सेवानिवृत्ति
पर पेंशन का लाभ :- सेवानिवृत्ति सरकारी कर्मचारी को एक नियमित आय
और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने के लिए प्रदान किए जाते हैं। इन वित्तीय लाभों
से आत्मनिर्भरता और अच्छे स्तर का जीवन जीने की भावना आती है। इन लाभों में
सामान्यतया छुट्टी का नकदीकरण, सेवानिवृत्ति उपदान और अंशदायी भविष्य निधि शामिल
होते हैं। इसके साथ-साथ वरिष्ठ नागरिक भी पेंशन लाभों के हकदार होते हैं जिससे वे
शेष अवधि में चिंतामुक्त होकर जीवन व्यतीत कर सकते हैं। वरिष्ठ नागरिकों को पेंशन
की भिन्न-भिन्न किस्में इस प्रकार उपलब्ध हैं- अधिवर्षिता, सेवानिवृत्ति पेंशन, स्वैच्छिक
सेवानिवृत्ति पेंशन, अनुकम्पा भत्ता, असाधारण पेंशन और पारिवारिक पेंशन। जो 60
वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं उन कर्मचारियों के लिए अधिवर्षिता पेंशन
होती है। जो 20 वर्ष की सेवा पूरी होने के बाद 3 महीने की अग्रिम सूचना देकर
सेवानिवृत्ति प्राप्त करना चाहते हैं उन कर्मचारियों को स्वैच्छिक पेंशन प्राप्त
होती है । जो सरकारी कर्मचारी विकलांग होते हैं अथवा उनकी सेवा के दौरान मृत्यु हो
जाती है उन्हें असाधारण पेंशन दिया जाता है। इन सबके साथ साथ ही मंहगाई भत्ता (डीए
भी प्रदान किया जाता है। यह वर्ष में दो बार दी जाती है। जो कर्मचारी के वेतन अथवा
पेंशन में जोड़ दिया जाता है। मंहगाई भत्ते की दरें वरिष्ठ नागरिकों पर भी लागू
होती हैं जो सेवा की अवधि पूरी करने पर सेवानिवृत्त हुए हैं।
रिटायरमेंट
पुनर्जन्म से कम नहीं :- सेवानिवृत्ति के बाद अफसर, कर्मचारी व नेता के पास
न कार, न डाइवर, न अर्दली और न फाईलें आदि कुछ भी नहीं बचता। सरकार सभी निशुल्क
सुविधाएं वापस ले लेती है और अफसर व नेता धर पर बैठा बैठा अपने भाग्य तथा घरवालों
को कोसता रहता है। जो व्यक्ति सेवा में आया है वह एक न एक दिन जायगा ही। यह सब
जानते हुए भी व्यक्ति सेवा के प्रति मोह को त्याग नहीं पाता है। परिवर्तन प्रकृति
का नियम है। इसे हमें सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। सेवा निवृत्ति जिन्दगी का अन्त तो
होता नहीं है। यह तो एक काम को छोड़कर दूसरे काम को हाथ में लेने जैसा होता है।
जिन्दगी को हंसी खुशी से ही गुजारने की कोशिस की जानी चाहिए। तीसरे व चैथेपन में
भी सक्रियता बनाये रखना चाहिए। और अपनी व औरों की शेष जिन्दगी को खुश रखने की
कोशिस की जानी चाहिए। जिस दिन व्यक्ति नौकरी शुरू करता है, उसकी सर्विस बुक में
उसकी रिटायरमेंट की तारीख भी लिख दी जाती है। इसलिए इसे सामान्य घटना की तरह ही
स्वीकार करना चाहिए। गीता में यह लिखा गया है, जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु भी
निश्चित है और मृत्यु के बाद उसका पुनर्जन्म भी निश्चित है। जब मृत्यु को भी शोक
का कारण नहीं माना गया है तो रिटायरमेंट कैसे शोक का कारण हो सकता है ?
