संसार का सुन्दरतम शब्द “माँ”:- संसार का सबसे सुन्दरतम व प्यारा शब्द “माँ” है? सबसे प्यारा, सबसे सुन्दरतम शब्द संसार में है–
“माँ” l इसमें इतनी मीठास भरी हुई है ! माँ का पूरा स्नेह, पूरा प्यार. ! माँ या
पिता, यानि दोनों का प्यार l माँ और पिता का जो दर्जा है वो सचमुच देवताओं
से भी कहीं बढ़कर है l हमने परमात्मा को नहीं देखा, हमने भगवान को नहीं देखा, लेकिन
हमने अपने माता-पिता को साकार देखा है l हमारे माता-पिता इस संसार में हमारे लिए
भगवान का ही रूप हैं l परमात्मा इस सृष्टि का पालन-पोषण करता है, यह हम जानते हैं
l लेकिन वो किस ज़रिये से करता है, किस तरीके से करता है? शास्त्रों में माता-पिता के लिए कहा जाता है –
“मातृ देवो: भव:”, माँ देवता के समान है l “पितृ देवो: भव:”, पिता देवता के समान
है और “आचार्य देवो: भव:”, हमारे जो आचार्य हैं वो देवता के समान हैं l
रामचरितमानस में महिमा बखानी गयी :-श्री
रामचरितमानस में एक सारगर्भित व प्रभावकारी चौपाई आती है-
“मात
पिता गुरु प्रभ के बानी l बिनहि विचार कहिये शुभ जानी ll”
माता-पिता और गुरु की आज्ञा को हितकारी समझ कर
उनकी पालना करनी चाहिए l ये सदैव हितकारी वचन बोलते हैं, आपकी भलाई के लिए बोलते
हैं, इसलिए उनको देवता-तुल्य माना गया है l माता-पिता की परिक्रमा करने का भी
विधान है l परिक्रमा आप समझते हैं? परिक्रमा का मतलब होता है – प्रदक्षिणा, पुण्य
प्रदक्षिणा जिसे कहा जाता है l परिक्रमा हमारी हिंदू संस्कृति का बहुत महत्वपूर्ण
अंग है l आपने अगर कभी देखा हो कि हम मंदिरों की पूजा करते हैं, यज्ञ की पूजा करते
हैं और जिस स्थान पर किसी महापुरुष के चरण पड़े हैं यानी गंगा जैसे स्थान की हम
परिक्रमा करते हैं l उस स्थान को पवित्र जानकर उसकी परिक्रमा की जाती है l अधिकतर
मंदिरों के बाहर परिक्रमा का एक पथ बना होता है, रास्ता बना होता है, इसलिए इसे
”प्रदक्षिणा” कहा जाता है l माता-पिता की प्रदक्षिणा को बहुत उत्तम गिना जाता है l
जब उनके चारों तरफ परिक्रमा की जाती है, उनके चरणों का स्पर्श भी किया जाता है l
माता-पिता के चरणों का स्पर्श करने से या बड़े-बुजुर्गों के चरणों का स्पर्श करने
से “बल, बुद्धि, विद्या और आयु” मिलते हैं l बल यानि पावर या शक्ति, बुद्धि यानि इन्टेलेक्ट
विद्या मतलब पढ़ाई, आयु मतलब उम्र. ये चारों चीज़ें माता-पिता के चरणों को स्पर्श
करते ही सहज में ही प्राप्त हो जाती हैं lवर्तमान
समय के पुत्र माता-पिता की कैसी सेवा करने वाले और कैसे भक्त हैं, यह तो प्रत्येक
विवेकी व्यक्ति समझ सकता है। शास्त्रों का तो कथन है कि ‘संसार में बसने वाली
आत्मा यदि क्षुद्र स्वार्थ के वशीभूत होकर अपने माता-पिता की अवज्ञा करे तो उसके
समान कोई दुष्ट नहीं है।’
हम कितना सम्मान देते हैं :-माता-पिता की आज्ञा पर अपनी अनेक पाप पूर्ण लालसाओं को ठोकर
मारने वाले कितने पुत्र हैं? भगवान की आज्ञा पालन करने वाले विवेकी सुपुत्र अपने
माता-पिता की आज्ञा की अवहेलना कर के एक कदम भी आगे नहीं चलते थे। आज तो लोभ के
कारण, धन के लिए माता-पिता की आज्ञा का उलंघन करने वालों की कमी नहीं है। मां-बाप
हैं कि बच्चों के प्रति मोह में अटके रहते हैं। अरे, ऐसा जीवन आने से पहले ही
संसार त्याग कर बाहर निकल जाएं तो क्या आपत्ति है? जिन्हें दया आती हो उन्हें ऐसे
