Saturday, September 16, 2017

सोने की चिड़िया भारत को भारत ही रहने दो - तालिबान ना बनाओ -डा. राधेश्याम द्विवेदी

अवैध बांग्लादेशी हैं रोहिंग्या :- बौद्ध बहुल म्यांमार में करीब 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं. इनको मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है. इनकी हिसक तथा घिनौनी कृत्यों को देखकर अहिंसक बौद्ध म्यांमार सरकार ने कई पीढ़ियों से रह रहे इस समुदाय के लोगों की नागरिकता छीन ली है. लगभग सभी रोहिंग्या म्यांमार के रखाइन (अराकान) राज्य में रहते हैं. ये रोहिंग्या या रुयेन्गा भाषा बोलते हैं। जो रखाइन और म्यांमार के दूसरे भागों में बोली जाने वाली भाषा से कुछ अलग है। इन्हें आधिकारिक रूप से देश के 135 जातीय समूहों में शामिल नहीं किया गया है। ये 12वीं सदी में म्यांमार चले गए थे. रोहिंग्या मुसलमान इस्लाम को मानने वाले वो लोग हैं जो 1400 ई. के आस-पास बर्मा (आज के म्यांमार) के अराकान प्रांत में आकर बस गए थे। इनमें से बहुत से लोग 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला (बर्मीज में मिन सा मुन) के राज दरबार में नौकर थे। इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में प्रश्रय दिया था।म्यांमार में करीब 10 लाख रोहिंग्या मुस्लिम रहते हैं बर्मा के लोग और वहां की सरकार इन लोगों को अपना नागरिक नहीं मानती है। बिना किसी देश के इन रोहिंग्या लोगों को म्यांमार में भीषण दमन का सामना करना पड़ता है। ब्रिटिश शासन के दौर में 1824 से 1948 तक भारत और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में मजदूर म्यांमार ले जाए गए. चूंकि म्यांमार भी ब्रिटेन का उपनिवेश था इसलिए वह उसे भारत का ही एक राज्य मानता था. इसी वजह से तब इस आवाजाही को देश के भीतर की आवाजाही ही मान जाता रहा. ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद म्यांमार की सरकार ने इस प्रवास को अवैध घोषित कर दिया. इसी के आधार पर 1982 में रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता समाप्त कर दी गई. जिसके बाद से वे बिना नागरिकता के जीवन बिता रहे हैं। ब्रिटेन से आजादी के बाद, इस देश की सरकार ने ब्रिटिश राज में होने वाले इस प्रवास को गैर कानूनी घोषित कर दिया। अधिकांश बौद्ध रोहिंग्या मुसमानों को बंगाली समझने लगे और उनसे नफरत करने लगे।  वर्ष 1948 में म्यांमार की आजादी के बाद देश का नागरिकता कानून बना. इसमें रोहिंग्या मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया. जो लोग दो पीढ़ियों से रह रहे थे उनके पहचन पत्र बनाए गए. सन 1962 में म्यांमार में सैन्य विद्रोह होने के बाद रोहिंग्या मुसलमानों के बुरे दिन शुरू हो गए. उनको विदेशी पहचान पत्र ही जारी किए गए. उन्हें रोजगार, शिक्षा सहित अन्य सुविधाओं से वंचित कर दिया गया. उन्हें शिक्षा, रोजगार, यात्रा, विवाह, धार्मिक आजादी और स्वास्थ्य सेवाओं के लाभ से भी उनको महरूम कर दिया गया.
