पुरानी
भारतीय-आध्यात्मिक पद्धति:- योग 5,000 साल पुरानी भारतीय शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक
पद्धति है, जिसका लक्ष्य मानव शरीर और मस्तिष्क में सकारात्मक परिवर्तन लाना है। योग
परम्परा और शास्त्रों का विस्तृत इतिहास रहा है। जिस तरह राम के निशान इस भारतीय उपमहाद्वीप
में जगह-जगह बिखरे पड़े है उसी तरह योगियों और तपस्वियों के निशान जंगलों, पहाड़ों
और गुफाओं में आज भी देखे जा सकते है। माना जाता है कि योग का जन्म भारत में ही हुआ।
गीता
में श्रीकृष्ण ने एक स्थल पर कहा है ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ (कर्मो में कुशलता
को योग कहते हैं)। स्पष्ट है कि यह वाक्य योग की परिभाषा नहीं है। कुछ विद्वानों का
यह मत है कि जीवात्मा और परमात्मा के मिल जाने को योग कहते हैं। बौद्धमतावलंबी भी योग
शब्द का व्यवहार करते और योग का समर्थन करते हैं। यही बात सांख्यवादियों के लिए भी
कही जा सकती है जो ईश्वर की सत्ता को असिद्ध मानते हैं। पंतजलि ने योगदर्शन में, जो
परिभाषा दी है ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:’, चित्त की वृत्तियों के निरोध- पूर्णतया रुक जाने का नाम योग है। इस वाक्य
के दो अर्थ हो सकते हैं चित्तवृत्तियों के निरोध की अवस्था का नाम योग है या इस अवस्था
को लाने के उपाय को योग कहते हैं। संक्षेप में आशय यह है कि योग के शास्त्रीय स्वरूप,
उसके दार्शनिक आधार, को सम्यक् रूप से समझना बहुत सरल नहीं है। हम यह बात समझ सकते
हैं कि योग एक प्राचीन परम्परा है और भारत में जीवनशैली। योग को हम जीवन में पुन: शामिल
कर लेते हैं तो नैतिक मूल्यों में वृद्धि होगी।
मध्यप्रदेश
में योग की कक्षाएं:- मध्यप्रदेश सरकार ने एक बड़ी दृष्टि के साथ यह बात
समझा और राज्य के समस्त पाठशालाओं के विद्यार्थियों के लिए नियमित रूप से योग की कक्षाएं
लगाने की सहमति प्रदान की है। इसके पीछे सीधा सा तर्क यह है कि बच्चों को योग सिखाने
से अनेक पीढिय़ों में योग विद्या चली जाएगी और उसके बाद की पीढिय़ां स्वयमेव इस योग विद्या
को आगे बढ़ाती रहेंगी और योग विद्या के संरक्षण एवं संवर्धन में बेहतर प्रयास करेंगी।
यह हमारे लिए गौरव की बात है कि भारत के प्रयासों से योग विद्या को अंतर्राष्ट्रीय
ख्याति मिली है और यह बात एक बार फिर स्थापित हो गया है कि हमसा कोई और नहीं।
यूपीए
सरकार की पहल पर वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र ने महात्मा गाँधी के जन्मदिन यानि
2 अक्टूबर को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के तौर पर घोषित किया था। बेंगलुरू में
2011 में पहली बार दुनिया के अग्रणी योग गुरुओं ने मिलकर इस दिन ‘विश्व योग दिवस’ मनाने
पर सहमति जताई थी। संयुक्त राष्ट्र में भारत के लिए पिछले सात सालों के दौरान यह इस
तरह का दूसरा सम्मान है।
सबसे
अधिक प्रभावी दिन:- अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को मनाया जाता है।21 जून पूरे कैलेंडर वर्ष का सबसे लम्बा दिन है। प्रकृति, सूर्य और उसका तेज
इस दिन सबसे अधिक प्रभावी रहता है। इस दिन को किसी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर
नहीं, बल्कि प्रकृति को ध्यान में रखकर चुना गया है। पहली
बार यह दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी ने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त
राष्ट्र महासभा में अपने भाषण से की थी जिसमें उन्होंने कहा: " योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता
का प्रतीक हैं; मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार, संयम और पूर्ति प्रदान
करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला
है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति
की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन शैली में यह चेतना बनाकर, हमें जलवायु परिवर्तन
से निपटने में मदद कर सकता हैं। तो आयें एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की
दिशा में काम करते हैं।’’—नरेंद्र
मोदी, संयुक्त
राष्ट्र महासभा।
संयुक्त
राष्ट्र से मंजूर:- प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी की पहल के बाद 21 जून को
" अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस" घोषित किया गया। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त
राष्ट्र में 193 सदस्यों द्वारा 21 जून को " अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस"
को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन
के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र
संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। विश्वविद्यालय अनुदान
आयोग (यूजीसी) ने विश्वविद्यालयों से 21 जून को होने वाले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर
छात्रों और शिक्षकों की अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित के करने के लिए एक ‘कार्य योजना’
तैयार करने लिए कहा है।
विश्वविद्यालयों
को लिखे पत्र में यूजीसी के सचिव जसपाल एस संधू ने विश्वविद्यालयों साथ ही संबद्ध निकायों
