(भा.पु.स.उत्तरी मण्डल कड़ी 5 )
1 अक्तूबर
1885 को मेजर जनरल कनिंघम पुरातत्व महानिदेशक पद से सेवा
मुक्त हुये थे । उसने उत्तर भारत को 3 मण्डलों में बांटने की संस्तुति दी
थी। उस समय ये
मण्डल निम्न थे-1. पंजाब सिंध एवं राजपूताना,2. नार्थ वेस्टर्न प्राविंस एण्ड अवध (वर्तमान उत्तर प्रदेश) विद द सेंट्रल इण्डिया
एजेन्सी एण्ड सेंट्रल प्राविंस,3. बंगाल (वर्तमान बिहार व उड़ीसा) तथा
छोटा नागपुर।1885 में विभाजित हुए उत्तर भारत के 3 प्रमुख मण्डलों को 1899 में 5 मण्डल कार्यालय बनाये गये। उस समय ये
मण्डल निम्न थे - 1. मद्रास और कुर्ग, 2. बाम्बे,
बेरार और सिंध, 3.
पंजाब , बलूचिस्तान एवं अजमेर, 4. नार्थ वेस्टर्न प्राविंस एण्ड सेंट्रल प्राविंस और 5. बंगाल तथा आसाम।
उत्तर
भारत में नार्थ वेस्टर्न प्राविंस एण्ड अवध तथा पंजाब प्रसीडेन्सी आदि का क्षेत्र ही
प्रारम्भिक ब्रिटिश काल से उत्तरी मण्डल
के भूक्षेत्र को आच्छादित करता
आ रहा है। विंध्य एवं आरावली पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य अवस्थित
यह क्षेत्र भौगोलिक रुप से आर्यावर्त मध्य
देश एवं पंजाब के नाम से
जाना जाता रहा है। इस पंजाब में
हिमंचल दिल्ली हरियाणा आदि सभी समाहित था।1901 में नार्थ वेस्टर्न प्राविंस एण्ड अवध के अधीन 3 उप
मंडल बने - 1. आगरा,
2. लखनऊ , 3. इलाहाबाद। 1902 में ही जब जान
मार्शल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक बने
तो बाद में 1906 भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पुनः गठित होकर 5 से 6 मण्डलों मं बना। इसमें
आगरा एवं दिल्ली का पुनः गठन
हुआ था। इस समय मण्डलों
का गठन इस प्रकार हुआ
था- 1 पाश्चात्य (बेस्टर्न ) - बम्बई, सिंध ,हैदराबाद , मध्य भारत एवं राजपूताना, 2. अवाच्य- मद्रास कुर्ग , 3. उदीच्य-उत्तर प्रदेश, पंजाब,अजमेर और काश्मीर ,4. प्राच्य
ईस्टर्न- बंगाल असम मध्य
प्रदेश एवं बरार, 5. सीमा प्रान्त- पश्मिोत्तर सीमा प्रान्त एवं बलूचिस्तान और 6. वर्मा मंडल। 1902 में नार्थ वेस्टर्न प्राविंस का नाम यूनाइटेड
प्राविंस आफ आगरा एण्ड
अवध कर दिया गया।
आगरा में मुस्मिल स्मारकों के बहुलता के
कारण इस मण्डल का
मुख्यालय सितम्बर 1903 में लखनऊ से हटाकर आगरा
बनाया गया। अधीक्षक का एक पद
लाहौर मे पदास्थापित किया
गया। उसका मुख्यालय लाहौर बनाया गया।
उत्तरी मंडल में पुस्तकालय की स्थापना:-यूनाइटेड
प्राविंस आफ आगरा एण्ड
अवध तथा पंजाब सर्किल का मुख्यालय आगरा
हो ही गया था।
प्रधान नक्शानवीस मुंशी गुलाम रसूल बेग के पास इस
मण्डल का प्रभार आया
जो 4 दिसम्बर 1903 तक पुरातत्व सर्वेक्षक
कार्यालय के प्रभारी रहे।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक ने
डबलू एच निकोलस को
7 मार्च 1904 को आगरा के
सर्वेक्षक का प्रभार लेने
के लिए महानिदेशक कार्यालय कार्यमुक्त किया। इस अवधि में
यूनाइटेड प्राविंस पंजाब का प्रभार महानिदेशक
के पास रहा। 1904 -05 तक अकालाजिकल सर्वेयर
यूनाइटेड प्राविंस एवं
पंजाब का पद नाम
मिलता है। इस क्षेत्र को
1905-06 में उत्तरी नार्दन सर्किल के रुप में
जाना जाने लगा। अब तक डबलू
एच निकोलस यहां पर सर्वेयर पद
पर बना रहा। इसी समय से उत्तरी मंडल
में पुस्तकालय की स्थापना हेतु
पुस्तकों का क्रय किया
जाना शुरु हो गया था।
1905-10 तक
यह भूभाग नार्दन सर्किल उत्तरी मंडल के रुप में प्रयुक्त होता रहा है। 1905-06 से
1910-11 तक यूनाइटेड प्राविंस एवं पंजाब का भूभाग नार्दन सर्कल के रुप में प्रयुक्त
होता रहा। अभी तक मण्डल प्रमुख को आर्कालाजिकल सर्वेयर के रुप में जाना जाता था।
1911 की एनुवल प्रोगे्रस रिपोर्ट में आर्कालाजिकल सर्वेयर के साथ साथ सुप्रिन्टेन्डेन्ट
का पद भी प्रयुक्त होने लगा। गार्डन सैण्डर्सन उत्तरी मंडल का अन्तिम सर्वेयर तथा प्रथम
सुप्रिन्टेन्डेन्ट रहा। पुरातत्व सर्वेयर टक्कर साहब नें 1 जुलाई 1908 में कैन्ट के
आपरेशन के दौरान एक पखवाड़े के अल्प समय के नोटिस पर आये उन्हें सिविल लाइन्स में दूसरा
कार्यालय भवन खोजना था। उन्हे एक अन्य मकान
हेतु 55 रुपये प्रति डमदेमउ किराये की और स्वीकृति लेनी पड़ी। यद्यपि 1908 में सिविल
