बौद्ध देश बर्मा:- भारतीय उप महाद्वीप में
एक छोटा सा देश बर्मा
(म्यांमार) है। यह कभी भारत
का ही अंग हुआ
करता था। इसे अंतर्राष्ट्रीय नक्शे में देखने के लिए माइक्रोस्कोप
की भी जरूरत पड़
सकती है। भारत की सर जमीन
से निकला बौद्ध धर्म चीन और जापान की
भांति यहां अच्छी तरह से फल फूल
रहा है। चीन की निगाह भी
इस पर रहती है
और वह इसे अपना
पिछलग्गू देश बनाना चाहता है। आर्थिक दृष्टि से यह उतना
सम्पन्न नहीं रह गया है
,इसलिए उसकी थोड़ी मोड़ी सहायता करके कई पड़ोसी देश
इसे अपने पाले में करने की कोशिस करने
में लगे रहते हैं । बांग्लादेश से सटा हाने
के कारण वंगाली मुसलमान इसे ठीक से विकसित होने
नहीं देना चाहते हैं । पहले अंग्रेज फिर पूर्वी पाकिस्तानी अब बांग्लादेशी इस
छोटे से देश को
अस्थिर तथा अपने में मिलाने के फिराक में
रहते है। सुन्नी मुसलमानो के रोहिंग्या समुदाय
का एक गिरोह 12वीं
सदी के शुरुआती दशक
में म्यांमार के रखाइन इलाके
में आकर बस गया, लेकिन
स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय में वे आज तक
घुलमिल नहीं सके है। वे वहां अराजकता
फैलाते हैं तथा पुलिस प्रशासन के लिए समस्या
उत्पन्न करते है। वे वहां अपनी
मस्जिद बनवाने के लिए बौद्धों
से जबरन पैसा वसूलने लगे थे । पैसा
ना पाने पर वे हर
स्तर पर उतर कर
उनकी हत्या भी कर देते
थे। समुदाय के लोग इन
हरकतों पर लगाम नहीं
लगाते थे। इस प्रकार इनसे
उस इलाके में दहशत फैल गया था।
रोहिंग्या और सुरक्षाकर्मियों के बीच हिंसा:- 2012 में
रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के
बाद रोहिंग्या और सुरक्षाकर्मियों के बीच
व्यापक हिंसा भड़क गई. तब से म्यांमार
में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा
जारी है। रोहिंग्या और म्यांमार के
सुरक्षा बल एक-दूसरे
पर अत्याचार करने का आरोप लगाते
रहे हैं। ताजा मामला 25 अगस्त 2017 को हुआ, जिसमें
रोहिंग्या मुसलमानों ने पुलिस वालों
पर हमला कर दिया। इस
लड़ाई में कई पुलिस वाले
घायल हुए। इस हिंसा से
म्यांमार के हालात और
भी खराब हो गए। यहां
पर मुसलमानों ने बहुत दिनों
से खुराफात करते रहे हैं हैं। इनकी संख्या 4 प्रतिशत से ज्यादा नही
है फिर भी ये अपनी
जनसंख्या 40 प्रतिशत करके यहां का भूगोल ही
परिवर्तित करने के फिराक में
रहते है। आज इसने पूरी
दुनिया में तहलका मचा दिया है। ये विश्व के
अनेक देशों में भी फैल गये
हैं। इनकी जब ज्यादती बर्मा
में बढ़ गयी तो
बौद्धों का धौर्य जबाब
दे गया । फिर रोहिंग्या
मुसलमानों को उन अहिंसावादी
बौद्धों ने मारने या
भगाने लगे है। जो बौद्ध चींटी
को भी कभी नहीं
मारते थे वे पूरे
के पूरे हिसक बन गये। इनमें
उनका अकेले दोष नहीं है अपितु वे
एसा करने के लिए बाध्य
हो गये। उन लोगों ने
कितनी तकलीफ बर्दाश्त की होगी ? जिन
रोहिंग्या मुसलमानों के मोटे मोटे
आँसू बहाते हुए लोगों का वीडियो भारत
की दलाल मीडिया दिखा रही है ये वही
मुस्लिम है जो अहिंसावादी
बौद्ध समुदाय के 7 - 8 साल के बच्चों का
भी बलात्कार कर मार डाल
रहे थे। ये अपने आदमियों
को पुलिस थान्हों से जबरन निकलवा
लेते थे। आग लगाना पैसा
वसूलना तथा बलात्कार की घटना यहां