हिंसायुक्त इतिहास :-  साल 2012 में राखिन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्धों के बीच भारी हिंसा हुई थी।  करीब एक लाख पलायन कर गये थे। बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु रोहिंग्या विरोधी भड़काऊ भाषणों के लिए जाने जाते हैं। हिंसा के बाद अब भी क़रीब एक लाख रोहिंग्या लोग शिविरों में रहते हैं.पिछले साल नाव में सवार सैंकड़ों रोहिंग्या लोगों की तस्वीर ने दुनिया को चौंका दिया था. ये लोग समुद्र के रास्ते मलेशिया भागने की कोशिश कर रहे थे. एशियाई देश इस समस्या से निपटने के लिए एक साथ काम करने को तैयार हैं.म्यांमार से सैकड़ों अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुस्लिम सैन्य कार्रवाई से बचने के लिए बांग्लादेश की सीमा में घुसने की कोशिश कर रहे हैं. ये लोग वहां से भागने की कोशिश कर रहे हैं , जिनमें बच्चे भी शामिल हैं.भागने की कोशिश करने वाले कुछ लोगों को गोली मार दी गई है. अधिकतर रोहिंग्या इसी सूबे में रहते हैं.सैंकड़ों घरों को जला दिया गया है लेकिन सरकार इस दावे को ख़ारिज करती है. विदेशी पत्रकरों को इस क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं है. पिछले महीने बौद्धों और मुस्लिमों के बीच हुए समन्वित हमलों को बाद इस प्रांत में तनाव काफी बढ़ गया, इन हमलों में नौ पुलिस अधिकारियों की मौत हुई थी, जिसके लिए पुलिस रोहिंग्याओं को ज़िम्मेदार मानती है. इसके बाद रखाइन स्टेट में म्यांमार के सुरक्षा बलों ने बड़ी कार्रवाई शुरू की. सरकार का दावा है कि पुलिस पर हमला रोहिंग्या मुसलमानों ने किया. सुरक्षा बलों ने मौंगडोव जिले की सीमा सील कर दी है और वे व्यापक अभियान चला रहे हैं. सुरक्षा बलों की कार्रवाई में सौ सै ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. म्यामांर के सुरक्षा बलों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लग रहे हैं. साल 2015 में रोहिंग्या मुसलमानों का एक बार फिर बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हुआ। एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 100 रोहिंग्या पलायन के दौरान मारे गए। ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। मौजूदा विवाद भी रोहिंग्या मुसलमानों के एक हथियारबंद संगठन द्वारा सुरक्षा बलों पर किए गए हमले से शुरू हुआ। रोहिंग्या मुसलमानों के अनुसार कई गांवों में सेना ने निहत्थे लोगों पर गोली चलाई। म्यांमार की सेना पर गोलीबारी में मारे गए लोगों की लाशों को जला देने के भी आरोप लगे हैं। अक्टूबर 2016 में म्यांमार के नौ सुरक्षालबों की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। हत्या का आरोप रोहिंग्या कट्टपंथियों पर लगा था।
आवागमन प्रतिबंधित :-रोहिंग्या मुसलमानों को बिना अधिकारियों की अनुमति के अपनी बस्तियों और शहरों से देश के दूसरे भागों में आने जाने की इजाजत नहीं है। यह लोग बहुत ही निर्धनता में झुग्गी झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर हैं। पिछले कई दशकों से इलाके में किसी भी स्कूल या मस्जिद की मरम्मत की अनुमति नहीं दी गई है। नए स्कूल, मकान, दुकानें और मस्जिदों को बनाने की भी रोहिंग्या मुसलमानों को इजाजत नहीं है और अब उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है। उनको बिना अधिकारियों की अनुमति के देश के दूसरे हिस्सों में जाने-आने की अनुमति नहीं है. इनके इलाके में किसी भी स्कूल या मस्जिद की मरम्मत की इजाजत नहीं है. इसके अलावा वे नए स्कूल, मकान, दुकान और मस्जिद भी नहीं बना सकते हैं.