सेवानिवृत्ति जीवन का एक महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है। यह एक नए जीवन की शुरुआत ही
नहीं, बल्कि एक तरह से पुनर्जन्म ही है। जीवन में हर नया पल, हर परिवर्तन
पुनर्जन्म ही होता है और हम इतनी बड़ी घटना को तटस्थ होकर देखते तो हैं, पर इसे
पुनर्जन्म के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। रिटायरमेंट किसी अवस्था विशेष की
स्थिति नहीं है, बल्कि हर क्षण घटित होने वाली स्थिति है। जब भी मौका मिले, रिटायर
हो जाइए लेकिन अपने कमजोर मनोभावों तथा विकारों से रिटायर होइये संसार में जो
लिप्त भावना होती है उससे रिटायर होना चाहिए। रिटायरमेंट एक परिवर्तन है, एक बेहतर
और नए जीवन की शुरुआत है। जीवन एक बहुमूल्य वस्तु है जिसको सही से जीने की ललक और
सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ने के कारण औसत उम्र में इजाफ हुआ है। अतः सेवानिवृति के
बाद 20 से 30 साल तक जीवनयापन आम बात हो गयी है। प्रत्येक सेवानिवृत्त व्यक्ति को
यह समझ लेना चाहिए कि वह सरकारी नौकरी से सेवानिवृत हुआ है न की कार्य करने की
क्षमता से। इसलिए अपनी क्षमता व अनुभव के अनुसार हर समय काम करते रहना चाहिए। उसे
पूरे मनोयोग से पारिवारिक व सामाजिक परिवेश को स्वीकारते हुए अपने अनुकूल ढ़ालने का
प्रयास करना चाहिए। यदि वह थोड़ी गंभीरता बरती जाय तो यह परिपक्व समय व अनुभव
परिवार व समाज के लिए बहुत ही उपयोगी साबित हो सकती है।
सक्रियता
में कोई कमी नहीं : - लोग कहते हैं कि रिटायरमेंट के बाद सक्रिय जीवन
का खत्म हो जाता है। यह हमारी सोच का दोष होता है। रिटायर हम नहीं होते, हमारा
कमजोर मन और उसमें उत्पन्न विचार हमें रिटायर कर देते हैं। इसलिए कभी भी अपने को
ना तो रिटायर समझना चाहिए और ना ही टायर , अपितु इसे जीवन के एक कड़ी के रुप में
अंगीकार करते रहना चाहिए। शहरों एवं नगरों में वरिष्ठ नागरिक अच्छा सा जीवनचर्या
बना लेते हैं। उन्हें जीवन यापन का पेंशन तो होता ही है साथ ही वह परिवार की
जरुरतों के अनुसार विना किसी खर्चे के एक सम्पूरक सपोर्ट की भी हैसियत में होते
हैं। दादा दादी तथा नाना नानी की महत्ता पहले भी थी और आगे भी सदा रहेगी। बस इसे
पहचानने, जीवन में ढ़ालने एवं तदनुरुप जीने की जरुरत होती है।
समाज
से जुड़े :- सरकारी सेवा में रह कर काफी धन वेतन के रूप में
अर्जित कर लिया गया होता है तथा इसके बाद भी सरकार काफी पैसा एकमुस्त अदा करती है
क्योंकि औसतन उम्र में बढ़ोतरी हुई है तथा इतने लंबे समय तक जनता के पैसे से मुफ्त
में पेंशन प्राप्त करना उचित नही है। सेवानिवृत्ति के उपरांत सरकार पेंशन के रूप
में जो पैसा देती है तथा वह आम जनता की जेब से आता है। अतः हर सेवानिवृत्त व्यक्ति
का दायित्व बनता है कि वह पेंशन प्राप्ति के बदले समाज को अपनी सेवाएं किसी न किसी
रूप में देता रहे। तब उनका जीवन सार्थक माना जाएगा तथा वह स्वंय भी स्वास्थ्य लाभ
उठा सकेगा। इसके कारण उनके बच्चे भी महसूस करेंगें कि उनके माता-पिता सक्षम हैं।
देश में प्रतिदिन 17 हजार से ज्यादा लोग 60 वर्ष की उम्र पार करते है। यदि इस
अवस्था में बुजुर्ग घर में ही बंद रहेंगे तो उनके परिवार के सदस्य भी इससे अच्छा
महसूस नही करेंगे। समाज संक्रमण काल से गुजर रहा है। मशीनी होती जिंदगी में
संवेदनशीलता कम हो रही है। दूसरी ओर समय की कमी के कारण माता-पिता को देखने व उनसे
बातचीत करने का मौका भी लोगों को नही मिल पाता है। एसी सूरत में सेवानिवृत्त
बुजुर्गों को चाहिए कि वह घर से बाहर निकल कर समाज में अपना योगदान देकर अपने जीवन
को सार्थक व रचनात्मक बनाएं। अपने अनुभव के अनुसार समाज में अपना योगदान दे। आओ सब
मिलकर एक अच्छा समाज निर्मित करें। मानव सेवा ही परम धर्म है और सेवा करने की कोई
भी उम्र नहीं होती ।
रिटायरमेंट
परिलब्धियां का उपभोग करने की अनिश्चितता :- जब एक रिटायरी को धन की आवश्यकता थी तो उसके पास
पैसों की उपलब्धता नहीं होती। जब धन हुआ तो उसे खर्च करने का माध्यम कम मिल पाता
है। युवावस्था में शरीर हर तरह का खान पान के लिए उपयुक्त रहता है पर बृद्धावस्था
में अनेक तरह के परहेश तथा पाबन्दियां लग जाती है। इसलिए रिटायरमेंट परिलब्धियां
का उपभोग करने की अनिश्चितता बनी रहती है। रिटायरी एक अच्छी स्थिति व अच्छा खासा
जिन्दगी का अनुभव लेकर भी अपना वेहतर समायाजेन ना करके खुश नहीं रह पाता है। वह
अपना संचित धन का भोग भी खुश होकर नहीं कर पाता है। यदि परिवार को अच्छा संस्कार
दिया होगा तो उसको परिवार की सदाशयता मिलेगी। अन्यथा परिवार व परिवेषगत जन सारा धन
किसी ना किसी बहाने किसी योजनाओं में लगाकर रिटायरी को बाहर का रास्ता भी दिखा
सकते हैं। रिटायरी विषम परिस्थिति को झेलकर भी परिवार व परिवेषगत जनों का अहित
नहीं कर सकता है। उसे अपने पैसों की सुरक्षा चिकित्सा की सुरक्षा तथा परिवार व
परिवेषगतजनों का भावनात्मक सहयोग भी चाहिए। जिसे मिलता है वह एक आदर्श मिशाल छोड़ता
है अन्यथा एक ना एक दिन हर व्यक्ति को यह संसार छोड़कर जाना ही पड़ता है और सब कुछ
रहते हुए व्यक्ति उसका सही ढंग से उपभोग भी नहीं कर पाता है।
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