Thursday, November 30, 2017
जन्म दिवस के अवसर पर सत्याग्रही पंडित अश्विनी कुमार मिश्र को शत शत नमन
13 जून 2008 से वे लगातार यमुना जी
के लिए आगरा के हाथीघाट पर सत्याग्रह कर रहे हैं। उन्होंने जनदबाव बनाने के लिए हस्ताक्षर
अभियान भी चलाया करीब 35 हजार दस्तखत कराकर लोगों के बीच यमुना की समस्या पर अपने विचार
रखे। उन्होंने प्रधानमंत्री, भारत सरकार, पर्यावरण वन मंत्रालय शहरी विकास मंत्रालय
सहित मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश को भी समय-समय पर पत्र भेजकर तथा आगरा स्थानीय प्रशासन
को भी समय-समय पर पत्र भेजकर यमुना में प्रदूषण को रोकने के लिए रिवर पुलिस की स्थापना
की मांग की 2010 में आगरा में रिवर पुलिस की स्थापना की भी गई। शुरू में तो इसकी पूरी
यूनिट बनाई गई जिसमें एक दरोगा, एक सब इंस्पेक्टर तथा 6 पुलिसकर्मी सहित छाता के सीओ
को प्रभारी इंचार्ज बनाया गया। रिवर पुलिस ने लगातार यमुना में कूड़ा-कचरा डालने वालों
को चालान भी किया और रोका भी लेकिन धीरे-धीरे रिवर पुलिस यूनिट में शामिल पुलिस वालों
की ट्रांसफर और रिटायरमेंट की वजह से उनकी संख्या काफी घट गई। जिसके वजह से रिवर पुलिस
पिकेट लगभग निष्क्रिय हो चुकी है।
बलकेश्वरघाट का पुनरुद्धार :- उन्होने एतिहासक बलकेश्वरघाट का पुनरुद्धार करके
एक आदर्शघाट के रुप में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनकी संस्था लगभग दो-तीन
दशकों से यमुना शुद्धीकरण तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रार्थी के प्रयास एवं जन सहयोग
से आगरा शहर , उत्तर प्रदेश तथा भारत वर्ष में प्रसासशील है। उनकी जन चेतना और आगरा
विकास प्रधिकरण के प्रयास से आगरा शहर के यमुना तट स्थित बल्केश्वर घाट का सौम्य पुनरुद्धार
एक उल्लेखनीय उपलब्धि रही है। आगरा के अन्य दस घाटों के उद्धार तथा पुनः प्रयोग में
लिये जाने के लिए भी प्रयासरत है। जहां एक ओर इस कार्य के सम्पन्न होने पर भारत की
स्वच्छता, भारत की हरीतिमा का पुनः दर्शन सुगम हो सकेगा वहीं आगरा शहर एक हेरिटेज सिटी
की ओर भी बढ़ने में भी कुछ कदम चल सकेगा। इससे इस शहर और प्रदेश के आय के श्रोत बढ़ेगें
तथा यहां रोजगार के नये- नये सम्मानजनक अवसर भी उपलब्ध हो सकेंगे। यह आगरा शहर, उत्तर
प्रदेश तथा भारत के लिए बड़े गर्व की बात बन सकती है।
Wednesday, November 29, 2017
श्रीकृष्ण की गीता और चालीसा आचार्य डा.राधेश्याम द्विवेदी
महाभारत धर्म ,अर्थ , काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष है।
इस ग्रन्थ के मुख्य विषय तथा इस महायुद्ध के महानायक भगवान श्रीकृष्ण हैं।
निःशस्त्र होते हुए भी भगवान श्रीकृष्ण ही महाभारत के प्रधान योद्धा हैं। इसलिये सम्पूर्ण
महाभारत भगवान वासुदेव के ही नाम, रुप, लीला और धामका संकीर्तन है। नारायण के नाम से
इस ग्रन्थ के मङ्गलाचरण में व्यास जी ने सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण की वन्दना की हैं।
पाण्डवों के एकमात्र रक्षक तो भगवान श्रीकृष्ण ही थे,
उन्कीं की कृपा और युक्ति से ही भीम सेन के द्वारा जरासन्ध मारा गया और युधिष्ठिर का
राजसूययज्ञ सम्पन्न हुआ। घूत में पराजित हुए पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी जब भरी सभा
में दुःशासन के द्वारा नग्न की जा रही थी , तब उसकी करुण पुकार सुनकर उस वनमाली ने
वस्त्रावतार धारण किया। शाक का एक पत्ता खाकर भत्तभयहारी भगवान ने दुर्वासा के कोप
से पाण्वों की रक्षा की। युद्ध को रोकने के लिये
श्रीकृष्ण शान्तिदूत बने , किंतु दुर्योधन के अहंकारके कारण युद्धारम्भ हुआ और राजसूययज्ञ
के अग्रपूज्य भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि बने। संग्रामभूमि में उन्हों ने अर्जुन
