तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा :- कहा तो यह जाता
है कि आतंक की कोई जाति व मजहब नहीं होता है। पर इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता
कि सर्वाधिक आतंक को मुस्लिम देश ही पोषित कर रहे हैं। इतना ही नहीं विश्व की अनेक तथा भारत की कुछ सरकारें
भी अपने किसी निजी स्वार्थ बस इसे नजरन्दाज करती रहती हैं। वे वोट बैंक पर नजर रखते
हुए वह काम नहीं करती जो उसे करना चाहिए। आज विश्व तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ा
है । कब किसी ताकतवर शासक अधिकारी का दिमाग फिर जाय और परमाणु वम का प्रयोग कर विश्व
को विनाश की आग में झोंक दे। धर्म आधारित आतंकवाद से अधिक खतरनाक बौद्धिक आतंकवाद होता
है। यह सरकार तथा मानवता दोनों के खिलाफ होता है। भारत में बहुत बड़े साजिस के तहत इसे
पोषित तथा पल्लवित किया जा रहा है। आतंकवाद का न एक भूगोल है, न एक परिभाषा, इसलिए
ठीक से समझ लेना चाहिए कि आतंकवादी कौन है...? यह भी पता कर लेना चाहिए कि आईएसआईएस
आतंकवादी गुट को किसने खड़ा किया...? किसने हथियार दिए...? हवाला के जरिये इसे कैसे
आगे बढ़ाया जा रहा है...?
विश्व में अपना प्रभुत्व जमाने की होड़ :- हम बौद्धिकता
को किसी सीमा में नहीं बांध सकते। अब इतने प्रमाण तो आने लगे हैं कि दुनियाभर में आतंकवाद
को कौन प्रायोजित कर रहा है? आज बौद्धिकता दुनिया में आतंकवाद को पालने-पोसने में शामिल
राष्ट्र प्रमुखों, संभ्रांत नेताओं और कॉरपोरेट के मिले होने के विश्लेषणों में शामिल
हैं। जिस बौद्धिकता को हम मानवतावाद बताना चाहते हैं, दरअसल वह कुछ और नहीं, केवल कुछ
लोगों का निजी स्वार्थ तथा विश्व में अपना प्रभुत्व जमाने की इच्छा है। इसलिए आज पूरी
दुनिया को एकजुट होने तथा सख्त नियम-कानून सतर्कता के साथ लागू करने की जरूरत है ।
युवाओं पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। उन्हें रचनात्मक और सामाजिक कार्यों
में व्यस्त रखकर ही उनकी बौद्धिकता को सही दिशा दी जा सकती है। तभी ये संसार आतंक से
मुक्त हो पायेगा और हर कहीं शांति और सुख का राज कायम हो सकेगा।
बौद्धिक आतंकवाद को बढ़ावा :- हमारे समाज पर बौद्धिक आतंकवाद के रूप में चारों
और से मीडिया के माध्यम से आक्रमण होने लगे हैं। इनका मूलभूत उद्देश्य युवाओं को भ्रमित
कर नास्तिक एवं हिन्दू विरोधी बनाना है। अभी कुछ सालों में पूरी दुनिया में आतंक ने
अपने पैर तेजी से पसारे हैं। पहले युवकों को जबरदस्ती आतंकवादी बनने पर मजबूर किया
जाता था। वहीं अब उसकी जगह बौद्धिक आतंकवाद को बढ़ाया जा रहा है। इस्लामिक स्टेट की
परिकल्पना के लिए ‘शहादत’ देने को तैयार ये युवक पहले बरगलाये जाते हैं और फिर धर्म
के नाम पर उनका ‘ब्रेनवॉश’ कर उन्हें आतंक की दुनिया में उतार दिया जाता है। आतंकी
संगठन अलकायदा आतंकवादी तैयार करता था और अब आईएसआई साधारण लोगों को हिंसा पर चलने
