Monday, November 20, 2017

जंगली पशु खेती-किसानी की बहुत बड़ी बाधाएं - डा. राधेश्याम द्विवेदी

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जंगली सुअर (Sus scrofa) या वाराह, सुअर की एक प्रजाति है। यह मध्य यूरोपभूमध्य सागर क्षेत्र (उत्तरी अफ्रीकाएटलस पर्वत) सहित एशिया में इंडोनेशिया तक के क्षेत्रों का मूल निवासी है। हिन्दू धर्म में भगवान  विष्णु ने दशावतार में से एक अवतार वराहावतार में इस पशु के रूप में ही अवतरण कर पृथ्वीको पाताल से बाहर निकाला था। सूअर (Pig) आर्टियोडेक्टिला गण (Order Artiodactyla) के सुइडी कुल (family Suidae) के जीव है। संसार के सभी जंगली और पालतू सूअर इसके अंतर्गत आते हैं। इन खुर वाले प्राणियों की खाल बहुत मोटी होती है और इनके शरीर जो थोड़े बहुत बाल रहते हैं वे बहुत कड़े होते हैं। इनका थूथन आगे की ओऱ चपटा रहता है जिसके भीतर मुलायम हड्डी का एक चक्र सा रहता है, जो थूथन को कड़ा बनाए रखता है। इसी थूथन के सहारे ये जमीन खोद डालते हैं और भारी-भारी पत्थरों को आसानी से उलट देते हैं। जंगली सूअर (Wild Boar) प्रजाति सुस स्क्रोफ़ा, सुइडी कुल का जंगली सदस्य है। पालतू सूअरों, गिनी पिग और कई अन्य स्तनधारी प्राणियों के नरों के लिए भी 'बोर' (जंगली सूअर) शब्द का उपयोग होता है।
            सुअरों के कुकुरदंत उनकी आत्मरक्षा के हथियार हैं। ये इतने मजबूत और तेज होते हैं कि उनसे ये घोड़ों तक का पेट फाड़ डालते हैं। ऊपर के कुकुरदंत तो बाहर निकलकर ऊपर की ओर घूमे रहते हैं लेकिन नीचे के बड़े और सीधे रहते हैं। जब ये अपने जबड़ों को बंद करते हैं तो ये दोनों आपस में रगड़ खाकर हमेशा तेज और नुकीले बने रहते हैं। सूअरों के  खुर  चार हिस्सों में बँटे होते हैं जिनमें से आगे के दोनों खुर बड़े और पीछे के छोटे होते हैं। पीछे के दोनों खुर टाँगों के पीछे की ओर लटके भर रहते हैं और उनसे इन्हें चलने में किसी प्रकार की मदद नहीं मिलती। इन जीवों की घ्राणशक्ति बहुत तेज होती है जिनकी सहायता से ये पृथ्वी के भीतर की स्वादिष्ट जड़ों आदि का पता लगा लेते हैं। इनका मुख्य भोजन कंद-मूल, गन्ना और अनाज है लेकिन इनके अलावा ये कीड़े-मकोड़े और छोटे सरीसृपों को भी खा लेते हैं। कुछ पालतू सुअर विष्ठा भी खाते हैं।

जंगली सूअर की उत्पत्ति:-  यूरोपीय देशों में जंगली सूअर को 'वाइल्ड बोर' भी कहा जाता है, यह जंगली सूअरों में सबसे बड़ा होता है। यह पश्चिमी और उत्तरी यूरोप, उत्तरी अफ़्रीका, भारत, अंडमान द्वीप समूहऔर चीन में पाया जाता है। इसे अमेरिका और न्यूज़ीलैंड भी ले जाया गया है (जहाँ यह स्थानीय जंगली प्रजातियों में घुलमिल गया है)। इसके शरीर पर कड़े बाल होते हैं, रंग धूसर, काला या भूरा होता है और कंधे तक इसकी ऊँचाई 90 सेमी तक होती है। अकेले रहने वाले बूढ़े नरों को छोड़कर, जंगली सूअर झुड़ों में ही निवास करते हैं। ये तेज़, निशाचर, सर्वभक्षी और अच्छे तैराक होते हैं। इनके दाँत पैने और बाहर की ओर निकले होते हैं। हालांकि यह आक्रामक जानवर नहीं है, फिर भी ख़तरनाक साबित हो सकता है।