के माध्यम से विश्व को गीता रुपी दुर्लभ रत्न प्रदान किया। भीष्म, द्रोण, कर्ण और अश्वत्थामा
जैसे महारथियों के दिव्यास्त्रों से उन्होंने पाण्डवोंकी रक्षा की। युद्ध का अन्त हुआ
और युधिष्ठिर का धर्मराज्य स्थापित हुआ। पाण्डवों का एकमात्र वंशधर उत्तराका पुत्र
परीक्षित अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से मृत उत्पन्न हुआ , किंतु भगवान श्रीकृष्ण
की कृपा से ही उसे जीवनदान मिला। अन्त में गान्धारी के शाप को स्वीकार करके महाभारत
के महानायक भगवान श्रीकृष्ण ने उद्दण्ड यादवकुल के परस्पर गृहयुद्ध में संहार के साथ
अपनी मानवी लीला का संवरण किया।
श्रीमद्भगवद गीता:-श्रीमद्भगवद
गीता को हिंदू धर्म में सर्वोपरि माना गया है। मार्गशीर्ष माह की एकादशी के दिन
गीता के उपदेश भगवान कृष्ण ने पांडव पुत्र अर्जुन को दिए थे। इस दिन के लिए
मान्यता है कि कुरुक्षेत्र की भूमि पर जब अर्जुन ने शत्रुओं को देखकर वो विचलित हो
गए और उन्होनें शस्त्र उठाने से मना कर दिया। उस समय भगवान कृष्ण ने अर्जुन को
मनुष्य धर्म और कर्म का उपदेश दिया। गीता में भगवान कृष्ण के दिए हुए मानव और उसके
कर्म से जुड़े उपदेश लिखे हुए हैं। माना जाता है कि कुरुक्षेत्र की भूमि पर ही
गीता का जन्म हुआ था। गीता का जन्म लगभग 5 हजार वर्ष पूर्व हुआ था।
गीता
सिर्फ हिंदू धर्म को मार्गदर्शित नहीं करती है बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति को ज्ञान
देती है। गीता में 18 अध्याय हैं और इसमें मानव जीवन से जुड़े कर्मों और धर्मों का
ब्योरा है। गीता की प्रमुखता है कि इसमें सतयुग से लेकर कलयुग तक के मनुष्यों के
कर्म और धर्म का ज्ञान है। श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया ज्ञान गीता में लिखा
गया, ये मनुष्य जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। गीता जयंती के दिन
लोग भगवद गीता का पाठ करते हैं। देश के सभी भगवान कृष्ण के मंदिरों में गीता का
पाठ होता है और उसका पूजन किया जाता है। इस दिन भजन और आरती किए जाने का भी विशेष
विधान माना जाता है।
अक्षरश सत्य हुआ 5000
सालों पहले की गई भविष्यवाणी :-आज की राजनीति में नैतिकता का जो पतन हो रहा है, इसका संकेत श्री मद् भगवत गीता
में भगवान कृष्ण 5000 साल पूर्व ही दे चुके हैं। श्रीकृष्ण द्वारा
5000 सालों पहले की गई भविष्यवाणी अक्षरश सत्य हुआ है।
1.आज की राजनीति में नैतिकता का जो पतन हो रहा है,
2. कलियुग में मनुष्य के लिए जीवन की अधिकतम अवधि 50 वर्ष तक होगी ।
3. कलियुग में मनुष्य अपने बुजुर्ग माता पिता की सेवा नहीं करेगा।
4. मनुष्य को ठंड, हवा, गर्मी, बारिश और बर्फ से बहुत नुकसान भुगतना होगा।
5. लोग अपने झगड़े, भूख, प्यास , बीमारी और गंभीर चिंता से परेशान हो जाएगे ।
श्रीकृष्ण चालीसा :-
बंशी शोभित कर
मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुणअधरजनु बिम्बफल, नयनकमलअभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ
साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन
के दृग तारे॥
जय नट-नागर, नाग नथइया॥ कृष्ण कन्हइया धेनु
चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन
कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ। होवे पूर्ण विनय
यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की
राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान
मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे। कटि किंकिणी काछनी
काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छबि लखि, सुर
नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले। आओ कृष्ण बांसुरी
वाले॥
करि पय पान, पूतनहि तार्यो। अका बका कागासुर मार्यो॥