आम हो गयी थी।
मंदिर तथा मूर्तियां रोज के रोज तोड़ी
जा रही थी। उस समय कोई
मानवाधिकार की दुहाई देने
वाला कार्यकर्ता नेता तथा मीडिया नहीं दिखाई पड़ रहा था।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने कानों में
तेल डाल लिया था और आंखों
पर मोटा चश्मा लगा रखा था। रोहग्यिाओं को पहले अंग्रेजों
ने सही तरह से डील नहीं
किया और बाद में
किसी भी मुस्लिम देश
ने इन्हें नहीं अपनाया और हमेशा इन्हें
दुत्कारते रहे। परिणाम स्वरुप ये लोग बर्मा
में बौद्धों को ही अपना
निशाना बनाते रहे। इनके विकास की सही योजनाये
ना चलाने से ये जनसंख्या
तो बढाते गये और लूट पाट
करते गये। इनका स्वरुप काफी विगड़ गया। अब कोई देश
इनको अपनाने को तैयार नहीं
है।
मालीहालत खराब
:- ये किसी ना किसी तरह
कूड़ा कचरा बीनकर छोटे छोटे काम करके अपना जीवन गुजार रहे हैं । इनकी मालीहालत ठीक नहीं है। इसलिए इन्हे तकलीफ भी उठानी पड़ती
है। कुछ इनके विगड़े हुए लोग मनमानी भी करते रहते
हैं। इनसे देश में शांति स्थापित करने के लिए इन्हें
देश से निकाला जा
रहा है। इस पर म्यांमार
की सेना पर मानवाधिकारों के
उल्लंघन के आरोप भी
लग रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि
म्यांमार के रखाइन प्रांत
में ताजा हिंसा भड़कने के विगत दिनों
में लगभग तीन लाख रोहिंग्या मुसलमान पलायन कर बांग्लादेश पहुंचे
हैं। इस आंकड़े के
अनुसार लगभग एक दिन में
20 हजार रोहिंग्याओं ने पलायन किया
है. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के प्रवक्ता जोसेफ
त्रिपुरा ने कहा, ‘‘25 अगस्त
के बाद से लगभग दो
लाख 90 हजार रोहिंग्या बांग्लादेश पहुंचे हैं.’’पिछले वर्ष भी म्यांमार के
इस प्रांत में सैन्य कार्रवाई के बाद 80,000 रोहिंग्या
मुस्लिम बांग्लादेश पहुंचे थे. इस साल पैदा
हुई हिंसा से पहले बांग्लादेश
में 300,000 से 500,000 के बीच रोहिंग्या
समुदाय के लोग रहते
थे, जिनमें से केवल 32,000 को
शरणार्थी का दर्जा प्राप्त
है।
बर्मा दबाव में नहीं :- बर्मा
के चुनाव में आंग सान सू ची के
नेतृत्व वाली नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी 2016 में सरकार बनाने में कामयाब रही। जनरल आंग सान सू ची ने
अधिकतर और प्रभावशाली प्रतिनिधत्व
खुद के पास ही
रखा है जैसे आंग
सान सू ची की
सरकार का तीन बड़े
बुनियादी मंत्रालयों- गृह, रक्षा और सीमा पर
कोई अधिकार नहीं है. हिंसा प्रभावित रखाइन में जनरल लैंग खुद कमान संभाले हुए हैं। रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे
अत्याचार को भी यह
सनकी सेना का नेतृत्व करने
वाला आंग सान सू ची ही
रोक सकता है। उसने कहा है कि हम
अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं आएंगे। उन्होंने अपने भाषण में रखाइन प्रांत में अराकान इलाके में रह रहे कुछ
रोहिंग्या मुसलमानों पर हुई कार्रवाई
को सही करार दिया। किसी भी तरह से
मानवाधिकार का उल्लंघन ठीक
नहीं है, लेकिन कुछ रोहिंग्या मुसलमानों को आतंकवादी बताने
से भी वह नहीं
चूकीं। उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों एक वर्ग पर
पुलिस बलों पर हमले और
देश विरोधी काम करने का आरोप लगाया.