शिकार:- अपनी शक्ति, गति और भयंकरता के कारण पुराने ज़माने से ही जंगली सूअर पीछा करके शिकार किया जाने वाला सबसे पसंदीदा जानवर रहा है। यूरोप और भारत के कुछ हिस्सों में अब भी कुत्तों की मदद से इसका शिकार किया जाता है, लेकिन भालों का स्थान अब बंदूकों ने ले लिया है। यूरोप में जंगली सूअर राजसी शिकार के चार पशुओं में से एक है और यह इंग्लैंड के राजा रिचर्ड 3 का विशेष चिन्ह है। काफ़ी समय तक खाद्य पदार्थ के रूप में जंगली सूअर के सिर को विशिष्ट व्यंजन का दर्जा प्राप्त था।
उत्तर प्रदेश के गांवों में किसानों की फसलों का भयंकर नुकसान:- किसी समय में सरकार सूअर के लिए अनुदान देती थी इसे पिछड़ी जात के लोग पालते थे। इससे उनकी बहुत आमदनी होती थी। बाद में असावधानी बस तथा लागत मूल्य ना होने से ये जानवर पालकों के नियंत्रण से छूट गये और जंगल झाड़ियों तथा दुगर्म स्थलों की शरण लेकर अपने आप पलते हुए घरेलू से जंगली सूअर की शकल ले लिये। अब इनकी इतनी संख्या हो गयी है कि किसी किसी बेल्ट में ये खेती करना दूभर कर रखे हैं तथा किसानों की फसलों तथा जान माल का खतरा बन गये हैं इन्हें पकड़ना या मारना बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। जंगली सुअर की भांति जंगली साड़ नीलगाय आदि भी खेतों का बहुत नुकसान कर रहे है। किसान गाय का दूध बछड़े को तब तक पिलाते हैं जब तक गाय दूध देती है। बछिया से दूसरी गाय बनने की संभावना रहती हैं बछड़े का उपयोग खेत में बन्द हो जाने से वह किसान के लिए किसी मतलब का नहीं रह जाता है। इसी प्रकार नील गायें भी किसानों की खेती को नुकसान कर रही हैं।
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उत्तर प्रदेश के गांवों में पशु किसानों की फसल चौपट कर देते हैं. किसानों को अपनी फसलों को बचाना पड़ता है. पुलिस के पास गौशाला नहीं होता है. यदि पशुओं के स्थान पर कोई बच्चा या व्यक्ति घायल होता है तो मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाती है. बारूद का गैरकानूनी तरीके से उपयोग हो रहा है. इस बारे में ठोस सूचना मिलने पर कार्रवाई की जा सकती है. हथगोले से किसी इंसान की मौत होती है तो वह आईपीसी की धारा 302 के तहत संज्ञेय अपराध का मामला बनता है. लेकिन पशुओं की मौत पर इस धारा के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती है. पुलिस इसे एक दुर्घटना मान लेती है. कई किसानों ने खेतों के किनारे बिजली के तारों का जाल बिछा रखा है. उन तारों में रात में करंट दौड़ता है. बिजली के झटके से कुछ दिनों के अंतराल में ही दर्जनों पशुओं की मौत हो चुकी है. पुलिस और वनविभाग से बचने के लिए किसान इन पशुओं को नदी में फेंक देते हैं या रेत में दफना देते हैं. इस तरह जानवरों को करंट लगने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं, लेकिन प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है. जबकि स्थानीय अधिकारियों और वनविभाग के अधिकारियों को इस बारे में बाकायदा सूचित किया जा जाता है.