मधुवन जलत
अगिन जब ज्वाला। भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥
सुरपति जब
ब्रज चढ़्यो रिसाई। मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत लगत व्रज
चहन बहायो। गोवर्धन नख धारि बचायो॥
लखि यसुदा
मन भ्रम अधिकाई। मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस
अति उधम मचायो॥ कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं
तब तुम लीन्हें। चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥
करि गोपिन
संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा
असुर संहार्यो। कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो॥
मात-पिता
की बन्दि छुड़ाई। उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक
छहों सुत लायो। मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर
दैत्य संहारी। लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भीमहिं
तृण चीर सहारा। जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर
आदिक मार्यो।भक्तन के तब कष्ट निवार्यो॥
दीन सुदामा
के दुख टार्यो।तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
प्रेम के
साग विदुर घर मांगे। दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखी प्रेम
की महिमा भारी। ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ
रथ हांके। लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥
निज गीता
के ज्ञान सुनाए। भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी
मतवाली। विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा
सांप पिटारी। शालीग्राम बने बनवारी॥
निज माया
तुम विधिहिं दिखायो। उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा
करि तत्काला। जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी
टेर लगाई। दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहि वसन
बने नंदलाला। बढ़े चीर भै अरि मुंह काला॥
अस अनाथ के
नाथ कन्हइया। डूबत भंवर बचावइ नइया॥
'सुन्दरदास'
आस उर धारी। दया दृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम
कुमति निवारो। क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब
दर्शन दीजै। बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥
दोहा
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥
श्रीमती कमला द्विवेदी की प्रेरक जीवन यात्रा जो गांवों में नई चेतना जागृत की
60वें जन्म दिवस के अवसर पर
कमला
जी का डा. राधेश्याम
द्विवेदी एडवोकेट ग्राम व पो. दुबौली
दूबे के साथ 1978 में
शादी हो जाने के
बाद उनका उपनाम द्विवेदी हो गया था।
उस समय वह 10 कक्षा उत्तीर्ण थी। पति के साथ रहते
हुए 1981 में किसान इण्टर कालेज भानपुर से वह इन्टर
मीडिएट, 1983 में
सम्मपूर्णानन्द संस्कृत विश्व विद्यालय वाराणसी से शास्त्री तथा
1985 में शिक्षाशास्त्री बी.एड परीक्षा
उत्तीर्ण की है। पति
द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण बड़ौदा में सेवा दायित्व संभाल लेने के कारण बी.एड. करने के बावजूद आप
सरकारी सेवा नहीं की और बच्चों
की पढ़ाई का दायित्व पति
के साथ निभाना शुरु कर दिया। आप
अपने मायके पक्ष के लोगों में
भी पूरा ध्यान रखती हैं। अपने दिन प्रतिदिन के व्यवहार से
सबमें सम्मान बनाये रखी हैं।
आपने
बड़ौदा मिले में मिले अध्यापककी नौकरी का आफर भी
ठुकराकर हाउस वाइफ की जिम्मेदारी बखूबी
निभाई। पुस्तकालय विज्ञान के एक सार्टिफिकेट
कोर्स को आपने आगरा
में किया है। अपने छोटे बच्चे की पढ़ाई के
सिलसिले में आपको बस्ती में 6 माह किराये के मकान में
रहना पड़ा था। आपके पुत्र. सौरभ द्विवेदी की शिक्षा केन्द्रीय
विद्यालय बस्ती से शुरु हुई
