैया अब एक बड़ी तहसील है जो कि बस्ती जिला
(उ.प्र.) में पड़ता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्म का श्रेय लेने वाली
पावन मनोरमा नदी ही है। उनके जन्म के निमित्त ही नदी का प्राकट्य हुआ था जिसके बाद
द्वापर में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस नदी को पूजा था।
मनोरमा की आत्मव्यथा-
मनोरमा रूप में सरस्वती नदी का प्रादुर्भाव हुआ है। जो जहाँ भी जाती हैं वहाँ की धरती
, पशु- पक्षी , मनुष्यों व खेत खलिहानों आदि
की प्यास बुझा कर उनका ताप हरती हैं तथा उन्हें हरा- भरा करती रहती हैं। वह झाड़ियों
और जंगलो को पार करती हुई मैदानी इलाके में आ पहुँचती हैं। जहाँ जहाँ से वह गुजरती
आस-पास तट बन जाते हैं। मैदानी इलाके में तटो के आस-पास छोटी बड़ी बस्तियाँ स्थापित
होती गई। वही अनेको गाँव बसते गए। नदी के पानी की सहायता से खेती बाड़ी की जाने लगी।
लोगो ने अपनी सुविधा की लिए कई जगहों पर पर छोटे-बड़े पुल बना लिए। वर्षा के दिनों में
तो मनोरमा का रूप बड़ा विकराल हो जाता है। इसका अस्तित्व तो उद्गम स्थल गोंडा जनपद के
तिर्रे ताल से लेकर बस्ती जनपद के लालगंज स्थित सरयू नदी में समाहित होने तक की करीब
70 किमी दूरी में ही है। परंतु इसके बीच मखौड़ा में बना 12वीं सदी का श्रीराम जानकी
मंदिर एंव पंडूल घाट के निकट पांडवों द्वारा स्थापित झुंगीनाथ शिव मंदिर के गुलरिहा
घाट पर बना ब्रह्मालीन तपसी दास महाराज का आश्रम समेत तमाम ऐसे प्रमाण हैं जो इसके
पौराणिक महत्व का परिचय देते हैं। करीब चार दशक पहले बारहों महीने कल कल कर बहता मनोरमा
का श्वेत जल लोगों को डुबकी लगाने को मजबूर कर देता था परंतु बढ़ते संसाधन और निकटवर्ती
कस्बों की बढ़ती आबादी इस पवित्र सलिला के लिए ऐसा जहर बन गयी है कि मखौड़ा में राजा
दशरथ द्वारा किए गए पुत्रेष्ठि यज्ञ के लिए जल देने वाली मनोरमा का खुद का दम घुट रहा
है। वजह कि इसके इर्द गिर्द के प्रत्येक कस्बे के गंदे नाले का मुहाना दरिया में ही
खुला है। यही नहीं आज जब नदी का श्वेत रंग काला पड़ गया है तब भी तमाम मंदिरों में नदी
केे जल से आचमन होता है।
हनुमान जी का तपसी सरकार के रुप में अवतरण
:- तपसी सरकार तो अजन्मा हैं, अनंत शक्तियों का उद्गम हैं। वे दया के सागर हैं। वे
अपने शिष्यों एवं भक्तों पर हमेशा कृपादृष्टि बनाये रखते हैं। वे तो पूर्णयोगी और साक्षात्
ईश्वर ही हैं। सच्चे संत हमेशा ही अपनी महिमा में, अपने स्वभाव में स्थित रहते हैं।
सत्य ही उनका स्वरुप है। वे सत चित एवं आनंदस्वरुप हैं। मयार्दा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम
के महान भक्त महाबली हनुमान जी का कलयुग में अवतरण एक रोचक घटना है। परम कृपालु महाबली
हनुमान जी ने एक महायोगी का अवतार धारण किया और भक्तों पर कृपा कर उन्हें सत्य का मार्ग
दिखाने के लिए भारतवर्ष में उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जिले में 8 दिसम्बर 2005 दिन
गुरूवार की मंगलमय सुबह में समय 10 बजे हरैया गाँव में कलकल बहती मनोरमा नामक पौराणिक
नदी के पावन तट कसौला जगदीशपुर में प्रगट हुए थे। उनके व्यक्तित्व का तेज देखकर लोगों
ने उन्हें कोई महान तपस्वी समझा और उन्हें तपसी सरकार (तपस्वी सरकार) नाम से जानने
लगे। वे तपस्या की साक्षात् मूर्ति ही दीख पड़ते थे। वे ज्यादातर साधना-ध्यान में ही
