Wednesday, July 26, 2017

आखिर कलिकाल ने “अपूज्यो यत्र पूज्यंते” का अपना प्रभाव दिखा ही दिया डा.राधेश्याम द्विवेदी

कलियुग के लिए चित्र परिणाम                                                          
मित्रों,
एक लम्बे अन्तराल के उपरान्त आप से मुखातिब होने का अवसर पा सका हॅू, इसमें मेरा अपना निजी कोई दोष मेरे समझ से नहीं रहा है, अपितु कलिकाल के प्रभाव से सारी स्थितियां एक के बाद एक आती गयी और वह अपने दुष्प्रभाव या सुप्रभाव से  हमें अपने चक्रव्यूह में समेटती गयीं। वर्ष 2016 से आरम्भ होकर 2017 के मध्य तक उसने अपने आगोश में हमें पूरी तरह ले ही लिया और ना भूल सकने वाला अपना प्रभाव दिखा ही दिया। कभी कुछ अनुकूल ग्रह तथा दशाओं से किसी किसी समस्या में अनुकूलता गयी और थोड़ी समय की थोड़ी मुस्कान भी मिली पर स्थाई नहीं रही।
 कलिकाल के प्रभाव के चलतेअपूज्यो यत्र पूज्यंते” का प्रभाव सर्वत्र देखा जा रहा है। जब हम श्रीमद्भागवत के द्वादश स्कन्ध में वणिर्त कलि के लक्षणों को पढते हैं, तब हमारे रोगंटे खडे हो जाते हैं उन र्सवज्ञ भगवान व्यासदेव के चरणों में श्रद्धा के कारण स्वतः ही हमार सिर झुकने लगता है कलियुग सब युगों से छोटा है इसकी आयु चार लाख बत्तीस हजार वर्ष की ही है इस में अभी केवल पाँच हजार से कुछ ही अधिक वर्ष बीते हैं फिर भी भगवान व्यासदेव द्वारा उल्लेखित कलियुग के वे लक्षण प्रत्यक्ष दिखने लगे हैं वे भविष्यवाणी करते हैं. कलियुग आने पर चारों ओर दस्युओं का साम्राज्य होगाए वेद पाखण्ड.मार्गों से दूषित हो जाएगा ब्रहृमचारी केवल नाम के रह जाएंगे ब्राहृमण पढना छोडकर शिश्नोदर.परायण बन जाएंगे और गृहस्थ लोग भीख मांगने लग जाएंगे व्यापार के लेन.देन में झूठ और धोखे की ही प्रधानता होगी द्रव्यहीन होने पर नौकर और स्त्रियाँ अपने स्वामियों का परित्याग करके अन्यत्र चली जाएंगी पुरुष स्त्रियों के पालतू कुत्ते बन जाएंगे सन्यासी भी द्रव्य इकठ्ठा करेंगे अपने को वानप्रस्थ कहने वाले मनुष्य गांवों में आकर रहने लगेंगे फल वाले वृक्ष नष्ट हो जाएँगे बीस.पचीस वर्षकी औसत आयु ही लोगों की परमायु समझी जाएगी दूध देने वाले जानवरों में बकरी ही बड़ी समझी जाएगी ब्राहृमणों का चिहृन केवल यज्ञोपवीत ही रह जाएगा भूषण श्रृंगार आदि सभी नष्ट हो जाएंगे
2016 में सेवामुक्त होने की नोटिस जहां एक सामान्य प्रक्रिया थी। वहीं मेरे कार्यालय में मेरे सेवा से सम्बन्धित अनेक प्रकरण रिकार्डतोड़ अवधि तक लटकते रहने में हम किसी कर्मचारी अधिकारी को दोषारोपित नहीं करना चाहतेे हैं, अपितु कलिकाल के प्रभाव में आकर अनुकूलता के बजाय प्रतिकूल परिणाम को झेलने के लिए हमें विबस होना मानते हैं। हमें समय से रिलीवर ना मिलना, समय से चार्ज पूरा ना होना, कृत्घनी एक सपूत द्वारा जननी को घर से निष्कासित कर देना, जननीे द्वारा सपूत को बार बार बुलाने पर भी अपनी ज्ञानचक्षु को बन्द किये रखना तथा किसी और के प्रभाव में आकर अपने कर्तव्यों से विमुख होना, लौकिक पारलौकिक भय से जननी द्वारा वास्तविकता से मुझे अवगत ना कराया जाना तथा अन्ततः बिना पर्याप्त समय दिये मातृऋण की जिम्मेदारियों को पूरा करने का अवसर ना मिल पाना आदि छोटे पर बहुत मर्मस्पर्शी क्षणों से अभी हाल में हमें गुजरना पड़ा है। मां की चिकित्सा में कष्टकर समय अर्थ तथा एकाकीपन का एहसास हुआ है। वहीं कई तरह की अन्य भ्रांतियां भी टूटी हैे। मैं जहां सत्युग के कुछ सूत्रों को अपने शेष जीवन का आधार बनाना चाहता था लोगों की सेवा हेतु अपनी अगली पीढी को प्रेरित करने तथा जन सेवा में लगाने की सुखद अनुभूति महसूश कर रहा था वहीं कलिकाल के प्रभाव में आकर परिवारिक जनों के व्यवहार ने हमारे मार्ग को अवरुद्ध कर मुझे भी उसी तरह जीने के लिए विवस कर दिया है। यह तो वक्त बतायेगा कि हम किस पथ पर चलेंगें पर हृदय एक बहुत बडे आत्मीय टीस की पीड़ा को सहते सहते सामान्य होने का प्रयास कर रहा है। इसी बीच मेरा यह टाइप यंत्र भी हैंग हो गया था अन्यथा अपनी अनुभूतियों को शब्दों में पिरोने का और अवसर मिल गया होता भोर के 3 बजने वाले हैं आज इतना ही लिखने की क्षमता है। शेष फिर लिखने का प्रयास करुंगा। इति शुभम्।


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