माता-पिता की आज्ञा का पालन नहीं करने वाले अयोग्य एवं कुपुत्रों से आज्ञा मनवानी
चाहिए। संसार का मौज-शौक त्याग कर संयम अंगीकार करें, वही दया और वही आज्ञा की बात
है।
आज के जमाने में बच्चे
माता पिता की पारी पूरी होने के समय की प्रतीक्षा नहीं करना चाहते हैं। वे माता पिता
का सम्मान तो दूर रहा ,उनकी उपलब्धियों व संसाधनों को हस्तगत करने फिराक में लगे रहते
हैं। माता -पिता यह सब जानते हुए कि उनकी सन्तान उनसे छल कर रहा है वे उसे नजरन्दाज
करते जाते हैं। सन्तान उनकी इस सदाशयता का गलत आंकलन करता है और माता पिता की और उपेक्षा
करना उन्हें सम्मान ना करना तथा उन्हें दुख देना शुरु कर देता हैं। जहां कई सन्तान
होती हैं वहां माता पिता की बड़ी बेकदरी होती हैं। कोई माता पिता का सम्मान करने में
लगा रहता है। कोई इसके विल्कुल विरुद्ध आचरण करने लगता हैं। हम तो इतना ही कहना चाहेंगे
सन्तान जैसा बर्ताव माता पिता के प्रति करता है। उसका अनुकरण उनकी सनताने भी करेंगी।
जो माता पिता की बेकदरी करेगा उसकी सन्तान कभी भी अपने माता पिता का सम्मान नहीं कर
सकेंगे।
कैसे सेवा की जाय :-
माता-पिता की सेवा किस तरह करनी चाहिए और कैसी करनी चाहिए? उन्हें आप स्वयं स्नान कराएं,
उन्हें खिलाकर खाएं, उन्हें नींद आने पर आप सोएं, उनसे पहले आप जग जाएं, जब वे सोएं
तब उनकी चरण-सेवा करें, उठते समय भी उनकी चरण-सेवा करें, मधुर स्वर में उन्हें जगाएं
और तुरन्त चरणों में नमस्कार करें। क्या यह सब आप करते हैं? आप तो यदि खाने की कोई
उत्तम वस्तु लाते हैं, तो स्वयं खा जाते हैं और ऊपर से यह कहते हैं कि ‘उस बुड्ढे को
क्या खिलाना है?’ माता-पिता के लिए राज्य-सिंहासन को ठोकर मार देने के भी शास्त्रों
में दृष्टांत हैं। माता-पिता चौबीसों घण्टे धर्म की आराधना कर सकें, ऐसी व्यवस्था पुत्रों
को अवश्य करनी ही चाहिए। यहां जो बात है वह आत्म-कल्याण संबंधी है। यदि मोह घटाना हो
तो ही माता-पिता से बिछुडने की बात है। स्वार्थ वश माता-पिता की आज्ञा का उलंघन कर
के अलग रहने वाले पुत्र तो कृतघ्नी ही होते हैं। शास्त्रों में तो पुत्र के लिए कर्तव्य
बताया गया है कि स्वयं सुमार्ग पर चलकर माता-पिता को भी सुमार्ग की ओर, धर्म की ओर
मोडे तो ही उनके उपकार का बदला चुकाया जा सकता है। माता-पिता मोहवश पुत्र को सुमार्ग
पर जाने से रोके तो एक बार उनकी अवज्ञा कर के भी स्वयं सुमार्ग पर दृढ हों और फिर उन्हें
भी सुमार्ग की ओर उन्मुख करें।
माता-पिता के अनेक उपकार:- हमारे माता-पिता हमारे
लिए आदरणीय होते हैं l उन्होंने हमें जन्म दिया है, हमारा पालन-पोषण किया है l उन्होंने
हम पर अनगिनत उपकार किये हैं, जिसका बदला चुका पाना असंभव है l वे हमारे पहले गुरु
होते हैं l भगवान से भी पहले उनकी पूजा की जाती है l हमारे माता-पिता भगवान का ही रूप
होते हैं l भगवान ने हमारी रक्षा के लिए हमारे माता-पिता को भेजा है l माता-पिता की
सेवा भगवान की ही सेवा है l माता-पिता की सेवा से भगवान खुश होते हैं l माता-पिता के
क़दमों में स्वर्ग होता है, उनके आशीर्वाद से हमें हर क्षेत्र में सफलता मिलती है l
उनके आशीर्वाद से हमें हर मुसीबत से छुटकारा मिलता है l उनका आदर करना और अपने से बड़ों
का सम्मान करना हमारा सबसे पहला धर्म है l
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