मित्रों, आज मेरी सरकारी
सेवा का आखिरी दिन है। मैनें 30 साल 3 माह 20 दिन की सेवा पूरी कर ली है। अपने क्षमता
के अनुसार भारत सरकार का तथा प्रदेश तथा देश की सेवा करने का प्रयास किया है। कई काम
चाहते हुए अपनी मयार्दाओं के कारण हम नही निभा पाये हैं। यदि परमेश्वर स्वस्थ रखेगा
तो अवश्य कुछ वह सब करने का प्रयास करुंगा जों अब तक नहीं कर सका है। मेरे पास वकालत
का लाइसेंस भी हैं । इस व्यवसाय में यदि जाना पड़ा तो अपने किसी स्वार्थ के लिए नहीं
अपितु जन सेवा के लिए जाना पसन्द करुंगा। मैं सेवानिवृत्ति के बाद कोई संवैधानिक या
सरकारी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करुंगा। एक इतिहास तथा पुस्तकालय विज्ञान के सेवक के
रूप में मैंने 30 साल के कार्यकाल में नियमानुसार और जरुरत से ज्यादा लागों के ज्ञान
के यज्ञ में अपनी आहुति देने का प्रयास किया हैं। इस मिशन में अच्छे और बुरे हर तरह
के लोगों के अनुभवों का सामना करना पड़ा। यह मेरा अनुभव रहा कि इस व्यवसाय में लोग ईमानदारी
से सहयोग नहीं करते और अपने सीमित स्वार्थ तथा क्षणिक लाभ के लिए दूसरे के अधिकारों
का हनन भी करने से चूकते नहीं है।
मेरी सेवानिवृत्ति से सम्बन्धित
अनेक औपचारिकताये अभी अधूरी हैं। ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि अधिकार सम्मत लोगों
में सद्बुद्धि आये और मेरा मार्ग सुगम बन सके। कहा यह भी जाता है कि यदि कोई वैधानिक
अड़चन न हो तो सेवानिवृत्ति तारीख की शाम तक परिलाभों का भुगतान कर दिया जाना चाहिए।क्या
भारत में यह सम्भव हो सकेगा ? काश एसा होता! पुस्तकालयों की हालात अब ठीक नहीं रही
हैं। पुस्तक कर्मी स्वयं कुछ भी नहीं कर सकता हैं। सब कुछ उसके बास तथा उनकी इच्छा
शक्ति पर निर्भर होता हैं। काश! सब कुछ अनुकूल तथा सकारात्मक बन सके। आप सभी को बहुत
बहुत बधाई। यदि किसी के प्रति जाने अनजाने कोई असुविधा हुई हो तो उसके लिए सविनय खेद
तथा क्षमा याचना।
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