के लिए नैतिकता का हवाला देकर उकसाता है। वह महज हत्यायें नहीं करवाता बल्कि सभ्य समाज
के बीच के लोगों को बर्बरता सिखाते हुए बेकार के तर्कों के द्वारा सही ठहराने की कोशिश
करता रहता है। असहिष्णुता के नाम पर देश में बौद्धिक आतंकवाद फैलाते हुए उनमें भय दिखाकर
एक तथा आक्रामक विरोध जताने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
सोशल मीडिया का दुरुपयोग :- पहले आतंक की वजह
गरीबी, अशिक्षा और मदरसों को ठहराया जाता था। लेकिन, अब ये हवाला के जरिये मदद देते
हुए मीडिया को भ्रमित करते हुए पब्लिक स्कूल, फाईव स्टार होटलों और बड़ी बड़ी कोठियों
से निकाले जा रहे हैं। आज ये बौद्धिक आतंकवादी इंटरनेट एवं सोसल मीडिया के जरिये आतंक
को बढ़ावा दे रहे हैं। वैचारिक संक्रमण से ग्रस्त युवाओं को बरगलाने के लिए धर्म और
जिहाद को हथियार बनाया जा रहा है। आतंक जब हथियारों और गोला-बारूद से आगे बढ़कर वैचारिक
स्तर पर आ जाये तो खतरा ज्यादा बड़ा हो जाता है। एसे से लोगों को खोजना मुश्किल हो जाता
है जो आम लोगों के वेश में अपनों के बीच बैठकर षड्यंत्र रचते हैं। आज सोशल मीडिया का
जितना इस्तेमाल अच्छाई के लिए किया जा रहा है उससे ज्यादा इसका दुरुपयोग किया जा रहा
है। जब आतंक विचारों के जरिये फैलाया जाता है तो वो तेजी से फैलता है और भयानक मार-काट
भी मचाता है।
इराक-सीरिया जैसे महौल की कोशिस :- जब से वर्तमान श्री
नरेन्द्र मोदी जी की सरकार सत्ता में आई है भारत में विपक्षी दल तथा वाम पार्टियों
ने एक विशेष मुहिम छोड़ रखी है। यहां भी इराक तथा सीरिया वाला महौल बनाया जा रहा है।
भारत मे कुछ भाड़े के जेहादियों का घुसपैठ कराके अवैध रूप से फेसबुक, वाटसऐप ओर अन्य
सोशल मिडीया के द्वारा एक मुहीम चलाई जा रही जिसमे वही बुद्धिजीवी वर्ग शामिल है जो
जेएनयू, रोहित बेमौला, कन्हैया कुमार तथा हार्दिक पटेल जैसों को अपना हथियार बना रहे।
हमारे कुछ बुद्धिजीवी पत्रकार, नेता, कलाकार तथा तथाकथित सेकुलर पार्टियां भी इसमें
सम्मिलित होकर आग में घी का काम कर रही हैं। ये तथाकथित हिन्दू तथा भगवा आतंक को प्रचारित
कर वर्तमान केन्द्रीय सरकार को काम करने से निरन्तर बाधा पहुंचा रहे हैं। वे अवार्ड
वापसी का एक मुहिम भी चलाये जिसमें कामयाब तो नहीं हुए। वे हो हल्ला करके देश की फिजा
जरुर खराब किये हैं। अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता पर सबको अपने विचार प्रकट करने का अधिकार
है किन्तु कानून को हाथ में लेने का नहीं और ना ही संविधान तथा परिस्थितियों का मनमानी
व्याख्या करके ।
भ्रमपूर्ण चुनावी राजनीति :- आतंकवाद को लेकर
चुनावी राजनीति करने वाले नेता अक्सर भ्रमित रहते हैं। उनकी मनोवृत्ति भ्रमर की जैसे
होती है। जब कोई बड़ी घटना हो जाती है, तो तुरंत आतंकवाद के मजहब पर आ जाते हैं। कुछ
महीने बाद फिर आतंकवाद के मजहबी पक्ष को भूल जाते हैं। आतंकवाद हर धर्म के खिलाफ होता
