Tuesday, June 27, 2017

व्यथा एक पुजारी की - डा. राधेश्याम द्विवेदी



सरस्वती की सेवा, ना सेवा कोई था,
इसे हमने पूजा ज्ञान अपना बढ़ाया।
जो भी काम दिया, वखूबी निभाया,
मगर प्यार सम्मान, कुछ भी ना पाया।।

विद्या मंदिर की, रोशनी जगमग चमकी,
जो चाहा इसे, हर कोई लाभ पाया।
हमें कोई शिकवा, शिकायत नही हैं,
जैसी दिया सुविधा, वैसा ही फल पाया।।

पुस्तक सहायक से अधिकारी बन गया था
पर कोई भी अधिकार मुझमें ना आया।
ये अपनी लकुटि कमरिया संभालों ,
हमे आप सबने नाच बहुत नचाया।।

ये राधे किसन सूर नजीर की धरती,
रहीम मीर गालिब सभी को है भाया।
ब्रज मण्डल आगरा पश्मिोत्तर प्रान्त था,
जिसने अपनी रौनक चतुर्दिक बढ़ाया।।

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