वो पार हो
गये मुझे अधर में छोड़ गये।
कोई नाविक
आके मुझे सहारा देगा ?
मैंने तो
सामरथ से उनकी सेवा की।
उनकी छोटी
से छोटी इच्छा पूरा की ।।
वे धर्म भूलकर
अपना हमें फंसा वैठे।
कुछ परलोक
गये घर अपने जा बैठे।।
कुछ आज हमारे
आसपास भी रहते हैं।
अपने को पाकसाफ
बन कर रहते हैं।।
हम दोष नहीं
दे केवल यही सोचते हैं।
उनके कर्मों
के फल को आज भोगतें है।।
आज मेरी तन्हाई
उनसे पूछ रही ?
यह न्याय
नहीं जो उन्होने हम पर सौपी है।।
कुछ राजधर्म
का वे भी निर्वहन किये होते।
मैं भी अपनों
में जा सदकर्म किये होते।।
पर आज मुफलिसी
में अतीत की वे यादें।
बरबस आ ही
जाते नहीं बिसरते हैं।।
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