में दिवस मनाने में उनके कुलपतियों की ‘व्यक्तिगत भागीदारी’ की मांग की। उन्होंने
पत्र में लिखा, ‘मैं आपसे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए कार्य योजना तैयार करने का
और साथ ही योग दिवस समारोहों में आपके प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के छात्रों एवं शिक्षकों
की विस्तृत भागीदार सुनिश्चित करने का अनुरोध करता हूं।’ संधू ने योग दिवस पर पालन
किए जाने वाले योग के 45 मिनट का प्रोटोकॉल भी भेजा जिसे आयुष मंत्रालय ने तैयार किया
है।पीएम मोदी ने कहा कि
21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ने उनके मन को उसी तरह आंदोलित कर दिया, जिस तरह
से यूएन में यह विषय रखने के मौके पर उन्हें महसूस हुआ था। उन्होंने कहा, 21 जून को
जहां-जहां सूरज की किरणें गईं, दुनिया का कोई भूभाग ऐसा नहीं था, जहां योग के द्वारा
सूर्य का स्वागत न हुआ हो।
'ओम' जाप की बाध्यता
नहीं:- आयुष मंत्रालय ने 14 जून को कहा है
कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर योग सत्र से पहले 'ओम' और अन्य वैदिक मंत्रों
का जाप अनिवार्य नहीं, बल्कि ऐच्छिक है। मंत्रालय के संयुक्त सचिव
अनिल कुमार गनेरीवाला ने कहा, "योग सत्र से पहले 'ओम' का जाप करने की बाध्यता
नहीं है। यह बिल्कुल ऐच्छिक है, कोई चुप भी रह सकता है, कोई इस पर आपत्ति नहीं करेगा।"
गनेरीवाला का यह बयान केंद्र सरकार के परिपत्र के बाद
आया है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर योग सत्र से 45 मिनट पहले 'ओम' और कुछ वैदिक
मंत्रों के जाप का प्रस्ताव है। इस मामले में मीडिया रिपोर्टों को अंतरराष्ट्रीय योग
दिवस को विवादास्पद बनाने का प्रयास बताते हुए उन्होंने कहा कि हालांकि 'ओम' का उच्चारण
योग का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन इसे अनिवार्य बनाने का कोई नियम नहीं है। गनेरीवाला
ने कहा कि बदलावों के तौर पर आयुष मंत्रालय ने कार्यक्रम में एक नया आसन जोड़ा है और
प्रणायाम की अवधि दस मिनटों के लिए बढ़ा दी है।
इस
मुद्दे पर जनता दल (युनाइटेड) के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा, 'यह (ओम का जाप)
सिख, इस्लाम और बौद्ध धर्म में एक हस्तक्षेप है। इसे अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए।'
वहीं अभिनेता अनुपम खेर ने कहा, 'ओम' शब्द योग के साथ जुड़ा हुआ है। यह अच्छा होगा,
अगर हम इसे विवाद में तब्दील न करें।अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की तैयारियां
जोरों पर है। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चंडीगढ़ में योग करते हुए दिखेंगे। साथ
ही मेक इन इंडिया के तहत अतंरराष्ट्रीय योग दिवस को भारतीयता से जोड़ा जाएगा और आयोजन
में कपड़ों से लेकर चटाई तक भारत के ही होंगे।
योग को विश्व का सिरमौर बनवा देना:- प्रधानमंत्री आते हैं और जाते हैं।
किसी को उनके नाम भी याद नहीं रहते। 15-20 साल बाद लोग यह भी भूल जाते हैं कि भारत
का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री कौन कब रहा है? आगरा, दिल्ली और काबुल में कई बादशाह
हुए, अब उन्हें कौन जानता है? उनका जन्म-दिन न कोई मनाता है और न ही पुण्यतिथि। लेकिन
कभी-कभी वे कुछ काम ऐसे कर जाते हैं कि जिनके कारण उन्हें सदियों तक याद रखा जाता है।
हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक काम ऐसा किया है, जिसके कारण भारत ही
नहीं सारा विश्व उन्हें सदियों तक यादरखेगा। वह काम है,
भारत के योग को विश्व का सिरमौर बनवा देना। संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा 21 जून को विश्व
योग दिवस मनाना आखिर क्या है? यह भारत को विश्व-गुरु बनाना नहीं है तो क्या है? विश्व
का कौनसा कोना है, जहां 21 जून को हजारों-लाखों स्त्री-पुरुषों ने योगाभ्यास नहीं किया?
दुनिया के सभी ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और यहूदी देशों ने योग को मान्यता दी याने भारत
को गुरु धारण किया। योग सिर्फ आसन-प्राणायाम नहीं है। आसान-प्राणायाम तो समाधि तक पहुंचने
की पहली सीढ़ी है। यदि भारत की प्रेरणा से दो-तीन अरब लोग भी इस पहली सीढ़ी को पकड़ ले
तो हमारी दुनिया का नक्शा ही बदल जाएगा। पिछली दो-तीन सदियों में पश्चिम ने अपनी वैज्ञानिक
प्रतिभा से दुनिया का बाहरी रुप एकदम बदल दिया है। लेकिन अब विश्व-सभ्यता को भारत की
यह अनुपम देन होगी कि भारत योग के जरिए दुनिया के अंदरुनी रुप को बदल देगा। अंदरुनी
रुप बदलने का अर्थ है, चित्त-शुद्धि। यदि मनुष्य का चित्त शुद्ध हो, निर्विकार हो तो
हिंसा, आतंक, शोषण, दमन, भेद-भाव– ये सब दोष कहां टिक पाएंगे? भारत के योग से प्रभावित
नई दुनिया की जरा हम कल्पना करें। यो तो योग पहले भी दुनिया के कई देशों में फैल चुका
था लेकिन अब इसे विश्व-स्वीकृति मिल गई है। इसका प्रमाण यह है कि इसे सभी मजहबों, सभी
जातियों, सभी रंगों, सभी विचारधाराओं वाले देशों ने अपना लिया है। इसका श्रेय नरेंद्र
मोदी को मिले बिना नहीं रहेगा।
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