जंगली सूअर ने अनेक तरह के नकदी फसलों की की खेती छीन ली:-उत्तर प्रदेश के गांवों विशेषकर बस्ती शहर के आसपास के दर्जन भर गांवों में इक्का-दुक्का किसान ही अब आलू, मोमफली ,शकरकन्दी, मक्का आदि की खेती कर रहे हैं। इसका मूल कारण जंगली जानवर हैं। पांच साल पहले तक इन गांवों में आलू की अच्छी पैदावार होती थी। जंगली जानवरों पर लगाम न लग पाने के कारण किसान आलू की खेती से लगातार मुंह मोड़ रहे हैं। यही स्थिति रही तो आफ सीजन में आलू आम आदमी की पहुंच से दूर हो जाएगा। शहर के आस-पास के गांवों में तो किसानों ने आलू बोना ही बंद कर दिया है।
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वैसे तो केन्द्र सरकार तथा उत्तर प्रदेश की सरकारें किसानों की हितौषी का दम्भ भरती हैं नेता व अधिकारी इन समस्याओं को बखूबी जानते हैं अनेक लोगों की जान जाने की खबरे निरन्तरत मीडिया में आती रहती हैं परन्तु इस समस्या के निदान के लिए कोई भी पहल किये जाता नहीं दिख रहा है। कहीं भी आलू की खेत नहीं मिलेंगे।जंगली जानवरों ने किसानों की कमाई का महत्वपूर्ण जरिया छीन लिया है। अब लोग गन्ना, अरहर, आलू, अन्य हरी सब्जी की खेती करना बंद कर दिए हैं। कभी यहां गांव-गांव आलू के खेत दिखते थे। अब कई गांवों में खोजने पर एकाध जगह आलू के खेत मिलेंगे। आलू के खेत की रखवाली ऐसे करनी पड़ रही है जैसे बच्चे की देखभाल की जाती है। जरा सी लापरवाही हुई नहीं कि जंगली जानवर खेत तबाह करने में देर नहीं लगाते हैं। खेत के चारो तरफ बाड़ लगाकर फसल की रखवाली करनी पड़ रही है। किसानों का कहना है कि बैनेलों ने किसानों की कमर तोड़ दी है। कुछ भी करिए जरा सी चूक हुई और पूरा खेत तबाह। चाह कर भी कुछ कर नहीं सकते। नीलगायों के चलते भी परेशानी उठानी पड़ रही है। बड़ी संख्या में किसान नकदी फसल से मुंह मोड़ रहे हैं। यही हाल रहा तथा सरकार ऐसे ही किसानों की उपेक्षा करती रही तो स्थानीय स्तर पर सब्जी का उत्पादन बंद हो जाएगा। ऐसे में सब्जी का मार्केट आम लोगों की पहुंच से दूर हो जाएगा। इन जंगली जानवरों ने किसानों की कमर तोड़ दी है। अब आलू सहित अन्य नकदी फसलों की खेती बंद कर देने की मजबूरी हो गई है। किसान चाह कर भी जंगली जानवरों से निजात नहीं पा रहे हैं। सरकार को ही इनपर लगाम लगाने की पहल करनी होगी। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अवैध बूचड़खाने बन्द कर रखे हैं पहले ये कृषि को नुकसान पहुंचाने वाले जानवर समय समय पर कटने के लिए इन बूचड़खानों में जाया करते थे तो किसानों को कम नुकसान हाता था। अब यह नुकसान बड़ी मात्रा में हाने लगी हैं। उनकी फसल के नुकसान के साथ साथ जानमाल का खतरा बना रहता है। वे बड़ी परिश्रम से अपने खेतों को इन जानवरों से बचा पाते हैं। इन्हें निरुद्ध करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठानी चाहिए।




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