Sunday, May 28, 2017

कर्ज और फर्ज - डा. राधेश्याम द्विवेदी


ब्रह्म इस विश्व की सबसे बड़ी परम तथा नित्यचेति सत्ता है जो जगत का मूल कारण है। उसे ही सत, चित्त आनंद स्वरूप माना जाता है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में पृथ्वी  आकाश  पाताल के समस्त प्राणी, जीव-जन्तु, पेड़-पौधे तथा वनस्पति आदि सभी कुछ इसी में समाहित हैं। इसे हम प्रकृति, परमात्मा, परम पिता, परमेश्वर, परब्रह्म   भगवान इत्यादि अनेक नामों से सम्बोधित करते हैं। अपनी इसी अनादि, अनन्त शक्ति अथवा अपरम्पार क्षमता के कारण भगवान को सर्वोपरि माना गया है। इस ब्रह्माण्ड में स्थित सभी बस्तुयें, जड-चेतन, जीव-जन्तु पंचभौतिक तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और पवन से ही अस्तित्व में आये हैं। इसी से जगत के सारे प्राणियों के भौतिक शरीर की रचना होती है। ईश्वर का  हर प्राणी पर एक और भार होता है जो जीवन पर्यन्त खत्म नहीं हो पाता है। वह है मातृ और कर्म भूमि का कर्ज, जिसे कोई कभी भी नहीं उतार सकता है। इसलिए इंसान को सदैव मातृ और कर्म भूमि की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए। अपनी जन्म कर्म भूमि हमें मातृभूमि जैसी ही लगनी भी चाहिए। उसका कण-कण हमें पवित्र लगना चाहिए। हमारी मातृभूमि, कोई मिट्टी का ढेर नहीं, वह जड़ या अचेतन नहीं, ऐसी हमारी भावना होनी चाहिये। इस प्रकार की जिनकी भावना और श्रध्दा रहेगी, उनका ही राष्ट्र बनेगा और वे ही राष्ट्र के सच्चे सेवक उत्तराधिकारी कहलाये जा सकते हैं। हमें यह हरगिज नहीं सोचना चाहिए कि देश ने हमें क्या दिया, बल्कि हमें यह सोचना चाहिए कि हमने देश को क्या दिया। जिस देश की मिट्टी में हम पैदा हुए, उसका कुछ कर्ज तो हम चुका सकते हैं। हम पढ़-लिखकर आईएएस और आईपीएस के अलावा प्रख्यात डाक्टर इंजीनियर जो भी बनें, लेकिन हम यह भी चाहते हैं कि हम जहां भी रहें हमारी धमनियों में खून के साथ-साथ देशभक्ति की भावना भी बहती रहे। जब देश सुरक्षित रहेगा तभी हम भी सलामत रह सकेंगे। देश की सुरक्षा सिर्फ हमारी ही नहीं, बल्कि इस मुल्क के हर आम अवाम का फर्ज है।
मैं अक्तूबर 1988 में ब्रजमण्डल के आगरा नामक नगर में राजकीय सेवा के माध्यम से आया था। पूरी निष्ठा इमानदारी से अपने फर्ज को अंजाम देता रहा। यहां से हटने के बारे में भी विचार आया। परन्तु विचार से ही हर बात नहीं बनती है। परम ज्योति -परम सत्ता ही हर गतिविधियों का नियामक होता है। उसकी सर्वोच्चता सदैव बरकरार रहती है। उसके सामान्य नियमानुसार जून 2017 में अपनी सेवामुक्त होने वाली आयु को पूरा करते ही हमें यहां से हटकर अपनी जन्म भूमि वापस चले जाना चाहिए। परन्तु लगता है कि अभी कुछ फर्ज अवशेष रह गये हैं। परम सत्ता ने मुझे यहां रुकने के लिए एक माध्यम उत्पन्न कर दिया।

मेरे बेटों की शिक्षा आगरा में ही हुआ था। वे चिकित्सा जगत से जुड़े हैं। उनके लिए किसी एक जगह से बंधना आवश्यक नहीं था। परन्तु परिस्थितियां एसी बनी कि मेंरे बेटे को दो बार काउंसिलिंग में आगरा का कालेज ही मिला। हो सकता है कि हमारा भी कोई कार्य अधूरा रह गया हो जिसे बाद में इस माध्यम से रुककर मुझे पूरा करना हो। मेरी समझ में भलीभांति समझ में गया कि इसे कर्ज कहते हैं जिसे पूरा करना मेरा फर्ज है। और परम सत्ता उसके निमित्त यह जमीन तैयार कर रहा है। उस परम सत्ता को मेरा अन्तःकरण से आभार।

No comments:

Post a Comment