लाइन्स में दूसरा किराये का मकान मिल गया था। एक तरफ सर्वेयर का पद नाम बदलकर 1911
में सुप्रिन्टेन्डेन्ट हो गया दूसरी ओर स्मारकों के प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण करके
दो पृथक पृथक मण्डल बनाये गये। लाहौर मुख्यालय बनाते हुए नार्दन सर्किल का हिन्दू बोद्धिस्ट
मोनोमेंट एक पृथक सर्किल बनाया गया। आगरा स्थित पुराना नार्दन सर्किल अब मुस्लिम एण्ड
ब्रिटिस मोनोमेंट का मुख्यालय बन गया। वर्तमान 22 मालरोड भवन में कार्यरत रहा। पहले
यह भवन किराये पर रहा और 1922 में उसे स्थाई रुप से क्रय करके भारत सरकार ने इसे अपना
लिया।
वर्ष
1904-05 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 22 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया
300 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। वर्ष 1906-07 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में
21 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 198 पांच आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया।
वर्ष 1907-08 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 23 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया
200 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। वर्ष 1908-09 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में
20 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 199 ग्यारह आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया।
10 पुस्तकें निःशुल्क प्राप्त हुईं। पायनियर नामक समाचार प़त्र खरीदा जाने लगा था।
वर्ष 1909-10 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 32 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया
217 चार आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया।इसके अलावा 11 पुस्तकें दान में तथा तीन
पाण्डुलिपियां प्राप्त हुईं। इस साल भी पायनियर पेपर मंगवाया गया। वर्ष 19010-11 में
उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 15 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 199 बारह आने पुस्तकालय
के लिए खर्च किया गया। इस साल 19 पुस्तके दान स्वरुप प्राप्त हुईं। वर्ष 1911-12 में
उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 24 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 पुस्तकालय
के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 48 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1912-13
में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 18 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 297 चार आने
पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 01 पुस्तक दान में प्राप्त हुईं। वर्ष
1913-14 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 35 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया
160 तेरह आने 6 पैसे पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। वर्ष 1914-15 में उत्तरी मण्डल
के पुस्तकालय में 05 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 371 पांच आने पुस्तकालय के लिए
खर्च किया गया। इसके अलावा 12 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1915-16 में उत्तरी
मण्डल के पुस्तकालय में 03 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 147 तेरह आने पुस्तकालय
के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 24 पुस्तकें
दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1916-17 वर्ष 1917-19 तथा वर्ष 1918-19 का विवरण उपलब्ध
नहीं है।1920-.21 में 24 पुस्तकें दान में प्राप्त हुई भी कही गयी हैं। वर्ष
1921-22 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 34 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200
पुस्तकालय के लिए एलाट तथा रुपया Rs. 125
Annas 15 खर्च किया गया। वर्ष 1922-23 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 03 पुस्तकें
खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 एलाट तथा रुपया