बांग्लादेश को ऐतराज :- बांग्लादेश रोंहिग्या मुसलमानों को अपनाने के लिए तैयार नहीं है. परेशान लोग सीमा पार करके सुरक्षित ठिकाने की तलाश में बांग्लादेश रहे हैं. बांग्लादेश अथॉरिटी की तरफ से सीमा पार करने वालों को फिर से म्यांमार वापस भेजा जा रहा है. बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. रोहिंग्या लोग 1970 के दशक से ही म्यांमार से बांग्लादेश रहे हैं.संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के अनुसार पिछले दो हफ्तों में करीब 1.23 लाख रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से पलायन कर चुके हैं। म्यांमार में 25 अगस्त को भड़की हिंसा के बाद करीब 400 लोग मारे जा चुके हैं। म्यांमार में बौद्ध बहुसंख्यक हैं। म्यांमार में बहुत से लोग रोहिंग्या को अवैध प्रवासी मानते हैं। म्यांमार की सरकार रोहिंग्या को राज्य-विहीन मानती है और उन्हें नागरिकता नहीं देती। म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। ऐसे प्रतिबंधों में आवागमन, मेडिकल सुविधा, शिक्षा और अन्य सुविधाएं शामिल है। हालांकि ताजा विवाद के बाद म्यांमार की काउंसलर और नोबल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की ने कहा है कि सरकार रोहिंग्या मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करेगी।
भारत में विपक्षी दल तथा वाम पार्टियों  मुहिम छोड़ रखी  :- मुस्लिम दुनिया के मुस्लिमों को बुलावा दे रहै आओ ओर लड़कर काफिरो से म्यांमार मे बिल्कुल इराक वाला महौल बनाया ओर अब ये बांग्लादेश इस्लामिक मुल्क, पाकिस्तान इस्लामिक मुल्क, अफगानिस्तान इस्लामिक मुल्क, इंडोनेशिया इस्लामिक मुल्क मे ना जाकर भारत मे घुसपैठ करके रह रहे 60 से 70 हजार के ऊपर है रोहगिया मुस्लिम अवैध रूप से ओर फेसबुक, वाटसऐप ओर अन्य सोशल मिडीया के द्वारा एक मुहीम चल रही जिसमे कहा जा रहा रोहगिया मुस्लिम भारत के ही नागरिक है ओर उनको अपना हक समझकर भारत मे रहना चाहिए इसमे वही बुद्धिजीवी वर्ग शामिल है जो याकूब के मे थे जैसे शोभा डे, रवीश कुमार एनडीटीवी, बरखा दत्त एनडीटीवी, राजदीप सरदेसाई आजतक, अंजना ओम कश्यप आजतक, पुन्य प्रसुन बाजपेई आजतक, राहुल कवर आजतक, एबीपी न्यूज, बालिवुड नेता शत्रुघ्न सिन्हा, महेश भटट, शाहरुख, आमिर जैसे कलाकार नेता कम्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेसी, सपाई, बसपाई ये सब सम्मिलित है ओर मोदी सरकार भविष्य देख रही की ये रहेगे शरणार्थी के रूप मे बाद मे आतंकवाद फैलायेगे जैसे इराक ओर सीरीया से गये मुस्लिम फ्रांस, जर्मनी, बर्लिन, अमेरिका मे आतंकवाद फैला रहे ISIS के रूप मे यै सब गये थे शरणार्थी के रूप मे ओर आज मालिक बनकर घूम रहे फ्रांस ओर जर्मनी ने इन शरणार्थीयो को भगा दिया आतंकवादी घटनाओ को देखकर अब भारत मे प्रशांत भूषण जैसे भड़वे इनको ठहराने की व्यवस्था कर रहे जो की भारत ओर भारतीयों के लिए खतरा है जो मुस्लिम नही ना ही मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखते है उनके लिए आने वाला भविष्य कोढ़ हो जाएगा .
