दुर्गा सप्तशती हिन्दू धर्म का सर्वमान्य ग्रंथ है। इसमें
भगवती के कृपा के सुन्दर इतिहास के साथ बड़े बड़े गूढ़ साधन रहस्य भरे हैं।कर्म भक्ति
और ज्ञान की त्रिविध मंदाकिनी बहानेवाला यह ग्रंथ भक्तों के लिए वाछाकल्पतरु हैं। सकाम
भक्त इसके सेवन से मनोऽभिलिषित दुर्लभतम वस्तु या स्थिति सहज ही प्राप्त करते हैं और
निष्काम भक्त परम मोक्ष को पाकर कृतार्थ होते हैं।भुवनेश्वरी संहिता में कहा गया है-
जिस प्रकार से 'वेद' अनादि है, उसी प्रकार 'सप्तशती' भी अनादि है। जिस प्रकार योग का
सर्वोत्तम ग्रंथ गीता है उसी प्रकार 'दुर्गा सप्तशती' शक्ति उपासना का श्रेष्ठ ग्रंथ
माना जाता है। 'दुर्गा सप्तशती' के सात सौ श्लोकों को तीन भागों प्रथम चरित्र (महाकाली),
मध्यम चरित्र (महालक्ष्मी) तथा उत्तम चरित्र (महा सरस्वती) में विभाजित किया गया है।
प्रत्येक चरित्र में सात-सात देवियों का स्तोत्र में उल्लेख मिलता है प्रथम चरित्र
में काली, तारा, छिन्नमस्ता, सुमुखी,भुवनेश्वरी, बाला, कुब्जा, द्वितीय चरित्र में
लक्ष्मी, ललिता, काली, दुर्गा, गायत्री, अरुन्धती, सरस्वती तथा तृतीय चरित्र में ब्राह्मी,
माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही तथा चामुंडा (शिवा) इस प्रकार कुल
21 देवियों के महात्म्य व प्रयोग इन तीन चरित्रों में दिए गए हैं। नंदा, शाकम्भरी,
भीमा ये तीन सप्तशती पाठ की महाशक्तियां तथा दुर्गा, रक्तदन्तिका व भ्रामरी को सप्तशती
स्तोत्र का बीज कहा गया है। तंत्र में शक्ति के तीन रूप प्रतिमा, यंत्र तथा बीजाक्षर
माने गए हैं। शक्ति की साधना हेतु इन तीनों रूपों का पद्धति अनुसार समन्वय आवश्यक माना
जाता है।
सप्तशती अध्यायों के प्रमुख मंत्र
:- सप्तशती के सात सौ श्लोकों
को तेरह अध्यायों में बांटा गया है। प्रथम चरित्र में केवल पहला अध्याय, मध्यम चरित्र
में दूसरा, तीसरा व चौथा अध्याय तथा शेष सभी अध्याय उत्तम चरित्र में रखे गए हैं। प्रथम
चरित्र में महाकाली का बीजाक्षर रूप ॐ 'एं है। मध्यम चरित्र (महालक्ष्मी) का बीजाक्षर
रूप 'ह्रीं' है। तीसरे उत्तम चरित्र महासरस्वती
का बीजाक्षर रूप 'क्लीं' है। अन्य तांत्रिक साधनाओं में 'ऐं' मंत्र सरस्वती का, 'ह्रीं
महालक्ष्मी का तथा 'क्लीं' महाकाली बीज है। तीनों बीजाक्षर ऐं ह्रीं क्लीं किसी भी तंत्र साधना
हेतु आवश्यक तथा आधार माने गए हैं। तंत्र वेदों से लिया गया है ऋग्वेद से शाक्त तंत्र,
यजुर्वेद से शैव तंत्र तथा सामवेद से वैष्णव तंत्र का अविर्भाव हुआ है यह तीनों वेद
तीनों महाशक्तियों के स्वरूप हैं तथा यह तीनों तंत्र देवियों के तीनों स्वरूप की अभिव्यक्ति
हैं।
मां दुर्गा के विविध मंत्र :- नवरात्र के समय दुर्गा सप्तशती मन्त्र का पाठ करने से आपकी
हर समस्या ख़त्म हो जाएगी| किसी भी प्रकार की मुश्किल या परेशानी से निपटने के लिए अलग
विशेष मंत्र होते हैं | ये मंत्र काफी लाभदायक होते हैं और जल्द ही कारगर साबित होते
हैं| अगर आप मंत्रों का उच्चारण सही से नहीं कर पाएं तो आप एक अच्छे व योग्य ब्राह्मण
से इन मंत्रों का जाप करवा सकते हैं। इसीलिए आज हम आपको बताएंगे दुर्गा जी का बीज मंत्र
जिसका पाठ करने से आपके जीवन में अत्यंत सकर्रातमकता आएगी व साथ ही आप के जीवन की साड़ी
समस्याएं भी खत्म हो जाएंगी| उन्होने महिषासुर नामक असुर का वध किया। हिन्दू ग्रन्थों में वे शिव की पत्नी पार्वती के रूप में वर्णित हैं. हिन्दू धर्म के देव ग्रंथों के अनुसार माता दुर्गा की उपासना के लिए आठ अक्षरों का 1 अद्भुत मंत्र है। 'ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम:'. यह आठ अक्षरों का भगवती दुर्गा का सिद्धि मंत्र है जिसका पाठ रक्तचन्दन की 108 दाने की माला से प्रतिदिन शुद्ध अवस्था में करना चाहिये। माता अवश्य प्रसन्न होंगी और आशीर्वाद देंगी और आपकी सभी मुश्किलें दूर करेंगी। यहाँ आप कई प्रकार के माँ दुर्गा के मंत्र पा सकता है जिससे आप कई मुसीबतों से बाहर आ सकते है अपने जीवन में। पूर्ण श्रद्धा से किया गया मंत्र उच्चारण फल अवश्य देता है ।
1. सर्व सिद्धिः दुर्गा मंत्र:- उपयुक्त इच्छा को पूरा करने के लिए दुर्गा मंत्र । यह मंत्र सभी प्रकार की सिद्धिः को पाने में मदद करता है, यह मंत्र सबसे प्रभावी और गुप्त मंत्र माना जाता है और सभी उपयुक्त इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति इस मंत्र में होती है।
ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम:
2. सुंदर ,बुद्धि समृद्धि दुर्गा मंत्र:- यह देवी माँ का बहुत लोकप्रिय मंत्र है। यह मंत्र देवी प्रदर्शन के समारोहों में आवश्यक है। दुर्गा सप्तशती प्रदर्शन से पहले इस मंत्र को सुनाना आवश्यक है।इस मंत्र की शक्ति : यह मंत्र दोहराने से हमें सुंदरता ,बुद्धि और समृद्धि मिलती है। यह आत्म की प्राप्ति में मदद करता है।