सू ची ने कहा-
कई महीनों की शांति के
बाद 25 अगस्त 2017 को सुरक्षाबलों पर
हथियार बंद गुट ने हमला कर
दिया. सरकार ने जांच में
इस आतंकी हमले के लिए रोहिंग्या
और उनके समर्थकों का हाथ पाया.
हम किसी भी तरह के
मानवाधिकार उल्लंघन का विरोध करते
हैं और सुरक्षा बलों
को इन आतंकियों पर
कार्रवाई के दौरान नियमों
का पालन करने के निर्देश दिए
गए हैं। एक जिम्मेदार सदस्य
देश होने के नाते हम
यहां रहने वाले सभी नागरिकों की सुरक्षा, शांति
और विकास कार्यों को करते रहेंगे
और किसी भी तरह के
अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं आएंगे। म्यांमार से बड़ी तादाद
में खदेड़े जा रहे रोहिंग्या
मुसलमान बांग्लादेश में शरण लेने पहुंचे हैं. खाने के सामान और
राहत सामग्री की यहां भारी
कमी है. इन हालात में
बच्चे और बूढ़े सबसे
ज्यादा परेशान हैं. इन्होंने बांग्लादेश के शामलापुर और
कॉक्स बाजार में शरण ली हैं. शरणार्थी
शिविरों में ही बच्चों को
औरतें जन्म दे रही हैं.
बांग्लादेश में इनकी जान बची हुई है, लेकिन मुसीबतों की कमी नहीं
है।
साहसिक कदम
:-रोहिंग्या मुसलमानों
को अपने देश से निकालना बहुत
बड़ा कदम है जिसे उठाने
मे इजराइल जैसे सुपर पावर देश के भी पसीने
छूट गए थे, जब
इसराइल ने आपने यहाँ
से 10 लाख मुसलमानों को भगाया था।
पर बात यहाँ छोटे से देश के
बड़े फैसले लेने की नहीं है
बल्कि अत्याचार के हद की
है मजबूरी की है लाचारी
की है जो पिछले
कई वर्षों से म्यांमार झेल
रहा था,वहां के
बौद्धिक समुदाय झेल रहा था। उनके न जाने कितने
बौद्ध मठो और स्तूपो को
तहस नहस कर दिया था।
रोहिंग्या मस्जिद बनाने के लिए जबरन
बौद्धो से पैसा वसूली
करते थे न देने
पर उन्हें मारा जाता था। जहाँ ये लोग बहुसंख्यक
थे किसी पुलिस अधिकारी की हिम्मत नहीं
होती थी कि उस
जगह पर जा कर
दोषी को पकड़ सके। अगर
किसी को पुलिस पकड़
भी लेती थी और सजा
देती तो ये सब
झुण्ड के साथ जाकर
सरकारी दफ्तरों
और जेलों में आग लगा देते
थे।
भारत पर दबाव
:-कई मानवाधिकार
संगठन व भारत विरोधी
आतंकी संगठन भारत सरकार से गुहार लगा
रहे हैं कि इन शरणार्थियों
को देश में ही रहने दिया
जाए। सरकार का मानना है
कि रोहिंग्या मुसलमान अवैध प्रवासी हैं और इसलिए कानून
के मुताबिक उन्हें बाहर किया जाना चाहिए। गृह मंत्रालय कह चुका है
कि वह रोहिंग्या मुसलमानों
को भारत में शरण नहीं देगा, बल्कि उन्हें क्रमबद्ध
वापस लौटा देगा। इसके साथ ही भारत-म्यांमार
सीमा पर चैकसी बढ़ा