संयमित-संतुलित समाधान :-मोदी सरकार भविष्य का खतरा देखकर कह रही है ये अपने दैश जाए. म्यांमार भारत मे नही है. हम इनको हटाएगे. भारत सरकार ने तमाम अंतर्राष्ट्रीय दवाबो के बावुजूद रोहिंग्या मुस्लिमो को चिन्हित कर म्यांमार वापस भेजेने का निर्देश दे दिया है. मोदी सरकार के इस फैसले के खिलाफ कई मानवाधिकार संघठनो ने आपत्ति की है. ओवैसी की पार्टी आल इंडिया इत्तेहादुल मुस्लीमीन ने भी इस फैसले का विरोध किया है.आल इंडिया इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने एक बयांन में कहा है कि अगर रोहिंग्या मुस्लिम यहाँ रिफ्यूजी की तरह नही रह सकते है फिर तिब्बतियो और दलाईलामा को भी यहाँ रहने का कोई हक नही है. पीएम मोदी बर्मा के दौरे पर वहां उन्होंने म्यांमार की नेता आंग सान को रोहिंग्या मुस्लिमो के बारे में इशारो इशारो में ही अपनी बात रखी,प्रधानमंत्री ने रोहिंग्या मुस्लिमो पर बर्मा की नीति की किसी तरह आलोचना नही की है. ये एक तरह के लिए आंग सान के लिए सुकून वाली बात है.  दुनिया भर के देशो समेत यूएन ने भी तीखी आलोचना की है.पीएम मोदी ने कहा, ‘रखाइन स्टेट में चरमपंथी हिंसा के चलते खासकर सिक्यॉरिटी फोर्सेज और मासूम जीवन की हानि को लेकर आपकी चिंताओं के हम भागीदार हैं। चाहे वह बड़ी शांति प्रक्रिया हो या किसी विशेष मुद्दे को सुलझाने की बात, हम आशा करते हैं कि सभी ऐसा हल निकलाने की दिशा में काम कर सकते हैं, जिससे म्यांमार की एकता और भौगौलिता अखंडता का सम्मान . करते हुए सभी के लिए शांति, न्याय, सम्मान और लोकतांत्रिक मूल्य सुनिश्चित हों।’
भारत राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा:-रोहिंग्या मुस्लमान राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। यह कहना है केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे से मजबूती से निपटा जाएगा। जम्मू दौरे पर गए गृह मंत्री से जब देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि गैरकानूनी ढंग से रह रहे विदेशी प्रवासियों से मजबूती से निपटा जाएगा। अगस्त में केंद्र सरकार ने कहा था कि सुरक्षा के मद्देनजर रोहिंग्या देश के लिए बड़ी चुनौती हो सकते हैं। हो सकता है कि उन्हें आतंकी समूहों द्वारा नियुक्त किया गया हो। केंद्र ने राज्य सरकारों से ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने के लिए कहा है।गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि देश के कई हिस्सों में म्यांमार के राखीन राज्य से इन शरणार्थियों की घुसपैठ, भारतीय नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करती है, इसके अलावा इससे देश के सीमित संसाधनों पर भी बोझ बढ़ता है। बता दें कि पिछले महीने ही गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि करीब 40 हजार से ज्यादा रोहिंग्या अवैध ढंग से भारत में रह रहे हैं। इनमें ज्यादातर लोग जम्मू, हैदराबाद, हारियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली एनसीआर और राजस्थान में रह रहे हैं।
रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को देश से बाहर भेजने की कोशिशों की संयुक्त राष्ट्र की ओर से निंदा किए जाने का भी भारत सरकार ने कड़ा जवाब दिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजीव के. चंदर ने जैद राद अल हुसैन के बयान से असहमति जताई। राजीव ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त की ओर से इस तरह की टिप्पणियों से हम आहत हैं। उनका बयान भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आजादी और हकों को गलत तरीके से बढ़ावा देने वाला है। गलत और चुनिंदा रिपोर्टों के आधार पर कोई जजमेंट देना गलत है और इससे किसी भी समाज में मानवाधिकार की चिंता नहीं की जा सकती।’
भारतीय नेताओं की देश विरोधी हमदर्दी  :- इन भस्मासुर कौम रोहिंग्या मुसलमानों की हर अवैध गतिविधि को  म्यांमार और बांग्लादेश बखूबी जानता है । ये हर उस गतिविधि में लिप्त है जो समाज और राष्ट के लिए खतरा है। म्यांमार और बांग्लादेश ने जब इन रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर अभियान चलाया हुआ है ऐसे में भारत के मुसलमान नेता इन सबको भारत में पनाह देने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। कितनी बड़ी विसंगति है कि जिन देशों के ये नागरिक हैं वे तो इन्हें रखना नहीं चाहते, लेकिन भारत के मुसलमान नेताओं को इन अवैध कारोबारियों, नशा और अपराध के सौदागरों से बहुत हमदर्दी है।जिस तरह ईसाई, यहूदी और बौध भारत में भारतीय बनकर रहते हैं, मुसलमानों को भी उसी तरह भारतीय बनकर रहना चाहिए। भारत की सर जमीं से देश विरोधी किसी भी प्रकार की गतिविधियां चलाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।



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