थी। इनके पालन पोषण में कमला द्विवेदी ने कोई कोर
कसर ना छोड़ा था।
वह अपने पति डा. राधेश्याम द्विवेदी वड़े बेटे डा. अभिषेक द्विवेदी को आगरा में
छोड़कर अकेले 6 माह तक बस्ती में
निवास की थी, जहां
सौरभ के मां और
बाप दोनो की जिम्मेदारी निभायी।
यहां आपने अपने लिए कटरा बस्ती में एक आवास प्लाट
खरीकर धीरे धीरे इसमें तीन कमरे का निर्माण करा
लिया। जो एक स्थाई
निधि बन गयी है।
पति के साथ आपने
अपने दोनों पुत्रों की शिक्षा आगरा
में सम्पन्न करवायी और विज्ञान ग्रुप
के साथ उनका चयन चिकित्सा शिक्षा में कराया। आपके दोनों पुत्र चिकित्सा विशेषज्ञ हैं। डा. अभिषेक द्विवेदी आर्मी मेंडिकल कोर में मेजर पद रहते हुए
रेडियोडाइग्नेसिस में एम. डी. करके दिल्ली के बेस सेना
चिकित्सालय में कार्यरत हैं। डा. सौरभ द्विवेदी एम.बी.बी.एस करके स्नातकोत्तर
एम एस आर्थोपैडिक्स पाठ्यक्रम आगरा
के एस एन मंडिकल
कालेज से कर रहे
हैं।
आपके पति डा. राधेश्याम द्विवेदी 12 मार्च 1987 से 26 दिसम्बर 2014 तक भारतीय पुरातत्व
सर्वेक्षण सहायक पुस्तकाध्यक्ष/पुस्तकालय सूचना सहायक पद पर बड़ौदा
व आगरा में अपनी सेवाये दिये हैं। 26 दिसम्बर 2014 से 30 जून तक सहायक पुस्तकालय
एवं सूचनाधिकारी पद पर कार्य
करते हुए अपनी सेवा पूरी की है। सम्प्रति
30 जून 2017 को 30 वर्ष 4 माह की राजकीय सेवा
कर आपके पति सेवा मुक्त हो गये है।
जो बस्ती उत्तर प्रदेश से जन सेवा
हेतु स्वतंत्र पत्रकारिता तथा साहित्य सेवा में भी लगे हुए
हैं।
विगत
7 साल हुए आपके ससुर जी का देहान्त
हो गया । अब आपकी
सास मां गांव में अकेली पड़ गयी थी
तो उनकी देखरेख के लिए आपके
पति डा. राधेश्याम द्विवेदी ने आपको
गांव में मां की देखरेख तथा
सम्पत्ति की रक्षा के
लिए छोड़ रखा है। लगभग 30 सालों तक शहर की
सुख सुविधाओं को छोड़कर जिस
समय आप मां की
सेवा के साथ बस्ती
जिले के हर्रैया तहसील
के ग्राम मरवटिया में खेती का काम देखना
शुरु किया उस समय आपको
अनेक समस्याओं का सामना करना
पड़ा। निवासे की जमीन होने
के कारण गांव में विरोध था ही साथ
ही संयुक्त परिवार में भी आपको सहयोग
ना मिलकर बाहर रहने के कारण लोगों
का तिरस्कार पूर्ण जिन्दगी से दो चार
होना पड़ा था। रुढ़िवादी गांव में अनेक विरोधों के बावजूद आपका
कारवा चलता रहा। एक नयी आधुनिक,
वैज्ञानिक व संतुलित संस्कृति
की शुरुवात हुई। आप का देखादेखी
इस गांव की महिलायें भी
घर की चहारदीवारी से
बाहर निकलना शुरु किया। आपके प्रेरणा से कईयों ने
घूंघट की परम्परा छोड़ा
तो कई अभी अन्तरविरोध
को ढ़ोते हुए वर्हिमुखी हो चुकी हैं।
विरोध व उपहास करने
वालों के विचारों में
परिवर्तन आया। सामाजिक रुप से पिछड़े लोगों
में भी आत्म विश्वास
आया और इस गांव
की कायाकल्प होना शुरु हो गया। आप
साइकिल तो अपने स्वास्थ्य
के लिए चलाती हैं परन्तु शुरु में आपके विरोधी भी अब आपकी
प्रशंसा करने लगे हैं।
आप
जब भी अपने काम
से बाहर निकलती हैं। गांव के अधिकांश लोग
आपको बड़े सम्मान के साथ देखते
हैं । आप द्वारा
किसी का दुख देखा
नहीं जाता और जो कोई
किसी जरुरत से आपके पास
आता है वह खाली
नहीं लौटता है। बच्चे तो आपकी राह
देखते रहते हैं क्योकि उन्हें गांव के दुकानों से
उनकी मन पसन्द चीजें
आपके द्वारा आसानी से मिल जाया
करती हैं। आप पर्यावरण की
बहुत घ्यान रखती हैं । गांव में
प्रतिवर्ष आप बहुत सारा
पेड़ लगवाती ही नहीं अपितु
पैसा खर्च करके उसके देखरेख के लिए पूरा
प्रवंध भी करती रहती
हैं।
1959 में
जन्मी मैडम कमला द्विवेदी के आज 60वें
जन्म दिवस के अवसर पर
हम उनके दीर्घ आयु तथा स्वास्थ्य की कामना करते
हैं। आप और अधिक
कुशलता से ग्राम्य जीवन
में अपने अनुभवों से लोगों को
सद् मार्ग पर चलने की
प्रेरणा देती रहें.