दी गई है. सीमा
पर सरकार ने रेड अलर्ट
जारी किया है। पानी के रास्ते आने
की संभावना को देखते हुए
उन पर निगाह रखी
जा रही है।
मुस्लिम देश अपनाने से इनकार
:- आज जबकि दुनिया के 56 मुस्लिम देशों में से कोई एक
भी, यहां तक कि पाकिस्तान
और बांग्लादेश भी इन्हें अपने
यहाँ घुसने भी नहीं दे
रहा, भारत के कुछ भडवे
दलाल मीडिया और तथाकथित सैकुलर
नेता भारत में बसाना चाहते हैं, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट में केस भी दायर किया
जा चुका है, और सुप्रीम कोर्ट
ने केस मंजूर भी कर ली
है, जिसकी सुनवाई जल्द ही होने वाली
है। सरकार का कहना है
कि रोहिंग्या मुसलमानों में आइएस के लोगों के
शामिल होने की आशंका है।
मतलब सरकार सुरक्षा का हवाला देकर
उन्हें देश में शरण नही देना चाहती है देश के
कई एजेंसियों ने इस बात
का अलर्ट जारी किया है कि रोहिंग्या
मुसलमान देश की शान्ति भंग
कर सकते है ऐसे में
इन्हें देश में शरण देना ठीक नही है।
वोट के लिए दिखावटी हमदर्दी
:-कोर्ट में रोहिग्या के पक्ष का
वकील प्रशांत भूषण है जो हिन्दुत्व
से नफरत करते हैं। वह हिन्दू देवी
देवताओं के बारे में
हमेशा उल्टा सीधा बोलते रहते हं। भारत के इन तमाम
राजनेताओं को चाहिए कि
वे अपनी अपनी क्षमता के अनुसार कुछ
रोहग्यिा परिवारों को गोद ले
लें उन्हें अपने कोठियों व फार्म
हाउसों में रहने की जगह दें।
उन्हें नियमानुसार सरकार की अनुमति से
नागरिकता दिलवायें । वे देश
की अर्थ व्यवस्था को चैपट करने
के बजाय यदि वाकई उन्हें हमदर्दी हो तो अपनी
व्यक्तिगत कमाई का कोई ना
कोई भाग उनके लिए खर्च करें। उनकी शिक्षा व्यवसाय के लिए कुछ
करके दिखायें पर उन्हें अपराध
तथा दहशत फैलाने के लिए छुट्टे
साड़ की तरह ना
छोडें। वे उन्हें मात्ऱ
वोट बैंक का जरिया ना
समझे। हमारे न्यायालय भी आतंकवादियों के
लिए आधी रात को भी खुल
जाती है किन्तु काश्मीरी
पंडितों के पुनर्वास और
उनके ऊपर हुए घोर जघन्य अत्याचार जैसे निर्शन्स हत्या, बलात्कार इत्यादि का केस खारिज
कर दी जाती है।
अभी अभी ग्रेटर नोएडा और जयपुर में
सब कुछ अपनी आँखों से देखा है,
और यदि इन्हें देश में बसने की अनुमति मिली
तो भारत को ईराक, सीरिया,
अफगानिस्तान बनने से कोई भी
नहीं रोक सकता। इसलिए हम सब का
कर्तव्य है कि इस
सब का सामूहिक रूप
से विरोध करे, ताकि तथा कथित सैकुलर नेता और हमारी न्याय
व्यवस्था सहीे पक्ष का चयन कर
सके।
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