लीन रहते थे। उनकी उपस्थिति मात्र से सब तरफ सुख-शांति और समृद्धि छा गयी थी। लोग उन्हें
आदरवश सरकार कहकर सम्बोधित करते थे। वे मनोरमा के पावन तट पर घास की एक छोटी-सी कुटिया
में रहते थे।
आज यह आश्रम एक विशाल भूभाग में फैला
हुआ हैं जहां अनेक भव्य मंदिर धर्मशालाये पर्ण कुटी तथा प्राकृतिक आकार के ऊंचाई व
निचाई लिए भवन संरचनायें बनी हुई हैं। यहां के विशाल छायादार अनायास लोगों को भव्य
आश्रम का संकेत देती है। अपने एक संक्षिप्त भ्रमण में यहां मैंने अनेक संयासियों को
मंदिर में पूजा करते, आश्रम में आराम करते तथा वहां की व्यवस्था करते देखा हूं। तपसी
महाराज का विशाल स्मृति कार्यक्रम चैत शुक्ल अष्टमी को आगमी 24 मार्य 2018 तथा 17 अप्रैल
2018 को होना बताया गया है। इसकी तैयारी में आश्रम के लोग लगे हुए थे।
सरकार जी की हर एक लीला अपने आप में एक
रहस्य थी। वे कब क्या करने वाले हैं? क्यों करने वाले हैं? यह समझ पाना कठिन है। लोग
उनके चमत्कारों से आश्चर्यचकित हो जाते थे। इसलिए लोग उन्हें महायोगी मानते थे। लोग
क्या जानें कि वे तो स्वयं अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के दाता हनुमान जी के अवतार
हैं और उनके कष्टों को दूर करने के लिए ही वहाँ अवतरित हुए हैं। परम कृपालु महाबली
हनुमान जी ने एक महायोगी का अवतार धारण किया और भक्तों पर कृपा कर उन्हें सत्य का मार्ग
दिखाने के लिए भारतवर्ष में उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जिले को चुना। हनुमत अवतार
महायोगी तपसी सरकार जी का आगमन अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना थी और वे लोग कितने भाग्यशाली
रहे होंगे जो इस घटना के साक्षी बने। उनके जीवन से सम्बंधित अनेक घटनाओं का जिक्र उनके
भक्त व अनुयायी ही कर सकते हैं जिन पर उनकी कृपा व दिव्य दृष्टि रही।
जीवित समाधि :- सरकार जी ने अपने योगबल से जीवित
समाधि ली थी। समाधि धारण करने से पूर्व उनके सम्पूर्ण शरीर पर शीतल चन्दन का सुगन्धित
लेप किया गया था। जब सरकार जी ने जीवित समाधि ली, उसके 12-13 घंटे पश्चात् भी उनका
शरीर एकदम कोमल था. शरीर के किसी भी भाग में कहीं भी कोई अकड़न नहीं थी. उनका शरीर बिलकुल
तरोताजा एवं जीवंत दीखता था. सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये थी कि सरकार जी ने जीवित समाधि
ली थी। सरकार जी की समाधि से सम्बंधित एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना है।
प्रयोग में लायी बस्तुएं जीवन्त
:- सरकार जी के उपयोग में आने वाली सभी चीजें अभी भी जीवंत मालूम
पड़ती हैं । सरकार जी का समाधि दिवस प्रत्येक वर्ष 17 अप्रैल के दिन बड़े ही भावपूर्ण
ढंग से एवं धूमधाम से आयोजित किया जाता है और भंडारे आदि भी रखे जाते हैं। उनके जीवित
तथा समाधिस्थ होने पर भी अनेक चमत्कार उनके भक्तों को देखने को मिलते रहें है। उन्हें
जैसे हर चीज की विलक्षण जानकारी थी। वे हर चीज जानते थे। कोई चीज ऐसी नहीं थी जो छुपी
थी। लौकिक दृष्टिकोण से जरूर था कि सब अच्छा ही है। धीरे-धीरे जैसे वह साधारण-सी झोपड़ी
आज तीर्थ धाम बन चुकी है। संतों की यही कृपा होती है। संत जाते हैं तो कुछ नहीं, और
जब नहीं हैं तो बहुत सारी चीजें किसी-न-किसी स्वरुप में विद्यमान होती हैं और वही चीज
है जिसकी अब मैं अनुभूति करता हूँ।
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