है। जैसे ही वह मानवता के खिलाफ होता है, वह इस्लाम के भी खिलाफ हो जाता है। भारत में अनेक धार्मिक संगठन एवं अन्य ईसाई संस्थाओं
द्वारा किये जा रहे धर्मान्तरण को लेकर मीडिया छाती ठोककर उनका समर्थन करता है। उसे
जायज ठहराता हैं जबकि यही मीडिया बजरंग दल के कार्यकर्ता शम्भू के विरुद्ध मोर्चा खोल
कर उसे गलत सिद्ध करने में लग जाता है। खेद हैं की भारत विश्व का एकमात्र देश हैं जिसमें
बहुसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों का सदा दमन किया जाता हैं एवं अल्पसंख्यकों को सर पर
चढ़ाया जाता है। कुछ विदेशी लेखकों द्वारा लिखी गई किताबों में असत्य एवं तथ्यों के
विरुद्ध बातों पर जब हिन्दू समाज प्रतिक्रिया करता हैं तो मीडिया उसे अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता पर हमला बताता हैं और जब इतिहास में कम्युनिस्ट विचारधारा को पाठ्यकर्म
के माध्यम से पढ़ाने की साजिश को बेनकाब कर उसे ठीक करने पर सरकार विचार करती हैं तो
मीडिया अपना दोहरा चेहरा दिखाते हुए उसे शिक्षा का भगवाकरण सिद्ध करने का प्रयास के
रूप में आलोचना करता है।
विकृत मानसिकता हावी :- हिंदुत्ववादी संगठन जब अकबर जोधा तथा पद्मावत जैसे फिल्मों में
दिखाई जाने वाली अश्लीलता को दूर करने के लिए आग्रह करते हैं तो मीडिया द्वारा उन्हें
पुरानी सोच वाला, पिछड़ा, दकियानूसी सोच वाला कहा जाता है। जब देश में खुलेआम छोटी छोटी
बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाओं के साथ बलात्कार होता है तो उन्हें सांप सूघ जाता है।
इन सब का प्रमुख कारण तथाकथित स्वतंत्रता के साथ नंगेपन के कारण उपजी विकृत मानसिकता
हैं। उसे दोषी ठहराने के स्थान पर महिला अधिकारों को लेकर चर्चा की जाती हैं एवं पुरुषों
को जन्मसिद्ध बलात्कारी सिद्ध कर दिया जाता है। यह भी तर्क दिया जाता है कि बच्चों
से गल्तियां स्वाभाविक रुप में हो जाती हैं। वे इसके लिए दोषी ना ठहराये जांय। जब कोई
हिन्दू लड़की किसी मुस्लिम लड़के के साथ धर्म परिवर्तन कर निकाह कर लेती हैं तो उसे सेकुलरता
की निशानी के रूप में मीडिया पेश करता हैं और हिन्दुओं द्वारा उनका विरोध करने पर प्रेम
की अभिव्यक्ति पर हमला, जवान दिलों पर अत्याचार के रूप में प्रचारित किया जाता हैं
और जब किसी हिन्दू लड़के को मुसलमानों द्वारा इसलिए मार दिया जाता है क्यूंकि उसने मुस्लिम
लड़की से विवाह किया होता हैं तो मीडिया चिरपरिचित मौन धारण कर लेता हैं।
आज के इस वैज्ञानिक
व प्रगतिवादी युग में हम गल्ती भी करते जाते हैं तथा दोष भी नहीं स्वीकारते हैं। उल्टे
समाज तथा सरकार को ही नसीहत देते रहतें हैं। यह प्रवृत्ति ना केवल देश के लिए अपितु
मानवता के लिए बहुत ही खतरनाक तथा विस्फोटक हो सकती है। इसे समय रहते नियंत्रण में
ले आना चाहिए नही तो इतनी देर हो जाएगी कि आगे हम कुछ भी कर सकने की स्थिति में नहीं
हो सकेंगे।
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