सत्य वह नहीं जो दिखाई पड़ता है, अपितु उसके पीछे छिपा अदृश्य भी सत्य हो सकता है। साधारण जीव तो हर दृश्यमान बस्तु को सत्य समझने का भ्रम कर सकता है। वह सांसारिक वृत्तियों व चालाकियों को समझने की शायद ही कोशिस करे। चतुर व्यक्ति अपने ज्ञान और विवेक का प्रयोग करके सत्य को भ्रमित कर सकता है। संसार तो उस चतुर व्यक्ति के कृत्य को सही समझने का भ्रम कर सकता है। इस सत्य को तो केवल परम पिता परमेश्वर ही देखता है और समझता है। मेरा आग्रह बस इतना ही है कि प्रथम दृष्टया किसी निष्कर्ष पर पहुचने के पूर्व उसकी वास्तविकता में भी जाना चाहिए। एक निर्दोष का वह दण्ड नहीं दिया जाना चाहिए, जिसे उसने किया ही नहीं है। उसे अपनी सत्यता प्रमाणित करने का अवसर दिया जाना अनुचित नहीं है। यदि आप समझते हैं कि आप यहाँ से कुछ लेकर जा रहे हैं, तो आप कुछ भी नहीं लेकर जा रहें हैं, और यदि आपको लगता है कि आप खाली हाथ जा रहें हैं, तो आप बहुत कुछ लेकर जा रहें हैं.
सत्य, यह एक ऐसा तथ्य जिसमें बड़े-बड़े ज्ञानी भी भ्रमित हो जाते हैं, जीवन का आरम्भ क्यों होता है और उसका अंत क्यों होता है अर्थात मृत्यु क्यों होती है, इसी तथ्य को जानना सांसारिक सत्य है, संसार के सभी धर्म इसी सत्य को जानने का प्रयास कर रहें हैं - भौतिक स्तर पर हमें जीवन-मृत्यु और जीवन चक्र ही सत्य प्रतीत होता है परन्तु आध्यात्मिक स्तर पर सत्य जीवन - मृत्यु से परे की वस्तु है जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में केवल हम पदार्थ (भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में) और ऊर्जा को ही प्रत्यक्ष रूप से और परोक्ष रूप से भी अनुभव करते हैं, परन्तु इस पदार्थ और ऊर्जा का नियंता, कारण कौन है, वही कारण ही सत्य है !
ॐ असतो मा
सद्गमय | तमसो
मा ज्योतिर्गमय ||
मृत्योर्मामृतं गमय
|| ॐ शांति:
! शांति: ! शांति: !!!
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