"ॐ अंग ह्रींग क्लींग चामुण्डायै विच्चे "
बीज मंत्र क्या है :- बीज मंत्र एक मंत्र का सबसे छोटा रूप है, जो की अलग-अलग देवताओं के लिए होता है| माँ दुर्गा मंत्र का बीज मंत्र, जब एक साथ पठित किया जाता है तो मनुष्य को बहुत सारी सकारात्मक ऊर्जा और सभी देवताओं के आशीर्वाद मिलते हैं। दुर्गा सप्तशती बीज मंत्र साधना से आपके जीवन से सारी परेशानियां मिट जाती हैं| माँ दुर्गा का बीज मंत्र -तंत्र शास्त्र के अनुसार, किसी भी नवरात्रि में यदि दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप विधि-विधान से किया जाए तो साधक की हर परेशानी दूर हो सकती है। दुर्गा सप्तशती में हर समस्या के लिए एक विशेष मंत्र बताया गया है। ये मंत्र बहुत ही जल्दी असर दिखाते हैं, यदि आप मंत्रों का उच्चारण ठीक से नहीं कर सकते तो किसी योग्य ब्राह्मण से इन मंत्रों का जाप करवाएं, अन्यथा इसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। दुर्गा सप्तशती के सिद्ध चमत्कारी मंत्र इस प्रकार हैं| इनको विधि पूर्ण तरीके से करने से आपकी सारी परेशानी खत्म हो जाती हैं| मंत्र जाप की विधि इस प्रकार है-
जाप विधि :- सुबह जल्दी उठकर साफ वस्त्र पहनकर सबसे पहले माता दुर्गा की पूजा करें। इसके बाद अकेले में कुशा (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठकर लाल चंदन के मोतियों की माला से इन मंत्रों का जाप करें।इन मंत्रों की प्रतिदिन 5 माला जाप करने से मन को शांति तथा प्रसन्नता मिलती है। यदि जाप का समय, स्थान, आसन, तथा माला एक ही हो तो यह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाते हैं।
सुंदर पत्नी के लिए मंत्र
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।
गरीबी मिटाने के लिए
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।।
रक्षा के लिए
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च।।
स्वर्ग और मुक्ति के लिए
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हदि संस्थिते। स्वर्गापर्वदे देवि नारायणि नमोस्तु ते।।
मोक्ष प्राप्ति के लिए
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:।।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:।।
सपने में सिद्धि-असिद्धि जानने का मंत्र
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके। मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।
सभी के कल्याण के लिए मंत्र
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भकत्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न: ।।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भकत्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न: ।।
भय नाश के लिए
यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।
रोग नाश के लिए
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
बाधा शांति के लिए
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनासनम्।।
विपत्ति नाश के लिए मंत्र
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
गौरी मंत्र लायक पति मिलने के लिए
हे गौरी शंकरधंगी ! यथा तवं शंकरप्रिया, तथा मां कुरु कल्याणी ! कान्तकान्तम् सुदुर्लभं
सब प्रकार के कल्याण के लिये दुर्गा मंत्र
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
आकर्षण के लिए दुर्गा मंत्र
ॐ क्लींग ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती ही सा,
बलादाकृष्य मोहय महामाया प्रयच्छति
विपत्ति नाश के लिए दुर्गा मंत्र
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
शक्ति प्राप्ति के लिए दुर्गा मंत्र
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए दुर्गा मंत्र
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
भय नाश के लिए दुर्गा मंत्र
“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
महामारी नाश के लिए दुर्गा मंत्र
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
पाप नाश के लिए दुर्गा मंत्र
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्। सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥
भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिए दुर्गा मंत्र
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि
हर तरह के भय एवं संकट से आपकी रक्षा के लिए
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र |दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ||
विघ्नों के नाश, दुर्जनों व शत्रुओं को मात व अहंकार के नाश के लिए दुर्गा गायत्री मंत्र
ॐ गिरिजायै विद्महे शिव धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ||
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