Rs. 166 Annas 02 Paise 02 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 33 पुस्तकें
दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1923-24 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 12 पुस्तकें
खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 एलाट तथा रुपया
Rs. 215 Annas 11 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 42 पुस्तकें दान
में प्राप्त हुईं । वर्ष 1924-25 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 27 पुस्तकें खरीदी
गईं। इस साल रुपया 700 एलाट तथा रुपया Rs.
1259 Annas 12 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 22 पुस्तकें दान में प्राप्त
हुईं । वर्ष 1925-26 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 22 पुस्तकें खरीदी गईं। इस
साल रुपया 300 एलाट तथा रुपया Rs. 300
Annas 14 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 27 पुस्तकें दान में प्राप्त
हुईं । वर्ष 1926-27 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 30 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके
अलावा 34 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1927-28 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय
में 14 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष
1928-29 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 22 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 24 पुस्तकें
दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1929-30 में उत्तरी
मण्डल के पुस्तकालय में 06 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 24 पुस्तकें दान में प्राप्त
हुईं । वर्ष 1930-31 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 74 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके
अलावा 41 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1931-32 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय
में 09 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 24 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष
1932-33 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 23 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें
दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1933-34 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 15 पुस्तकें
खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1934 -35 में उत्तरी
मण्डल के पुस्तकालय में 23 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 23 पुस्तकें दान में प्राप्त
हुईं । वर्ष 1935-36 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 33 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके
अलावा 56 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1936-37 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय
में 33 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष
1937-38 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 10 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 35 पुस्तकें
दान में प्राप्त हुईं ।आगरा मण्डल जो कि प्रारंभ में उत्तरी मण्डल के नाम से जाना जाता था। मण्डल का मुख्यालय 22 माल रोड, आगरा में स्थित है। प्रसिद्ध विद्धान आर. फ्रोड टकर, मुहम्मद शोएब, गोर्डन सैन्डर्सन, एच. हरग्रीव्स, जे. एफ. ब्लेकीस्टोन, जे. ए. पागे, मौलवी जफर हसन, एम. एस. वत्स, के. एन. पुरी, बी.बी. लाल, एस. सी. चन्द्रा, एस. आर. राव, एन. आर. बनर्जी, वाई.डी. शर्मा, डी. आर. पाटिल, डब्लू. एच. सिद्धीकी, समय -समय पर मण्डल कार्यालय के कार्यालयाधक्ष के रूप में पदासीन रहे है। वर्तमान में आगरा मण्डल उत्तर प्रदेश के 24 जिलों में स्थित 265 स्मारकों पुरास्थलों की देखभाल कर रहा है। उक्त कार्य के सफल संचालन हेतु ताजमहल, आगरा किला, एतमाद-उद-दौला, सिकन्दरा, फतेहपुर सीकरी, मथुरा, मेरठ एवं कन्नौज मण्डलों की स्थापना की गई है।
(फुरसत के क्षणों में आगे फिर कभी …)
No comments:
Post a Comment